पीयूष गोयल ने सिर्फ बजट पेश नहीं किया है बल्कि बजट भाषण में लपेटकर चुनावी भाषण पेश किया है. अपने ऐलान की शुरुआत उन्होंने किसानों से की. किसान एक ऐसा वर्ग है जिसे राहुल गांधी भी खुश करना चाहते हैं और नरेंद्र मोदी सरकार भी. लेकिन हकीकत यह है कि दोनों में से कोई भी अब तक किसानों की समस्या दूर नहीं कर पाया है.
गोयल ने छोटे किसानों के सपोर्ट के लिए सालाना 6000 रुपए देने का ऐलान किया है. इसका फायदा उन किसानों को मिलेगा जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन हो. लेकिन जिन किसानों के पास कोई जमीन नहीं है, उन्हें क्या मिल रहा है? इस पर बात नहीं हो रही है.
एजुकेशन और नौकरी पर बात क्यों नहीं?
किसानों को सालाना 6000 रुपए की आमदनी और मजदूरों को 3000 रुपए के पेंशन से फिस्कल डेफेसिट बढ़ेगा. अगर यह सरकार दोबारा आती है तो इस फंड का इंतजाम कैसे होगा? फंड के इंतजाम के बारे में पीयूष गोयल ने कुछ नहीं कहा है.
एक चुनावी भाषण की तरह इसमें किसी ऐसे पहुल को नहीं छुआ गया, जिससे बात बिगड़ सकती थी. मसलन बजट में शिक्षा और रोजगार के बारे में कोई बात नहीं की गई. जॉब डाटा पर सरकार पहले ही आलोचनाओं की शिकार है.
अगले तीन महीने में लोकसभा चुनाव हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि यह बजट पॉपुलिस्ट हो सकता है. लेकिन असल में यह एक कदम बढ़कर चुनावी वादा है. अगर सरकार लौट कर आती है तो क्या टैक्सपेयर्स पर बोझ बढ़ाए बिना फंड का इंतजाम कर सकती है. एक सवाल यह भी है कि सरकार अगर ऐसा बजट ला सकती थी तो 5 साल तक इंतजार क्यों किया. क्या सरकार की मंशा सिर्फ वोट बटोरना है. फैसला आप कीजिए. लेकिन ये तो तय है कि पीयूष गोयल ने कुछ इस तरह बजट पेश किया है जिससे हींग लगे ना फिटकरी और दोबारा सरकार भी उनकी बने.
वाह! क्या बात है?
दिलचस्प है कि बजट की सारी योजनाएं नए वित्त वर्ष में लागू होंगी लेकिन किसानों के लिए जो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना शुरू की गई है वह 1 दिसंबर 2018 से लागू होगी. इसके तहत तीन किस्तों में किसानों को 6000 रुपए दिए जाएंगे. यह स्कीम 1 दिसंबर 2018 से लागू है यानी मार्च 2018 से पहले 2000 रुपए की पहली किस्त किसानों को मिल जाएगी. चुनावी बजट होने का इससे बड़ा सबूत क्या होगा.
पूरा होगा मिशन 2019?
इस बजट का असर अर्थव्यवस्था से कहीं ज्यादा वोट बैंक पर पड़ने वाला है. इसलिए सरकार ने फैसले भी जनता को खुश करने के हिसाब से लिए हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि मतदाता हर बार बजट में हुई घोषणाओं को ही आधार मानकर वोट करता है.
इसका एक बेहतरीन उदाहरण है 2009-10 का अंतरिम बजट. उस वक्त प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे. यूपीए के पहले चरण का कार्यकाल खत्म हो रहा था. ऐसे में लोकलुभावन बजट की उम्मीद की जा रही थी लेकिन प्रणब मुखर्जी ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया था.
अपने बजट भाषण में तब उन्होंने कहा था कि मैं ऐसा कोई ऐलान नहीं करना चाहता जिससे आने वाली सरकार पर बोझ बढ़े. और ना ही अभी कोई टैक्स छूट दे सकता हूं क्योंकि यह नई सरकार की जिम्मेदारी है. दिलचस्प है कि इस तरह के अंतरिम बजट के बाद भी यूपीए को 2010 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल हुई.
इससे ठीक उलट 2014-15 के अंतरिम बजट में हुआ. यूपीए के दूसरे चरण के कार्यकाल में पी चिदंबरम ने डायरेक्ट टैक्स में तो कोई बदलाव नहीं किया. लेकिन तब चिदंबरम ने एक्साइज ड्यूटी घटाकर इनडायरेक्ट टैक्स में राहत दी थी. एक्साइज ड्यूटी घटने से तब फोन, कार जैसी कुछ चीजें सस्ती हुई थीं. लेकिन इसका कोई फायदा चुनावों के नतीजों में देखने को नहीं मिला. अब देखना है कि अपनी तरह के पहले अंतरिम बजट का असर लोकसभा चुनावों के नतीजों पर कितना होता है.
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