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विश्व गरीबी उन्मूलन दिवस: बस विकास से यह मुफलिसी दूर नहीं होगी

गरीबी को खत्म करने में जो चीज सबसे अहम है वो है असमानता को दूर करना. अगर ऐसा नहीं होता है तो गरीबों के लिए 'विकास' का कोई मतलब नहीं होगा

Prabhakar Thakur

आज विश्व गरीबी दिवस है. इस दिन की घोषणा हुए अब 25 साल हो गए हैं लेकिन आज भी गरीब और बेघर लोग दुनियाभर में मिल जाएंगे. दुनिया के सबसे 'विकसित' मुल्क अमेरिका में भी 14 प्रतिशत लोग गरीब हैं. लेकिन गरीबी का सबसे वीभत्स रूप देखने को मिलता है विकासशील देशों में.

इन देशों में 1981 से अब तक गरीबी की दर आधी हो चुकी है. विकासशील देशों में वर्ल्ड बैंक द्वारा पूर्व निर्धारित $1.25 प्रति दिन की गरीबी रेखा (अब यह पीपीपी के तहत $1.90 हो चुका है) से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत 52 से घटकर 10 तक आ गया है. इसके अलावा 1990 से अब तक 'भीषण गरीबी' में रह रही आबादी का प्रतिशत 37 से घटकर 9.6 फीसदी पर आ गया है. लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण है चीन.


अब भी दुनिया में करीब 70 करोड़ लोग गरीब हैं. सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि अफ्रीका के सब-सहारा इलाकों में गरीबों की संख्या में कमी की जगह इजाफा ही हुआ है. उनका प्रतिशत तो स्थिर है पर जनसंख्या में तेज इजाफे के कारण गरीब भी बढ़ते गए. अफसोस की बात यह है कि अफ्रीका, जहां दुनिया की महज 11 प्रतिशत आबादी रहती है, वहीं दुनिया के एक तिहाई गरीब पाए जाते हैं.

चीन ने की है जबरदस्त तरक्की

आश्चर्यजनक रूप से इस मामले में पूर्वी एशिया ने जबरदस्त तरक्की की है. जहां एक ओर 1981 में वहां की 80 प्रतिशत आबादी गरीब थी, अब वहां गरीबों का प्रतिशत महज 8 है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर अब तक गरीब रह गए 70 करोड़ लोगों का क्या? क्या उनके लिए कोई उम्मीद है?

इन 70 करोड़ लोगों में ज्यादातर दक्षिण एशिया और अफ्रीका में रहते हैं. इन देशों के सामने चीन का उदाहरण है जिसने इस मामले में जबरदस्त तरक्की की है. चीन की इस जबरदस्त तरक्की का राज है उसका आर्थिक विकास. हालांकि यहीं पर मामला गड़बड़ हो जाता है. जब यह आर्थिक विकास बड़े पैमाने पर ज्यादा से ज्यादा लोगों में न बंटे तो इससे देश की आर्थिक तरक्की तो होती दिखाती है पर एक बड़ा तबका इससे महरूम रह जाता है.

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बीबीसी के एक रिपोर्ट में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के पॉल कोलियर कहते हैं कि चीन में आर्थिक बदलाव केंद्रीय योजनाकर्ताओं के कारण आया है. वहां का तंत्र भी एक-पार्टी व्यवस्था वाला है. उदाहरण के लिए, वहां की सारी जमीन वास्तव में सरकार के अंदर आती है. इसका मतलब यह नहीं कि वहां कोई भी सरकारी सांठ-गांठ के जरिए जमीन के दम पर अमीर नहीं हुआ. लेकिन इससे एक चीज जरूर हुई कि आय में बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण वेतन में बढ़ोत्तरी और स्वरोजगार रहा. इसके अलावा खास बात यह भी कि चीन गरीबी मिटाने को कभी विदेशी सहायता पर निर्भर नहीं रहा.

दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब भारत में

अब आते हैं भारत पर. देश में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब लोग रहते हैं. अपनी कॉलोनी के पास की झोपड़-पट्टी में, सड़क पर रिक्शा चलाते या नाले के पास कूड़ा बीनते ये लोग आपको हर जगह दिख जाएंगे. वर्ल्ड बैंक के मानकों के मुताबिक भारत का हर पांचवां व्यक्ति गरीब है. इसके अलावा 8 करोड़ लोग तो घनघोर गरीबी में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं.

यही गरीबी जुड़ी हुई है भूख से, स्वच्छता से, स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने से. इंदिरा गांधी ने जब 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया तो उसके बाद भी इतने दशकों तक गरीबी बनी रही और ऐसी हालत है कि पीएम मोदी को भी 'गरीबी भारत छोड़ो' का नारा देना पड़ा.

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ऐसा नहीं है कि देश ने गरीबी कम करने के मामले में तरक्की नहीं की. आजादी के वक्त देश में 65 प्रतिशत से भी ज्यादा आबादी गरीब थी. उस वक्त खाने को रोटी ओर पहनने को कपड़े के भी लाले पड़े हुए थे. लेकिन धीरे-धीरे रोटी ओर कपड़े के मामले में हम कई कदम आगे बढ़े. अब भारत सरकार ने 2022 तक सबको घर का वादा भी कर दिया है.

आंकड़ें बताते हैं कि गरीबी को दूर करने के लिए सिर्फ आर्थिक प्रगति ही नहीं बल्कि उस प्रगति का लाभ ज्यादा लोगों तक पहुंचाना भी जरूरी है. इस मकसद में सरकारी स्कीमों जैसे 'मनरेगा' और 'मिड डे मील' जैसी स्कीमों ने बड़ा योगदान किया है.

द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी को खत्म करने में जो चीज सबसे अहम है वो है असमानता को दूर करना. अगर ऐसा नहीं होता है तो गरीबों के लिए 'विकास' का कोई मतलब नहीं होगा जिसमें देश तो तरक्की करता जाए पर उनके हालात जस के तस बने रहें.