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क्या अमेरिका की नजर अब पाकिस्तान के एटमी हथियारों पर है?

पाकिस्तान को लेकर अमेरिकी नीतियों के ब्लूप्रिंट से अभी बहुत कुछ बाहर आना बाकी है

Kinshuk Praval

नए साल की शुरुआत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद को बंद करने के ऐलान के साथ की. सिर्फ राहत बंद करने का ही ऐलान नहीं था बल्कि पाकिस्तान को धोखा देने वाला देश तक कहा. अमेरिका का आरोप था कि पाकिस्तान ने आतंकी नेटवर्क को खत्म करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की. सिर्फ अमेरिका को छलावे में ही रखता आया. ट्रंप ने ट्वीट कर पूछा था कि अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को छह साल तक गुप्त शरण देने वाला पाकिस्तान माफी कब मांगेगा?

अमेरिकी दो टूक के बाद अब पाकिस्तान ने भी रंग दिखाना शुरू कर दिया है. रिश्तों में बढ़ती कड़वाहट के बाद अब पाकिस्तान ने पैंतरा बदलते हुए अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग और खुफिया जानकारियों का अदान-प्रदान बंद कर दिया है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री खुर्रम दस्तगीर ने इसका ऐलान किया है. जबकि इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा था कि पाकिस्तान का अमेरिका के साथ गठबंधन खत्म हो चुका है.


पाकिस्तान की ये खुली गुस्ताखी अमेरिका को नींद से जगाने के बाद झिंझोड़ने के लिए काफी है. जिस पाकिस्तान को अमेरिका ने पिछले 15 सालों में 33 अरब डॉलर से ज्यादा पैसा दिया वही पाकिस्तान अब आंखें दिखा रहा है.

पाकिस्तान का खुला ब्लैकमेल अमेरिका के सामने है. पाकिस्तान अमेरिका की कमजोर नस पहचान चुका है. वो ये जानता है कि अफगानिस्तान में हजारों अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं. बिना पाकिस्तान की मदद के उन सेनाओं तक रसद पहुंचाना मुमकिन नहीं होगा. दरअसल कराची से सड़क के रास्ते अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सेना को रसद पहुंचती है.

खुर्रम दस्तगीर

कराची पोर्ट से अफगानिस्तान के जलालाबाद तक ये रसद ट्रकों के जरिए पहुंचती है. पाकिस्तान सात साल पहले भी पाकिस्तान रसद रोकने का काम कर चुका है. साल 2011 में अमेरिकी सील कमांडो ने एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था. जिसके बाद गुस्साए पाकिस्तान ने विरोध में अफगानिस्तान जाने वाली रसद रोक दी थी.

लेकिन इस बार अमेरिका ने बहुत कुछ सोचकर ही पाकिस्तान की 7 हजार करोड़ रुपये की सैन्य मदद रोकी है. अमेरिकी प्रशासन ने फैसले के बाद होने वाली तमाम प्रतिक्रियाओं पर विचार करने के बाद ही आर्थिक मदद रोकी है. अब अमेरिका पाकिस्तान के हर एक एक्शन पर नजर रखे हुए हैं. अगर पाकिस्तान इस बार भी रसद रोकने जैसी ब्लैकमेलिंग करता है तो उसके गंभीर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना होगा. अमेरिका के पास रूस, किर्गिस्तान और ईरान के रास्ते रसद भेजने का विकल्प मौजूद है.

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अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सैनिक और ठिकाने हक्कानी नेटवर्क के निशाने पर हैं. अमेरिका ने पाकिस्तान पर हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है. साथ ही पाकिस्तान पर तमाम आतंकी संगठनों को पनाह देने का भी आरोप है. अमेरिका का अल्टीमेटम है कि जिन आतंकवादियों की अफगानिस्तान में तलाश है उन्हें पाकिस्तान पनाह दिए हुए है.

पाकिस्तान भी इस मुगालते में था कि जब तक अफगानिस्तान में आतंकवादी नेटवर्क मौजूद रहेगा तब तक अमेरिका से डॉलर मिलने में देर नहीं होगी. अमेरिका की पूर्वर्ती सरकारों के लिए पाकिस्तान कमजोरी भी बन चुका था. लेकिन इस बार व्हाइट हाउस और पेंटागन पाकिस्तान को लेकर बेहद सख्त रुख अपना रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी विदेश नीति के कई समीकरण बदलते जा रहे हैं. ट्रंप बार बार पाकिस्तान को चेतावनी दे रहे हैं कि वो अपने देश से आतंकी संगठनों का सफाया करे. ऐसे में पाकिस्तान की कोई भी चालबाजी या ब्लैकमेलिंग उसे संकट में डाल सकती है.

लेकिन अमेरिका के तेवरों को देखते हुए सवाल भी उठता है कि क्या अब वाकई अमेरिका को पाकिस्तान से खुफिया जानकारियों की जरूरत नहीं है? क्या अमेरिका को नई सुरक्षा नीति के तहत अब पाकिस्तान की जरूरत नहीं रह गई है?

अमेरिकी नाराजगी की वजह सिर्फ आतंकवाद ही नहीं है. हालांकि अमेरिकी और पश्चिमी देश कट्टरपंथियों और चरमपंथियों के निशाने पर हैं. इसके बावजूद पाकिस्तान को बड़ा झटका देने के पीछे दूसरी वजहें भी दिखाई देती हैं. दरअसल पाकिस्तान का चीन के प्रति बढ़ता दोस्ताना अमेरिका को नागवार गुजर रहा है. कई अंतर्राष्ट्रीय मामलों में चीन और अमेरिका के बीच गहरा विवाद है. चीन लगातार पाकिस्तान के लिए ढाल बनने का काम कर रहा है.

डॉलरों की मदद रुकने के बाद पाकिस्तान ने चीन की करेंसी युआन से डॉलर की जगह कारोबार करने का ऐलान किया है. वहीं पाकिस्तान ने रूस के साथ भी हथियारों की डील की है. भविष्य में पाकिस्तान में चीन के सैन्य अड्डे भी देखे जा सकते हैं. वहीं एशिया के लिहाज से भारत का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान को चीन में बड़ा भाई दिखाई दे रहा है. पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि उसका स्वार्थ सिर्फ भारत तक ही सीमित है.

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ऐसे में वो चीन की दोस्ती को अमेरिका से ज्यादा फायदेमंद सौदा मान रहा है. हालांकि पाकिस्तान को इस बात का अहसास भी है कि चीन किसी भी मदद के बदले अपने सामरिक और व्यापारिक हित जरूर साधेगा जैसा कि चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सिल्क रूट पर भी दिखाई दे रहा है. इस रूट पर बने पाकिस्तान के दायमर-बाशा डैम पर चीन मालिकाना हक चाहता है. पाकिस्तान चीन के साथ इस सौदेबाजी के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में चीन के प्रोजेक्ट सिल्क रूट को लेकर भीतर ही भीतर चीन और पाकिस्तान के बीच दरार पनपने का भी अंदेशा है.

पाकिस्तान भले ही अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग खत्म करने का एलान करे, लेकिन सच ये है कि अमेरिका को नाराज कर पाकिस्तान रह भी नहीं सकता है. जिस इराक को जनसंहारक हथियार रखने का आरोपी बताकर नेस्तनाबूत किया जा सकता है तो पाकिस्तान के धोखे पर फिर अमेरिका के दिल में कौन सा रहम होगा जो परमाणु हथियार लेकर बैठा है.

अमेरिका कई बार पाकिस्तान के एटमी हथियारों पर चिंता जता चुका है. उसको अंदेशा है कि ये परमाणु हथियार आतंकी हाथों में जा सकते हैं. पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक डॉ. कदीर खान पर परमाणु तकनीक बेचने का आरोप लग ही चुका है.

ऐसे में विश्व सुरक्षा के लिए अगर उत्तरी कोरिया एक खतरा है तो पाकिस्तान भी कट्टरपंथियों और आतंकी नेटवर्क का बेस बनने की वजह से बड़ा खतरा है. अगर अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते इसी तरह तल्खी दर तल्खी खराब होते चले गए तो बहुत मुमकिन है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर अमेरिका कब्जा कर ले.

ब्रिटेन और इस्राइल जैसे देश कभी नहीं चाहेंगे कि इस्लामिक मुल्क के हाथों में परमाणु बटन रहे. हालांकि अभी ये सोचना बहुत जल्दबाजी हो सकता है. लेकिन किसी ने ये भी नहीं सोचा था कि एक दिन अमेरिका ही पाकिस्तान को झूठा और फरेबी बताकर अरबों डॉलर की मदद रोक देगा. पाकिस्तान को लेकर अमेरिकी नीतियों के ब्लूप्रिंट से अभी बहुत कुछ बाहर आना बाकी है.