क्रिकेट में सारे स्पिन गेंदबाजों की कोशिश एक ऐसी गेंद डालने की होती है जो उनकी गेंदों के आम घुमाव की उलटी दिशा मे घूमें. जहां तक हो सके बल्लेबाज को उसका पता न चल पाए. दाहिने हाथ के लेग स्पिनर के लिए गुगली एक बड़ा हथियार होता है. ऑफ स्पिनरों की ‘दूसरा’ भी ऐसी गेंद है, जो दूसरी दिशा में घूमती है. इसके अलावा भी दाहिने हाथ और बाएं हाथ के स्पिनर बल्लेबाज को चकमा देने के लिए एकाध दूसरी तरफ घूम जाने वाली गेंद डालने की फिराक में रहते हैं.
जाहिर है गेंदबाज ऐसी गेंदों का इस्तेमाल कम करते हैं ताकि वे बल्लेबाज को चकमा देने में कामयाब हो सकें. लेकिन क्रिकेट में कुछ ऐसे अजूबा स्पिनर भी हुए हैं जो दोनों तरफ गेंदों को एक जैसी आसानी से घुमा सकते थे. इसलिए उनकी हर गेंद पर यह रहस्य बना रहता था कि वह किस तरफ़ घूमेगी. ऐसे ही दो गेंदबाजों की चर्चा हम करेंगे. संयोगवश दोनों का ही जन्मदिन मई में पड़ता है. पहले हैं वेस्टइंडीज के सॉनी रामाधीन और दूसरे भारत के भगवत चंद्रशेखर.
छोटे कद के कमजोर कद-काठी के रामाधीन
पहले बात रामाधीन की. रामाधीन का जन्म 1 मई 1929 को हुआ था और उन्होंने वेस्टइंडीज के 1950 के इंग्लैंड दौरे में अपनी पहली छाप छोड़ी या कहें कि वे छा गए. इससे पहले वेस्टइंडीज मे उन्होंने सिर्फ दो प्रथम श्रेणी मैच खेले थे. उनके साथी स्पिनर आल्फ वेलेंटाइन थे जो 28 अप्रैल 1930 को पैदा हुए थे और वे भी दो ही प्रथम श्रेणी मैचों के अनुभव के साथ इंग्लैंड पहुंचे थे.
चार टेस्ट मैचों की यह सीरीज वेस्टइंडीज ने 3-1 से जीती. यह वेस्टइंडीज की इंग्लैंड में पहली सीरीज जीत थी. इसने वेस्टइंडीज को विश्व क्रिकेट में एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित कर दिया. वेस्टइंडीज की बल्लेबाजी बहुत मजबूत थी. स्टॉलमेयर, रे, तीनों ‘डब्ल्यू’, गोमेज, गोडार्ड जैसे बल्लेबाज उनके पास थे.
वेलेंटाइन और रामाधीन ने इंग्लैंड को उखाड़ दिया था
आमतौर पर वेस्टइंडीज की तेज गेंदबाजी की तब भी चर्चा होती थी. लेकिन इंग्लैंड की बल्लेबाजी को ढहाने का असली काम दोनों नौजवान स्पिनरों ने किया. वेलेंटाइन ने 33 और रामाधीन ने 26 विकेट चार टेस्ट मैचों मे लिए. सीरीज की जीत के बाद मैदान में मौजूद वेस्टइंडीज समर्थकों ने जैसा जश्न मनाया उसने खेल को एक नई रंगत और अंदाज दिया जो वेस्टइंडीज क्रिकेट की बहुत वक्त तक पहचान बना रहा.
वेलेंटाइन बाएं हाथ के परंपरागत गेंदबाज थे. लेकिन रामाधीन रहस्यमय गेंदबाज थे जो एक ही एक्शन से दोनों तरफ गेंद घुमाते थे. वे कलाई का इस्तेमाल कम करते थे बल्कि अंगूठे के पास की उंगली यानी तर्जनी के इस्तेमाल से ऑफ स्पिन और बीच की उंगली के घुमाव से लेग स्पिन करते थे. 5 फीट 4 इंच के दुबले पतले रामाधीन के रहस्य को अंग्रेज बल्लेबाज नहीं समझ पाए.
वेलेंटाइन के साथ कई साल तक वे वेस्टइंडीज गेंदबाजी का आधार स्तंभ बने रहे. लेकिन जैसा आधार स्तंभों के साथ होता है कि उन पर कुछ ज्यादा बोझ लद जाता है और वे उतने प्रभावशाली नहीं रहते. फिर भी वे लगभग दस साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेले. बाद में इंग्लैंड मे जाकर घरेलू क्रिकेट खेलते रहे और फिर वही बस गए.
चंद्रा का रहस्य
भगवत चंद्रशेखर का जन्म 17 मई 1945 को हुआ था. चंद्रशेखर के साथ भी यही था कि बल्लेबाज कभी जान नहीं सकता था कि उनकी गेंद किस दिशा में घूमेगी. बल्कि चंद्रशेखर का कहना था कि अक्सर यह उन्हें भी मालूम नहीं होता था. बचपन में पोलियो की वजह से उनका हाथ कमजोर हो गया था. यही कमजोरी उनकी ताकत बन गई. उनका हाथ सामान्य से ज्यादा घूम जाता था.
चंद्रा जितने शरीफ इंसान, उनकी गेंदें उतनी ही ज्यादा जटिल
वे अपनी कलाई को दाहिने हाथ से लेग स्पिन करने के तरीके से घुमाते थे. अगर कलाई कम घूमी तो गेंद लेग स्पिन होती थी. थोड़ी ज़्यादा घूमी तो टॉपस्पिन, और भी ज्यादा घूमी तो ऑफस्पिन यानी गुगली. वे ऐसे लेग स्पिनर थे जो लेगब्रेक कम, गुगली और टॉप स्पिन ज्यादा डालते थे. यह सब लगभग अच्छी खासी मध्यम तेज गति से.
मुझे उन्हें गेंदबाजी करते हुए देखने का सौभाग्य मिला है. उनकी टॉप स्पिन टप्पा पड़ने के बाद गोली की तरह तेज आती थी और अच्छी खासी शॉर्ट गेंदों पर भी बल्लेबाज हड़बड़ा कर विकेट गंवा बैठते थे. मैंने देखा था कि उनकी एक शॉर्ट गेंद पर बल्लेबाज पुल करना चाहता था. लेकिन उनकी गेंद तेजी से लगभग कंधे की ऊंचाई तक आ गई और बाहरी किनारा लेकर विकेटकीपर के दस्तानों में समा गई. चंद्रा निहायत शरीफ और सरल इंसान हैं.
रिचर्ड्स को नजर आए थे दिन में तारे
चंद्रा की गेंद पर विवियन रिचर्ड्स जैसे बल्लेबाज को भी दिन मे तारे नजर आ जाते थे. विवियन रिचर्डस अपना पहला टेस्ट बेंगलूर में 1973 में खेले थे. उस टेस्ट की दोनों पारियों में चंद्रा ने उन्हें 3 और 4 रन पर चलता कर दिया. दिल्ली में अगले टेस्ट में रिचर्ड्स ने 192 रन बनाए. लेकिन उस टेस्ट मैच में चंद्रा नहीं खेले थे. कुछ साल बाद भारत के इंग्लैंड दौरे पर एक मैच में दोनों का फिर सामना हुआ जहां रिचर्ड्स सॉमरसेट से खेल रहे थे. नतीजा फिर चंद्रा के पक्ष में हुआ. यूं ही नहीं रिचर्ड्स कहते हैं कि भारत की स्पिन चौकड़ी, तेज गेंदबाजों की किसी चौकड़ी जैसी ही खौफनाक थी.
चंद्रा का नियंत्रण लेंथ लाइन पर जरा कम था. इसलिए उनके पिटने का काफी अंदेशा रहता था. लेकिन वे कभी भी खतरनाक गेंद डालकर विकेट लेने की क्षमता रखते थे. वे जब लय में होते या विकेट पिच अनुकूल होती तो चार पांच ओवर में सारी टीम को चलता कर सकते थे. भारत की कई जीत में उनकी बड़ी भूमिका रही रही है. 1971 मे इंग्लैंड में भारत की पहली जीत में उनके 38 पर 6 विकेट तो दंतकथाओं का हिस्सा बन चुके हैं.
मुकेश के गानों के दीवाने हैं चंद्रशेखर
चंद्रा की शराफ़त और संगीत प्रेम के भी कई किस्से हैं. वे पुराने हिंदी फिल्मी संगीत, खासतौर पर मुकेश के गानों के बड़े प्रेमी हैं. एक किस्सा रामचंद्र गुहा की किताब ‘स्पिन एंड अदर टर्न्स’ में है. मुंबई और कर्नाटक के बीच एक मैच में चंद्रा की एक गेंद सुनील गावस्कर के बल्ले के बिल्कुल करीब से गुजर गई. गावस्कर का विकेट अक्सर मैच में निर्णायक साबित होता था. गावस्कर की विकेट लेने से जरा सा चूकने के बाद चंद्रा, गावस्कर के पास गए और बोले –‘सुना क्या?’ वो अपनी गेंदबाजी की नहीं, एक आवाज की बात कर रहे थे. दरअसल, मैदान के बाहर कहीं से मुकेश के एक गाने की आवाज आ रही थी.
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