view all

वो ‘पड़ताल’ जिसमें CBI की गुजारिश पर, भारत के प्रधानमंत्री को सीधे उतरना पड़ा था!

साल 2002 का आतंकी आफताब अंसारी केस के तहकीकात के सिलसिले में भारत, अमेरिका और दुबई को साथ आना पड़ा था

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

उस सुबह दुनिया के दो ‘सुपरपॉवर’ देशों के आला-हुक्मरान दिल्ली में बैठे अपनी-अपनी आबरु महफूज रखने का इंतजाम करने में मशगूल थे. बैठक महत्वपूर्ण थी. इज्जत तार-तार होने वाली है! इसकी खुफिया रिपोर्ट्स दोनों महा-ताकतों के पास छन-छनकर ही सही, लेकिन पहुंच चुकी थी. बैठक का एजेंडा था कि आखिर संभावित खतरे को टाला कैसे जाए? खुफिया रिपोर्टस में दो-टूक और ठोंक-बजाकर अहतियातन बता दिया गया था कि अगर वक्त रहते सजग होकर कारगर उपाय या पुख्ता इंतजामात नहीं किए गए, तो तबाही किसी भी हद तक पहुंचकर दोनों देशों की इज्जत का जुलूस सर-ए-आम निकलवाने के लिए मुंह बाए खड़ी है.

खुफिया सूचनाओं के बाद, चाक-चौबंद होकर किसी खास कदम पर अमल हो पाता उससे पहले ही दुश्मन अधूरे इंतजामों पर ‘हमला’ करके खुद की कामयाबी और सरकारी एजेंसियों की नाकामयाबी का काला अध्याय लिखकर नौ-दो-ग्यारह हो गए. आखिर क्या था वो पूरा माजरा? सबकुछ जानते हुए भी जिसमें खानी पड़ी, दुनिया की दो महा-ताकतों को खुलेआम ‘मात’! पढ़िए करीब 16 साल पहले लिखे गए इतिहास के काले पन्नों को पलटने पर उनसे निकली ‘पड़ताल’ की यह खास कड़ी.


22 जनवरी 2002 दिल्ली का अशोका होटल

उन दिनों अमरेकी जांच और खुफिया एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (F.B.I) के प्रमुख यानी डायरेक्टर रॉबर्ट एस. मुलर भारत में डेरा डाले हुए थे. मुलर को भारत में दोनों देशों की सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों और भारत सरकार के तमाम आला-हुक्मरानों के साथ तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श करना था. मुलर की भारत यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण बिंदु यह भी था कि आखिर, आतंकवाद पर काबू कैसे पाया जाए?

हांलांकि अब तक अमेरिका को यह भी सूचना मिल चुकी थी कि दुनिया भर में आतंकवाद प्रभावित देशों में मौजूद अमेरिकी प्रतिष्ठानों पर निशाना साधा जाएगा, जिसमें भारत में मौजूद तमाम अमेरिकी प्रतिष्ठान भी शामिल थे. इन्हीं तमाम महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बातचीत के लिए एफबीआई प्रमुख (निदेशक) और उस समय के केंद्रीय गृह-सचिव के बीच नई दिल्ली जिले में स्थित होटल अशोका में एक खास और बेहद गोपनीय बैठक बुलाई गई थी. बैठक में अमेरिका और भारत की सुरक्षा-खुफिया और जांच एजेंसियों के प्रमुख या फिर अनुभवी वरिष्ठ अधिकारी भी आमंत्रित थे. दरअसल उस बैठक का पूरा आयोजन सुबह के नाश्ते (ब्रेकफास्ट) की आड़ लेकर, भारतीय जांच एजेंसी सीबीआई के प्रमुख (डायरेक्टर) की ओर से किया गया था.

ये भी पढ़ें: CBI vs CBI: तमाम छप्परों में आग लगाने वाले भूल गए, खुद का घर भी गांव में ही मौजूद है!

इंतजाम से पहले ही ‘काम-तमाम’ हो गया!

22 जनवरी सन् 2002 को नई दिल्ली जिले में मौजूद होटल अशोका में सुबह के वक्त बैठक चल ही रही थी. उसी समय केंद्रीय गृह सचिव के माथे पर पेशानी पड़ गईं. उनके चेहरे पर आते-जाते और लम्हा-लम्हा जल्दी-जल्दी बदले आव-भाव अमेरिकी भले न समझ सके हों. भारतीय अधिकारी जरुर वो सब देखकर ‘दाल में कुछ काला’ होने की शंका से आशंकित हो उठे. गृह-सचिव ने पहले तो इधर-उधर देखा. उसके बाद खुद को संभालते हुए पास ही मौजूद सीबीआई और खुफिया एजेंसी के एक-दो अधिकारियों को करीब लाते हुए फुसफुसाना शुरू किया. ‘कोलकता में मौजूद अमेरिकन सेंटर पर आतंकवादी हमला हो गया है. कोलकता पुलिस के कुछ जवान आतंकवादी हमले में शहीद कर दिये गये हैं. हमले को अंजाम देने के बाद मोटर-साइकिल पर आए हमलावर सकुशल भाग गए हैं.’

वो नाम जिसने खड़े कर दिए सीबीआई के ‘कान’

केंद्रीय गृह-सचिव और उनके मातहत/सहयोगी के बीच हो रही कानाफूसी में से ही छन-छनकर आ रही बातों को आसपास मौजूद भारतीय अफसरों ने सुना कि ‘हमले के बाद पूरे कोलकता में किसी फ़रहान मलिक का नाम जंगल की आग की मानिंद फैल चुका है. जबकि भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास फ़रहान नाम का उस वक्त तक कोई संदिग्ध खाते में दर्ज ही नहीं था. उस दौरान सीबीआई के एक अधिकारी ने मीटिंग में ही बेहद धीमी आवाज में बताया कि, उसके पास फ़रहान मलिक नाम से संबंधित कुछ क्लू हैं. यह क्लू डायरेक्ट उसके पास भी न होकर, पश्चिम बंगाल पुलिस के आला-अफसर के पास मौजूद हैं. बात अमेरिका और भारत की इज्जत पर हमले से जुड़ी थी. सो भारत ने बैठक में मौजूद एफबीआई प्रतिनिधियों को भी कोलकता में अमेरिकी सेंटर पर हुए हमले की सूचना देना ही मुनासिब समझा.’

अड़ियल अमेरिका पर भारत की भारी-भरकम चोट

बैठक में मौजूद अमेरिकी प्रतिनिधियों को कोलकता में अमेरिकी सेंटर पर हुए हमले की सूचना देना दो नजरिये से जरूरी थी. पहला अमेरिकी की खुफिया एजेंसी एफबीआई, हमलावरों को पकड़वाने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मददगार साबित हो सकती है. दूसरे खुद के सेंटर पर हमला हुआ है. एफबीआई के अधिकारी खुद भारत में (नई दिल्ली) मौजूद हैं. ऐसे में भारत को एफबीआई के साथ सामंजस्य बैठाने में फालतू की मेहनत-मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. इसके अलावा यही वो मौका भी था जब, अमेरिका की आंखें खोली जा सकती थीं कि देखो किस कदर भारत पीड़ित है आतंकवाद से!....आदि-आदि....यानि एक तीर से (कोलकता स्थित अमेरिकी सेंटर पर हुए हमले से) भारत ने कई निशाने वक्त रहते साध लिए. साथ ही जांच में अमेरिका को अपने पीछे-पीछे चलाने के लिए भारत को बे-फिजूल ही अमेरिकी एजेंसियों की मान-मुनव्व्ल भी नहीं करनी पड़ी.

प्रतीकात्मक तस्वीर

काम आई गजब की ‘पुलिसिया-याददाश्त’

सीबीआई के एक आला-अफसर को तुरंत ही मीटिंग से रवाना कर दिया गया कि, वे फ़रहान मलिक के बारे में जल्दी से जल्दी और ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाएं. साथ ही फ़रहान मलिक किसी भी तरह से देश से बाहर न जा पाये. देश की तमाम खुफिया एजेंसियां और सीबीआई इसका भी पुख्ता इंतजाम करे. इसी बीच सीबीआई को हमले वाले दिन ही ध्यान आया. उन दिनों पश्चिम बंगाल की सीआईडी में तैनात एसएसपी और 1989 बैच के तेज-तर्रार और पुलिसिया-याददाश्त के धनी आईपीएस राजीव कुमार का. हाल-फिलहाल राजीव कुमार कोलकता के पुलिस कमिश्नर पद पर तैनात हैं. पश्चिम बंगाल पुलिस में राजीव कुमार उस वक्त चर्चा में आए जब उन्होंने, ख़ादिम शूज़ के मालिक/ चेयरमैन/प्रबंध निदेशक पार्था प्रतिम रॉय बर्मन अपहरण कांड की ‘पड़ताल’ में नजीर कायम कर दी. सीबीआई अधिकारियों ने राजीव से फ़रहान मलिक के बारे में कुछ जानकारी उनके पास मुहैया होने के बाबत पूछा. राजीव ने कुछ ही देर बाद सीबीआई और कोलकता पुलिस के आला-अफसरों को जो बताया वो हैरान करने वाली खबर थी.

ये भी पढ़ें: एक ‘जुबैदा’ ने फुला दी थी जब, 5 राज्यों के हजारों पुलिसिया बहादुरों की ‘सांस’!

फ़रहान नहीं वो अंडरवर्ल्ड का ‘आफ़ताब’ था

कोलकता के मौजूदा पुलिस कमिश्नर और उस वक्त पश्चिम बंगाल पुलिस में एसएसपी सीआईडी रहे राजीव कुमार ने आला-पुलिस-अफसरों और सीबीआई तथा भारतीय खुफिया एजेंसियों को बताया कि ’फ़रहान मलिक कोई नहीं है. दरअसल यह अंडरवर्ल्ड की दुनिया में अंततराष्ट्रीय स्तर पर अपहरण कराने के लिए कुख्यात भारतीय मूल का आफ़ताब अंसारी है. जो अक्सर नाम बदलकर दुबई आदि से फोन करता रहता है. उसका असली ठिकाना दुबई ही था. आफ़ताब के बारे में उस वक्त राजकोट के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर सुधीर सिन्हा ने भी खुफिया एजेंसियों को तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां मुहैया करा दीं. इतना ही नहीं राजीव कुमार ने तो खुफिया एजेंसियों को बताया कि, कोलकता स्थित अमेरिकी सेंटर पर हमले के ठीक बाद. आफ़ताब अंसारी ने खुद ही फ़रहान मलिक बनकर उन्हें उनके घर के लैंड-लाइन फोन पर हमले की जानकारी दी. हांलांकि तेज याददाश्त के मालिक आईपीएस राजीव कुमार ने खुद को फ़रहान मलिक बता रहे आफ़ताब को उसके असली नाम से फोन पर बुलाकर उसे उसी वक्त चारो-खाने चित कर दिया. इतना ही नहीं आफताब अंसारी ने फ़रहान मलिक बनकर ही कोलकता के मशहूर क्षेत्रीय अखबार ‘आनंद बाजार पत्रिका’ के कार्यालय भी फोन किया था.’

दो खतरनाक कांड का मास्टरमाइंड एक

कोलकता पुलिस ने उस फोन नंबर (जिससे आईपीएस राजीव कुमार को आफ़ताब अंसारी ने फोन करके 22 जनवरी 2002 को सुबह 6.30 बजे कोलकता में अमेरिकी सेंटर पर हमले की खबर फ़रहान मलिक के फर्जी नाम से दी थी) के बाबत टेलीफोन एक्सचेंज से जानकारी इकट्ठी की. यह वही फोन नंबर निकला जिससे आफताब अंसारी ने दुबई में बैठकर ख़ादिम शूज़ के मालिक के अपहरण के बदले फिरौती की ‘डील’ की थी.

ख़ादिम शूज़ के मालिक के अपहरण कांड में परिवार वालों और आफताब के बीच टेलीफोन पर हुई तमाम लंबी बातचीत को पश्चिम बंगाल पुलिस के राजीव कुमार कई बार सुन चुके थे. इसीलिए वो आवाज उनके कानों में रच-बस गई थी इसीलिए उन्होंने आफताब को चंद सेकेंड में ही ताड़ लिया जब वो खुद को फरहान मलिक बताकर अपनी पहचान छिपा रहा था. बजरिए भारत सरकार जैसे ही अमेरिकी खुफिया-सुरक्षा एजेंसी एफबीआई को आफताब अंसारी का पता चला और मालूम हुआ कि वो अबू धाबी / दुबई से तमाम घिनौने काम कर रहा है. लिहाजा भारत ने जहां अबू धाबी में मौजूद अपने राजदूत को ‘अलर्ट’ किया. वहीं एफबीआई ने भी तुरंत अबू धाबी में अपने स्तर से कामकाज शुरू कर दिया.

ये भी पढ़ें: मदन मोहन मालवीय: BHU को स्थापित करने के लिए जिसने निजाम को सिखाया सबक

‘पड़ताल’ में उतरना पड़ा हिंदुस्तानी प्रधानमंत्री को!

लोहा गरम और ज़ख्म हरे देखकर भारत की ओर से की गई अमेरिकी एजेंसी एफबीआई पर की गई ‘संकेतात्मक-चोट’ बड़े काम की साबित हुई. दुबई में आफताब अंसारी को घेरने के लिए अमेरिका को साथ लेने का यही खुबसूरत मौका था. जिसे भारत ने हाथ से नहीं जाने दिया. इतना ही नहीं इन्हीं प्रयासों के तहत भारतीय जांच एजेंसी यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक उसी शाम (22 जनवरी 2002 कोलकता स्थित अमेरिकी सेंटर पर हमले के दिन ) प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी से जाकर मिले. सीबीआई निदेशक की प्रधानमंत्री से मुलाकात का रिजल्ट यह रहा कि उस वक्त प्रधानमंत्री के निजी सचिव भी पूरे मामले को लेकर सजग हो उठे. लिहाजा परिणाम वही सामने निकलकर आया जिसकी, सीबीआई उम्मीद कर रही थी. मतलब जैसे ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सीधा हस्तक्षेप किया, वैसे ही भारत में अमेरिका के राजदूत भी प्रत्यक्ष रुप से ‘पड़ताल’ में शामिल हो गए.

‘साहबों’ के डिनर में ‘आफ़ताब’ का इंतजाम

कुछ समय पहले इस लेखक की मुलाकात, सीबीआई के रिटायर्ड और भारतीय पुलिस सेवा के यानी उसी पूर्व आईपीएस आला-अफसर से दक्षिणी दिल्ली में किसी स्थान पर हो गयी जो, इस हैरतंगेज ‘पड़ताल’ का चश्मदीद-हिस्सा रहा. बकौल उसी आला अफसर के, ‘उस दिन सीबीआई निदेशक नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में आफ़ताब अंसारी से संबंधित पूरी फाइल का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने (सीबीआई डायरेक्टर) मुझसे पूछा कि, 'क्या मैं संबंधित फाइल अमेरिका के राजदूत के हवाले कर सकता हूं?' मैं बोला फाइल मेरे ब्रीफकेस में मौजूद है. मैं अभी कुछ मिनटों में ही उन्हें फाइल सौंप सकता हूं. इस बातचीत के चंद मिनट बाद ही मैं नई दिल्ली जिले में शांति-पथ पर मौजूद अमेरिकी दूतावास में पहुंच गया. वहां एफबीआई डायरेक्टर के सम्मान में डिनर पार्टी चल रही थी. मैंने आफ़ताब अंसारी का दुबई वाला नंबर, उसका फोटो तथा अन्य संबंधित कागजात मय पुख्ता सबूत अमेरिकी राजदूत द्वारा मेरे पास भेजे गये दूतावास अधिकारी के हवाले कर दिये. और मैं वापिस वहां से लौट गया. इसके बाद ही शुरु हो सकी थी आफ़ताब अंसारी को उसकी माँद से बाहर खींचकर लाने की तमाम खानापूर्ति ब-मदद अमेरिका, दुबई और भारत.’

(लेखक वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं)