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धोनी ने कप्तानी छोड़ कर फिर साबित किया, उनसा न कोई है और न होगा

आप धोनी के फैन हों या उन्हें नापसंद करें. लेकिन एक बात माननी पड़ेगी, उनसा कोई नहीं है

Shailesh Chaturvedi

30 दिसंबर 2014 का दिन था. एमसीजी में महेंद्र सिंह धोनी ने अपने टीम साथियों को एक जानकारी दी. उन्होंने बताया कि वह टेस्ट क्रिकेट से रिटायर हो रहे हैं. कुछ मिनटों बाद धोनी प्रेस कांफ्रेंस के लिए आए. मीडिया को यह जानकारी नहीं दी. किसी को इसका पता नहीं था. बाद में बीसीसीआई का मेल आया, जिसमें यह जानकारी थी. जिनको धोनी के रिटायरमेंट का पता था, वे ऐसे लोग थे, जिन्होंने इस बारे में एक शब्द नहीं कहा.

4 जनवरी 2017. दिन में झारखंड और गुजरात के बीच मैच के दौरान चीफ सेलेक्टर एमएसके प्रसाद के साथ बातचीत करते एमएस धोनी. रात एक मेल के जरिए बीसीसीआई की तरफ से सूचना दी जाती है कि महेंद्र सिंह धोनी ने वनडे और टी 20 की कप्तानी से हटने का फैसला किया है. इस बार भी किसी को जानकारी नहीं. जिनको जानकारी थी, उन्होंने किसी के साथ शेयर नहीं की.


यह माही का स्टाइल है. जो किया, अपने हिसाब से किया. धोनी के आने से पहले एक टीवी-अखबारों में एक रवायत थी. मैच की सुबह अखबारों में प्लेइंग इलेवन का नाम छपता था. हर कोई अपने सूत्रों से पता कर लेता था. धोनी ने वह बदल दिया. यह तय किया कि जो ड्रेसिंग रूम में होगा, वो ड्रेसिंग रूम तक ही रहेगा. यह भी धोनी का स्टाइल रहा.

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धोनी ने क्रिकेट में बहुत कुछ बदला. खेलने का तरीका बदला. सोचने का तरीका बदला. एक खास तबके को सपने देखना सिखाया. सपने सच करना सिखाया. धोनी से पहले बिहार-झारखंड के कितने खिलाड़ी भारत के लिए खेलने का सपना सच कर पाते थे? धोनी तो वैसे भी रांची से आए थे. वहां के धूल भरे मैदानों में हॉकी और फुटबॉल से शुरुआत करके क्रिकेट तक पहुंचने वाले.

धोनी उस समाज से आते हैं, जिसे अभावों का मतलब पता होता है. जिसे समझ आता है कि किसी खास शहर से न होने का क्या मतलब है. जिसे पता होता है कि अभिजात्य वर्ग का हिस्सा न होने से वे क्या खो देते हैं. लेकिन धोनी ने कभी शिकायत नहीं की. उन्होंने इसे मिशन बनाया. उन्होंने वो सारे मिथक तोड़ दिए, जो क्रिकेट के साथ जुड़े थे.

2002-03 की बात होगी. किसी ने पूछा- उस लंबे बाल वाले लड़के के शॉट देखे? वो झारखंड वाला? लंबे बालों वाला वो लड़का धोनी थे. उनके शॉट्स की ताकत फील्डर को सिहरा देने वाली होती थी. धोनी ने कभी नहीं सोचा कि उन्हें झारखंड छोड़ देना चाहिए. उन्होंने उन सारी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाया. उन्हें रेलवे टीम के लिए नहीं चुना गया था. इसे भी उन्होंने अपनी ताकत बनाया.

उन्हें तब टीम की कमान मिली, जब कोई बड़ा खिलाड़ी टी 20 खेलने को तैयार नहीं था. सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण, कुंबले ये सभी टी20 को क्रिकेट नहीं मानते थे. धोनी कप्तानी को तैयार हुए. 2007 में टीम को दक्षिण अफ्रीका में वर्ल्ड चैंपियन बनाया. टी 20 को लेकर सोच बदलने वाली धोनी की वही टीम है. उन्होंने सोच बदलने का काम किया.

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धोनी से पहले टीम इंडिया में आने की पहली शर्त यही थी कि आप स्टाइलिश विकेटकीपर हों. दीप दासगुप्ता जैसे कुछ लोग बीच में आए जरूर, जो स्टाइलिश नहीं थे. लेकिन ज्यादा चले नहीं. धोनी को न स्टाइलिश विकेट कीपर कहा जा सकता है. न स्टाइलिश बल्लेबाज. सिर्फ टैलेंट या तकनीक के नाम पर अगर धोनी को टीम में लेना हो, तो शायद उन्हें खारिज किया जाएगा. लेकिन जैसा सुनील गावस्कर कहते हैं, तकनीक 14 साल के बच्चे तक के लिए है. उसके बाद सब कुछ एडजस्टमेंट पर निर्भर है.

धोनी ने वो किया. उनमें सैयद किरमानी या किरण मोरे जैसा स्टाइल नहीं था. लेकिन उन्हें आपने कैच या स्टंपिंग छोड़ते नहीं देखा होगा. बल्कि उन्होंने अपने तरीके ईजाद किए. उनके शॉट्स में कलाकारी नहीं दिखती. शॉर्ट पिच गेंदबाजी उनकी कमजोरी कही जाती थी. लेकिन उन्हें कभी शॉर्ट पिच गेंदों पर आसानी से आउट होते देखा गया. उन्होंने हेलिकॉप्टर शॉट्स से लेकर हुक-पुल तक सब कुछ किया. लेकिन अपने तरीके से. यही उनकी पहचान है.

कप्तानी भी धोनी ने अपने तरीके से की. सौरव गांगुली को भी टीम चुनने में इतना हक नहीं मिला होगा, जितना धोनी को मिला. जो धोनी ने मांगा, वो उन्हें मिला. जो उनके रास्ते में आया, उसे रास्ते से हटना पड़ा. टीम इंडिया दरअसल टीम धोनी बन गई. कप्तान के तौर पर उन्होंने अजीबो-गरीब फैसले लिए. क्रिकेटिंग लॉजिक के खिलाफ. लेकिन उन्हें कामयाबी मिली. तभी तमाम लोग उन्हें पारस धोनी कहते हैं. ऐसे धोनी, जो मिट्टी पर हाथ रख दें, तो वो सोना बन जाए.

इस दौरान उन्होंने सबसे बड़े फिनिशर के तौर पर अपना दबदबा जमाया. कई बार तो वो मैच को इतने मुश्किल हालात तक ले जाते थे, जहां जीतना नामुमकिन लगता था. उसके बाद टीम को जिता देते थे. यहां भी मानो सब उनकी मर्जी पर था. लेकिन वो पारस धोनी धीरे-धीरे कमजोर पड़ा. तब, जब उनके गॉडफादर एन. श्रीनिवासन कमजोर पड़े.

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हालिया टीम धोनी की टीम नहीं रही. टीम चयन में अब उनका वो दबदबा नहीं रहा, जैसा हुआ करता था. वो कमजोर पड़े. टीम का प्रदर्शन कमजोर हुआ. धोनी उनमें से नहीं हैं, जो सिर्फ खेलने के लिए खेलते रहें. शायद इसीलिए उन्होंने कप्तानी छोड़ने का फैसला किया. 199 वनडे में कप्तानी कर चुके धोनी एक सीरीज में और कप्तानी कर ही सकते थे. लेकिन न तो उन्होंने टेस्ट के लिए ऑस्ट्रेलिया में सीरीज पूरी करने का इंतजार किया. न ही वनडे में 200 पूरे करने के लिए एक और सीरीज में कप्तानी का.

उन्होंने विदाई का ऐलान कर दिया. वह खेलना जारी रखेंगे. लेकिन तैयार रहिएगा ऐसे ही किसी दिन के लिए, जब अचानक वह छोटे फॉर्मेट को अचानक विदा कह दें. यही धोनी का तरीका है. अपनी मर्जी के मुताबिक फैसले लेने का.

उन्होंने क्रिकेट खेलने का तरीका बदला है. उन्होंने कस्बाई सोच बदली है. उन्होंने बड़े सपने देखना सिखाया है. उन्होंने सपने सच करना दिखाया है. उन्होंने दबदबा जमाना सिखाया है. उन्होंने मनमर्जी कैसे की जाती है, वो भी सिखाया है. आप धोनी के फैन हों या उन्हें नापसंद करें. लेकिन एक बात माननी पड़ेगी. न धोनी जैसा कोई था, न है, न होगा.