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पहले डोकलाम, अब अरुणाचल: लगातार घुसपैठ कर बताना क्या चाहता है चीन?

चीन भारत के साथ संबंधों में स्थिरता (बाजार तक पहुंच के लिए) बनाए रखना चाहता है और आर्थिक और सैन्य ताकत के बल पर यह जताता है कि एशिया में बॉस कौन है

Sreemoy Talukdar

आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने सोमवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में चीन की तरफ से भारतीय सीमा में घुसपैठ की मीडिया खबरों की पुष्टि की. यह घुसपैठ दिसंबर के आखिरी सप्ताह में हुई थी. चीन के लोग अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सीमा में करीब एक किलोमीटर अंदर तक घुस आए थे. चीन के लोगों ने सड़क बनाने का काम भी शुरू कर दिया था. इस बीच भारतीय सुरक्षा बलों ने उन्हें चुनौती दी और फिर चीन के लोग वापस लौटे.

सेना प्रमुख रावत ने दावा किया कि ‘टुटिंग की घटना’ मौजूदा सीमा प्रबंधन तंत्र के तहत शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा ली गई. भारतीय सैनिकों ने सड़क निर्माण के उपकरण चीन को लौटा दिए. जाते वक्त चीनी सैनिक ये उपकरण छोड़ गए थे.


चीन का दावा है कि उसके निर्माण कर्मचारी 'अनजाने में' वास्तिवक नियंत्रण रेखा पार कर भारत की तरफ चले गए थे. चीन के मासूमियत भरे दावे पर गंभीरता से भरोसा करना मुश्किल है. हालिया अतिक्रमण को चीन की सलामी-स्लाइसिंग रणनीति के अलावा और कुछ मानना जोखिम भरा और मूर्खतापूर्ण हो सकता है.

चीन 'अनजाने में' कुछ नहीं करता

चीन का उन्माद सुव्यवस्थित है. वह ‘अनजाने में’ कुछ नहीं करता. उदाहरण के लिए डोकलाम विवाद को कई लक्ष्यों को हासिल करने के लिए शुरू किया गया था- भारत के धीरज की परीक्षा लेना, रणनीतिक जगह पर सैन्य नियंत्रण स्थापित करना और भारत और भूटान के बीच रिश्ते खराब करना- इसी तरह, अरुणाचल प्रदेश में अतिक्रमण और निर्माण कार्यों के जरिए ‘जमीन पर तथ्यों’ को बदलने की कोशिश का बड़ा प्रभाव होगा.

हमारे सामने बड़ा सवाल है: संप्रभु देशों की सीमाओं में सलामी-स्लाइसिंग करके चीन क्या हासिल करना चाहता है? जब डोकलाम विवाद चरम पर था, सेना प्रमुख रावत ने चीन की ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति के कारण दो मोर्चों पर युद्ध की आशंका जताई थी.

'सलामी स्लाइसिंग' की रणनीति

सलामी स्लाइसिंग’ (इस शब्द का ईजाद हंगरी के कम्युनिस्ट नेता मेटयास राकोसी ने 1940 के दशक में किया था ) चीन की एक रणनीति है. इसमें गुप्त तरीके से क्षेत्रीय आक्रामता को बढ़ाया जाता है, जो व्यक्तिगत सहनशक्ति की क्षमता से कम होता है, लेकिन इसमें राजनीतिक और रणनीतिक खतरे होते हैं, जो आखिरकार किसी देश की संप्रभुता को कम करता है.

इन छोटे-छोटे अतिक्रमणों के जरिए चीन यथास्थिति, और ‘जमीन पर तथ्यों’ को बदलना चाहता है और बदली हुई वास्तविकता पर अपना दावा जताना चाहता है. शी जिनपिंग के शासन में, चीन बार-बार ताकत की रणनीति आजमाकर एशिया-प्रशांत और हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में खुद को मजबूत बनाना चाहता है. इन इलाकों में भारत के साथ उसकी चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा है.

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डोकलाम विवाद के दौरान, चीन के इस खेल का भारत ने ‘फिजिकल डिनायल’ वाली रणनीति से जवाब दिया. चीन को अपने कदम पीछे खींचने पड़े और गतिरोध से बाहर निकलना पड़ा. लेकिन विवाद के दौरान और इसके बाद उसने साफ कर दिया कि वह 'सीमा से जुड़ी एतिहासिक संधि के तहत क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखता है.'

ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर चीन ने 'सीमा से संबंधित ऐतिहासिक संधि' का पालन किया होता तो डोकलाम विवाद पैदा ही नहीं होता. ऐसा इसलिए है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा हो या फिर दक्षिण चीन सागर, चीन मौजूदा समझौतों को बहुत कम अहमियत देता है. वो अपने हिसाब से परिस्थितियों की व्याख्या करता है जो इतिहास के संशोधनवादी रवैये से निर्धारित होती हैं.

हमेशा आक्रमणकारी ही रहा है चीन

उदाहरण के लिए, 19वीं पार्टी कांग्रेस में दिए अपने मैराथन भाषण में शी ने असंतोष की वो झलक दिखाई, जिससे उनकी विदेश नीति तय होती है. शी ने कहा: 'हम किसी को, किसी भी संगठन या किसी राजनीतिक दल को किसी भी समय और किसी भी रूप में चीन से उसके किसी हिस्से को अलग नहीं करने देंगे.'. हालिया इतिहास को देखें तो यह दावा सही होता दिखता है, क्योंकि सीमा विवाद में चीन हमेशा आक्रमणकारी की भूमिका में नजर आ रहा है, न कि रक्षक की भूमिका में.

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हफिंगटन पोस्ट में प्रो.विवेक मिश्रा ने लिखा कि सेना प्रमुख रावत की ‘युद्ध’ की चेतावनी से अलग, एक स्तर पर सलामी-स्लाइसिंग रणनीति चीन की 'आक्रामक कूटनीति' का हिस्सा है. इसका मकसद चीन का व्यापारिक प्रभुत्व बढ़ाना है.

प्रो. मिश्रा को लगता है कि 'पूर्व में देमचोक, चुमार और बाराहोती सेक्टर में गैर-आक्रामक अतिक्रमण, चीन की महाद्वीपीय आक्रामकता का उदाहरण है. इसके जरिए वो समुद्री प्रभाव बढ़ाकर और महाद्वीपीय परिधि में इसका विलय कर व्यापार और संपर्क के क्षेत्र में प्रभुत्व जमाना चाहता है.'

अगर इस रणनीति का विरोध किया गया या फिर कमजोर देशों के खिलाफ इसे आजमाया गया तो इससे युद्ध भड़क सकता है. लेकिन भारत के साथ ऐसा होने की आशंका कम है. कारोबारी ताकत के रूप में चीन को भारत की जमीन के मुकाबले उसका बाजार अधिक पसंद है. फिर भी वो समय-समय पर ताकत वाली रणनीति का इस्तेमाल करता रहता है, जिससे भारत ईमानदार बना रहे और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीति को सीमित रखा जा सके.

एक तरफ साझीदार और दूसरी तरफ वॉर

सीमा पर बार-बार अतिक्रमण के साथ चीन मीठी कूटनीतिक वार्ताएं भी जारी रखता है (अतिक्रमण के साथ-साथ). जैसा कि पिछले दिसंबर में दिल्ली में चीन के विशेष प्रतिनिधि यांग जेचई ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की. यांग ने दावा किया कि उन्होंने शी जिनपिंग की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'विशेष संदेश' दिया है. उन्होंने कहा कि दोनों देश 'पीढ़ियों तक एक-दूसरे के दोस्त' और 'पुननिर्माण में साझीदार' बने रहें. इसके कुछ दिनों बाद ही चीन के निर्माण कर्मचारी 'अनजाने में' भारतीय सीमा में घुस गए और सड़क बनाने लगे.

अगर इस नजरिये से देखें तो यह चीन की बड़ी रणनीति है. वह भारत के साथ संबंधों में स्थिरता (बाजार तक पहुंच के लिए) और आर्थिक और सैन्य ताकत के बल पर यह जताने में कि एशिया में बॉस कौन है, के बीच संतुलन बनाकर चलता है. इस तरह 'सलामी-स्लाइसिंग' रणनीति सार्वजनिक संदेश का उसका तरीका है.

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अमेरिकन फॉरेन पॉलिसी काउंसिल में एशियन सिक्योरिटी प्रोग्राम के डायरेक्टर और कोल्ड पीस: चाइना-इंडिया रायवलरी इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी के लेखक जेफ एम.स्मिथ वार ऑन द रॉक्स में लिखते हैं, 'चीनी सेना की सीमा पर गतिविधियां... भारतीय नेतृत्व को शर्मिंदा करने के लिए है... और भारतीय नागरिक और दुनिया को यह दिखाने के लिए है कि चीन बिना किसी झिझक के सीमा पर अपनी गतिविधियां चला सकता है और मोदी भारत की सीमाई अखंडता की रक्षा करने में असमर्थ हैं.'

यह संघर्ष जितना जमीन पर चलता है उतना ही दिमाग में क्योंकि एशिया की दोनों बड़ी ताकतें अपने प्रभाव और स्थान के लिए आमने-सामने है.