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Budget 2019: पिछले चार सालों में किसानों के लिहाज से अब तक का सबसे हल्का बजट

अगर पिछले चार सालों के मोदी सरकार के बजट की घोषणाओं से तुलना करें, तो यह बजट भारतीय कृषि के लिहाज से सबसे हल्का कहा जा सकता है

Bhuwan Bhaskar

अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल के बजट को पहले ही चुनावी करार दिया गया है. कोई इसे जुमला बजट बता रहा है और कोई ‘वोट का बजट’. इससे पहले के मोदी सरकार के चार बजटों को देखा जाए, तो उनमें कम से कम दो ऐसे थे, जिन्हें पूरी तरह किसानों का बजट कहा गया था. लेकिन इसके बावजूद हालात यहां तक बिगड़े कि मोदी सरकार किसानों के असंतोष के केंद्र में नजर आने लगी.

पिछले साल किसानों के कई बड़े-बड़े आंदोलन हुए और इन सबकी परिणति हुई छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी सरकारों को मिली हार के रूप में. तो स्वाभाविक था कि इस बजट के पूरी तरह किसानों के लिए लुभावनी घोषणाओं से भरे होने की उम्मीद थी. लेकिन अगर पिछले चार सालों के मोदी सरकार के बजट की घोषणाओं से तुलना करें, तो यह बजट भारतीय कृषि के लिहाज से सबसे हल्का कहा जा सकता है.


इस बार की घोषणा ऊंट के मुंह में जीरा

हालांकि, अपने अंतरिम बजट में पीयूष गोयल ने अगले 10 वर्षों का विजन देने की बात कही, लेकिन भारतीय कृषि और किसानों को मजबूत करने के लिए पिछले चार सालों में चलाई गई तमाम योजनाओं, जैसे प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार, वेयरहाउसिंग का विकास इत्यादि का जिक्र गोयल के भाषण से नदारद रहा. कुल मिलाकर सरकार ने कर्ज माफी के दबाव को झटकते हुए छोटे और सीमांत किसानों के लिए 6000 रुपए सालाना इनकम सपोर्ट की घोषणा की. अप्रैल 2017 के बाद से दो सालों में 8 राज्यों ने 1.90 लाख करोड़ रुपए की कर्ज माफी की है और अब लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर 2009 की तर्ज पर देश भर में किसानों की कर्ज माफी का वादा दुहराने लगे हैं.

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ऐसे में मोदी सरकार की ओर से घोषित 6000 रुपए सालाना की मदद ऊंट के मुंह में जीरा ही लगती है. कोई 3 एकड़ जमीन वाले किसान के लिए यह मदद 2000 रुपए प्रति एकड़ सालाना होगी, जबकि औसतन किसी भी फसल के लिए बीज, खाद, कीटनाशक इत्यादि का इनपुट खर्च प्रति एकड़ 20-25 हजार रुपए आता है. तो सरकार की इस मदद से किसान को वास्तव में कितनी मदद मिल सकेगी, यह देखने वाली बात होगी.

जमीन राज्य सरकार का विषय, प्रक्रिया में आएगी मुश्किल

एक अन्य मुश्किल प्रक्रिया की भी आएगी. तेलंगाना के अनुभव को देखते हुए यह लगभग असंभव है कि दो महीने के भीतर जमीन के मालिकाना हक की पुष्टि हो जाए और सारा रिकॉर्ड सरकार के पास आ जाए क्योंकि जमीन राज्य सरकार का विषय है. देश के सैकड़ों ऐसे इलाके हैं, जहां लाखों किसान अपने दादाओं या परदादाओं के लैंड टाइटल पर खेती कर रहे हैं. उन्हें वैसे भी इस स्कीम का लाभ नहीं मिल सकता. इस लिहाज से किसी भी सरकार के लिए इस योजना को अमलीजामा पहना पाना टेढ़ी खीर होगी.

बजट घोषणा के मुताबिक किसानों को सीधे दी जाने वाली इस मदद से 12 करोड़ परिवारों को सीधे फायदा होगा, जिस पर 72,000 करोड़ रुपए खर्च आएगा. अगर इस तर्ज पर चल रही तेलंगाना की लोकप्रिय योजना से तुलना करें तो वहां सरकार ने हर किसान को प्रति एकड़ साल में दो बार 4,000 रुपए देने की शुरुआत की है. वहीं उड़ीसा में राज्य सरकार एक कदम और आगे बढ़कर साल में दो बार 5,000 रुपए दे रही है और इस स्कीम में कृषि मजदूर और बंटाई पर काम करने वाले किसानों को भी शामिल किया गया है. ऐसे में मोदी सरकार की 2000 रुपए की तीन किस्तों में दी जाने वाली रकम किसानों के असंतोष को खत्म करने में कितना प्रभावी साबित हो पाएगी, यह देखने वाली बात होगी.

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अलबत्ता यह जरूर है कि इस बजट ने हारे-थके बीजेपी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भर दी है और अब वे रक्षात्मक होने की जगह आक्रामक होते दिखेंगे. सार संक्षेप में, सरकार ने मौजूदा दौर का राजनीतिक कथ्य बदलने में अपनी पारी खेल दी है. अब संगठन की बारी है.