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पनामा लीक: पाकिस्तान में गूंज रहे 'गो नवाज गो' के नारे

विपक्ष अड़ा है कि जांच पूरी होने तक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पद खाली कर देना चाहिए

Seema Tanwar

पाकिस्तान के उर्दू मीडिया में पनामा लीक्स पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उसे लेकर चल रहे सियासी हंगामे से बड़ी कोई खबर नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के परिवार की विदेशों में संपत्ति की जांच के लिए संयुक्त जांच टीम बनाने का फैसला सुनाया है. लेकिन विपक्ष इस बात पर अड़ा है कि जांच पूरी होने तक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पद खाली कर देना चाहिए.


पाकिस्तान की फिजा में फिर से 'गो नवाज गो' के नारे गूंज रहे हैं. इमरान खान और उनकी पार्टी के नेता फिर से धरने और प्रदर्शनों के लिए लंगोट कस रहे हैं.

ऐसे में, पाकिस्तानी उर्दू मीडिया को चिंता सता रही है कि कहीं सियासी रस्साकशी का खमियाजा देश को न भुगतना पड़े, वह भी तब जब पूर्वी सीमा पर भारत और पश्चिमी सीमा पर अफगानिस्तान की तरफ से लगातार दबाव बढ़ रहा है.

चढ़ा सियासी पारा

रोजनामा 'इंसाफ' के मुताबिक विपक्ष का कहना है कि नवाज शरीफ के रहते संयुक्त जांच टीम से कुछ निकल कर आने की उम्मीद नहीं है क्योंकि उसके सदस्य सरकारी महकमों के मातहत होते हैं.

अखबार लिखता है कि जहां विपक्ष जांच टीम में सिर्फ सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को रखने की मांग रहा है, वहीं इमरान खान ने आने वाले शुक्रवार इस्लामाबाद में रैली करने एलान कर दिया है.

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अखबार के मुताबिक, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने भी सरकार के खिलाफ मैदान में आने की बात कही है. इसके अलावा सभी पार्टियां मिलकर सरकार के खिलाफ ग्रैंड अलायंस बनाने की बात भी कर रही हैं.

अखबार ने जहां विपक्ष से हंगामा किए बिना बीच का रास्ता निकालने को कहा है, वहीं सरकार को भी नसीहत दी है कि अगर नवाज शरीफ पद छोड़ भी देते हैं तो संसद में बहुमत होने के कारण उनकी पार्टी की सरकार चलती रहेगी.

रोजनामा 'दुनिया' लिखता है कि सरकार और विपक्ष के बीच रस्साकशी के कारण आम जनता की तरक्की से जुड़े विकास के कामों और खास कर चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर पर असर पड़ सकता है. अखबार के मुताबिक, भारत पूर्वी सीमा पर खुद और पश्चिमी सीमा पर अफगानिस्तान के जरिए दबाव डालने की कोशिश कर रहा है.

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इसके अलावा अखबार ने बलूचिस्तान में अशांति, देश के भीतर आतंकवादियों के खिलाफ फौज की कार्रवाई और कश्मीरियों की 'जद्दोजहद' का हवाला देते हुए सियासी रस्साकशी से परहेज बरतने की अपील की है.

अखबार के मुताबिक, हम सभी साफ सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था चाहते हैं और इसके लिए विपक्ष की कोशिशें काबिलेतारीफ हैं लेकिन इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना है, वह मंजिल की तरफ नहीं बल्कि कहीं और ही जाता है.

बेहूदगी और बदतमीजी

'नवा ए वक्त' ने लिखा है कि इस गेम में सरकार और शरीफ खान का सब कुछ दांव पर लगा हुआ है. अखबार के मुताबिक चूंकि बुनियादी तौर पर यह विपक्ष का ही केस है तो उसकी तरफ से बेहतरीन रणनीति यही होगी कि वह जांच में ऐसा कोई कमजोर पहलू न छोड़े जिससे सत्ताधारी परिवार को कोई फायदा उठाने का मौका मिले.

अखबार लिखता है कि अगर विपक्ष ने सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप और उखाड़ पछाड़ की नीति को बरकरार रखा तो फिर व्यवस्था में सुधार और भ्रष्टाचार मुक्त समाज का उसका सपना अधूरा ही रह जाएगा.

वहीं 'जसारत' लिखता है कि विपक्ष की आलोचना के जवाब में नवाज शरीफ के साथी बेहदूगी और बदतमीजी पर उतर आए हैं. अखबार के मुताबिक ऐसा लगता है कि टोले का हर शख्स समझ बैठा है कि नवाज शरीफ के हक में वह जितनी जबान लड़ाएगा, उतना ही उसको फायदा मिलेगा और नवाज शरीफ अगर फिर से सत्ता में आए तो उसे भी सरकार में कुछ न कुछ जरूर मिलेगा.

अखबार कहता है कि दुनिया में ऐसी कितनी ही मिसालें है कि किसी हुक्मरान पर महज एक इल्जाम लगा और उसने इस्तीफा दे दिया. एक ऐसी मिसाल पाकिस्तान में भी कायम हो जाए तो इस देश का भी मान बढ़ेगा. पर ऐसा होगा नहीं.

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आईएसआई चीफ से रिश्ते?

‘औसाफ’ लिखता है कि कुछ लोग आईएसआई चीफ के हवाले से गलतफहमी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग को सफाई देनी पड़ी. इन बयानों में शरीफ के आईएसआई प्रमुख से पारिवारिक रिश्ते बताए गए हैं. सेना ने कहा कि आईएसआई प्रमुख को लेकर दिए जा रहे बयान बेबुनियाद और गुमाराह करने वाले हैं.

अखबार लिखता है कि ऐसे तत्व सेना और उससे जुड़े संस्थानों को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. अखबार कहता है कि प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगना ना तो अलोकतांत्रिक है और ना ही असंवैधानिक, लेकिन विपक्ष को अपनी मांगों के लिए लोकतांत्रिक तरीके अपनाने चाहिए और उन्हें ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे आम लोगों की जिंदगी प्रभावित हो.