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संडे स्पेशल: पर्थ टेस्ट में एक ऐतिहासिक फैसले ने छीन ली भारत के हाथों से जीत!

भारत ने पर्थ टेस्ट में एक भी स्पिन गेंदबाज ना खिलाने का फैसला किया था, वहीं ऑस्ट्रेलिया के स्पिन गेंदबाज लायन उनकी की जीत की वजह बने

Rajendra Dhodapkar

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरा पर्थ टेस्ट मैच एक मायने में यादगार रहेगा. क्या कोई कभी सोच सकता था कि भारतीय टीम किसी टेस्ट मैच में चार तेज गेंदबाजों के साथ और एक कामचलाऊ स्पिनर के साथ मैदान में उतरेगी. ऐसी टीम सत्तर और अस्सी के दशक में वेस्टइंडीज की हुआ करती थी जब उसके चार तेज गेंदबाज बल्लेबाजों के दिल में खौफ पैदा करते थे. कभी-कभी कामचलाऊ स्पिनर की तरह विवियन रिचर्डस भी गेंदबाजी कर लिया करते थे लेकिन उनकी जरूरत शायद ही पड़ती थी. हनुमा विहारी ठीक ठाक बल्लेबाज लगते हैं, हालांकि उनकी बल्लेबाजी रिचर्डस के मुकाबले कहीं नहीं आती. गेंदबाज हो सकता है कि वे रिचर्ड्स से बेहतर हों लेकिन वे आला दर्जे के स्पिनर तो नहीं ही है.

कोहली-शास्त्री को उल्टा पड़ गया ऐतिहासिक फैसला


भारतीय टीम में चार तेज गेंदबाज रखने का तर्क यह था कि पर्थ की पिच तेज गेंदबाजी के अनुकूल मानी गई है और ऑस्ट्रेलियाइयों ने पहला टेस्ट हारने के बाद डराया था कि पर्थ में तुम्हें देख लेंगे. अश्विन जख्मी न होते तो शायद टीम में जगह बना पाते लेकिन न रवींद्र जडेजा न कुलदीप यादव टीम में जगह के लायक समझे गए. ऑस्ट्रेलियाई ज्यादा सावधान निकले जिन्होंने नैथन लायन को खिला लिया और लायन हमेशा की तरह कामयाब भी रहे.

विराट कोहली-रवि शास्त्री जोड़ी की इसलिए तारीफ करनी होगी कि वह साहसिक और अनोखे फैसले करने से डरती नहीं है लेकिन खासकर विदेशी मैदानों पर ऐसे फैसले अमूमन नाकाम साबित हुए हैं. इसकी वजह मुख्यत: यह है कि कप्तान और कोच जो सोचते हैं या जो चाहते हैं उसका जमीनी हकीकत से मेल नहीं बैठता. आक्रामकता, उत्साह और आत्मविश्वास अच्छे गुण हैं लेकिन उन्हें थोड़ा यथार्थ के धरातल पर रखना ठीक होता है. कोच और कप्तान के अतिरिक्त उत्साह और महत्वाकांक्षा का नतीजा विदेशी दौरों पर नाकामी के रूप में सामने आ रहा है.

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अलग श्रेणी के कप्तान हैं कोहली 

क्रिकेट में कई ऐसे कप्तान हुए हैं जो लकीर के फकीर थे. वे कम से कम कल्पनाशक्ति का इस्तेमाल करते थे और एक ढर्रे पर चलना पसंद करते थे. मैदान में कुछ भी हो रहा हो वे उसी लाइन पर चलते रहते थे. अच्छे कप्तान का यह एक गुण होता है कि वह हर नई परिस्थिति के मुताबिक रणनीति बना सकता है और पहले से तय योजना में बदलाव कर सकता है. यह भी जरूरी नहीं कि अच्छा खिलाड़ी अच्छा कप्तान भी साबित हो, ये दोनों गुण अलग अलग हैं. हालांकि आम तौर पर टीम के सबसे सफल खिलाड़ी को कप्तान बना दिया जाता है, लेकिन यह नियम अक्सर समस्या भी पैदा करता है.

विराट कोहली जिस तरह के कप्तान हैं, वह कुछ अलग ही श्रेणी है. कोहली भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज हैं, बल्कि फिलहाल दुनिया में ही उनसे बेहतर बल्लेबाज नहीं दिखता. कोहली अपनी कप्तानी को लेकर बहुत गंभीर हैं, यह भी देखा जा सकता है. उन्हें मैदान में देखकर ही यह समझ में आ जाता है कि वे लगातार जीतने की धुन में रहते हैं और हर वक्त सक्रियता से खेल को नियंत्रित करने की कोशिश करते रहते हैं. जैसे कई कप्तानों को देख कर लगता है कि उनके नेतृत्व में टीम ऑटोपाइलट पर चल रही है कोहली के साथ कभी यह नहीं लगता. बल्कि यह लगता है कि उन्हें अपने उत्साह को कुछ नियंत्रित करके सावधानी से चलना चाहिए, कुछ जगह पर थोड़ा लकीर का फकीर होना भी फायदेमंद है.

भारत के पास नहीं हैं खौफ पैदा करने वाले गेंदबाज

भारत के पास कई अच्छे तेज गेंदबाज हैं यह बात सब मानते हैं, लेकिन विकेट कितनी ही तेज हो वे होल्डिंग्स, मार्शल, रॉबर्ट्स और गार्नर जैसा आतंक नहीं पैदा कर सकते. वह जमाना और था, यह जमाना और है, अब पिचें भी वैसी नहीं रही. क्रिकेट में वक्त के साथ सारी पिचें अपेक्षाकृत धीमी और निरादर होती गई हैं और पर्थ की पिच भी अब वह पिच नहीं रही जो आज से तीस चालीस पहले होती थी. दक्षिण अफ्रीका में और इंग्लैंड में भी पिच के मिजाज के बारे में जल्दबाजी में फैसला कर के भारतीय कोच और कप्तान ने गड़बड़ियां की थीं, वही बात ऑस्ट्रेलिया में भी देखने में आई है.

लेकिन इसका सबसे बुरा असर टीम की बल्लेबाजी पर पड़ा है. पिछले कुछ वक्त से अचानक सारे बल्लेबाज आउट ऑफ फॉर्म नजर आने लगे हैं. आप भारत के सारे प्रमुख बल्लेबाजों के करियर रिकॉर्ड देखें तो वे दुनिया के अन्य अच्छे बल्लेबाजों के बराबर या उनसे बेहतर ही हैं. लेकिन शायद इतने असुरक्षित बल्लेबाज की किसी टीम में नहीं होंगे. भारतीय टीम में कोहली के अलावा शायद ही किसी बल्लेबाज को यह भरोसा हो कि वह लगातार तीन टेस्ट मैच खेल पाएगा.

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अतिरिक्त आक्रामक रणनीति की वजह से जो थोड़े धीमे बल्लेबाज हैं उनमें या तो अपने प्रति संदेह पैदा हो गया है या वे बेवजह आक्रामक खेलने की कोशिश में कहीं के नहीं रह पाते. दुनिया की सारी श्रेष्ठ टीमों में एक निरंतरता रही है और हर खिलाड़ी को टीम में अपनी भूमिका ठीक से पता रही है. जो बहुत आक्रामक टीमें रही हैं , जैसे लॉयड और रिचर्डस की वेस्टइंडीज टीम या वॉ और पोटिंग की ऑस्ट्रेलिया, उनकी आक्रामकता में भी एक मजबूत बुनियाद होती थी. यह इच्छा और उम्मीद करना बहुत अच्छा है कि टीम को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनाया जाए, लेकिन उसके लिए कुछ ठहराव और जमीन पर मजबूती से पैर जमाने की जरूरत भी है.