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Sacred Games Controversy: हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी जो ‘कह’ ली है?

सेक्रेड गेम्स को लेकर आखिर इतने सवाल क्यों उठ रहे हैं क्या आप इस वेबसीरीज को देखना नहीं चाहेंगे?

Hemant R Sharma

जल्दी से आपको बता दें कि इस स्टोरी में आपको किन-किन सवालों के जवाब मिलने वाले हैं, फिर बात आगे बढ़ाएंगे

क्यों अलग है सेक्रेड गेम्स?


नेटफ्लिक्स पर इसे कैसे देखें?

सरकार और कांग्रेस इसे आंखें फाड़कर क्यों देख रहे हैं?

इसके धमाकों पर इतना हंगामा क्यों बरपा है?

क्या सेक्रेड गेम्स बॉलीवुड के नए युग की शुरुआत है?

सेंसर बोर्ड और सरकार इसे रोक पाएगी?

क्या अब बॉलीवुड में फिल्में बनना कम या बंद हो जाएंगी?

अभिव्यक्ति की आजादी मिलेगी या छिनेगी?

नेटफ्लिक्स की पहली भारतीय वेबसीरीज सेक्रेड गेम्स आते ही हिट हो गई. इसे हिट कैसे माना जाए. कोई बॉक्स ऑफिस नंबर्स तो हैं नहीं कि कमाई के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं जो इसकी सफलता का पैमाना हो.

जानकार इसे हिट इसलिए मान रहे हैं कि जिसने देख ली है वो तो इसके बारे में बात कर ही रहा है लेकिन जिसने नहीं देखी है, वो इसे कैसे भी देखने की तैयारी कर रहा है. इसे देखने के लिए आपको नेटफ्लिक्स पर अपना अकाउंट बनाना पड़ेगा, क्रेडिट या डेबिट कार्ड के डीटेल्स देकर आप एक महीने तक इसके सारे शो फ्री में भी देख सकते हैं.

तरीका मैंने बता दिया क्या अब आप इसे देखना चाहेंगे? तो आपका जवाब हो सकता है कि जरूर देखना चाहेंगे, क्योंकि इसमें बॉलीवुड फिल्मों का वो सारा मसाला है जिसके जरिए यहां के मेकर्स फिल्में बेचने की कोशिश करते हैं लेकिन सेंसरबोर्ड बाद में उन सीन्स को हटावा देता है जिसकी वजह से वो मसाला आप देख नहीं पाते जिसे दिखाकर लोगों को थिएटर्स तक लाने की कोशिश होती है.

क्यों अलग है सेक्रेड गेम्स’?

पहली बार आपको इसमें एक गैंगस्टर की लाइफस्टाइल को वैसे ही देखने का मौका मिलेगा जैसे ये लोग अपने असली जीवन में होते हैं. गालियों, क्राइम और सेक्स के दीवाने. एक भिखारी का बेटा गणेश गाइतोंडे जिंदगी के झटकों को झेलता हुआ क्राइम के रास्ते को अपना लेता है. उसे इसी के सहारे अपनी जिंदगी के सारे शौक पूरे करने हैं. उसकी डेयरिंग तब और बढ़ जाती है जिस दिन उसे पता चल जाता है कि उसकी जिंदगी अब बस एक गोली पर टिकी है. या तो पुलिस उसे मार देगी या वो खुद को गोली मार लेगा.

सेक्रेड गेम्स में गैंगस्टर की जिंदगी को ग्लोरीफाइ करने की कोशिश की गई है, ऐसा भी नहीं है. क्राइम के रास्तों के कांटे पल-पल उसकी जिंदगी में चुभते रहते हैं. कभी उसे अपनी पत्नी को खोना पड़ता है. तो कभी दोस्तों को. पुलिस ऐसे गैंगस्टर्स के साथ कैसा बर्ताव करती है, वो भी इसमें खूब दिखाया गया है. पुलिस की पिटाई जब कोई भी देखेगा, तो जाहिर है क्राइम के रास्ते पर जाने के बारे में तो वो कभी सोचेगा भी नहीं.

यहां पढ़िए सेक्रेड गेम्स का पूरी रिव्यू

सेक्स सीन्स काफी हैं, कुछ सीन्स तो सोशल मीडिया पर के जरिए हर किसी के फोन में जा पहुंचे हैं. गालियां भरी पड़ी हैं. अनुराग कश्यप अपनी कई फिल्मों में इनका इस्तेमाल करके पहले भी बदनाम हो चुके हैं. सस्पेंस खूब सारा है. इसलिए जो एक बार सेक्रेड गेम्स देखेगा वो पूरा देखे बिना छोड़ेगा तो नहीं.

सरकार की आंखें क्यों फटी हैं?   

इसके कॉन्टेंट को लेकर सरकार इसलिए परेशान हो सकती है कि उनके पास सेंसर बोर्ड है जो पहले खुद हर फिल्म को देखता है. काफी बार मनमानी भी करते हुए सीन्स को हटवा देता है. सेंसर बोर्ड के पिछले चीफ पहलाज निहलानी इतने ‘संस्कारी’ हो गए थे कि खुद सरकार को उनके संस्कारों पर कैंची चलानी पड़ी. इंटरनेट पर ऐप बेस्ड प्लेटफॉर्म्स पर दिखाए जाने कॉन्टेंट को कैसे कंट्रोल में लाया जाए, इसके लिए सरकारी हलकों में चिंतन शुरू हो चुका है. आपको बता दें कि अगले कुछ महीनों में इस तरह के शोज की बाढ़ आने ही वाली है. सेक्रेड गेम्स ने दूसरे प्लेटफॉर्म्स को भी आइडिया दे दिया है. इसलिए वो उस मसाले का पूरा इस्तेमाल करेंगे, जिससे वो लोगों तक अपने शोज को वायरल करवा सकें. इसे कंट्रोल में लाने के लिए सरकार को मशक्कत करनी पड़ सकती है. नए कानून बनाने पड़ सकते हैं. सरकार के लिए ज्यादा चिंता का विषय इसलिए भी है कि आज कांग्रेस के बारे में बातें कही जा रही हैं तो कल बीजेपी के लिए भी बातें तो होंगी ही.

सेक्रेड गेस्म से कांग्रेस क्यों खफा है?

कांग्रेस को सेक्रेड गेम्स की कहानी की कुछ डायलॉग्स तीर की तरह चुभ रहे हैं. गणेश गाइतोंडे ने कई जगह अपने तरीके से उस वक्त की सरकारों पर निशाना साधा है. इंदिरा गांधी की सरकार के वक्त नसबंदी कार्यक्रम पर तीर चलाए हैं तो राजीव गांधी सरकार और उनके कामों की आलोचना भी की है. राजीव गांधी के बोफोर्स सौदे में शामिल होने और शाह बानो के मामले में उनकी कार्रवाई पर भी डायलॉग्स हैं जो वैसे ही हैं जैसे कई बार लोग अपनी बातों में उनका जिक्र करते हैं लेकिन इससे कांग्रेस की खिसियाहट साफ नजर आ रही हैं. राहुल गांधी ने खुद मोर्चा संभाला हुआ है.

मधुर भंडारकर, स्वरा भास्कर और अनुराग कश्यप ने कैसे दिया राहुल गांधी को जवाब यहां पढ़िए

बॉलीवुड के लिए नए युग की शुरुआत?

सवाल बड़ा है. हमने सेक्रेड गेम्स के रिव्यू में इस बात को पहले ही बता दिया था कि ये सीरीज बॉलीवुड के लिए खतरे की घंटी कैसे बन गया है. इसकी स्टोरी, ट्रीटमेंट, शूटिंग, एक्टिंग से लेकर स्टोरी टैलिंग और बोल्डनेस ने दिखा दिया है कि बॉलीवुड अपने पुराने घटिया ढर्रे को क्रिएटिविटी और मनोरंजन बताकर जनता को अब नहीं ठग सकता. अब दर्शकों के लिए ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार हो चुका है. जो थिएटर्स को इतिहास में बदल सकता है. बॉक्स ऑफिस के अब तक को सारे नियमों को खत्म करके नई कहानी लिख सकता है. तो जाहिर है मनोरंजन के तरीकों को बदलने वाला इतना बड़ा आंदोलन बॉलीवुड के परंपरागत ढर्रों के लिए खतरे की घंटी है और एक नए युग की शुरुआत भी है. इन वेबसीरीज का बजट किसी भी मायने में फिल्मों से कम नहीं है और इतने बड़े व्यूअर बेस के लिए एडवर्टाइजर्स भी बाहें फैलाए खड़े हैं.

क्या सरकार इसे रोक पाएगी?

ये सवाल थोड़ा सा ट्रिकी है. सेंसरशिप में कैटेगरी के बदलाव की मांग लंबे वक्त से उठती आ रही है लेकिन सरकार ने इस बारे में कभी ध्यान नहीं दिया. सेंसरबोर्ड को चलाने वाले लोग बॉलीवुड से ही आते हैं लेकिन सरकार के डर से ये लोग खुलकर सेंसरशिप में बदलाव की वकालत नहीं करते. ज्यादातर वक्त सरकार के इशारों पर इन्हें काम करते और उनकी राजनैतिक इच्छाओं को पूरा करते ही देखा गया है. दर्शकों की राय से एकदम उलट कुछ लोग चाहते हैं कि सेंसरबोर्ड को वो लोग अपने पिंजरे में कैद तोते की तरह चलाएं. ताकि सिनेमा पर सरकार का पावर दिखता रहे.

बॉक्स ऑफिस के लिए फिल्मों का क्या होगा?

जब बॉलीवुड के निर्माताओं को ज्यादा मसाला पेश करने वाला प्लेटफॉर्म तो जाहिर है क्यों कोई सेंसरबोर्ड के पास जाकर अपनी नाक रगड़ेगा. बॉलीवुड के ज्यादातर निर्माताओं ने अब नेटफिलिक्स और उसके जैसे दूसरे प्लेटफॉर्म्स के लिए फिल्में बनाना शुरू कर दिया है और रॉनी स्क्रूवाला की कंपनी आरएसवीपी ने तो फिल्म लव पर स्क्वायर फुट को नेटफ्लिक्स पर ही रिलीज किया था. बॉक्स ऑफिस पर बड़े स्टार्स की फिल्मों को ही अच्छी ओपनिंग मिलती है. छोटे स्टार्स की फिल्मों को तो अपना बजट निकालना भी भारी पड़ जाता है, तो साफ है कि आने वाले वक्त में बॉक्स ऑफिस के लिए फिल्में बनाने के रुझान में तेजी से कमी आने वाली है.

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अभिव्यक्ति की आजादी का क्या होगा?

कांग्रेस पार्टी ने चिढ़कर इस पूरे मुद्दे को अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मौलिक अधिकार से जोड़ दिया है. इतने साल सत्ता में रहने के बाद भी अभिव्यक्ति की आजादी की कांग्रेस पार्टी की इस व्याख्या पर हर कोई वैसे ही हंस रहा है जैसे लोग राहुल गांधी की बातों पर हंसते हैं. मधुर भंडारकर ने ट्वीट करके राहुल गांधी से जवाब मांगा है जिसके बारे में वो अब चुप लगाकर बैठ गए हैं. इस वेबसीरीज के कॉन्टेंट को लेकर मामला कोर्ट में भी चल रहा है. अब देखना ये होगा कि कोर्ट इस पर क्या फैसला देती है. लेकिन इतना तो साफ है कि सेक्रेड गेम्स ने लोगों को एक नई बहस का मुद्दा जरूर दे दिया है.