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संडे स्पेशल: तो क्या नई पीढ़ी से खत्म हो रहा टेस्ट के लिए जरूरी संयम और अनुशासन!

एडिलेड टेस्ट में पुजारा को छोड़कर कोई भी बल्लेबाज टिक कर बल्लेबाजी नहीं कर पाया जो टेस्ट में जरूरी है

Updated On: Dec 16, 2018 08:26 AM IST

Rajendra Dhodapkar

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संडे स्पेशल: तो क्या नई पीढ़ी से खत्म हो रहा टेस्ट के लिए जरूरी संयम और अनुशासन!

एडिलेड में जब भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट मैच चल रहा था, उसी वक्त एक और टीवी चैनल पर कर्नाटक और सौराष्ट्र के बीच रणजी ट्रॉफी मुकाबला आ रहा था. यह रणजी ट्रॉफी मुकाबला भी टेस्ट मैच से कम दिलचस्प नहीं था. इस मैच की विकेट पहले दिन से ही स्पिन के लिए मुफीद थी और बल्लेबाजों को रन बनाने के लिए बडा संघर्ष करना पड़ रहा था. तीसरे दिन कर्नाटक को जीत के लिए 179 रन बनाने थे और पिच किसी युद्धभूमि की तरह दिख रही थी. लग यह रहा था कि इस पिच पर 100 रन बनाना भी मुश्किल होगा. कर्नाटक के पहले 2 विकेट 3 रन पर निकल गए और करुण नायर बल्लेबाजी करने आए.

श्रेयस गोपाल ने संभाली कर्नाटक की पारी

आठ रन पर तीसरा विकेट गिरा और श्रेयस गोपाल को बल्लेबाजी करने भेजा गया जिन्होंने पहली इनिंग्ज में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी की थी. कर्नाटक की टीम डूबती हुई लग रही थी लेकिन करुण नायर बहुत अच्छा खेल रहे थे. वे सौराष्ट्र के स्पिन गेंदबाजों को बहुत सधे हुए अंदाज में खेल रहे थे और बढ़िया सुरक्षा के साथ रन भी बना रहे थे.

Shreyas-Gopal

श्रेयस गोपाल पर भी शायद उनके आत्मविश्वास का असर हुआ और वे भी विश्वास के साथ खेलने लगे. हर ओवर में दो चार रन बनाते हुए इस जोड़ी ने साठ रन से ज्यादा की साझेदारी कर ली. मैं तब तक अदल-बदल कर टेस्ट मैच और यह मैच देख रहा था. धीरे धीरे यह मैच इतना दिलचस्प हो गया कि मैं इसी में अटक गया हालांकि टेस्ट मैच की दूसरी पारी में चेतेश्वर पुजारा और विराट कोहली बढ़िया खेल रहे थे. करुण नायर जिस तरह से इस मुश्किल पिच पर स्पिन गेंदबाजों का सामना कर रहे थे उससे उनकी प्रतिभा और कौशल का अंदाजा हो रहा था. ऐसा लग रहा था कि अगर नायर टीम को जिता देते हैं या जीत के करीब भी ले जाते हैं तो यह एक ऐतिहासिक और यादगार पारी होगी, साथ ही भारतीय टीम में जगह पाने के लिए उनकी दावेदारी पर कोई शुबहा नहीं रहेगा. यह भी साफ था कि कर्नाटक के किसी और बल्लेबाज में यह क्षमता नहीं थी कि वह टीम को जीत की उम्मीद दे सके. नायर एक असाधारण पारी खेलते हुए दिख रहे थे.

India's Karun Nair celebrates after scoring a double-century (200 runs) during the fourth day of the fifth and final Test cricket match between India and England at the M.A. Chidambaram Stadium in Chennai on December 19, 2016. / AFP PHOTO / ARUN SANKAR / ----IMAGE RESTRICTED TO EDITORIAL USE - STRICTLY NO COMMERCIAL USE----- / GETTYOUT

तभी विकेट पर आती हुए एक गेंद पर नायर ने रिवर्स स्वीप खेलने की कोशिश की और गेंद उनके पैड पर लगी. नायर के एलबीडब्ल्यू होकर लौटते ही मैंने टेस्टमैच देखना शुरू कर दिया. कुछ मिनट बाद मैंने फिर मैच देखा तो श्रेयस गोपाल भी लौट चुके थे. थोड़ी देर टेस्ट मैच देख कर फिर इस मैच का स्कोर देखने की कोशिश की तो पता चला मैच खत्म हो गया है. कर्नाटक की पारी सौ रन से कम स्कोर पर ही खत्म हो गई.

नई पीढ़ी  में नहीं है संयम!

यह समझना बहुत मुश्किल था कि उस वक्त नायर के लिए वह रिवर्स स्वीप खेलना क्यों जरूरी था. वे बिना किसी दिक्कत के ठीकठाक रफ्तार से रन बना रहे थे. विकेट में अनियमित उछाल था, गेंद अप्रत्याशित रूप से टर्न ले रही थी, ऐसे में स्टंप पर आती हुई गेंद पर ऐसा खतरनाक शॉट उन्होने क्यों खेला? उन्हें यह भी पता था उनके आउट होने के बाद टीम के लिए कोई उम्मीद नहीं है यह भी कि अगर वे कुछ देर और खेलते हैं तो यह यादगार पारी हो सकती है, और अगर कर्नाटक की टीम जीतती है तो इस जीत के चर्चे बहुत सालों तक होते रहेंगे. लेकिन फिर भी वे ऐसा शॉट खेल कर आउट हो गए.

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मुझे एक जानकार मित्र ने बताया कि नायर को टेस्ट टीम से बाहर रखने का तर्क भी यही दिया गया था कि उन्होने बड़े अर्से से लंबी पारी नहीं खेली है. वे लगातार छोटा-मोटा स्कोर बनाकर आउट होते रहे हैं. हालांकि उन्होंने रणजी ट्रॉफी और टेस्ट दोनों में तिहरा शतक लगाया है लेकिन काफी दिनों से वे लंबा स्कोर करने में नाकाम रहे हैं. यह समस्या सिर्फ करुण नायर की नहीं है, आजकल के कई प्रतिभाशाली बल्लेबाजों को देखकर लगता है कि उनमें लंबी पारी खेलने की दृढ़ इच्छा और अनुशासन नहीं है. शायद सीमित ओवरों के खेल की बहुतायत की वजह से ऐसा होता है कि कठिन परिस्थितियों में जूझने का जज्बा और संयम कम ही खिलाडी दिखाते हैं.

एडिलेड टेस्ट में पुजारा को नहीं मिला था साथ

एडिलेड टेस्ट में पहली पारी में रोहित शर्मा सिर्फ तरह आउट हुए, वह भी यही दिखाता है. उस वक्त परिस्थिति का तकाजा था कि रोहित लंबी पारी खेलते. टीम के चार बल्लेबाज सस्ते में आउट हो चुके थे और पुजारा के साथ किसी बल्लेबाज का भागीदारी करना जरूरी था. रोहित शर्मा को भी यह साबित करना था कि वे टेस्ट खेलने के काबिल हैं. रोहित एक गेंद पहले हवाई शॉट खेलने की कोशिश में बाल-बाल बचे थे, फिर भी उन्होंने हवा में शॉट खेला और कैच हो गया. ऐसे में किसी भी बल्लेबाज के लिए यह तय करना लाजमी था कि वह कम से पचास-साठ रन बना चुकने तक कोई ख़तरा मोल नहीं लेगा. लेकिन रोहित ने ऐसा नहीं किया. पिछले दक्षिण अफ्रीका दौरे पर भी जो एक टेस्ट वे खेले उसमें भी उन्होंने यहीं किया. टीम संकट में थी रोहित भी बीस तीस रन बना चुके थे और चाय के पहले के आखरी ओवर में उन्होने मिडविकेट पर हवा में पुल शॉट खेला और सीमारेखा पर कैच हो गए. अगर अपने लिए नहीं तो टीम के लिए तो उन्हें ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए था.

शायद अच्छे खिलाड़ी और बडे खिलाड़ी में यही फर्क होता है. विराट कोहली में स्वाभाविक प्रतिभा रोहित शर्मा के मुकाबले कम ही है लेकिन अनुशासन और संयम की वजह से रोहित के मुकाबले कई गुना कामयाब खिलाड़ी है. कोहली में बडी पारियां खेलने की इच्छा है और जब वे कप्तान नहीं थे, तब भी वे टीम के लिए जिम्मेदारी महसूस कर के खेलते थे. कोहली लंबी पारी खेलने के लिए जरूरत के मुताबिक अपनी स्वाभाविक आदतों और आक्रामकता को नियंत्रित कर सकते हैं. हो सकता है परिस्थिति को देखते हुए वे कोई शॉट पूरी इनिंग्ज में न खेले.

Sydney : India's Virhat Kohli plays a shot during their tour cricket match against Cricket Australia XI in Sydney, Thursday, Nov. 29, 2018. AP/PTI(AP11_29_2018_000002B)

यही गुण सचिन तेंदुलकर में भी था, जब ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर वे एक दो बार कवर ड्राइव खेलते हुए आउट हुए तो एक लंबी पारी उन्होने बिना एक भी कवर ड्राइव लगाए खेली. टीम के हितों के मद्देनजर सुनील गावस्कर ने लगभग दस साल तक हुक शॉट नहीं खेला. उनके दौर में तमाम टीमों में बहुत बड़े तेज गेंदबाज थे. वे गावस्कर को बाउंसर और छोटी गेंदें डालते रहते और गावस्कर झुक कर या हटकर उन्हें विकेटकीपर के लिए छोड़ते रहते. डेविड वॉर्नर जोरदार आक्रामक ओपनर हैं , लेकिन बांग्लादेश में एक जबर्दस्त स्पिन लेती विकेट पर उन्होने बहुत धीमा रक्षात्मक खेलते हुए एक शतक लगाया था, संभवत: वह उनके करियर का सबसे मुश्किल और इसीलिए सबसे अच्छा शतक होगा. यही जज्बा है जो किसी को बडा खिलाड़ी बनाता है. अपनी सीमाएं तोड़ने के लिए बडी कुव्वत चाहिए लेकिन अपने लिए स्वेच्छा से सीमाएं बांधने के लिए भी वैसा ही मजबूत जज्बा और अनुशासन ज़रूरी है. यहीं गावस्कर, तेंदुलकर और कोहली की अन्य बल्लेबाज़ों से अलग पहचान बनती है.

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