तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पलानीसामी ने आखिरकार तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट के प्लांट को बंद करने का ऐलान कर दिया. सीएम ने बीते सोमवार को इस संबंध में घोषणा की. उन्होंने बताया कि सरकार ने थूथुकुडी (तूतीकोरिन) में मौजूद स्टरलाइट के प्लांट को स्थायी रूप से बंद करने का आदेश जारी किया है. प्लांट के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हुई पुलिस फायरिंग मे 13 लोगों के मारे जाने और कई अन्य के जख्मी होने के बाद राज्य सरकार की तरफ से यह आदेश दिया गया. प्लांट के विरोध में यह आंदोलन कुछ महीने से भी ज्यादा वक्त से चल रहा था.
आदेश से कुछ देर पहले जख्मी लोगों से मिले थे डिप्टी सीएम ओ पन्नीरसेल्वम
इस संबंध में आदेश जारी करने से कुछ ही घंटे पहले तमिलनाडु के डिप्टी सीएम ओ पन्नीरसेल्वम ने बीते 22 मई को हुई पुलिस फायरिंग में जख्मी हुए कुछ लोगों से मुलाकात की थी. राज्य के डिप्टी सीएम पन्नीरसेल्मव ने पुलिस फायरिंग में जख्मी हुए जिन लोगों से मुलाकात की, उनमें 18 साल के राजा सिंह भी शामिल थे. राजा कलक्टर ऑफिस के पीछे अपनी दुकान चलाते हैं. उनके दाहिने पैर में गोली लगी है और वह बुरी तरह से जख्मी हैं. मंगलवार को ही उनकी सर्जरी होने वाली है.
उन्होंने बताया, 'मैंने पूछा कि मुझे इस तरह से गोली क्यों मारी गई? मैं सिर्फ अपने शहर के लोगों की सुरक्षा करने की कोशिश कर रहा था, ऐसे में सरकार मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है?' उनका कहना था, 'डिप्टी सीएम ने मुझे धैर्य बनाए रखने को कहा. उन्होंने यह भी कहा था वे प्लांट को बंद करवाने की कोशिश कर रहे हैं. स्टरलाइट को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, इस बारे में जानकारी मिलने से मैं अब सर्जरी के लिए खुशी-खुशी जाऊंगा.'
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आसपास के कई गांवों में काफी लंबे समय से संघर्षरत है जनता
कुमारातियापुरम गांव के मायिल और अन्य लोगों के लिए यह संघर्ष साल 1995 से चल रहा है. उनका गांव कॉपर स्मेल्टर प्लांट से महज 100 मीटर की दूरी पर मौजूद है. 100 दिनों के इस संघर्ष में 13 लोगों के मारे जाने के बाद इस घटना ने देशभर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना शुरू किया. विभिन्न तरह के कैंसर और सांस संबंधी अन्य बीमारियों के कारण लगातार हो रही मौतों से परेशान इस गांव के लोगों ने सब कुछ छोड़कर प्लांट के बंद होने तक विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला जारी रखने का फैसला किया. मायिल ने बताया, 'हमने मारे गए लोगों के लिए कैंडल लाइट मार्च निकालने का फैसला किया. मैं नहीं कह सकता कि मैं पूरी तरह से खुश हूं. मैं मुख्य रूप से उन लोगों के बारे में सोचता हूं, जो हमारे लिए मौत की आगोश में समा गए. हमने उन्हें श्रद्धांजिल देकर कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया है.'
आदेश को फिर से वापस लेने का अंदेशा भी कायम है
पास के पंदारामपट्टी गांव की सुमति कहती हैं, 'वे पहले भी ऐसा (प्लांट को बंद करने का फैसला) कर चुके हैं. आप कैसे कह रहे हैं कि वे (सरकार) अपने इस आदेश को फिर से वापस नहीं लेंगे.' सुमति सरकार के इस आदेश से पूरी तरह सहमत नहीं जान पड़ती हैं. हालांकि, उनका कहना था कि वह इस नतीजे से खुश हैं. सुमति का यह भी कहना था कि अगर सरकार अपना इरादा बदलती है, तो उनके गांव की महिलाएं भी इससे निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. विरोध-प्रदर्शन के दौरान थूथकुडी में कई किन्नरों ने अहम भूमिका निभाई. लोगों को पुलिस की हिंसा से बचाने से लेकर इन किन्नरों ने इस आंदोलन को लेकर हरमुमकिन योगदान दिया. 22 मई को किन्नर समुदाय के कई लोगों ने रैली की अगुवाई की. ऐसी ही एक किन्नर रीमा ने बताया, 'हम किसी से ज्यादा बातचीत नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हमे वाकई में अपनी जान का डर रहता है. हालांकि, यह आंदोलन हमें यह उम्मीद जगाती है कि हमारी कोशिशें बेकार नहीं गई हैं.'
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थ्रेसपुरम में सबसे ज्यादा लोग हताहत हुए और इस इलाके के 20 से भी ज्यादा लोग अस्पताल में भर्ती हैं. डीएम ऑफिस के पास से फायरिंग के बाद पुलिस बल की तरफ से बाहर निकलकर भी गोलियां चलाई गईं. इस फायरिंग में झांसी (39 साल) की मौत हो गई. उनकी बहन रोसम्मा इस घटना की गवाह हैं. उन्होंने बताया कि वह और उनके परिवार वालों ने फैसला किया था कि जब तक सरकार स्टरलाइट को बंद करने का निर्देश नहीं जारी कर देती, तब तक वह और उनके परिवार वाले अपने परिजन का शव नहीं लेंगे.
इस फैसले के लिए चुकानी पड़ी है बड़ी कीमत
जिस दिन (22 मई) फायरिंग की घटना हुई, उसी रोज और उसके बाद के घटनाक्रम में थ्रेसपुरम के निवासियों की पिटाई किए जाने की भी खबर आई थी. भानु नामक शख्स के बेटे को भी इस फायरिंग में गंभीर रूप से चोट आई है. उनके बेटे के माथे पर जख्म के निशान हैं. भानु का कहना था, 'मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार का यह कदम वह सब कुछ दबाने के लिए नहीं है, जिससे हम पिछले कुछ दिनों के दौरान गुजरे हैं. क्या वे पहले ऐसा नहीं कर सकते थे?'
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सरकार के इस आदेश की खबर सुनते ही अस्पताल के उन वॉर्डों में जश्न का माहौल बन गया, जहां फायरिंग के कारण हुए जख्मी लोग भर्ती हैं. हालांकि, फातिमा नगर की इंफान्ता लाचार, असहाय और निराश नजर आ रही थीं. इस संघर्ष का हिस्सा बनने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी थी. उन्होंने बताया, 'मैंने अपने दोस्ता खो दिए हैं. स्नोलिन के सामने उसका बेहतर भविष्य था, उसने अभी महज 12वीं की परीक्षा दी थी. 22 मई को हम यह सोचते हुए एक-दूसरे के हाथों में हाथ डालकर निकले कि यह संघर्ष का आखिरी दिन होगा. मैंने अपनी आंखों के सामने उसे गोली खाते हुए देखा. तब से मैं सो नहीं पा रही हूं. मैं जानती हूं कि हम जीत चुके हैं, लेकिन इसके लिए चुकाई गई कीमत मुझे उदास करती है. हमारा संघर्ष तब तक खत्म नहीं होगा, जब तक इस फायरिंग में मारे गए लोगों को न्याय नहीं मिल जाता.'
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