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पाकिस्तान डायरी: इमरान खान के सत्ता में आने के बाद क्या चीन और पाकिस्तान की दोस्ती दरक रही है?

पाकिस्तान में हाल के दिनों में इस बात को लेकर चर्चा गर्म रही है कि सीपैक में ज्यादा फायदा चीनी कंपनियों को हो रहा है, जबकि पाकिस्तान चीनी कर्जे के नीचे कराह रहा है

Seema Tanwar

जब से पाकिस्तान में इमरान खान ने सत्ता संभाली है, तब से पाकिस्तान और चीन की दोस्ती पर सवाल उठने लगे हैं. इन सवालों को उन बयानों से हवा मिली, जो संकेत देते हैं कि इमरान खान सरकार चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर (सीपैक) से खुश नहीं है और इसकी समीक्षा करना चाहती है. अब पाकिस्तानी उर्दू मीडिया को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इमरान खान के आगामी चीन से दौरे से दोनों देशों के बीच गलतफहमियों को दूर कर लिया जाएगा.

पाकिस्तान में हाल के दिनों में इस बात को लेकर चर्चा गर्म रही है कि सीपैक में ज्यादा फायदा चीनी कंपनियों को हो रहा है, जबकि पाकिस्तान चीनी कर्जे के नीचे कराह रहा है. लेकिन यहां मामला सिर्फ एक परियोजना का नहीं है. अगर पाकिस्तान सीपैक से पीछे हटने की हिमाकत करता है तो इससे पाकिस्तान और चीन की उस दोस्ती पर आंच आ सकती है, जिसने आजतक पाकिस्तान का हर कदम पर साथ दिया है.


चीन से उम्मीदें

'रोजनामा दुनिया' के संपादकीय का शीर्षक है: पाक-चीन संबंधों में संदेह खत्म होने चाहिए. अखबार ने पाकिस्तान में चीनी राजदूत की एक प्रेस कांफ्रेस का हवाला देते हुए कहा है कि सीपैक को लेकर अब संदेह खत्म हो जाने चाहिए. अखबार के मुताबिक चीनी राजदूत ने साफ कहा कि पाकिस्तान को दिए कर्ज 15 से 20 साल के भीतर वापस करने होंगे और इन कर्जों पर ब्याज की दर 14 प्रतिशत नहीं, बल्कि दो प्रतिशत है.

चीनी राजदूत ने इस धारणा को भी गलत बताया कि सीपैक का फायदा सिर्फ चीनी कंपनियों को हो रहा है. राजदूत के मुताबिक सीपैक को लेकर पाकिस्तान और पाकिस्तानियों की हर आशंका को दूर किया जाएगा. अखबार लिखता है कि नवंबर के शुरू में होने वाले प्रधानमंत्री इमरान खान के दौरे पर उन लोगों की नजरें भी टिकी हैं जिन्हें पाक-चीन संबंध खटकते हैं और उन लोगों की भी, जो इन रिश्तों से गहरी उम्मीदें रखते हैं.

'एक्सप्रेस' लिखता है कि सीपैक को लेकर पिछले कुछ महीनों में गैर जिम्मेदाराना बयान दिए गए और मीडिया में लगाई जाने वाली अटकलबाजियों से चीन को भी नकारात्मक संदेश गया कि शायद नई सरकार सीपैक की समीक्षा कर रही है.  अखबार को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इमरान खान के चार दिवसीय चीन दौरे में तमाम गलतफहमियों को दूर कर लिया जाएगा.

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अखबार लिखता है कि चीन ने वादा किया है कि पाकिस्तान की हर मुमकिन मदद की जाएगी और जिस तरह से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की तरफ से सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं, उसकी तरह का असाधारण पैकेज चीन की तरफ से भी मिलने की उम्मीद हैं.

आपत्तियों की चिंगारियां

'रोजनामा पाकिस्तान' लिखता है कि सरकार की तरफ से दिए जा रहे स्पष्टीकरणों के बावजूद सीपैक को लेकर नुक्तीचीनी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. अखबार के मुताबिक आपत्तियां इतनी ज्यादा है कि चारों प्रांतों के मुख्यमंत्रियों को एक साथ चीन के दौरे पर भेजा गया और चीनी नेतृत्व और अधिकारियों से सीधी मुलाकातों के जरिए उनकी गलतफहमियों को दूर किया गया, लेकिन वक्त गुजरने के साथ साथ आपत्तियों की नई चिंगारियां सुलगती रहती है.

अखबार के मुताबिक यह भी कहा गया कि सीपैक में चीनी कंपनियों को ही प्राथमिकता दी जा रही है और पाकिस्तानी कंपनियों को ठेके नहीं दिए जा रहे हैं. अखबार कहता है कि जो ताकतें सीपैक को विवादित बनाने और उसमें कीड़े तलाशने में जुटी है, उन्हें अगर कीड़े नहीं भी मिलते तो वे इधर-उधर से कीड़े पकड़ कर सीपैक में डाल देती हैं और इस तरह की इसकी नुक्ताचीनी जारी रहती है. अखबार ने सीपैक विरोधी ताकतों में भारत और अमेरिका का नाम खास तौर से लिया है.

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उधर 'औसाफ' ने पुराना राग अलापते हुए लिखा है कि दुनिया की कुछ ताकतें चीन को उभरता हुआ और खुशहाल मुल्क नहीं देखना चाहतीं जबकि कुछ ताकतों को पाक-चीन रिश्ते, सहयोग और दोस्ती खटकती है. अखबार कहता है कि चीन पाकिस्तान में विकास को लेकर प्रतिबद्ध है और सीपैक पाकिस्तान पर चीन के भरोसे की शानदार मिसाल है.

अखबार की राय में, सीपैक में पारदर्शिता ना होने की धारणा पूरी तरह से गलत है. अखबार ने लिखा है कि क्षेत्र के दूसरे देशों को भी इसमें शामिल होकर इसका फायदा उठाना चाहिए. अखबार ने चीन के इस बयान पर भी खुशी जताई है कि वह सीपैक में सऊदी अरब की भागीदारी का स्वागत करेगा.

यूटर्न को अलविदा कहें

रोजनामा 'उम्मत' लिखता है कि चीन के ताजा स्वागतयोग्य कदमों से पाकिस्तान की गिरती हुई अर्थव्यवस्था को और सहारा मिलने की उम्मीदें पैदा हो गई हैं. अखबार लिखता है कि चीन के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान मलेशिया जाएंगे और वहां प्रधानमंत्री महाथीर मोहम्मद से मिल कर पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर चर्चा करेंगे. अखबार के मुताबिक तुर्की, कतर और संयुक्त अरब अमीरात समेत कई मुस्लिम देश पाकिस्तान को आर्थिक संकट से निकालने के लिए तैयार हैं.

अखबार लिखता है कि पाकिस्तान सरकार तो यहां तक कह रही है कि अब शायद आईएमएफ से कर्जे लेने की जरूरत ना पड़े. इस पर 'रोजनामा उम्मत' कहता है कि इमरान सरकार बस अपने वादों पर कामय रहे और यूटर्न लेने की नीति को अलविदा कहे, तभी जनता को विश्वास आएगा कि देश आर्थिक संकट से निजात पा सकता है.