तूतीकोरिन में स्टरलाइट इंडस्ट्री के कॉपर प्लांट का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग में 13 लोगों की मौत हो गई जिसमें एक महिला और किशोरी भी शामिल हैं. इस घटना के बाद से दक्षिणी बंदरगाह शहर तूतीकोरिन में लोगों में जबरदस्त गुस्सा है और कहा जा रहा है कि तमिलनाडु के इतिहास में इस तरह की बड़ी हिंसात्मक कार्रवाई पहले कभी नहीं हुई थी.
इसके समानांतर बड़ी घटना तब हुई थी जब तिरुनिवेली के चाय बागानों के मजदूरों ने अपने वेतन में बढ़ोतरी की मांग को लेकर वहां के कलेक्ट्रेट तक मार्च निकाला था और उस प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने चाय बागान के 17 कर्मचारियों पर लाठी चार्ज कर दिया था. घटना का दुखद पहलु ये था कि पुलिस की लाठियों से बचने के चक्कर में कई प्रदर्शनकारी वहां की थामिराबरानी नदी में डूब गए थे.
तूतीकोरिन में भी निहत्थे प्रदर्शनकारी कलेक्ट्रेट तक मार्च कर रहे थे. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि स्टरलाइट के उस प्लांट को बंद किया जाए जिसको वो वायु प्रदूषण करने वाला और भूमि में जलस्तर कम होने का जिम्मेदार मानते थे.
उनका प्लांट के विरोध में प्रदर्शन काफी दिनों से चल रहा था लेकिन ये हिंसात्मक घटना प्रदर्शन के 100वें दिन हुई. इससे पहले ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था लेकिन सौवें दिन कुछ ऐसा हुआ कि प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए. पुलिस भी इस सवाल का जवाब देने से बच रही है कि अचानक सौवें दिन ऐसा क्या हो गया कि प्लांट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोग उग्र हो गए.
प्रदर्शनकारियों ने पहले ही घोषणा कर रखी थी कि वो उस दिन कलेक्ट्रेट का घेराव करेंगे. ऐसे में प्रशासन को इसके बारे में पूरी जानकारी होने के बाद भी उन्होंने कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एहतियातन गिरफ्तारी क्यों नहीं की? हालांकि पुलिस ने इस मार्च को रोकने के लिए शहर में धारा 144 लगा दी थी लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को मार्च के दौरान रास्ते में गिरफ्तार क्यों नहीं किया? जबकि सामान्य तौर पर प्रशासन द्वारा अक्सर ऐसा किया जाता रहा है.
प्रदर्शनकारियों ने अपने मार्च के दौरान पुलिस पर जबरदस्त पत्थरबाजी की और उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बसों और वैन को आग के हवाले कर दिया. प्रदर्शकारियों ने निजी गाड़ियों को भी नहीं बख्शा और उसमें में भी तोड़-फोड़ करने के बाद आग लगा दी. जब पुलिस को लगा कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है तब उसने लाठीचार्ज करना और आंसू गैस के गोले दागना शुरू किया. जब हिंसा बढ़ते बढ़ते कलेक्ट्रेट तक पहुंच गयी तो पुलिस को मजबूरन गोली चलानी पड़ी.
इस घटना के गवाह हजारों दर्शक बने जिन्होंने ये सब कुछ अपने टीवी चैनलों पर देखा. उन्होंने ये भी देखा कि किस तरह से पुलिसवाले प्रदर्शनकारियों पर लाठी की बरसात कर उन्हें बेरहमी से पीट रहे हैं. सबसे निराशाजनक तो ये रहा कि पुलिसवालों ने फायरिंग करने से पहले प्रदर्शनकारियों को किसी तरह की कोई चेतावनी भी नहीं दी थी. मौके पर जिलाधिकारी मौजूद तक नहीं थे ऐसे में पुलिस को फायरिंग की इजाजत आखिर दी किसने? पुलिस ने शुरु में हवा में फायरिंग की और उसके बाद सीधे प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाना शुरु कर दिया. पुलिस वालों का निशाना लगा लगा कर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाना पुलिस कानूनों का सीधा उल्लंघन था.
जैसा कि होता आया है तमिलनाडु सरकार ने इस घटना की न्यायिक जांच कराने की घोषणा की है. जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ट जज अरुणा जगदीशन करेंगी. ये वही जज हैं जिन्होंने जिन्होंने कुछ वर्ष पहले पुलिसकर्मियों को उस घटना से दोषमुक्त कर दिया था जिसमें चेन्नई के उपनगर में पुलिस ने 5 बिहारी चोरों को एनकाउंटर के नाम पर नजदीक से गोली मार कर हत्या कर दी थी.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये उत्पन्न होता है कि पुलिस को जब लगा कि भीड़ हिसंक और उग्र हो रही है तो उसने फायरिंग करने से पहले वाटर कैनन का सहारा क्यों नहीं लिया? या फिर अगर फायरिंग जरुरी ही था तो फिर पैलेट्स या फिर रबड़ की बुलेट्स का इस्तेमाल क्यों नहीं किया. यहां तक कि जम्मू कश्मीर तक में जहां पत्थरबाजी की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं वहां भी अद्धसैनिक बल पैलेट्स का इस्तेमाल करते हैं. पुलिस का इन सब सवालों का कोई जवाब नहीं था.
इस घटना का सबसे दुखद पहलु ये है कि जिस प्लांट के विरोध में ये आंदोलन चल रहा था वो कॉपर प्लांट अभी चालू नहीं था और वो अपनी दूसरी इकाई के शुरु होने के क्लियरेंस का इंतदार कर रहा था. प्लांट के विस्तार के लिए निर्माण कार्य किए जा रहे थे और इसी निर्माण कार्यों ने प्रदर्शकारियों को भड़का दिया था. इसी के बाद प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल पड़े थे.
यूके स्थित वेदांता ग्रुप की एक सब्सिडियरी है स्टरलाइट इंडस्ट्रीज. इसका प्रदूषण को लेकर इतिहास पहले से काला रहा है. इस कंपनी के पिछले 20 सालों के कार्यकाल के दौरान कई बार उसे प्रदूषण को लेकर विवादों से दो चार होना पड़ा है. उसके प्लांटों से सल्फर डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन की शिकायतें मिल चुकी हैं इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अधिकृत नीरी के शोध में ये साबित हुआ है उसके प्लांट के आसपास के भूजल में सल्फर और अन्य प्रदूषणकारी तत्व मौजूद रहे हैं लेकिन वो मान्य सीमा के अंदर तक ही रहे हैं.
2013 में स्टरलाइट के कॉपर प्लांट पर गैस लीक के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माना लगाया था. शीर्ष अदालत ने स्टरलाइट को इसके लिए भी फटकार लगाई थी कि उसने बिना अधिकृत अनुमति के अच्छे खासे समय तक प्लांट का परिचालन किया था. हालांकि स्टारलाइट ने दावा किया था कि उसे नीरी के द्वारा निर्धारित किए गए नियमों का पालन नहीं करने की वजह से फाइन लगाया गया था और उसके बाद से उसने उपचारात्मक उपाय कर लिया है.
प्लांट को बंद करने के लिए दो बार आदेश दिए जा चुके हैं लेकिन उसे कोर्ट से हमेशा राहत मिल जाती है. तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस प्लांट को बंद करने का आदेश हेते हुए कहा कि इस प्लांट से जहरीली सल्फर डाई ऑक्साइड गैस का रिसाव हुआ है. उसके बाद नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने इस बेवजह का डर बताते हुए प्लांट को विशेषज्ञों की देखरेख में चलाए रखने का आदेश जारी कर दिया.
बेंच ने कहा कि स्टरलाइट की इकाई एक औद्योगिक कांप्लेक्स में स्थित है और वहां पर कई और उद्योग चल रहे हैं जिसमें थर्मल पावर की इकाई भी शामिल है ऐसे में तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कोई ऐसे वैज्ञानिक साक्ष्य, आंकड़े या रिपोर्ट सामने नहीं रखा सका जिससे ये साबित होता हो कि स्टरलाइट इंडस्ट्री केवल अकेले कथित रूप से सल्फर डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है.
तमिलनाडु सरकार की नेशनल ग्रीन ट्राइब्युनल के इस फैसले के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसने इस आधार पर स्टे लगाने से इंकार कर दिया है कि कॉपर देश की डिफेंस जरूरतों के लिए आवश्यक है. कोर्ट ने कहा है कि अच्छा ये होगा कि पहले ट्राइब्युनल का अंतिम आदेश का इंतजार कर लिया जाए.
कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर इस बात से इंकार किया है कि उनका प्लांट सल्फर डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करता है. कंपनी ने इस बात से भी इंकार किया है कि उनके प्लांट का अपशिष्ट समुद्र में प्रवाहित किया जाता है, जिससे समुद्री जीवन प्रभावित हो रहा है. कंपनी का दावा है कि उसके द्वारा उत्सर्जित सभी अपशिष्टों को पूरी तरह से रिसाइकल किया जाता है और इसके द्वारा अपशिष्टों का शून्य उत्सर्जन होता है जिसका समर्थन नीरी ने भी 2011 में किया है. जहां तक तूतीकोरिन में कैंसर के खतरे के डर की बात है कंपनी ने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि यहां पर राज्य के अनुपात में कम लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं.
कंपनी ने इस बात से भी इंकार किया है कि उसके प्लांट से भूजल में प्रदूषण बढ़ रहा है. कंपनी का कहना है कि तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर महीने प्लांट के परिसर और पास के गांव से कुओं और बोरवेल से पानी के नमूने इकट्ठा करता रहता है. कंपनी का कहना है कि अगर उनके प्लांट से प्रदूषण फैल रहा है तो पानी में कॉपर जिंक या फिर आर्सेनिक जैसे प्रदूषकों की मौजूदगी के सुबूत मिलने चाहिए लेकिन पानी के लिए गए नमूनों में ऐसा कोई भी प्रदूषक नहीं पाया गया है.
हालांकि तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 5 मई को अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष दावा किया है कि कंपनी तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर रही है. बोर्ड ने कहा है कि उस इलाके में बहुत तेजी से ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है जिसे श्वसन संबंधी रोग कि शिकायत है. इसके अलावा प्लांट के आसपास के गांवों में रहने वाली कई महिलाओं में मेंस्ट्रुएल डिस्ऑर्डर की परेशानी देखने को मिली है. इसके अलावा लोगों में इस बात का डर बैठा हुआ है आर्सेनिक युक्त अपशिष्ट पानी शहर के टैंकों तक पहुंच रहा है.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपीलीय प्रधिकरण को ये भी याद दिलाया कि किस तरह से वेदांता और उसकी सहयोगी कंपनी कोंकोला कॉपर माइन्स ब्रिटिश अदालतों में जांबिया के गांववालों की तरफ से दायर किए गए मुकदमे को झेल रही है. गांववालों का आरोप है कि कंपनी उनके जल को न केवल प्रदूषित कर रही है बल्कि वहां पर वो खनन करके उनकी रोजी-रोटी पर भी लात मार रही है.
इन सब बातों के मद्देनजर प्लांट की दूसरी इकाई को चालू करने की योजना वो भी जब पहले वाली इकाई को ही चालू रखने की अपील अदालत में पेंडिग पड़ी हो,गले से नहीं उतरती. ऐसे में कंपनी की इस योजना के विरोध में उतरने वाले प्रदर्शनकारियों पर दमनात्मक कार्रवाई करने की हिम्मत वो भी अल्पमत वाली सरकार अगर कर रही है तो इसके पीछे कहीं न कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरपरस्ती है.
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