दुनिया में तेजी से बढ़ रहे इस्लामिक कट्टरवाद के बीच, भारत में मुस्लिम युवाओं की एक नई जमात शक्ल ले रही है. ये युवा खुद को पूर्व मुस्लिम या एक्स-मुस्लिम कहते हैं.
मतलब ये कि ये युवा इस्लाम की कुछ परंपराओं पर सवाल उठा रहे हैं. खुद को रुढ़िवादी खयाल से आजाद करा रहे हैं. और इनमें से कई युवाओं ने इस्लाम का पालन करना ही छोड़ दिया है.
पूरी दुनिया में आत्मघाती हमलों में मुसलमानों के शामिल होने की बढ़ती घटनाओं और इराक, सीरिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देशों में बढ़ती हिंसा की वजह से ये पूर्व मुस्लिम नए खयालात अपना रहे हैं.
इंटरनेट पर इस्लाम के बारे में नई जानकारी उपलब्ध होने से इन एक्स-मुस्लिमों का हौसला बढ़ा है. वो अपने जेहन में अपने मजहब को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहे हैं.
भारत के ये मुस्लिम युवा दूसरे देशों के अपने जैसे लोगों से भी इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए जुड़ रहे हैं. कई युवाओं ने तो इस्लाम धर्म को पूरी तरह से छोड़ दिया है. वहीं कुछ ने अपना ये फैसला अभी छुपाकर रखा है.
मुसलमानों की ये पढ़ी-लिखी जमात आम तौर पर बीस-तीस बरस के उम्र की है. वो खुद को या तो पूर्व मुसलमान कहते हैं, या फिर नास्तिक. वो फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल माध्यमों से एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं.
न्यूएजइस्लाम डॉट कॉम के सुल्तान शाहीन कहते हैं कि भारत में पूर्व मुसलमानों का ऐसा कोई आंदोलन या मुहिम नहीं चल रही है. हालांकि ब्रिटेन जैसे कुछ पश्चिमी देशों में ऐसा हो रहा है. लेकिन शाहीन कहते हैं कि आज कई मुस्लिम युवा सच्चे इस्लाम की तलाश कर रहे हैं.
शाहीन कहते हैं कि, 'मैं ऐसे कई मुसलमानों से मिला हूं, जिन्होंने पांच वक्त की नमाज पढ़ना छोड़ दिया है. दिल्ली में तो एक वकील ने अपने पिता को इस्लाम छोड़ने के लिए राजी कर लिया'. शाहीन कहते हैं कि ऐसे बहुत से मुस्लिम युवा हैं जो मुस्लिम विरोधी वेबसाइट पढ़ते हैं और मानते हैं कि जिहाद ही इस्लाम का असल चेहरा है.
ऐसी ही एक युवा हैं, नादिया नोंगजाई. नादिया शिलॉन्ग में रहती हैं. उन्होंने कंप्यूटर साइंस में बी.टेक किया है. साथ ही उन्होंने अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री ली है. नादिया कहती हैं कि वो सोशल मीडिया के जरिए ऐसे बहुत से लोगों के संपर्क में आई हैं. वो खुद को ऐसे पूर्व मुस्लिमों में से ही एक मानती हैं. उनका परिवार इस्लाम को मानने वाला है.
नादिया कहती हैं कि स्कूल में जो पढ़ाया जाता था, उस पर उन्हें यकीन नहीं होता था. उनके जेहन में सवाल उठता था कि आखिर अल्लाह कैसे सभी गैर मुस्लिम बच्चों को दोजख में भेज सकता है?
उनका सवाल इस्लाम की उस शिक्षा से उपजा जिसमें बताया जाता था कि किसी भी गैर मुस्लिम को जन्नत में दाखिले की इजाजत नहीं मिलेगी. नादिया कहती हैं कि जो अल्लाह इतना इंसाफ पसंद बताया जाता है, वो आखिर कैसे गैर मुसलमानों पर इतना जुल्म ढा सकता है?
वो खुद को एक्स-मुस्लिम कहती हैं. जब हमने नादिया से पूछा कि इससे उनको खतरा महसूस नहीं होता. तो नादिया कहती हैं कि वो अपनी पहचान छुपाना नहीं चाहतीं. साथ ही वो ये भी बताती हैं कि उन्होंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली है और अपनी हिफाजत कर सकती हैं.
साजी सुबेर भी ऐसे ही मुस्लिम युवा हैं. साजी सऊदी अरब में पैदा हुए थे और उनकी शुरुआती परवरिश वहीं हुई. उनकी मां ईसाई से मुसलमान बनी थीं. बाद में उन्होंने फिर से ईसाई धर्म अपना लिया था. मां उनको लेकर सऊदी अरब से मैंगलोर वापस आ गई थी.
मैंगलोर में साजी का दाखिला एक मदरसे में करा दिया गया था. आज उनके पास कंप्यूटर साइंस में बीई की डिग्री है. वो कॉमिक्स की किताबों के ऐप पर काम कर रहे हैं. साजी बताते हैं कि वो जब भारत लौटे तो उन्हें कुत्तों में दिलचस्पी हो गई. वो उन्हें पालना चाहते थे. उनके साथ खेलना चाहते थे. लेकिन साजी की मां ने उन्हें समझाया कि इस्लाम में कुत्तों के साथ खेलना हराम है.
ये इस्लामिक शिक्षा से उनका पहला टकराव था. इस्लाम में कुत्तों को अपवित्र माना जाता है. मुसलमानों को कुत्ते पालने से मना किया गया है.
भारत लौटने के दो साल बाद साजी मैंगलोर में एक इस्लामिक सम्मेलन में भाग लेने गए. वहां पर एक मुस्लिम धर्मगुरु लोगों को लाउडस्पीकर पर बता रहा था कि वो गैर मुसलमानों से खाना-पानी बिल्कुल न लें.
साजी को ये सुनकर सदमा लगा. उसे ये बात बिल्कुल नामंजूर थी. साजी कहते हैं, 'मुझे ऐसा लगा कि वो धर्मगुरु मुझसे कह रहा था कि मैं अपनी मां से नफरत करूं क्योंकि वो ईसाई है. कोई भी बच्चा इसे मंजूर नहीं कर सकता'.
इससे साजी के जहन में सवाल उठे. वो विज्ञान की पढ़ाई करने लगे. तब इस्लाम धर्म की कई शिक्षाओं को जानकर साजी को झटका लगा. तमाम चीजें पढ़-लिखकर साजी इस नतीजे पर पहुंचे कि इस्लाम में कई चीजें गड़बड़ हैं.
आज वो खुद को नास्तिक कहते हैं. वो ये सवाल भी उठाते हैं कि आत्मघाती हमलों में हमेशा मुसलमानों का ही नाम क्यों आता है?
आगे इस श्रृंखला के दो और लेख पढ़िए-
पार्ट 2: वैज्ञानिक सोच की वजह से इस्लाम से दूर होते युवाओं की कहानी
पार्ट 3: वैज्ञानिक सोच की वजह से इस्लाम से दूर होते युवाओं की कहानी
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