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आखिर क्यों विराट और शास्त्री के लिए सच का सामना है ऑस्ट्रेलिया का दौरा!

शास्त्री के कोच और विराट के कप्तान बनने के बाद पहली बार दोनों ने स्वीकार किया कि उनसे गलतियां हुईं हैं.  न केवल गलतियां हुईं बल्कि वे एक्स्ट्रीम थीं. इस कारण टीम कई मैच हार गई और सभी ने बैठ कर इस पर बात की है  

Jasvinder Sidhu

ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले टीम इंडिया का यह बदलाव थोड़ा हैरान करने वाला है, लेकिन इसका उसे फायदा मिलेगा. हर बार मुश्किल दौरे पर जाने से पहले भारतीय टीम के कोच रवि शास्त्री जोर देकर कहते आए हैं कि वह वहां ड्रॉ के लिए नहीं खेलेंगे या फिर टीम आक्रामकता से खेलेगी.

ऑस्ट्रेलिया के दौरे के बारे में ऐसा कुछ सुनने को नहीं मिला है.


ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले और पहुंचने के बाद कप्तान विराट कोहली और रवि शास्त्री का बदला हुआ रुख इस साल साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड में सीरीज में हुई हार का नतीजा दिखाई देता है.

शास्त्री के कोच और विराट के कप्तान बनने के बाद पहली बार दोनों ने स्वीकार किया कि उनसे गलतियां हुईं हैं. न केवल गलतियां हुईं बल्कि वे एक्स्ट्रीम थी. इस कारण टीम कई मैच हार गई और सभी ने बैठ कर इस पर बात की है.

इससे पहले हार के बारे में सवाल पर कप्तान और कोच का जवाब काफी आक्रामक रहता था. दोनों ही साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड में मिली हार को मानने का तैयार ही नहीं थे. हर बार बुरी हार के बाद भी दोनों बार-बार दोहरते रहे कि टीम बहुत अच्छा खेली.

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ऑस्ट्रेलिया पहुंच कर भी कोच ने ऑस्ट्रेलियन मीडिया के सामने दोरहाया कि इंग्लैंड और साउथ अफ्रीका में कई गलतियां हुईं और उन्होंने उससे काफी कुछ सीखा है. यह वही कोच हैं जिन्होंने इन हार के बावजूद इस टीम को पिछले 15 साल की सबसे बेहतरीन टीम बताया था.

इस बदलाव का एक कारण और नजर आता है. बतौर कप्तान विराट श्रीलंका और वेस्टइंडीज जैसी संघर्ष कर रही टीमों को पीट चुके हैं, लेकिन बड़ी टीमों के खिलाफ उनके मैदानों पर बतौर कप्तान उनका रिकॉर्ड खराब है. ऑस्ट्रेलिया में भी हार मिलने की स्थिति में उन्हें कई सवालों का जवाब  देना पड़ सकता है.

यह सही है कि उनकी व्यक्तिगत फॉर्म को लेकर कोई सवाल ऩहीं उठा सकता. यकीनन इस दौरे पर दोनों टीम के बीच सबसे बड़ा फर्क विराट ही होंगे.

लेकिन क्रिकेट व्यक्तिगत नहीं बल्कि यूनिट का खेल हैं. नाकाम बल्लेबाज को लगातार मौका मिल सकता है, लेकिन फेल कप्तान क्रिकेट का बड़ा नाम होने के बावजूद निशाने पर आना तय है. सचिन तेंदुलकर इसका सबसे बड़ा उदहारण हैं. उन्हें नाकाम कप्तान माना जाता है और यह  भी कहा जाता है कि वह महान बल्लेबाज थे, लेकिन टीम को मैच नहीं जिता पाते थे.

विराट कोहली भी ठीक उसी स्थिति में खड़े हैं. इस साल खेले दस टेस्ट मैचों में विराट ने 58.59 के स्ट्राइक रेट के साथ चार शतक के साथ 1063 रन बनाएं हैं. वह इतनी जबरदस्त फॉर्म में हैं कि ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट का पूरा फोकस उन पर ही है. 2014-2014 के दौरे पर टीम बेशक 0-2 से हारी, लेकिन विराट के चार शतक थे.

अपने खेल जीवन की सबसे बेहतरीन फॉर्म के बावजूद यह सीरीज उनके चुनौती होने वाली है. क्योंकि उनके रनों के कोई मायने नहीं अगर टीम लगातार हार रही है.

वह बतौर कप्तान एक ओर सीरीज की हार झेलने की स्थिति में नहीं हैं. यह बात शायद उन्होंने भी महसूस की है.

टीम देखने में मजबूत है, लेकिन क्रिकेटीय नजरिए से इसका बुरा हाल है. लगभग हर मैच में नई टीम उतर रही है. किसी का बल्लेबाजी का क्रम तय नहीं है. कई खिलाड़ियों का आत्मविश्वास डोल चुका है, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि इस लंबी सीरीज में उन्हें कोई मैच खेलने को मिलेगा या नहीं!

उम्मीद की जानी चाहिए ऑस्ट्रेलिया में यह सब कप्तान ठीक करेंगे. जीत हासिल करने के लिए टीम से सदस्यों का हौसला मजबूत करना जरुरी है. उसके लिए टीम में आत्मविश्वास पैदा करना कप्तान और कोच की जिम्मेदारी है.