विराट कोहली की टीम 6 दिसंबर से अपने ऑस्ट्रेलिया के दौरे का पहला टेस्ट एडिलेड में खेलेगी. एडिलेड ओवल वही मैदान है, जिस पर भारतीय टीम ने इस दौरे पर पिंक बॉल से डे-नाइट मैच खेलने के क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.
इस मैदान पर टीम इंडिया का रिकॉर्ड काबिल-ए फख्र नहीं है. 1948 से लेकर 2014 तक खेले 11 टेस्ट मैचों में भारत सात हारा है. सिर्फ एक ही 2003 में जीत पाया और बाकी ड्रॉ रहे.
ऑस्ट्रेलियाई पिचों पर भारतीय बल्लेबाजी के लड़खड़ाने का लंबा इतिहास है. लेकिन इस बार टीम से साथ दो अच्छी बातें हैं. एक, विराट कोहली अपने खेल जीवन की सबसे उम्दा फॉर्म में हैं और तेज गेंदबाजी टीम को मैच जीतने की स्थिति में लाने में सक्षम है. लेकिन क्या एडिलेड में तेज गेंदबाजी भारतीय टीम के लिए जीत या ड्रॉ की राह तैयार करने में सफल होगी?
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यह सवाल इसलिए किया जा रहा है कि अपनी जबरदस्त फॉर्म के साथ ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जाने वाले गेंदबाज एकाएक पेसरों के लिए अनुकूल पिचों पर रन ऐसे लुटाते हैं, जैसे दिल्ली की शादियों में बैंड-बाजे के बीच दूल्हे पर दस-दस के नोटों की बरसात होती है. शायद यह भी एक बड़ा कारण है कि कोई भी भारतीय टीम यहां कभी सीरीज नहीं जीती है.
खासकर एडिलेड में होने वाले मुकाबलों की पहली पारी में गेंदबाजों के खाते में चढ़ने वाले शतकों का इतिहास रहा है.
पिछले दौरों को याद करो
इससे पहले टीम इंडिया 2014 में खेलने गई थी. ऑस्ट्रेलिया जाने से ठीक पहले इंग्लैंड का दौरा खत्म हुआ था. अगस्त में आखिरी टेस्ट मैच में वरुण एरॉन को छोड़ कर कोई भी पेसर ऐसा नहीं था जिसने पहली पारी में 100 से ज्यादा रन दिए हों. वह मैच भारत एक पारी और 244 रन से हारा, क्योंकि टीम का स्कोर 148 और 94 की बना था.
इंग्लैंड में खेले उस टेस्ट के बाद दिसंबर में टीम ऑस्ट्रेलिया पहुंची. सीरीज के पहले मैच में एडिलेड में ही आस्ट्रेलिया के सामने थी. ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी डेविड वॉर्नर, माइकल क्लार्क और स्टीव स्मिथ के शतकों के साथ खत्म हुई.
नई गेंद से पारी की शुरूआत करने वाले मोहम्मद शमी ने पांच की औसत से अपने 24 ओवरों में 120 रन खर्च करके दो विकेट लिए. लेकिन ये दोनों विकेट उन्हें तब मिले जब ऑस्ट्रेलिया का स्कोर 350 के पार को चुका था. उनके पार्टनर एरॉन के 23 ओवरों में तकरीबन 6 रन प्रति ओवर की औसत से 136 रन थे.
उस मैच में स्पिनर कर्ण शर्मा को उतारा गया था. उन्होंने दो विकेट जरूर लिए लेकिन 143 रन देकर. जबकि ऑस्ट्रेलियन स्पिनर नैथन लायन ने पहली पारी में पांच भारतीय बल्लेबाजों को आउट किया.
2014 से पहले टीम इंडिया 2011-2012 में ऑस्ट्रेलिया खेलने गई थी. मेलबर्न में पहला मैच खेला गया. इसमें जहीर खान, इशांत शर्मा और उमेश यादव तेज गेंदबाज थे. उसमें सिर्फ यादव ही थे, जिन्होंने 106 दिए. भारत वह मैच बल्लेबाजी की नाकामी के कारण हारा.
सिडनी टेस्ट में जहीर, इशांत, यादव और अश्विन ने पहली पारी में सौ-सौ से ज्यादा रन दिए. पर्थ के तीसरे टेस्ट में सारे गेंदबाज पहली पारी में सौ का आंकड़ा पार होने से बचे रहे. लेकिन एडिलेड में आते ही माजरा फिर बदल गया.
इस चौथे मैच भारतीय टीम को फिर पहले गेंदबाजी करनी पड़ी. रिकी पोंटिंग और क्लार्क मनमर्जी से दोहरे शतक मार गए. जहीर, यादव, आर. अश्विन और इशांत शर्मा से 96, 136, 194 और 100 रन लूट लिए गए.
जाहिर है कि सीरीज के पहले मैच की पहली पारी में अगर भारतीय गेंदबाजी अपना असर दिखाने में नाकाम रहती है तो पूरी सीरीज पर इसका असर पड़ेगा. वैसे इस मैच और सीरीज में भुवनेश्वर, शमी और इशांत से ज्यादा जसप्रीत बुमराह पर निगाहें रहेंगी, क्योंकि यह गेंदबाज ऐसा है जो ऑस्ट्रेलियाई पिचों पर अपना असर दिखाने की क्षमता रखता है. ऑस्ट्रेलिया में बुमराह की यॉर्कर से ज्यादा उनकी स्पीड ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों की परीक्षा लेगी
इसी साल जनवरी में अपना पहला टेस्ट खेले बुमराह पर भरोसे के मजबूत कारण भी है. अब तक खेले छह मैचों में उन्होंने 2.91 की किफायती औसत से 28 विकेट लिए हैं. ये सारे विकेट उन्होंने साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड के खिलाफ उन्हीं की पिचों पर लिए हैं. अगर कप्तान इस गेंदबाज को नई गेंद थमाते हैं तो इस बार शायद टीम ऑस्ट्रेलिया में गेंदबाजों के नाम चढ़ने वाले शतकों के बच जाए.