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तूतीकोरिन प्रदर्शन: पहले लड़ी जिंदगी की लड़ाई, अब कोर्ट-कचहरी की चुनौती

पुलिस तूतीकोरिन में प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर रही है मतलब अपनी जिंदगी के लिए लड़ाई करने वालों को अभी और मुसीबतें झेलनी हैं

Greeshma Rai

तूतीकोरिन में ये सामान्य सुबह नहीं थी. तूतीकोरिन के लोगों ने जब अखबारों के पन्ने पलटने शुरू किए तो उन्हें पहले पन्ने पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखी हेडलाइन दिखी 'स्टरलाइट प्लांट को बंद करने में जुटी सरकार- जनमत की विजय.' लेकिन 23 वर्षीय सरमाराज और 18 वर्षीय राजा सिंह के लिए के लिए ये किसी भी तरह की जीत नहीं थी. ये दोनों युवा तूतीकोरिन के सरकारी अस्पताल में 22 मई से भर्ती हैं और अब उनकी पहली सर्जरी की वक्त हो चला है.

सरमाराज और राजा दोनों 22 मई को तूतीकोरिन के कलेक्ट्रियट आफिस पर हुए पुलिस फायरिंग में घायल हो गए थे. सरमाराज को तीन गोलियां लगी थी जो कि उसके बायीं जांघ को चीरते हुई निकल गई थीं जबकि राजा को लगी दो गोलियों ने उसके दाएं एड़ी को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया था. अस्पताल में गंभीर हालात में भर्ती दोनों युवाओं के परिजनों के चेहरे पर स्टरलाइट प्लांट के बंद करने की घोषणा के बाद भी किसी भी तरह के जीत का उत्साह नहीं था.


पहले भी दिए गए थे आदेश, लेकिन कुछ नहीं हुआ

तमिलनाडु सरकार की वेंदाता की स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टर प्लांट को बंद करने की घोषणा के बाद लोगों के जश्न के मुकाबले सरकार के लिए सवाल ज्यादा हैं. बहुतों में इस बात का डर बैठा हुआ है कि क्या पांच साल पहले यानी 2013 की कहानी फिर से दोहरायी जाएगी? अगर दुर्भाग्यवश वैसा हुआ तो फिर क्या होगा? दरअसल इस प्लांट को मद्रास हाईकोर्ट ने 2010 में कानूनी और पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में बंद करने का निर्देश दिया था लेकिन हाईकोर्ट के इस निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया.

गैस लीक की एक घटना के बाद तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक बार फिर से इस प्लांट को बंद करने का निर्देश दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के हाईकोर्ट के प्लांट बंद करने के फैसले को 2013 में पलटते हुए वेदांता को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का दोषी मानते हुए 100 करोड़ रुपए का जुर्माना देने का निर्देश दे दिया. इस घटना के पांच साल बाद यानी इस साल फरवरी से इस प्लांट के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन जारी था. विरोध प्रदर्शन का अंत 22 मई को पुलिस फायरिंग से हुआ जिसमें 13 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इस घटना के बाद सोमवार को तमिलनाडु सरकार ने इस प्लांट को स्थायी रुप से बंद करने का आदेश जारी कर दिया है.

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तमिलनाडु सरकार के प्लांट बंद करने के फैसले और तमिलनाडु पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दो आदेशों को वेदांता प्रबंधन के द्वारा कानूनी चुनौती मिलना तय माना जा रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 9 अप्रैल के आदेश में प्लांट के लाइसेंस के नवीकरण के अनुरोध को ठुकरा दिया था जबकि 26 मई के आदेश में बोर्ड ने प्लांट की बिजली काटने का निर्देश जारी किया था.

सरकार पर भरोसा नहीं

मुथम्मल कॉलोनी में रहने वाले 37 वर्षीय टैक्सी चालक राजा का मानना है कि सरकार की तरफ से जल्दबाजी में लिए जा रहे फैसले से ये लगता है कि ये सब केवल फिलहाल स्थिति को संभालने के लिए की जा रही कवायद भर है. राजा का कहना है कि 'पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों के परिजनों ने ये कहते हुए शवों को लेने से इंकार कर दिया है कि जब तक प्लांट पर ताला नहीं लग जाता है तब तक वो अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे. पुलिस के लाख समझाने के बावजूद वो लचीला रुख अपनाने को तैयार नहीं हैं. ओपीएस एक तरफ तो सुबह में हमें चेक सौंपते हैं और शाम में उनकी सरकार निर्देश जारी कर देती है. लेकिन इसके बाद भी हमें लगता नहीं है कि सरकार हमारी चिंताओं को देखते हुए किसी तरह की कोई कार्रवाई कर रही है क्योंकि अगर सरकार हमारा भला चाह रही होती तो मैं यहां पुलिस की गोली के जख्म के साथ अस्पताल के बिस्तर पर नहीं पड़ा हुआ होता.'

पंडरमपट्टी मोहल्ले के संतोष राज भी राजा की बात से इत्तेफाक रखते हैं. उनका कहना है कि 'मुझे इस सरकार की नीयत पर कोई भरोसा नहीं है. हालांकि सरकार ने इस प्लांट को बंद रखने का निर्देश जारी कर दिया है लेकिन दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार हमारे हितों के खिलाफ जाने के लिए हमेशा तैयार रहती है. स्टरलाइट के सीईओ जिस तरह से पूरे भरोसे के साथ ये दावा कर रहे हैं कि वो जल्द ही प्लांट में काम शुरू करवा देंगे, ये क्या साबित करता है.'

पुलिस एफआईआर में भी गड़बड़ी का आरोप

पुलिस फायरिंग में मारी गई झांसी की बहन सगयारानी का कहना है कि 'कैसे और किस पर भरोसा करें? आज ये कुछ कह रहे हैं कल क्या कहेंगे किसी को नहीं मालूम. जहां तक मेरे परिवार का सवाल है, क्या सरकार मेरी बहन मुझे वापस लौटा सकती है? इसकी जगह पर देखिए उन्होंने क्या किया है, उन्होंने एफआईआर में ही गड़बड़ी कर दी है.' सगयारानी की बहन झांसी थेरेसापुरम में हुई पुलिस फायरिंग में मारी गई थी. सगयारानी तूतीकोरिन पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर का जिक्र कर रही हैं.

एफआईआर में घटना का जिक्र करते हुए लिखा हुआ है कि दोपहर के लगभग साढ़े तीन बजे करीब 500 महिलाओं और पुरुषों का एक समूह हथियार लेकर बीच रोड स्थित पुलिस क्वार्टर्स परिसर में घुस गया और उन्होंने वहां मौजूद लोगों पर हमला कर दिया. एफआईआर में दर्ज है कि डीएसपी ने लोगों को शुरू में चेतावनी दी थी, इसके बाद एक पुलिस अधिकारी ने तीन बार गोली चलाई जिसमें झांसी की मौत हो गई.

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जबकि इसके विपरीत, प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि पुलिस बल थेरेसापुरम में डेढ़ बजे ही पहुंच गई थी. लाठीचार्ज के बाद बीच रोड और ईस्ट कोस्ट रोड के जंक्शन पर पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच उस वक्त झड़प हो गई जब स्थानीय लोगों ने पुलिस को ये जगह खाली करने को कहा. इसके बाद पुलिस बिना किसी चेतावनी के स्थानीय लोगों पर गोली चलाने लगी. निर्दोष झांसी उस वक्त मछली लेकर अपनी बेटी के घर जा रही थी कि अचानक फायरिंग होने लगी. पुलिस की फायरिंग में झांसी को तीन गोलियां लगी और वो भी माथे पर, नतीजतन उसकी मौत मौके पर ही हो गयी. पुलिस ने झांसी के शव को तुरंत फ्लेक्स में लपेटा और पुलिस वैन में डालकर ले गई.

झांसी की बहन रोसम्मा घटनास्थल पर मौजूद थी लेकिन भीड़ की वजह से वह अपनी बहन को पहचान नहीं सकी. रोसम्मा गोलीबारी के बाद तुरंत भागकर घर पहुंची कि तभी उनलोगों ने उसे वापस घटनास्थल पर बुला लिया जिसने झांसी को गोली लगते देखा था. उसके बाद लोगों का एक समूह मोर्चरी पहुंचा जहां उन्हें बताया गया कि जिस महिला की मौत हुई है वो काफी वृद्ध हैं और वो झांसी नहीं है. एक घटें तक बहस और दबाव के बाद आखिरकार रोसम्मा और सगियारानी को उसकी बहन झांसी का शव दिखाया गया. उन्हें एक पर्ची सौंपी गई जिस पर लिखा हुआ था- अज्ञात, 40/म., मौत-22.05.18 को दोपहर 3.40 पर. जबकि इसके विपरीत एफआईआर में दर्ज है कि पुलिस क्वार्टर्स में हंगामा 3.30 बजे शाम से शुरू हुआ था जबकि झांसी की मौत थेरेसापुरम में घटनास्थन से 200 मीटर दूर काफी पहले हो चुकी थी.

पुलिस ने गोलीबारी के बाद भी की बर्बरता

जहां पर झांसी की मौत हुई थी ठीक जगह पर सेल्वम को भी गोली लगी थी. सेल्वम घायल हैं और उनका इलाज अस्पताल में चल रहा है. सेल्वम नाराजगी भरे स्वर में कहते हैं 'इस एफआईआर ने ये इंतजाम कर दिया है कि वो अस्पताल से सीधे जेल जाएंगे. एक तरफ तो तमिलनाडु सरकार कहती है कि वो स्टरलाइट प्लांट को बंद करने जा रही है वहीं दूसरी तरफ हम लोगों पर फर्जी मुकदमे थोप रही है, ऐसे में लगता नहीं है कि हम लोगों की मुसीबत जल्द ही समाप्त होने वाली है.'

इस घटना के बाद 23 मई को कई लोगों को थेरेसापुरम से गिरफ्तार किया गया, नरेश और एडिसन उन्हीं लोगों में शामिल हैं. उनका भी डर सेल्वम के जैसा ही है. दोनों को तूतीकोरिन साउथ पुलिस स्टेशन ले जाया गया और उनकी जबरदस्त पिटाई की गई. इसके बाद उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के बजाए वलांडू शूटिंग रेज ले जाया गया जहां उनकी और दुर्गति की गई.

जब चीफ ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट भगवती अमल के सामने पब्लिक प्रासिक्यूटर ने पुलिस के द्वारा लोगों को अवैध कैद में रखने का मामला उठाया तब उन्होंने विलाथीकुलम ज्युडिशियल मजिसस्ट्रेट कलिमुथुवेल को वलांडू शूटिंग रेंज का तत्काल दौरा करके शिकायत की सच्चाई का पता लगाने का आदेश दिया. जब कलिमुथुवेल वहां पहुंचे तो नरेश और एडिसन के साथ साथ गैरकानूनी रुप से बंदी बनाए गए 93 लोग और मिल गए. जज ने तुरंत पुलिस को आदेश दिया कि वो या तो इन्हें रिमांड पर ले या फिर फिर रिहा करे. इसके बाद पुलिस ने आनन-फानन में फर्जी एफआईआर दाखिल किया.

शक्तिशाली वेदांता के आगे लोगों की जिंदगी की कीमत नहीं

तूतीकोरिन की रहने वाली और एक्टिविस्ट ग्रेस भानु इस पूरे घटनाक्रम पर सवाल उठाते हुए कहती हैं कि 'सरकार का यहां के उन लोगों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक रवैया रखना, जो कि उस कंपनी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे जो कि यहां के लोगों को मार रही है, बहुत गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है. सरकार वेदांता जैसी बड़ी कंपनियों के हितों का तो ख्याल रखती है लेकिन अपने नागरिकों का नहीं. तमिलनाडु में सरकारें आईं और गईं लेकिन लगता है कि इस मुद्दे पर कार्रवाई करने के लिए सरकार अभी और मौतों का इंतजार कर रही है. मुझे अभी भी लगता है कि मामला समाप्त नहीं हुआ है क्योंकि सभी जानते हैं कि वेदांता कितनी शक्तिशाली है. वेदांता के राज्य में सहयोगी तो हैं ही साथ ही में केंद्र की सरकार में भी उनके अच्छे संपर्क हैं.'

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दूसरी तरफ सेल्वम जो कि घायल हैं और पुलिस के आरोपों का सामना कर रहे हैं, वो मानते हैं कि तमिलनाडु का कोई भी राजनीतिक दल अब स्टरलाइट को वहां काम शुरू करने नहीं देगा. सेल्वम के मुताबिक 'उन्हें पता है कि लोगों ने इसके लिए जान दी है ऐसे में वो इसे शुरू करने की अनुमति देने की हिम्मत नहीं करेंगे, लेकिन मैं सरकार से ये भी उम्मीद करता हूं कि वो इस बात को समझें कि जिन्हें वो जेलों में बंद कर रही है वो वहां अपने जीवन की लड़ाई लड़ रहे थे. सरकार हमें इस बात की सजा नहीं दे सकती.'

कुछ लोगों को स्टरलाइट प्लांट बंद होने के बाद फिलहाल अपनी जीत भले ही नजर आ रही हो लेकिन जिस तरह से लोगों पर एफआईआर किए जा रहे हैं उससे इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि तूतीकोरिन के स्थानीय निवासियों के आने वाले दिन मुश्किल भरे साबित हो सकते हैं.