नोटबंदी के लागू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से 50 दिन की मोहलत मांगी थी. 50 दिन पूरे होने के बाद एक जनता के लिए राहतकारी भाषण के लिए उन्होंने 31 दिसंबर चुना और जिस दिन लोग नए साल के उत्सव में व्यस्त होते हैं, उस दिन भी मोदी से सभी का ध्यान खींचा.
प्रधानमंत्री मोदी का भाषण कई मायने में अच्छा रहा. उन्होंने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही, वह ये कि सरकार की जिस पहल में जनता साथ होती है, उसकी सफलता तय है.
इसे लेकर उनकी समझ बिल्कुल साफ है. यह कह कर उन्होंने एक तरह से नोटबंदी के फैसले को लेकर मिले समर्थन के लिए जनता का आभार व्यक्त किया.
वे यह संदेश देना चाह रहे थे कि अगर सरकार अच्छे काम करती है तो जनता उनका साथ देती है. उनका यह बताना कि हमने एक फैसला लिया, उससे आपको तकलीफ हुई लेकिन आपको लगा कि इसका दूरगामी परिणाम अच्छा होने वाला है तो आपने सपोर्ट किया.
भारत के समाज की जो अतंर्निहित अच्छाइयां हैं, इस पर मोदी की जो अपनी समझ है, आज का भाषण उसी के मुताबिक था.
एक बार मोदी ने अपने एक इंटरव्यू में मुझसे कहा था कि अगर भारत समझना तो कुंभ जाइए. कुंभ में एक आॅस्ट्रेलिया आता है और चला जाता है. और ये कोई पुलिस या प्रशासन के दम पर नहीं होता है.
भारतीय समाज में एक अनुशासन अपने आप में रहता है. ये कहना है कि भारत अनुशासित नहीं है, यह गलत है. जो कुछ लोग अनुशासित नहीं हैं उन्हें बख्शा नहीं जाएगा.
भारत बहुत अनुशासित देश है. भारत की अनुशासित जनता में जो कुछ लोग अनुशासित नहीं हैं, उनके लिए जरूर उन्होंने कह दिया कि बख्शे नहीं जाएंगे. यह उनकी स्पीच का एक पार्ट था.
नेहरू गांधी परिवार से अलग राजनीति
दूसरा पार्ट यह था कि उन्होंने अपने भाषण में बड़े साफ ढंग से एक राजनीतिक लाइन खींची. वो ये थी कि नेहरू गांधी परिवार से अलग भी राजनीति है.
उन्होंने जिन लोगों के नाम लिए वे थे लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और कामराज, ये सारे नाम ऐसे थे जो नेहरू और गांधी परिवार के वर्चस्व के खिलाफ थे.
कामराज नेहरू परिवार के खिलाफ बाद में हुए. लोहिया शुरू से थे. जयप्रकाश इंदिरा के खिलाफ हुए. लाल बहादुर शास्त्री को वे जानबूझ कर शुरू से जोड़ते हैं. एक तरह के यह गैर कांग्रेसी नेताओं की महत्ता को रेखांकित करना है.
उन्होंने बीजेपी या संघ के किसी नेता या विचारक का नाम नहीं लिया. यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.
इसी भाषण में प्रधानमंत्री ने कई घोषणाएं भी कीं, जिसमें बैंकों से पहली बार यह कहा गया कि अपनी प्राथमिकताओं को बदलिए और किसानों, गरीबों और वंचितों की तरफ आइए.
शहरीकरण गांवों का भी हो, घर बनें, इसके लिए जबरदस्त लोन देने की घोषणा की. गरीब तबके को प्रधानमंत्री आवास योजना में लोन मिलेगा, जिसे लेकर आप घर ले सकते हैं.
इसके अलावा गर्भवती महिलाओं, किसानों, छोटे उद्योगों में लगे लोगों के लिए भी प्रधानमंत्री का यह भाषण अहम रहा. उन सबके लिए कुछ न कुछ घोषणा उन्होंने की.
सबसे बड़ी बात है कि पिछला जो 60-70 साल का जो इतिहास है उसमें मुझे नहीं याद आ रहा है कि किसी प्रधानमंत्री या नेता ने 31 दिसंबर यानी नये वर्ष के पहले जनता का इस तरह ध्यान खींचा हो.
प्रधानमंत्री 15 अगस्त पर करते हैं, 26 जनवरी पर करते हैं, किसी अन्य अवसर पर करते हैं लेकिन 31 दिसंबर पर आप राष्ट्र को संबोधित कैसे कर सकते हैं? लेकिन मोदी ने यह किया.
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