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मोदी के ‘चंगुल में’ अफगानिस्तान, दुखी पाक मीडिया

पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में आजकल भारत को काफी कवरेज मिल रही है.

Seema Tanwar

पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में आजकल भारत को काफी कवरेज मिल रही है. कहीं भारत और अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसियों के बीच कथित गठजोड़ से अखबार सहमे हैं. तो कहीं बीएसएफ जवान के वायरल हुए वीडियो के सिलसिले में भारतीय सेनाओं की क्षमताओं पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं.

भारत की जुबान


रोजनामा पाकिस्तान’ लिखता है कि पाकिस्तान हाल के बरसों में बार बार यह साफ कर चुका है कि वह अफगानिस्तान में शांति चाहता है और इसके लिए कोशिश भी कर रहा है. लेकिन अफगानिस्तान का नेतृत्व मोदी के जंतर मंतर में फंसा है और पाकिस्तान के खिलाफ वही जुबान बोल रहा है जो मोदी बोलते हैं.

अखबार के मुताबिक हाल ही में अफगान खुफिया एजेंसी के पूर्व उप प्रमुख के नेतृत्व में कुछ खुराफाती तत्वों ने काबुल में पाकिस्तानी दूतावास पर धावा बोल दिया. उन्होंने वहां पाकिस्तान विरोधी नारे लगाए और तोड़फोड़ करने की कोशिश की.

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अखबार के मुताबिक अफगानिस्तान का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगल रहा है और वहां होने वाले हर धमाके में उसी तरह पाकिस्तान का हाथ बताने की कोशिश होती है जैसे अपने यहां होने वाले धमाकों के बाद करता है.

अफगानिस्तान अपना घर संभाले

दैनिक ‘औसाफ’ लिखता है कि अफगानिस्तान में पिछले दिनों हुए धमाके के पीछे स्थानीय तत्वों का हाथ था. फिर भी अफगानिस्तान ने इसके तार पाकिस्तान से जोड़कर दुनिया को गुमराह किया.

अखबार के मुताबिक अफगान सरकार देश में सुरक्षा हालात को बेहतर बनाने की बजाय पाकिस्तान पर बेसिर पैर के इल्जाम लगाकर अपने देश की जनता के गुस्से को कम करने की कोशिश करती है.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछली अफगानिस्तान यात्रा के दौरान उनका इस्तकबाल करते राष्ट्रपति अशरफ ग़नी. फोटो: रायटर्स

अखबार ने भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ और अफगान खुफिया एजेंसी एनएसडी के गठजोड़ पर पाकिस्तान की चिंताओं का जिक्र करते हुए अफगान राष्ट्रपति को नसीहत दी है कि वह अपने देश के मामले खुद सुलझाएं.

रोजनामा ‘वक्त’ लिखता है कि भारत ने पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाने के लिए ही अफगानिस्तान में दर्जनों कॉन्सूलेट खोल रखे हैं और रॉ और एनएसडी के बीच गठजोड़ के जरिए अफगानिस्तान की सरजमीन से पाकिस्तान के भीतर कई आतंकवादी कार्रवाइयां अंजाम दी जा रही है.

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अखबार कहता है कि जरूरत इस बात की है कि अफगानिस्तान भारत जैसे सहयोगियों के चंगुल से निकले क्योंकि तभी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में स्थिरता और मजबूती आ सकती है.

वायरल वीडियो की गूंज

उधर, दैनिक ‘इंसाफ’ ने बीएसएफ के जवान तेज बहादुर के वायरल हुए वीडियो पर एक लेख छापा है - अंदरूनी समस्याओं में उलझी भारतीय फौज. इस लेख में रियाज चौधरी लिखते हैं कि भावुक भारतीय जनता सामाजिक और आर्थिक मसलों से आंखें फेरकर जंगी उन्माद भड़काने वाले मोदी के गुण गा रही है.

लेख के मुताबिक भावनाओं में बह जाने वाली भारतीय जनता इस तल्ख सच्चाई से नावाकिफ है कि इस वक्त उसकी थलसेना पाकिस्तान पर हमला नहीं कर सकती. लेख में भारतीय रक्षा विश्लेषकों का हलावा देते हुए कहा गया है कि मौजूदा हालात में भारतीय सेना के पास 20 दिन तक लड़ने का ही गोलाबारूद है. ऐसे में, अगर लड़ाई लंबी खिंची तो भारत की हार लाजिमी है, आकंड़ों में भले ही वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना हो.

तेज बहादुर ने वीडियो में उनको मिलने वाले खाने की खराब क्वालिटी का जिक्र किया था

दुनिया रोजनामा ‘दुनिया’ भारतीय फौजी के वीडियो के वायरल होने की खबर पहले पन्ने पर लगाते हुए कहा कि भारत पाकिस्तान सरहद पर तैनात भारतीय फैजियों के लिए खाने के लाले पड़े. अखबार ने हल्दी और नमक की दाल और कभी कभी भूखे सो जाने की तेज बहादुर की बातों को प्रमुखता से अपनी खबर में जगह दी.

कश्मीर का दुखड़ा

दूसरी तरफ, ‘नवा ए वक्त’ ने संयुक्त राष्ट्र के नए महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के पद संभालने पर फिर कश्मीर का दुखड़ा रोया है.

गुटेरेश ने विवादों को खत्म करने के लिए और कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया है. अखबार कहता है कि ये कदम उन्हें खुद ही उठाने होंगे. अखबार कहता है कि दक्षिणी सूडान और पूर्वी तिमोर को आजादी मिल गई है लेकिन कश्मीर और फलस्तीन की समस्या 70 साल में भी हल नहीं हुई है. संयुक्त राष्ट्र को चंद देशों की कठपुतली बताते हुए अखबार कहता है कि नए महासचिव के लिए कश्मीर और फलस्तीन किसी इम्तिहान से कम नहीं हैं.

जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में भारत विरोधी प्रदर्शनकारियों पर निशाना साधता एक पुलिसकर्मी. फोटो: रायटर्स

वहीं, एक्सप्रेस ने पिछले दिनों पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में प्राचीन हिंदू मंदिर कटासराज के दौरे पर गए नवाज शरीफ के बयान पर संपादकीय लिखा. अखबार ने नवाज शरीफ के इस बयान को सराहा है कि अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान में पूरी सुरक्षा दी जाएगी.

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अखबार कहता है कि पाकिस्तान में इस वक्त 97 फीसदी आबादी मुसलमानों की है और चंद चरमपंथियों और आतंकवादियों को छोड़कर सब अल्पसंख्यकों से अच्छा बर्ताव करते हैं.