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पार्ट 3: वैज्ञानिक सोच की वजह से इस्लाम से दूर होते युवाओं की कहानी

अच्छी बात ये है कि कुछ मुसलमान युवाओं के रौशन खयाल की वजह से इस्लाम में एक नई चर्चा शुरू हुई है

Tufail Ahmad

पार्ट 2 से आगे...

जयपुर की रहने वाली रजिया अहमद कानून की पढ़ाई करती हैं. उन्हें शुरू से इतिहास में दिलचस्पी थी. वो दर्शन शास्त्र और फ्रांस की क्रांति के बारे में जानना चाहती थीं. लेकिन उनके पिता ने उनका दाखिला विज्ञान में करा दिया. उन्होंने पहले कंप्यूटर की पढ़ाई की और अब कानून की पढ़ाई कर रही हैं.


रजिया कहती हैं, '10-11 साल की उम्र में मुझे आजमगढ़ के एक मदरसे में पढ़ने के लिए भेजा गया था. वहां पर धर्म गुरू ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों के बजाय लड़के ज्यादा तादाद में जन्नत में जाएंगे. जब मैंने सवाल पूछा कि ऐसा क्यों तो उस धर्म गुरू ने कहा कि जन्नत जाने वाले 100 में से 99 मर्द होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि लड़कियां ना-शुक्री होती हैं'.

रजिया को ये सुनकर धक्का लगा. लेकिन वो 25 बरस की उम्र तक धार्मिक परंपराओं का पालन करती रहीं. रजिया कहती हैं कि वो कई बरस तक मुसलमानों में बहुविवाह की प्रथा का समर्थन करती रहीं. लेकिन आखिर वो कितने दिनों तक झूठ बोलतीं?

आतंकवादी और फिदाईन हमलों को लेकर रजिया कहती हैं कि उनके कई रिश्तेदार इस्लामिक स्टेट तक को जायज ठहराते हैं. वो मुंबई हमलों को भी सही मानते हैं. रजिया कहती हैं कि मुसलमान या तो सबसे ऊंचा दर्जा चाहते हैं या फिर खुद को पीड़ित बताते रहते हैं.

दिल्ली के रहने वाले एस. अहमद ने जेएनयू से पढ़ाई की है. वो जामिया नगर में रहते हैं. उनका परिवार बेहद धार्मिक है. अहमद के पिता एक धार्मिक संगठन से भी जुड़े हैं. अहमद ने अंग्रेज वैज्ञानिक रिचर्ड डॉकिंस का एक वीडियो देखकर इस्लाम की शिक्षाओं पर सवाल उठाने शुरू कर दिए.

प्रतीकात्मक

अहमद कहते हैं कि डॉकिंस की किताब द गॉड डेलूज़न्स (The God Delusions) ने उनके सारे खयालात ही खारिज कर दिए थे. अहमद के मुताबिक नैतिकता का सबक सीखने के लिए किसी धर्म की जरूरत नहीं.

हालांकि वो ये भी मानते हैं कि वो अपनी मुसलमान होने की पहचान से भाग नहीं सकते. क्योंकि जब उन्हें एक पुलिसवाला गाली देता है. या आतंकवाद के मामलों में झूठे तरीके से मुसलमानों को फंसाया जाता है. या फिर सेना के जवान 'कटुवा' कहकर अपमानित करते हैं, तो ये पहचान बार-बार उनसे टकराती है.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे भोपाल के आरिफ मोहम्मद एक कट्टर मुस्लिम परिवार से आते हैं. लेकिन आरिफ को धर्म से ज्यादा कर्म पर यकीन है. आरिफ ने 12वीं में पढ़ने के दौरान ही इस्लामिक शिक्षाओं पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे. वो खुद को एक भारतीय कहते हैं, भारतीय मुसलमान नहीं.

आरिफ बताते हैं कि सोशल मीडिया पर वो करीब 50 ऐसे मुसलमानों के संपर्क में आए हैं जिन्होंने इस्लाम को अलविदा कह दिया है. हालांकि वो खुलकर ऐसा नही कहते. कई युवाओं ने इसीलिए इस्लाम से दूरी बना ली क्योंकि वो खुद को आतंकवादी नहीं कहलाना चाहते. वो अपने मुसलमान होने की पहचान से दूर ही रहना चाहते हैं.

आरिफ कहते हैं कि उसके जैसे मुस्लिम युवा अपने दोस्त भी बहुत सोच-समझकर बनाते हैं. ताकि वो अपने जैसे खयालात रखने वालों से ही मेल-जोल करें. इस काम में सोशल मीडिया ने काफी मदद की है. इससे पता चलता है कि उन जैसे बहुत से लोग हैं, जिनके जहन में कई सवाल उठते हैं. जिनके जवाब वो तलाशना चाहते हैं.

हालांकि आरिफ ये कहते हैं कि ऐसे लोग ईरानी नास्तिक या अफगानी नास्तिक जैसे फेसबुक पेज के जरिए एक दूसरे से जुड़े हैं. वो कहते हैं कि भोपाल और जबलपुर समेत कई शहरों में उनके जैसे लोग हैं. आरिफ कहते हैं कि एक्स-मुस्लिम या पूर्व-मुसलमानों का ये आंदोलन तब तक बड़ा नहीं हो सकता, जब तक इसका कोई अगुवा न हो. ऐसे लोगों को अपनी बात कहने के लिए एक मंच की भी जरूरत है.

अली मुंतजर भी आरिफ की बात से इत्तेफाक रखते हैं. आरिफ, रजिया या मेजर राशिद जैसे बहुत से भारतीय मुसलमान हैं, जो नई सोच रखने वाले हैं. बहुत से लोग हैं जो इस्लाम में घुटन होने की वजह से इसे छोड़ रहे हैं. लेकिन इनमें से कई लोग ये भी मानते हैं कि मुसलमानों में कट्टरता बढ़ रही है.

जो लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं वो भय के माहौल में रहते हैं. उन्हें इस्लामिक धर्म गुरुओं से डर लगता है. उन्हें लगता है कि खुलकर अपनी बात कहने से वो समाज से बाहर कर दिए जाएंगे.

प्रतीकात्मक

इससे एक बात साफ है कि इस्लाम में सवाल उठाने वालों की कोई जगह नहीं. ज्यादातर इस्लामिक धर्म गुरू दूसरे मजहब के लोगों से नफरत करने की तालीम देते हैं. ये धर्म गुरू खुद को मुस्लिम समुदाय का सर्वे-सर्वा मानते हैं.

अच्छी बात ये है कि इन पूर्व मुसलमानों के रौशन खयाल की वजह से इस्लाम में एक नई चर्चा शुरू हुई है. इनको एक मंच की जरूरत है. जहां नई सोच वाले ये युवा एकजुट होकर अपनी बात रख सकें. इस्लाम के बारे में चर्चा कर सकें. ये इसलिए जरूरी है कि इस्लामिक सोच भारतीय सभ्यता को ही चुनौती देती रहती है.

इस श्रृंखला के बाकी दो लेख पढ़ें:

पार्ट 1: वैज्ञानिक सोच की वजह से इस्लाम से दूर होते युवाओं की कहानी

पार्ट 2: वैज्ञानिक सोच की वजह से इस्लाम से दूर होते युवाओं की कहानी