मोदी सरकार डिजिटल लेनदेन को जबरदस्त ढंग से बढ़ावा देने की नीति पर चल रही है और काले धन पर चोट करने का पक्का इरादा जताती रही है.
इस संबंध में गौरतलब है कि रियल एस्टेट या सोने आदि के विपरीत फाइनेंसियल प्रोडक्ट्स में काले धन को खपाने की संभावना बहुत कम होती है. अगर ऐसी कोशिश की भी जाये तो सारे लेन-देन के सूत्र पकड़े जा सकते हैं.
इस वजह से निवेशकों की यह उम्मीद वाजिब है कि आगामी बजट में फाइनेंसियल प्रोडक्ट में निवेश को प्रोत्साहन दिया जाये. एक बड़ी उम्मीद तो यही है कि इनकम टैक्स ऐक्ट की धारा 80सी के तहत कर छूट के लिए सालाना 1.50 लाख रुपए तक के निवेश की सीमा को बढ़ा दिया जाये. संभव है कि इसे दो लाख रुपए कर दिया जाये.
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इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ने की उम्मीदें तो हैं ही. अभी 60 साल से कम आयु के लोगों के लिए 2.50 लाख रुपए तक की सालाना आय इनकम टैक्स फ्री है.
जबकि 2.50 लाख से 5 लाख रुपए तक की आय पर 10 फीसदी, इसके बाद 5 लाख से 10 लाख रुपए तक की आय पर 20 फीसदी और 25,000 रुपए अलग से, और 10 लाख रुपए से अधिक की आय पर 30 फीसदी और 1.25 लाख रुपए अलग से कर लगता है. साथ ही 2 फीसदी का शिक्षा उपकर और 1फीसदी का उच्च शिक्षा उपकर लागू है.
कुछ लोग तो उम्मीद जता रहे हैं कि इनकम टैक्स फ्री आय की सीमा को बढ़ा कर 4 लाख रुपए किया जा सकता है. हालांकि मेरा मानना है कि सरकार कुछ गुंजाइश अगले साल के बजट के लिए भी बचा कर रखेगी, जो संभवतः 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले का आखिरी बजट होगा.
नोटबंदी के बाद निवेशकों को लुभाना आसान
अगर इनकम टैक्स फ्री आय की सीमा 3 लाख रुपए कर दी जाए और 80सी के तहत 2 लाख रुपए तक निवेश को इनकम टैक्स फ्री किया जाए तो केवल इन दो प्रावधानों से कुल मिला कर 5 लाख रुपए तक की आय पर कर छूट हासिल हो जायेगी.
इसके अलावा भी कर छूट के काफी प्रावधान हैं. जैसे कि 80सीसीडी के तहत राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) में एक साल में 50,000 रुपए तक के योगदान पर कर छूट मिली हुई है. कर छूट के अन्य प्रावधानों का लाभ अलग से रहेगा, यानी लोगों के हाथ में एक अच्छी-खासी आमदनी इनकम टैक्स फ्री हो जाएगी.
नवंबर-दिसंबर 2016 में लागू नोटबंदी ने काला धन किस हद तक नष्ट किया यह बात तो सवालों के घेरे में है, लेकिन अधिकांश नकदी अब बैंक खातों में जरूर आ गयी है. बैंक खातों में आ जाने के चलते वह नकदी औपचारिक रूप से बही-खातों में आ गयी है.
ऐसे में यह उम्मीद जतायी जा रही है कि यह पैसा अब वैध रूप से वित्तीय निवेशों में ही जायेगा, न कि फिर से रियल एस्टेट या सोने आदि में काले धन के संग्रह में इस्तेमाल होगा. सवाल है कि निवेशकों को इस ओर प्रेरित करने के लिए सरकार आगामी बजट में किस तरह के कदम उठा सकती है?
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शेयर बाजार या म्यूचुअल फंडों में पहली बार निवेश करने वालों के लिए इस समय राजीव गांधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम (आरजीईएसएस) लागू है. जिसकी घोषणा 2012-13 के बजट में की गई थी.
आरजीईएसएस की कठिन शर्तें
इनकम टैक्स ऐक्ट में 80सीसीजी नाम से एक नई धारा जोड़ कर इस योजना के तहत निवेश करने वाले निवेशकों को कर में छूट दी गयी. मगर इस योजना की शर्तें कुछ ऐसी हैं, जिनके चलते इसे बहुत लोकप्रियता नहीं मिल सकी.
अभी केवल वही निवेशक इसका लाभ उठा सकते हैं, जिनकी सालाना आय 12 लाख रुपए तक की हो और जो पहली बार शेयर बाजार में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से (म्यूचुअल फंड के माध्यम से) निवेश कर रहे हों.
साथ ही इस योजना में केवल 50,000 रुपए तक के निवेश पर कर छूट का दावा किया जा सकता है और निवेश की केवल आधी राशि पर कर छूट मिलती है. यानी अगर कोई पूरे 50,000 रुपए का निवेश आरजीईएसएस के तहत करे, तो भी उसे केवल 25,000 रुपए पर ही कर छूट मिलेगी.
इस निवेश पर तीन साल की लॉक-इन अवधि भी है, यानी तीन साल तक बेच कर पैसा वापस निकाला नहीं जा सकता. इन शर्तों की वजह से ही यह योजना लोगों को लुभा नहीं सकी.
आरजीईएसएस लागू होने के अगले साल से ही हर बजट में यह मांग की जाती रही है कि इसे सभी निवेशकों के लिए खोल दिया जाये, यानी पुराने निवेशकों को भी इसका लाभ मिले और निवेश सीमा में बढ़ोतरी हो.
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कुछ जानकार इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि धारा 80सी के तहत ईएलएसएस में 1.50 लाख रुपये तक के निवेश पर कर की छूट पहले से ही उपलब्ध है. इस वजह से आरजीईएसएस के दायरे को बढ़ाने की ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होती.
हालांकि 80सी के तहत मिली 1.50 लाख रुपए तक की छूट केवल ईएलएसएस के तहत नहीं, बल्कि बहुत सारे निवेश विकल्पों और खर्चों को मिला कर है. बहुत-सारे लोगों के लिए तो बच्चों की शिक्षा, पीएफ, पीपीएफ और बीमा जैसे कुछ अनिवार्य मदों से ही 80सी की छूट सीमा काफी हद तक निपट जाती है.
इस वजह से खास तौर पर इक्विटी निवेश को बढ़ावा देने वाली एक योजना पर सरकार की ओर से ज्यादा प्रोत्साहन दिये जाने की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता.
तो क्या मोदी सरकार इस योजना में व्यापक बदलाव लाकर इसका कायाकल्प करेगी? अगर कायाकल्प होगा तो संभव है कि इसे नया नाम भी मिल जाए या इसे वापस लेकर इसके बदले ज्यादा उदार नियमों वाली नयी योजना आ जाए!
लेखक आर्थिक पत्रिका 'निवेश मंथन' और समाचार पोर्टल शेयर मंथन (www.sharemanthan.in) के संपादक हैं. इससे पहले वे लंबे समय तक ज़ी बिजनेस, एनडीटीवी, आजतक और अमर उजाला से जुड़े रहे हैं. ईमेल : rajeev@sharemanthan.com
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