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मोदी सरकार के फैसले प्रशासनिक सुधार की पहल का संकेत हैं

किसी बड़े सुधार की अचानक ऐसे छोटे कदम से शुरुआत करना मोदी का स्टाइल रहा है.

Updated On: Jan 24, 2017 11:11 AM IST

TSR Subramanian

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मोदी सरकार के फैसले प्रशासनिक सुधार की पहल का संकेत हैं

हाल ही में दो आईपीएस अफसरों को खराब काम करने के लिए भारत सरकार ने वक्त से पहले रिटायर कर दिया. कुछ हफ्ते पहले सरकार ने दो आईएएस अफसरों को भी अच्छा काम न करने पर जनहित में समय से पहले रिटायर कर दिया था.

ऑल इंडिया सर्विसेज का नियम 16(3) कहता है कि सरकारी अधिकारियों की नौकरी के दौरान काम की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए. हालांकि ये कानूनी जरूरत है, लेकिन इस नियम का कभी सख्ती से पालन नहीं किया गया.

तो, क्या इस नियम के तहत आईपीएस और आईएएस अफसरों का वक्त से पहले रिटायर किया जाना, किसी नई शुरुआत के संकेत हैं? क्या मोदी सरकार प्रशासनिक ढांचे में बदलाव की शुरुआत कर रही है. क्या हमारी कार्यपालिका के स्थायी ढांचे में किसी बड़े बदलाव की तैयारी है?

ये कदम साफ तौर से प्रधानमंत्री मोदी के काम करने के तरीके की झलक देने वाला है. किसी बड़े सुधार की अचानक ऐसे छोटे कदम से शुरुआत करना मोदी का स्टाइल रहा है. हम देशहित में ये उम्मीद कर सकते हैं कि हम जो सोच रहे हैं, वो सही है.

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अखिल भारतीय सेवाओं के टॉप के तीस फीसदी अधिकारी अभी भी शानदार काबिलियत रखते हैं. शायद वो उससे भी बेहतर हैं. मगर इस तीस फीसदी के दायरे के नीचे आने वाले अधिकारियों की क्षमता का स्तर लगातार गिरता जा रहा है.

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ज्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री अपने पांच या छह खास अधिकारियों की मदद से राज करते हैं. जबकि बाकी तीन सौ से ज्यादा अफसरों के पास कुछ खास जिम्मेदारी नहीं होती. अखिल भारतीय सेवाओं में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर फैला हुआ है.

राजनेताओं के गुलाम भी हैं अफसर

कई अफसर तो राजनीतिक दलों का फंड मैनेज करते हैं, चुनाव लड़ने का सारा इंतजाम देखते हैं. कई अधिकारी तो पूरी तरह से नेताओं के दलाल बन चुके हैं. हालांकि इसके लिए भ्रष्टाचार और नाकाबिलियत को ही जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं होगा, लेकिन ये तो तय है कि हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े गहरे तक जंग लग गया है.

तमाम राजनीतिक वजहों से आज की तारीख में हमारी ब्यूरोक्रेसी का एक बड़ा हिस्सा बेकार हो चुका है.

इन अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास नहीं. वो ठीक से काम नहीं करते. कई बार उन्हें लगता है कि उनकी कोई अहमियत नहीं. इसीलिए दुनिया के बेहतरीन अधिकारियों से लैस हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में अधिकारी खुद को अनचाहा सा महसूस करते हैं.

ये अधिकारियों बारे में कही जाने वाली बेहद कड़वी बाते हैं. मगर पुराने दौर में ब्यूरोक्रेसी का हिस्सा रहे पूर्व अधिकारी इस बात की तस्दीक करेंगे. बीस साल पहले एक राज्य में चार आईएएस अफसरों को सबसे भ्रष्ट घोषित किया गया था. लेकिन उनमें से दो को वक्त से पहले मुख्य सचिव बना दिया गया.

दुनिया के किसी और हिस्से में अधिकारियों का अपने में से ही कुछ लोगों को सबसे भ्रष्ट कहने बात सिर्फ हमारे देश में हो सकती है. हाल के बरसों में एक राज्य में एक अधिकारी को अपने से सात बैच के सीनियर अफसरों को दरकिनार करके मुख्य सचिव बना दिया गया. और इस पर अफसरों का पूरी तरह खामोश रहना, बेहद तकलीफदेह था.

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अब ये मिसालें किसी भी प्रशासनिक सेवा में लग चुके जंग की तरफ ही इशारा करेंगी. आज अखिल भारतीय सेवाओं का हौसला कमजोर है, उनमें आत्मविश्वास की कमी साफ झलकती है. अफसरों को लगता है कि उन्हें दरकिनार करके अप्रासंगिक बना दिया गया है.

अफसरों की काबिलियत भी कम हुई

कई दशकों से एक अनकही परंपरा चली आ रही है. राज्य में औसत से बेहतर काम करने वाले अफसरों को केंद्र सरकार में काम करने के लिए बुला लिया जाता है.

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मनमोहन सरकार में तो इसमें और भी तेजी आ गई. मनमोहन सिंह के मंत्री तो खुद ही अपनी पसंद के अधिकारियों का तबादला राज्यों से केंद्र में करा लिया करते थे. ऐसा करके मंत्री तमाम परंपराओं को दरकिनार करते थे, नियमों की अनदेखी करते थे और अपना हित साधते थे.

प्रशासनिक सुधार पर एपलबी/संथानम कमेटी की रिपोर्ट के बाद करीब तीन सौ रिपोर्ट ऐसी तैयार हो चुकी हैं जो प्रशासनिक सुधार की वकालत करती हैं. इनमें से किसी भी रिपोर्ट के सुझावों पर अमल न के बराबर हुआ है. साफ है कि हमारे राजनेता ही नहीं चाहते कि अफसर अच्छा काम करें.

अब तक निदेशक स्तर के केवल पचास फीसदी अधिकारी संयुक्त सचिव के पैनल में जगह बना पाते हैं. उसके नीचे के अधिकारियों के बारे में कोई नहीं सोचता. अब कोई भी ये तर्क दे सकता है कि अखिल भारतीय सेवाओं के बीस फीसद अधिकारियों को हर साल जबरदस्ती रिटायर कर दिया जाना चाहिए.

इससे बहुत अच्छा संदेश जाएगा. हां इससे कुछ लोगों के साथ नाइंसाफी होगी. हमें सावधानी बरतनी चाहिए कि काबिल अफसर इस नियम के शिकार न बनें. इसके बाद अफसरशाही में नई व्यवस्था के तहत की अधिकारियों को बढ़ावा दिया जाए. इसमें नेताओं का दखल बिल्कुल न हो.

इस कदम से इस बात का डर नहीं होना चाहिए कि काम करने वाले अच्छे अफसरों की कमी है. बड़ी संख्या में ऐसे काबिल अधिकारी हैं जो वक्त से पहले रिटायर किये जाने वाले अधिकारियों की जगह ले लेंगे. पिछले पचास सालों में आम तौर पर यही होता आया है कि गलत आदमी को प्रमोशन मिल जाता है.

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कभी भी अच्छे अधिकारी को इनाम नहीं मिलता. इसीलिए गंभीर प्रशासनिक सुधारों की जरूरत है. इसके लिए तमाम रिपोर्ट तैयार हैं. जरूरत उन पर संजीदगी से अमल करने की है.

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कई दशकों से हमने बड़ी नीतिगत गलतियां की हैं. ऐसा हमेशा राजनैतिक हित साधने की वजह से हुआ है. कार्यपालिका के हर कदम के पीछे राजनैतिक दलों और नेताओं का स्वार्थ होता है. इसी वजह से स्वतंत्र प्रशासनिक व्यवस्था नहीं स्थापित हो सकी है.

नेताओं का स्वार्थ सुधार नहीं होने देता

जरूरी है कि राजनीतिक बंधनों में जकड़ी ब्यूरोक्रेसी को आजाद कराया जाए. पिछले सत्तर सालों से भारत कुव्यवस्था के दलदल में धंसता ही जा रहा है. हमारी प्रशासनिक व्यवस्था दिनों दिन घटिया होती जा रही है. इसकी मिसालें चारों तरफ देखने को मिलती हैं.

हम ये कहकर अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि भारत आज दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है, मगर इससे बुनियादी सच छुप नहीं जाते. हमारी नाकामी कई मोर्चों पर साफ दिखती है. हम तेजी से तरक्की कर सकें इसके लिए ब्यूरोक्रेसी में सुधार की सख्त जरूरत है.

इसे बदलाव और सुधार का तेज धक्का दिया जाना चाहिए, ताकि ये देश के विकास में अपना अहम रोल सही तरीके से निभा सके. नोटबंदी समेत प्रधानमंत्री के कई बड़े एलान शुभ संकेत हैं. वो भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की बात कर रहे हैं.

लोगों को फौरी तकलीफ भूलकर ये देखना चाहिए कि मौजूदा सरकार की कोशिश पिछले सत्तर सालों से चले आ रहे तौर-तरीकों को रोकना और नए रास्ते पर चलना है. ताकि हम विश्व मंच पर उस जगह पहुंच सकें, जिसका ये देश हकदार रहा है.

अक्षम अफसरों को वक्त से पहले रिटायर करना भी इस बात का संकेत है कि अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों को अपने काम का स्तर सुधारना होगा. देश के विकास में ब्यूरोक्रेसी का रोल बेहद अहम है.

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इसलिए जरूरी है कि इसकी साफ सफाई करके इसे बेहतर बनाया जाए. ताकि हमारे अधिकारी बेहतर ढंग से काम करें. देश की प्राथमिकताओं को समझकर बेहतर नीतियों को अमल मे लाएं.

उम्मीद है कि प्रशासनिक सेवा सरकार की तरफ से दिये गए ये संकेत अच्छे से समझेगी और बदलाव की कोशिश करेगी. विकास के लिए काबिल अफसरों और प्रशासनिक व्यवस्था की सख्त जरूरत होती है.

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