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बजट 2017: यह 70 सालों में पहला बजट होगा    

नोटबंदी ने देश के पूरे सामाजिक, आर्थिक और राजनीति बुनियाद को हिला दिया है.

Rajesh Raparia

मोदी सरकार का 70 सालों से के वाक्यांश से विशेष लगाव है. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनका अदना-सा कार्यकर्ता भी कांग्रेस पर हमला करने के लिए इसका इस्तेमाल करता है. पर मोदी सरकार का आगामी आम बजट भी कई मायनों में पिछले 70 सालों में पहला बजट होगा.

सबसे पहले तो इस बार आम बजट फरवरी महीने की अंतिम तारीख को नहीं आयेगा. बजट सत्र पिछले साल तक फरवरी के तीसरे या चौथे हफ्ते में शुरू होता था, अब जनवरी के तीसरे या चौथे हफ्ते में बजट सत्र शुरू हो जायेगा.


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बजट आने में तकरीबन महीने भर ही रह गया है पर केंद्र सरकार ने अब तक यह साफ नहीं किया है कि बजट सत्र कब से शुरू होगा? आर्थिक समीक्षा कब पेश जायेगी. रेल बजट का दिन मुकर्रर करने की अब कोई आवश्यकता नहीं रह गयी है. क्योंकि अब रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बना दिया गया है.

रेल बजट नहीं होगा

92 सालों बाद यह पहला अवसर होगा जब रेल बजट अलग से पेश नहीं किया जायेगा. 1924 में पहली बार अलग से रेल बजट की शुरुआत हुई थी. तब रेल बजट आम बजट के 70% के बराबर होता था,  जो अब समिट 14-15% रह गया है.

नीति आयोग के सदस्य विवेक देवराय की अगुवाई वाली समिति का कहना है कि रेल बजट अब केवल रस्म भर रह गया है. क्योंकि आम बजट की तुलना में रेल बजट काफी छोटा हो गया है. रक्षा या राजमार्ग मंत्रालयों का व्यय बजट अब रेल बजट से ज्यादा होता है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली और रेल मंत्री सुरेश प्रभु दोनों ही कहते हैं कि इससे रेल मंत्रायल की कार्यदक्षता बढ़ेगी और रेल विकास के मूल कार्य पर ज्यादा ध्यान दे पायेगा. वैसे भी अरसे से रेल मंत्रालय अनेक कार्यों को निजी हाथों को सौंपना चाहता है. जिनमें रेल मंत्रायल अपने को दक्ष नहीं मानता है.

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बहरहाल रेल मंत्रालय को अब आम बजट को लाभांश देने से छुटकारा मिल जायेगा. इससे रेल मंत्रालय विकास कार्यों में अधिक व्यय कर पायेगा. पर आम यात्री को रेल बजट के विलय से क्या लाभ होगा, इस पर हुक्मरान मौन साधे हुए हैं.

नई तारीख, नई इबारत

लोकसभा में बजट पेश करने की तारीख को खिसकाया गया है. अब तक बजट 28 या 29 फरवरी को पेश किया जाता रहा है. बजट प्रक्रिया अब तक दो सत्रों में पूरी होती थी. पहला सत्र फरवरी मध्य के बाद से अधिकतक मार्च मध्य तक चलता था. दूसरा सत्र अप्रैल मई होता था.

वजट को फरवरी में पेश करने के पीछे मंशा है कि बजट प्रक्रिया मार्च अंत तक पूरी हो जाये और बजट प्रस्तावों को लागू करने के लिए 12 महीने का पूरा समय मिल सके. पिछले बजट तक बजट प्रक्रिया मई में ही पूरी हो पाती थी, फिर मानसून आ जाने से कई आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाती हैं, विशेषकर निर्माण कार्य जैसे रेल, सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे या ग्रामीण सड़क परियोजनाएं आदि.

नतीजतन वित्त वर्ष के शुरू के छह महीनों तक बजट प्रस्तावों पर असल अमल पर्याप्त नहीं हो पाता था. अब मार्च महीने में ही बजट प्रक्रिया पूरी हो जाने से नये वित्त वर्ष के पहले दिन यानी एक अप्रैल से ही सरकारी व्यय अपनी रफ्तार पकड़ सकते हें. इससे निवेश मांग और रोजगार पर बेहतर असर पड़ना चाहिए.

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पर यह सब लाभ अभी किताबी गुणा भाग है. इनमें सबसे बडी बाधा आयेगी सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों से, जिन पर बजट की बुनियाद और भावी आकलन खड़े होते हैं. आर्थिक सचिव शाक्तिकांत दास के अनुसार केंद्रीय सांस्ख्यिकी कार्यालय से आंकड़ें अब जनवरी में जारी करने को कहा  है, जो पहले फरवरी महीने में जारी हाते थे. पर यह आंकड़े अनुमानों का अनुमान होंगे, हकीकत नहीं. इस विकराल समस्या से वित्त मंत्री को जूझना पड़ेगा.

हिसाब किताब का अंदाज बदलेगा

आगामी आम बजट में इस बार एक और तारीखी अंतर देखने को मिलेगा. इस बार बजट दस्तावेजों में योजनागत व्यय और गैर योजनागत व्यय मद देखने को नहीं मिलेगी. योजना आयोग की समाप्ति के बाद इस वर्गीकरण का कोई अर्थ और इस्तेमाल नहीं रह गया था.

अब सरकार अपने व्यय का हिसाब-किताब केवल पूंजी और राजस्व व्यय मदों में ही रखेगी. 2011 में सी रंगराजन समिति ने ऐसा करने की सिफारिश की थी. राजस्व व्यय ऐसा खर्च होता है जिसमें सरकार की न कोई संपदा बढ़ती है न ही कोई दायित्व. जैसे सब्सिडी, सरकारी कर्मचारियों का वेतन, पेंशन, सामाजिक सेवाएं आदि.

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पूंजी व्यय से सरकारी संपदा में वृद्धि होती है जैसे भवन निर्माण, सड़क, बांध, नहर, बंदरगाह, अस्पताल आदि. अब राज्य सरकारों को भी यही लेखा प्रणाली अपनना चाहिए, तभी देश की समग्र आर्थिक परिदृश्य की सटीक जानकारी मिल पायेगी.

ज्यादातर बजट जानकार इस निर्णय के पक्ष में हैं और कहना है कि इससे सरकार के अर्थिक खर्च और परिणामों में ज्यादा तालमेल और स्पष्टता आयेगी. इससे राजस्व घाटे को कम करने और पूंजी व्यय को बढ़ाने में मदद मिलेगी. साथ ही सरकारी घाटे के नियंत्रण में गुणात्मक सुधार होगा.

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पूंजी निवेश बढ़ने से देश की किस्मत चमकती है. देखना है कि इस तरीखी बदलावों से वित्त मंत्री अरुण जेटली की किस्मत कितनी चमकती है? क्योंकि नोटबंदी ने देश के पूरे सामाजिक, आर्थिक और राजनीति बुनियाद को हिला दिया है. ऐसे में आर्थिक आकलन और अनुमानों को आंकना सचमुच बेहद कठिन काम है.