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क्या माफी मांग लेने से वो सोच बदल जाएगी, जिसके साथ ‘पांड्या’ जैसे लोग जी रहे हैं?

पांड्या को बीसीसीआई ने शो कॉज नोटिस तो जारी तो कर दिया है लेकिन क्या इससे पांड्या जैसे खिलाड़ियों की सोच बदलेगी

Shailesh Chaturvedi

सोशल मीडिया पर फिलहाल हार्दिक पांड्या छाए हुए हैं. कॉफी विद करण में उन्होंने जो कुछ कहा, वो चर्चा में है. सोशल मीडिया पर उन्हें फटकारा गया है. बीसीसीआई ने शो कॉज नोटिस जारी कर दिया है. पांड्या ने माफी भी मांग ली है. लेकिन सवाल माफी से कहीं आगे जाता है. सवाल यह है कि क्या माफी मांग लेने से उनकी वो सोच बदल जाएगी, जो शो में सवालों के जवाब के दौरान नजर आई.

इसमें कोई शक नहीं कि जिंदगी के हर क्षेत्र की तरह खेलों में भी हर तरह के लोग होते हैं. उनकी सोच अलग होती है. ऐसे में यह उम्मीद करना कि खिलाड़ियों की सोच अच्छी ही होगी, आपको गलत दिशा में ले जाएगा. बीसीसीआई के नोटिस के बाद संभव है कि अब हार्दिक पांड्या किसी शो में बातचीत पर ध्यान दें. लेकिन ध्यान रखिए, सोच वही रहेगी. बस, वो सोच दबी रहेगी या तभी बाहर आएगी, जब वो सार्वजनिक जगहों पर नहीं होंगे.


हार्दिक पांड्या के जवाबों पर सवाल जरूरी

ध्यान रखिए, उसमें ‘ब्लैक’ लड़कियों को पसंद करने से लेकर बहुत सी बातें हार्दिक ने कीं, जिन्हें दोहराना जरूरी नहीं है. लेकिन एक बात खासतौर पर खटकती है और सवाल खड़े करती है. हार्दिक का अपनी मां को बताना कि आज मैं करके आया... यह किस तरह की सोच को दिखाता है. हार्दिक ने बताया नहीं, लेकिन यह जानना जरूरी है कि उनकी मां ने इस पर क्या जवाब दिया. हालांकि जिस खुशी के साथ चहकते हुए हार्दिक ने घटना बताई, उससे ऐसा नहीं लगता कि मां को इस पर किसी किस्म की आपत्ति हुई होगी. यहां हार्दिक की मां से भी जानना जरूरी है कि अगर उनकी बेटी यही बात कहती तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होती.

पिछले कुछ समय में नेताओं से लेकर तमाम लोग इस बात का जिक्र करते रहे हैं कि दरअसल, बेटियों को नहीं, बेटों को संभालने की जरूरत है. हार्दिक का मामला भी वहीं से जुड़ता है. ‘कूल’ मां के लिए बेटे का कुछ भी करके आना सवाल उठाने लायक नहीं होता. हालांकि बेटी के लिए वैसा ‘कूल’ होना ज्यादातर परिवारों के लिए संभव नहीं होता. संभव है कि हार्दिक की मां बेटे और बेटी दोनों के लिए ऐसी ही हों. लेकिन उन्हें अपने बच्चों को समझाना चाहिए कि इस तरह की बातें ‘कूल’ नहीं कहलातीं. यह बताती हैं कि आपकी सोच कैसी है. आप सामने वाले इंसान को क्या समझते हैं.

अकेले पांड्या नहीं इस मानसिकता के शिकार

हार्दिक के परिवार के बाद बारी आती है बीसीसीआई की. कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है. लेकिन मीटू कैंपेन के दौरान उनके सीईओ राहुल जौहरी का नाम आया. इस बारे में बीसीसीआई ने जिस तरह से मामले को हैंडल किया, वो कम से कम बाहर बहुत अच्छे संकेत नहीं देता. ऐसे संकेत तो बिल्कुल ही नहीं जाते कि इस तरह की बातें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी. यह सच है कि राहुल जौहरी का अपराध साबित नहीं हुआ. लेकिन जरूरी था कि इस संवेदनशील मामले को संवेदनशील तरीके से हैंडल किया जाता. इसमें तो लग रहा था कि किसी भी हाल में मामला रफा-दफा करने की जल्दी है.

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ऐसा नहीं है कि हार्दिक पांड्या इस तरह की सोच वाले अकेले क्रिकेटर हैं. खेलों में ऐसे तमाम खिलाड़ी हैं, लड़कियों को लेकर जिनकी टिप्पणियां छापने लायक नहीं हैं. ऐसी घटनाएं भरी पड़ी हैं. अभ्यास करते हुए बाहर बैठी लड़कियों के बारे में खिलाड़ियों के बीच ऐसी टिप्पणियां होती रही हैं, जिन्हे लिखा नहीं जा सकता. कई महिला पत्रकार खिलाड़ियों की अभद्र टिप्पणियों का शिकार बनी हैं. इंटरव्यू के लिए रिक्वेस्ट करने पर तमाम बार पलट कर अभद्र टिप्पणी या अभद्र ऑफर की बात बताने वाले कई लोग मिल जाएंगे. लेकिन वहां और हार्दिक पांड्या के मामले में फर्क यही है कि वो सार्वजनिक नहीं होतीं.

गलत संदेश दे रहे हैं पांड्या

पांड्या के मामले में संदेश बड़ा जाता है. कोई बच्चा, जो हार्दिक पांड्या को पसंद करता है, उसे लगेगा कि ‘कूल’ दिखने का यही तरीका है. इसीलिए जब विराट कोहली की आक्रामकता पर भी सवाल उठाया जाता है, तो वजह यही होती है. उनके आक्रामक होने से शायद ही किसी को परेशानी हो. लेकिन शतक से लेकर विकेट लेने तक हर बार उनके मुंह से जो शब्द निकलते हैं, वो अच्छा संदेश नहीं देते. खुशी हो या नाराजगी हर बार मां और बहन के साथ कहे गए कुछ शब्द सुनाई भले न दें, लेकिन समझ आते हैं. ..और ये बड़ी तेजी से उन बच्चों तक पहुंचते हैं, जो विराट को हीरो मानते हैं. जो विराट जैसा दिखना चाहते हैं. ऐसे में खेल से पहले वो उनके व्यवहार को अपनाएंगे.

अच्छी बात है कि हार्दिक अभी इतने बड़े खिलाड़ी नहीं हैं कि बहुत से लोग उन्हें हीरो मानें. लेकिन यह जरूरी है कि इस सोच के साथ किया जाए. शायद हार्दिक पांड्या को क्रिस गेल जैसे लोग पसंद आते हैं, जिनकी तमाम बातें विवादों में रही हैं. गेल का भी साथ किसी ने नहीं दिया. भले ही वेस्ट इंडीज में बातचीत का तरीका भारत से बिल्कुल अलग है. यकीनन बीसीसीआई के लिए जरूरी है कि वे खिलाड़ियों के लिए खास ट्रेनिंग सेशन रखवाएं, जिसमें उन्हें बताया जाए कि क्या बात करना ‘कूल’ है और क्या नहीं. लेकिन ध्यान रखिए, इससे सार्वजनिक तौर पर तो लोग शालीन दिखेंगे. लेकिन सोच नहीं बदलेगी. सोच तभी बदलेगी, जब हार्दिक जैसे लोगों को उनकी मां बताए कि महिलाओं से बर्ताव कैसे किया जाता है. उनके बारे में कैसे बात की जाती है. ...और ये भी बताएं कि ‘मैं करके आया’ किसी भी तरह से ‘कूल’ नहीं है.