बहुत से लोगों ने गंभीरता से क्रिकेट देखना भारत में ऑस्ट्रेलिया के सन 1969 के दौरे से शुरू किया. उस ऑस्ट्रेलियाई टीम के एक सदस्य ऐशली मैलेट थे. मैलेट ऑफ स्पिनर थे और भारत के स्पिन खेलने में माहिर बल्लेबाज़ों के ख़िलाफ़ भी काफी कामयाब रहे थे. बाद में मैलेट क्रिकेट पर लिखने वाले बहुत अच्छे लेखक बने. मैलेट पर कभी अलग से बात करेंगे. लेकिन यहां इस बात का जिक्र करना है कि मैलेट के लेखन में बार-बार भारतीय ऑफ स्पिनर इरापल्ली प्रसन्ना का जिक्र आता है.
इसमें आश्चर्य की कोई बात इसलिए नहीं है क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी, खासतौर पर जो प्रसन्ना के खिलाफ खेले हैं, वे प्रसन्ना को सबसे बड़ा ऑफ स्पिनर मानते हैं. मैलेट के एक लेख में उन्होंने उनके दौर से अब तक के छह सर्वश्रेष्ठ स्पिनर गिनवाए हैं. उसमें पहले शेन वॉर्न के बाद दूसरा नाम प्रसन्ना का है. मैलेट ने यह जिक्र किया है कि अपने कदमों का इस्तेमाल करने में बेजोड़ आक्रामक बल्लेबाज़ इयन चैपल को प्रसन्ना ने कैसे क्रीज से बांध रखा था. इयान चैपल की राय प्रसन्ना के बारे में क्या थी यह इस किस्से से पता लगता है.
जब चैपल ने वॉर्न को उनका परिचय दिया
भारत में जब एक बार वॉर्न ऑस्ट्रेलिया टीम के सदस्य की तरह आए थे तो एक दिन मैदान पर उनकी मुलाकात एक अपेक्षाकृत ठिगने गोलमटोल शख्स से हुई, जिसने वॉर्न की गेंदबाजी की तारीफ की. वॉर्न उस शख्स को पहचान नहीं पाए. तब पास खड़े चैपल ने कहा - वॉर्नी, ये ईएएस प्रसन्ना हैं, हमारे दौर के सर्वश्रेष्ठ स्पिनर.
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हमने कुछ वक्त पहले चंद्रशेखर पर बात की थी. इसके बाद प्रसन्ना पर बात करना जरूरी है क्योंकि दोनों ही भारत की विख्यात स्पिन चौकड़ी के सदस्य थे. दोनों कर्नाटक से खेलते थे और दोनों ने मिलकर कर्नाटक को कई मैच जिताए. यह भी दिलचस्प है कि स्पिन चौकड़ी मे सबसे ज्यादा लिखा हुआ प्रसन्ना के बारे में ही मिलता है.
ऑफ स्पिनर के आवरण में शतरंज के खिलाड़ी थे
शायद इसलिए कि प्रसन्ना की गेंदबाजी में जो एक दिमागी तत्व था, वह किसी और गेंदबाज से ज्यादा साफ दिखता था. क्रिकइन्फो में प्रसन्ना का जो संक्षिप्त परिचय उदय राजन ने लिखा है उसकी पहली पंक्ति यह है कि प्रसन्ना ऑफ स्पिनर के आवरण में शतरंज के खिलाड़ी थे, जो बल्लेबाज को गेंद से ज्यादा अक्ल से आउट करते थे.
प्रसन्ना के बारे में यह बात भी सब लोग लिखते हैं कि वह आक्रामक गेंदबाज थे जो रन रोकने से ज्यादा विकेट लेने में विश्वास करते थे या कि विकेट खरीदते थे. इयन चैपल के साथ एक बातचीत में प्रसन्ना भी यह कहते हैं कि उन्हें आक्रामक बल्लेबाज पसंद हैं क्योंकि वे उन्हें विकेट लेने का मौका भी देते हैं.
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चैपल इसीलिए प्रसन्ना के प्रिय बल्लेबाज थे क्योकि वे प्रसन्ना को बराबरी की चुनौती देते थे. प्रसन्ना की एक और खास बात थी, उनके लिए विकेट लेने से भी महत्वपूर्ण यह था कि वह विकेट उन्होंने कैसे लिया? कोई विकेट यूं ही मिल जाए तो उन्हें मजा नहीं आता था. जब बल्लेबाज उनके जाल में फंसकर आउट होता था तब उन्हें वह अपनी कला का सम्मान मालूम देता था.
स्पिनर्स की मददगार पिच पर मजा नहीं आता था बॉलिंग में
सुनील गावस्कर ने लिखा है कि अगर अनुकूल विकेट हो तो प्रसन्ना को बल्लेबाज को लेग में कैच के जरिए आउट करने में मजा नहीं आता था. उनका कहना था कि यह तो कोई आम ऑफ स्पिनर भी कर सकता है. उनके मुताबिक घुमावदार विकेट पर असली हुनर तो बल्लेबाज को फ्लाइट पर बीट करके सामने कैच उठवाने में है.
यह भी गौरतलब है कि चौकड़ी के चारों स्पिनरों में प्रसन्ना ही ऐसे हैं जिनकी गेंदों पर एकनाथ सोलकर के फॉरवर्ड शॉर्ट लेग पर कैच शायद ही सुनने में आए हैं. गावस्कर ने यह भी लिखा है कि प्रसन्ना और बेदी में से जो भी विकेट लेता था वह दौड़ कर दूसरे के पास जाता था और फिर दोनों मिलकर हंसते थे कि बल्लेबाज को कैसा फंसाया.
चार्ली डेविस और प्रसन्ना के बीच रोचक जंग
चार्ली डेविस वेस्टइंडीज के बहुत प्रतिभाशाली बल्लेबाज थे जिन्होंने बहुत जल्दी क्रिकेट को अलविदा कह दिया. डेविस सन 1971 में भारत के वेस्टइंडीज दौरे के दौरान वेस्टइंडीज टीम से खेले थे. उन्होंने एक प्रसंग लिखा है कि एक बार टेस्ट मैच में प्रसन्ना ने एक ओवर की एक दो गेंदों के बाद मिडविकेट हटाकर मिडऑन पर फील्डर लगा दिया. एकाध गेंद के बाद एक गेंद मिडिल स्टंप पर आई. डेविस उसे मिडविकेट के ऊपर से मारने के लिए आगे बढ़े तभी उन्हें खयाल आया कि प्रसन्ना ने मिडविकेट का फील्डर क्यों हटा लिया है?
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उन्होंने गेंद को गेंदबाज के सिर के ऊपर से उछाल कर मार दिया, क्योंकि वह गेंद टर्न नहीं हुई, सीधी आ रही थी. प्रसन्ना डेविस के पास आए और पूछा- ‘तुम्हें कैसे पता चला कि वह गेंद स्ट्रेट वन थी?’ डेविस ने कहा- ‘बस मैंने अंदाज़ा लगाया.’ प्रसन्ना ने कहा- ‘ठीक है.’ और अपनी गेंदबाज के छोर पर चले गए. उन्हें यह जानना जरूरी लगा कि उनकी चाल को बल्लेबाज ने कैसे भांप लिया.
प्रसन्ना का अपनी फ्लाइट पर जबर्दस्त नियंत्रण था और जैसा कि हम जान चुके हैं कि उन्हें टर्न से ज्यादा फ्लाइट के इस्तेमाल से बल्लेबाज को चकमा देने में दिलचस्पी थी. प्रसन्ना की फ्लाइट को लेकर जितना कहा लिखा गया है उतना क्रिकेट इतिहास में किसी और स्पिनर के बारे मे नहीं लिखा गया होगा.
‘अदृश्य धागे से बंधी होती थी गेंद’
मैलेट लिखते हैं कि प्रसन्ना जैसे अपनी गेंद को किसी अदृश्य धागे से बांधकर रखते थे, जिसे कभी वे ढील दे देते थे तो कभी खींच देते थे. बल्लेबाज जितना सोचता था गेंद की लेंथ उससे कुछ कम या ज्यादा हो जाती थी. प्रसन्ना अपनी फ्लाइट की तुलना फ्रिस्बी से करते हैं जो घूमती हुई हवा की लहर पर सवार होती है. इसलिए कभी हमें लगता है कि वह यहां गिरने वाली है और वह लहरा कर आगे निकल जाती है या पहले ही गिर जाती है. मैलेट ने लिखा है कि कैसे एक बार वे खुद प्रसन्ना की फ्लाइटेड गेंद को मारने क्रीज से बाहर निकल आए और गेंद उन्होंने जहां सोचा था उससे काफी आगे टप्पा खा गई.
पटौदी की कप्तानी में था प्रसन्ना का सबसे अच्छा दौर
प्रसन्ना का सबसे अच्छा दौर नवाब पटौदी की कप्तानी में रहा क्योंकि पटौदी खुद आक्रामक कप्तान थे. खतरा उठाने से नहीं डरते थे. प्रसन्ना की तरह दिमागी खेल खेलना उन्हें पसंद था. वाडेकर से उनकी ज़्यादा नहीं निभी क्योंकि दोनों का मिजाज अलग था. वाडेकर को यह भी नापसंद था कि प्रसन्ना फिटनेस और फील्डिंग के मामले में बहुत लापरवाह थे.
वे खुद कप्तान बहुत अच्छे थे यह इस बात से जाहिर होता है कि वे जब कर्नाटक के कप्तान बने तो कर्नाटक ने रणजी ट्रॉफी पर मुंबई का पंद्रह साल का एकाधिकार तोड़कर दो बार रणजी ट्रॉफी जीती. कलाकार और शतंरज के खिलाड़ी जैसे अंदाज वाले प्रसन्ना इस 22 मई को 77 साल के हो जाएंगे.