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अरब देशों से बेहतर रिश्ते भारत के लिए फायदेमंद

तेल के दाम गिरने की वजह से यूएई की सरकार अब ऊर्जा के अलावा दूसरे क्षेत्रों में निवेश करना चाहती है.

Seema Guha

जब सरकार गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि का चुनाव करती है तो उसमें बहुत सी बातों पर गौर करके फैसला किया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गणतंत्र दिवस की परेड में मेहमानों को बुलाने का नया दौर शुरू किया है. अपनी सरकार बनने के बाद के पहले गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के उस वक्त के राष्ट्रपति बराक ओबामा को मुख्य अतिथि बनाया था.

मोदी सरकार ने इसके जरिए साफ संदेश दिया था कि वो दुनिया की इकलौती सुपर पावर के साथ नजदीकी रिश्ते चाहते हैं. वो इसके लिए पिछली सरकारों से ज्यादा कोशिश करने के लिए तैयार दिखे. ओबामा को गणतंत्र दिवस पर बुलाने का फैसला इसका साफ संकेत था.


पिछले साल के गणतंत्र दिवस पर फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाये गए थे. फ्रांस भी पश्चिमी देशों की ताकतवर जमात का हिस्सा है. लेकिन इस बार, प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति को नया रुख देने की कोशिश के तहत संयुक्त अरब अमीरात के युवराज शेख मोहम्मद बिन ज़ायद को गणतंत्र दिवस के चीफ गेस्ट के तौर पर आमंत्रित किया गया है.

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पीएम बनने के बाद से ही मोदी खाड़ी देशों के साथ बेहतर और नजदीकी ताल्लुकात की वकालत करते रहे हैं. ये उसी दिशा में बढ़ा एक और कदम है. अमीरात के शहजादे शेख मोहम्मद बिन ज़ायद पिछले साल भारत आए थे. उससे पहले 2015 में पीएम मोदी संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर गए थे.

पीएम मोदी की पहल

पिछले 34 सालों में वो यूएई जाने वाले पहले प्रधानमंत्री थे. पीएम मोदी के दौरे से दोनों देशों के बीच रिश्तों को नई और ऊंची पायदान पर ले जाने और व्यापक रणनीतिक साझेदारी करने पर सहमति बनी. इस पर बातचीत पीएम के संयुक्त अरब अमीरात दौरे के दौरान ही शुरू हो गई थी. जल्द ही इस साझेदारी पर समझौता होने की उम्मीद है.

इस साझेदारी की विस्तृत जानकारी शायद अब देश के सामने रखी जाए. कहा जा रहा है कि दोनों देश सामरिक मोर्चे पर ज्यादा मजबूत रिश्तों के पक्षधर हैं. अधिकारी तो निजी तौर पर ये भी बता रहे हैं कि दोनों देश मिलकर नए हथियारों के निर्माण में भी सहयोग को राजी हो सकते हैं.

गणतंत्र दिवस परेड अभ्यास के दैरान राजपथ पर मार्च करता संयुक्त अरब अमीरात का दल.

ये भी कहा जा रहा है कि संयुक्त अरब अमीरात, भारत से कुछ हथियार खरीदने का सौदा भी कर सकता है. हालांकि इस बारे में बातचीत अभी शुरुआती दौर में है.

पूर्व राजनयिक केसी सिंह कहते हैं कि, 'यूएई के पास पैसों की कमी नहीं. वो पश्चिमी देशों से अच्छे से अच्छे हथियार खरीद सकता है. ऐसे में वो भारत से हथियार क्यों लेगा...अगर संयुक्त अरब अमीरात ऐसा करता है तो ये छोटे-मोटे हथियारों का सौदा ही होगा. मैं नहीं मानता कि सामरिक साझेदारी के मोर्चे पर ज्यादा कुछ होने जा रहा है. अमीरात फिलहाल सीरिया, यमन और ईरान के रिश्तों पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. वहीं भारत के हित कहीं और हैं.'

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द गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल ईरान को बड़ा खतरा मानती है. वहां की ज्यादातर नीतियां शिया-सुन्नी झगड़े के इर्द-गिर्द ही घूमती है. केसी सिंह कहते हैं, 'अब तक भारत अरब देशों से ताल्लुक बढ़ाने के साथ ईरान के साथ अपने पुराने संबंध निभाने के बीच तालमेल बनाता रहा है.'

खाड़ी में भी आतंकवाद की चिंता

सभी खाड़ी देशों के पाकिस्तान से बेहद अच्छे रिश्ते हैं. इसमें संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब भी शामिल हैं. फिर भी पिछले कुछ सालों में खाड़ी देश भारत से रिश्ते बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं. 9/11 के हमले और अरब क्रांति के बाद से इलाके में आतंकवाद बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है. खाड़ी देश इसे लेकर फिक्रमंद हैं.

खाड़ी देशों से बातचीत में आतंकवाद से मुकाबले की बात अहम मुद्दा बन गई है. सऊदी अरब इस मामले में भारत से सहयोग कर रहा है. उसने कई वांछित अपराधियों को अपने यहां से भारत को सौंपा है. पहले ये बात सोची भी नहीं जा सकती थी.

हाल ही में अफगानिस्तान में कंधार के गवर्नर के गेस्ट हाउस में हुए धमाके में संयुक्त अरब अमीरात के पांच बड़े अधिकारी भी मारे गए थे. जिससे संयुक्त अरब अमीरात को अफगानिस्तान के हालात का अंदाजा हो गया होगा.

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जब बुधवार को पीएम मोदी और यूएई के शहजादे के बीच बातचीत होगी, तो अफगानिस्तान के अस्थिर हालात पर भी चर्चा होना लाजमी है. अमीरात के युवराज शेख मोहम्मद बिन ज़ायद के मंगलवार को दिल्ली पहुंचे. यूएई के शहजादे शेख जायद, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी मिलेंगे.

उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी भी युवराज बिन ज़ायद से मिलने उनके होटल जाएंगे. गुरुवार का दिन परेड देखने में बीतेगा. राजपथ पर परेड में संयुक्त अरब अमीरात की टुकड़ी भी शामिल होगी. ये परंपरा प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने शुरू की है. पिछले साल फ्रांस की सेना की टुकड़ी ने गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लिया था. शेख जायद स्वदेश वापसी से पहले राष्ट्रपति की टी पार्टी में भी शामिल होगे.

पड़ोसी जैसे हैं खाड़ी देश

भारत के लिए खाड़ी देश, पड़ोसी देशों जैसे ही हैं. हमारी अर्थव्यवस्था के लिए उनसे बेहतर रिश्ते जरूरी हैं. भारत और खाड़ी देशों का ताल्लुक सदियों पुराना है. हमारे कारोबारी रिश्ते बहुत पुराने हैं. पिछले चार-पांच दशकों में तेल की कीमतें बढ़ने के दौर से ही बड़ी संख्या में भारतीय खाड़ी देशों में जाकर काम करते हैं.

एक मोटे अनुमान के मुताबिक कुछ सालों पहले तक खाड़ी देशों में करीब साठ लाख भारतीय काम करते थे. पिछले दो सालो में तेल के दाम गिरने और अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार धीमी होने की वजह से, बहुत से लोगों की नौकरियां चली गई हैं. बड़ी संख्या में भारतीय कामगारों को स्वदेश लौटना पड़ा है.

अभी भी करीब 26 लाख भारतीय खाड़ी देशों में नौकरी कर रहे हैं. ये लोग सालाना पंद्रह अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं.

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भारत से बेहतर रिश्तों से संयुक्त अरब अमीरात को भी फायदा होगा. तेल के दाम गिरने की वजह से यूएई की सरकार अब ऊर्जा के अलावा दूसरे क्षेत्रों में निवेश करना चाहती है. भारत के लिए ये अच्छा मौका है.

संयुक्त अरब अमीरात के युवराज का स्वागत करते भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. फोटो: पीटीआई

पीएम मोदी के 2015 के संयुक्त अरब अमीरात दौरे में दोनों देशों के बीच 75 अरब डॉलर का बुनियादी ढांचा विकास फंड बनाने पर सहमति बनी थी. ऐसे मौके पर जब भारत में विदेशी निवेश की रफ्तार धीमी हो रही है, ये एक खुशखबरी ही कही जाएगी.