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बजट 2017: कैशलेस के लिए गांवों को बैंकिंग दायरे में लाना जरूरी

गांवों में कैशलेस सोसायटी को बढ़ावा देने में बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंस का अहम योगदान हो सकता है

Pratima Sharma

सरकार कैशलेस सोसायटी का सपना देख रही है. इस सपने को पूरा करने के लिए सरकार तमाम कोशिशें भी कर रही है लेकिन इसकी सबसे बड़ी अड़चन ग्रामीण क्षेत्र है.

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भारत जैसे देश जहां की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती हो और 26 फीसदी आबादी निरक्षर हो, वहां इस कैशलेस सोसायटी का महत्वाकांक्षी मकसद को हासिल करना मुश्किल हो सकता है.

बैंकिंग सेवाओं का विस्तार नहीं 

अभी देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां बैंकिंग सेवाएं नहीं हैं. ऐसे में अगर सरकार कैशलेस सोसायटी का लक्ष्य हासिल करना चाहती है तो उसे बजट में गांवों के लिए कई बड़े ऐलान करने होंगे.

इस बारे में बिजनेस सर्विसेज देने वाली कंपनी एआईएसईसीटी के डायरेक्टर अभिषेक पंडित का कहना है, 'गांवों में कैशलेस सोसायटी को बढ़ावा देने में बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंस का अहम योगदान हो सकता है.'

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उन्होंने कहा, 'कैशलेस सोसायटी को बढ़ावा देने के पुराने तरीकों के अलावा यूटीआई, बैंक वॉलेट जैसे नए तरीकों पर भी जोर देने की जरूरत है.'

बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंस के मायने बैंक के उन अस्थायी कर्मचारियों से हैं, जो दूर दराज के गांवों में जाकर लोगों से मिलते हैं और उन्हें बैंकिंग सेवाएं देते हैं.

टैक्स का बोझ घटाना जरूरी

पंडित का यह भी मानना है कि बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंस नियुक्त करने वाली संस्थाआें पर से टैक्स का बोझ कम करना चाहिए ताकि वे गांवों में तकनीक का विकास करें और कैशलेस गांव तैयार करने में मदद कर सकें.

ये बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंस बैंकिंग कियोस्क के जरिए गांवों वालों को बैंकिंग सुविधाओं के अलावा इंश्योरेंस, प्रोविडेंट फंड जैसी सुविधाएं भी मुहैया करा सकते हैं. डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने वाली संस्थाओं को कुछ इंसेंटिव भी देना चाहिए.

यह काम इतना आसान नहीं है लेकिन सरकार अगर इस दिशा में काम करे तो उसे अपना लक्ष्य हासिल करने में काफी मदद मिल सकती है.

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कैसे बनेगी बात 

पंडित का कहना है कि जब तक गांवों में डिजिटल लेनदेन नहीं बढ़ जाता तब तक इन संस्थाओं को टैक्स छूट देना चाहिए. गांवों को कैशलेस के दायरे में लाने के बाद इन पर टैक्स लगाया जा सकता है.

सरकार अपनी तरफ से तमाम कोशिशें कर रही है लेकिन किसानों को कैशलेस इकोनॉमी में शामिल करना टेढ़ी खीर है. नोएडा के छपरौली बांगर गांव के किसान रूपराम का कहना है, 'ये कैशलेस क्या होता है हमें नहीं पता. नोटबंदी की वजह से हमें अपने पैदावार की सही कीमत नहीं मिल पा रही है.'

नोएडा के ही गुलाबल्ली गांव के जयवीर चौहान का कहना है, 'हमारे पास स्मार्टफोन नहीं है तो हम कैसे अपना काम करें. गांव के आधे से ज्यादा लोगों को पढ़ना लिखना नहीं आता. ऐसे में नोटबंदी ने हमारी मुश्किल और बढ़ा दी है.'

सरकार का बजट देश की उस 70 फीसदी आबादी के लिए काफी महत्वपूर्ण है जो गांवों में रहते हैं. ऐसे में अब देखना है कि सरकार गांवों में कैशलेस को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठाती है.