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एन अनसूटेबल ब्वॉय: पैसे को लेकर करण और करीना का शीतयुद्ध

सवाल ये है कि करीना के ज्यादा मेहनताने की मांग पर करण जौहर आहत क्यों हो गए ?

Ila Ananya

'द न्यूयॉर्कर' में आज से करीब ढाई साल पहले रूसी-अमेरिकी लेखक और पत्रकार मारिया कोनिकोवा ने एक लेख लिखा था. जिसकी शुरुआत उन्होंने एक प्रोफेसर की कहानी से की थी. उस प्रोफेसर को नाजारेथ कॉलेज में नौकरी मिली थी. लेकिन अधिक सैलरी, मैटरनिटी लीव समेत कुछ और एक मुद्दों पर कॉलेज प्रबंधन के साथ उनकी बातचीत चल रही थीं.

महिला प्रोफेसर का कहना था कि वो सारी सुविधाओं की तो उम्मीद नहीं कर सकती थी. लेकिन इनके बारे में पूछना कोई बुराई नहीं थी. कॉलेज प्रबंधन ने इस पर जो जवाब दिया वो चौंकाने वाला था. प्रबंधन ने महिला प्रोफेसर को लिखा 'संस्थान आपको नौकरी का अवसर देने के अपने फैसले को वापस लेती है.'


दूसरी कहानी तब से चर्चा में है जब 16 जनवरी को मशहूर फिल्म निर्देशक करण जौहर ने अपनी आत्मकथा 'एन अनसुटेबल ब्वॉय' को लॉन्च किया. इस कहानी में किरदार करण जौहर और करीना कपूर हैं. इस किताब के पांचवें अध्याय के शीर्षक ‘अर्ली फिल्म मेकिंग इयर्स’ के तहत उन्होंने फिल्म 'कल हो ना हो' को कैसे बनाया उसके बारे में खुलकर बताया है.

किताब में उन्होंने बताया है कि कैसे न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क में बैठकर लोगों को निहारते हुए उन्होंने फिल्म 'कल हो ना हो' की कहानी लिखी, जिसे वो अपने जीवन की सबसे बेहतरीन स्क्रीनप्ले भी बताते हैं .

लेकिन वो बताते हैं कि इस फिल्म को बनाने के दौरान उन्हें कपूर को लेकर काफी परेशानी हुई. फिल्म 'मुझसे दोस्ती करोगे' की रिलीज के बाद मैंने करीना कपूर से फिल्म 'कल हो ना हो' में काम करने को कहा. तब उन्होंने उतने ही पैसे मांगे, जितने कि फिल्म के हीरो शाहरूख खान को मिल रहे थे. मैंने तब उनसे कहा ‘आई एम सॉरी‘. तब मैं काफी आहत हुआ था'. सवाल उठता है कि इस प्रसंग को लेकर करण जौहर आहत क्यों हुए ?

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आखिर महिला प्रोफेसर हों या कलाकार, बात जब उनके बेहतर मेहनताने की होती है तो ये भावनात्मक जख्म की वजह क्यों बन जाता है? दो राय नहीं कि दोनों ही कहानियां एक जैसी हैं. पहली कहानी के केंद्र में एक महिला है तो दूसरी कहानी का केंद्र एक पुरुष. लेकिन दोनों ही कहानियों में महिला ही अधिक सैलरी दिए जाने की मांग कर रही है.

चूंकि महिला प्रोफेसर ने ज्यादा सैलरी की मांग की थी. तो ऐसी स्थिति में हो सकता है कि उन्हें नौकरी पर नहीं रखा गया होगा. ये भी हो सकता है कि उस महिला प्रोफेसर की जगह नाजारेथ कॉलेज ने किसी और को नौकरी पर रख लिया होगा क्योंकि हम सब जानते हैं कि करण जौहर ने अपनी फिल्म 'कल हो ना हो' में प्रीति जिंटा को बतौर कलाकार शामिल कर लिया था.

अपनी किताब एन-अनसूटेबल ब्वॉय के लॉन्च पर शोभा डे के साथ करण जौहर.

ऐसे में करण जौहर जो अक्सर फिल्म बनाने की कला में खुद की तल्लीनता के बारे में बात किया करते हैं. उन्हें इस बात को समझना चाहिए था कि जब करीना कपूर ने शाहरुख खान की फीस के बराबर पैसों की मांग की थी तब वो भी अपनी कला में उतनी ही रची बसी होंगी.

ऐसा भी हो सकता है कि करीना कपूर ने वही समझा होगा जो मलयालम अभिनेत्री रीमा कालिंगल ने 2016 में फिल्म इंडस्ट्री में फेमिनिज्म और सेक्सिज्म के बारे में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, 'शायद बतौर एक कलाकार नहीं बल्कि आम इंसान की तरह ही सबसे पहले आप अपने इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया देना चाहते हैं.'

करण जौहर ने हालांकि अपनी चर्चा को यहां पर नहीं खत्म किया. इसके बाद भी किताब में एक अध्याय है जिसका शीर्षक है ‘फ्रेंड्स एंड फॉलआउट्स’. जिसमें उन्होंने लिखा है कि 'करीना और मेरे बीच बेइंतहा प्यार है. मैं हमेशा ये कहता हूं कि अगर मेरे साथ परिस्थितियां अलग होतीं तो मैं निश्चित तौर पर उन्हीं से शादी करता. यहां तक कि मुझे इसका भी अफसोस नहीं होता कि वो भले मुझसे शादी ना करना चाहती हो.'

करण जौहर ने 'बॉम्बे टाइम्स' की पार्टी के दौरान जब करीना कपूर महज 18 साल की थीं उसके बारे में भी लिखा है. उन्होंने लिखा है कि 'जिस तरीके से वो उस पार्टी में खड़ी थीं उससे यही लगता था कि वो पहले से ही पांच ब्लॉकबस्टर फिल्म की नायिका हो.' हालांकि आगे करण लिखते हैं कि 'तब वो बच्ची थीं और मुझसे करीब दस साल छोटी भी.'

इसके बाद करण बताते हैं कि कैसे उन्होंने करिश्मा कपूर को एक समारोह में ‘सेमी स्माइल’ देने की कोशिश की जिसे उन्होंने हल्के अंदाज में नजरअंदाज कर दिया. इससे आहत करण लिखते हैं कि मैंने सोचा कि आखिर ऐसा बर्ताव करने की उसने हिम्मत कैसे की?'

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एक तरफ जहां नौ महीने तक चले इस नोंक-झोंक का जिक्र सुर्खियां बटोर रहा है. वहीं इससे मिलता-जुलता प्रियंका चोपड़ा के साथ एक इंटरव्यू भी इन दिनों काफी चर्चा में है. इस इंटरव्यू में प्रियंका ने बॉलीवुड में उन्हें कम पैसे पर काम कराए जाने का दर्द साझा किया है. प्रियंका ने बताया है कि कैसे बॉलीवुड में उन्हें प्रोड्यूसर अपनी फिल्मों से बाहर निकालकर किसी दूसरे कलाकार को मौका दिए जाने की बात कहा करते थे .

नैटली पोर्टमैन जिन्हें फिल्म 'ब्लैक स्वान' में उनकी एक्टिंग के लिए ऑस्कर पुरस्कार दिया गया था. उन्होंने ने भी हाल में कहा था कि फिल्म 'नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड' में उन्हें अभिनेता एश्टन कूचर के मुकाबले तीन गुना कम मेहनताना मिला था.

कॉफी विद करन शो में करीना और सोनम कपूर. तस्वीर: स्क्रीन ग्रैब हॉट स्टार

ये सारी कहानियां एक जैसी हैं. अक्टूबर 2016 में दिए गए एक इंटरव्यू में सोनम कपूर ने कहा कि उनकी फिल्म 'वीरे दी वेडिंग', जिसमें सभी किरदार महिलाएं थीं, उस फिल्म का बजट जॉन अब्राहम और वरुण धवन की फिल्म 'ढिशुम' के मुकाबले काफी कम था, जबकि दोनों ही फिल्मों को एक ही स्टूडियो ने बनाया था. इसका मतलब बहुत साफ था कि फिल्म में काम करने के लिए उन्हें अपनी फीस से समझौता करना पड़ा. लेकिन हैरानी तो तब होती है जब 'कॉफी विद करण' कार्यक्रम में सोनम कपूर ने इस मुद्दे पर बात करनी चाही तो करण जौहर ने मुद्दा ही बदल दिया .

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आखिर एक पुरुष कलाकार को जब महिला कलाकार के मुकाबले कई गुना पैसे मिलते हैं. तब क्यों इस बात पर बवाल नहीं मचता है? लेकिन ऐसा क्यों होता है कि अगर फिल्म 'पीकू' में अमिताभ बच्चन से ज्यादा दीपिका पादुकोण को मेहनताना दिया जाता है तो इस विषय पर जबरदस्त चर्चा होने लगती है ?

करण जौहर करीना कपूर के साथ अपने नोंक-झोंक के बारे में लिखते तो जरूर हैं. लेकिन इस बात से अनजान हैं कि वो क्या कह रहे हैं. क्योंकि उनकी सामंती दुनिया में ये बेहद सामान्य है.

ये वैसा ही है जैसा कि हाल में डियोड्रेंट के एक विज्ञापन में एक महिला को तनावपूर्ण स्थिति में दिखाया गया है. ये शायद पहली बार है जब किसी डियोड्रेंट के विज्ञापन में वास्तविक शब्द को शामिल किया गया हो. विज्ञापन में दिखाया गया है कि कैसे एक महिला बाथरूम में शीशे के सामने खड़ी होकर इस बात की प्रैक्टिस कर रही होती है कि वो अपने बॉस से अपनी वेतन बढ़ोत्तरी की बात कैसे करेगी? विज्ञापन में उस महिला को दिखाया गया है कि कैसे वो दोस्ताना बर्ताव करना चाहती है. जब वो इस बात की प्रैक्टिस करती है कि उसे एक फेवर चाहिए होगा. लेकिन अगले ही पल वो खुद में बुदबुदाती है कि निश्चित तौर पर ये फेवर नहीं कहला सकता.

एम्मा स्टोन. फोटो. रॉयटर्स

ये वैसा ही है जैसा कि एमा स्टोन ने खुद को भाग्यशाली बताया कि उन्हें अपने पुरुष सहकर्मी से ज्यादा पैसे मिले .

द न्यूयॉर्कर में कोनिकोवा ये तर्क देती हैं कि तमाम अध्ययनों में ये पाया गया है कि ज्यादातर महिलाओं को ये सलाह तो दे दिया जाता है कि वो खुद के लिए आवाज उठाएं. बातचीत में खुद की बात रखें. लेकिन अक्सर महिलाएं जब इन बातों पर अमल करती हैं तो परिस्थितियां उनके विपरीत हो जाया करती है.

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अध्ययन के मुताबिक जो महिलाएं ज्यादा वेतनमान के लिए आवाज उठाती हैं, उन्हें पुरुषों के मुकाबले ज्यादा दंडित किया जाता है. यहां तक कि पुरुष और महिलाओं को अलग-अलग काबिलियत की वजह से भी प्रमोशन दिया जाता है.

पुरुषों को ज्यादातर उनके वर्किंग कॉम्पिटेंस पर प्रमोट किया जाता है, तो महिलाओं की तरक्की के पीछे उनकी सोशल स्किल का ख्याल रखा जाता है. शायद ही कोई ऐसी महिला को बर्दाश्त करना चाहता है जो अपनी बात रखती हों और आक्रमक भी हों.

जेनिफर लारेंस ने लेनी लेटर में लिखा है कि ये सिर्फ नजरिए का फर्क है. वो लिखती हैं कि 'ये झूठ बोलना होगा अगर मैं ये ना बताऊं कि 'अमेरिकन हसल' मूवी के लिए बिना किसी तर्क के डील करने के दौरान मेरे फैसले पर किसी का असर नहीं था. मैं परेशानियों और विवादों में नहीं पड़ना चाहती थी.'

जर्मनी में कैबिनेट ने हाल ही में एक बिल पास किया है. इस बिल के तहत अगर कोई कंपनी एक ही काम के लिए पुरुष और महिला के वेतन के अंतर का सही कारण नहीं बता पाएगी तो कंपनी के खिलाफ कर्मचारी अपनी शिकायत दर्ज करा सकेगा. हालांकि इस बिल के विरोध में तर्क ये दिया जा रहा है कि इससे काम करने की जगह पर ईर्ष्या और असंतोष बढ़ेगा. ये वो तर्क है जिससे करण जौहर भी सहमत होंगे.