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एक ‘जुबैदा’ ने फुला दी थी जब, 5 राज्यों के हजारों पुलिसिया बहादुरों की ‘सांस’!

‘ऑपरेशन जुबैदा’ शुरू हुआ तो, सबसे पहले राजस्थान पुलिस के काम आए एटीएस उदयपुर में तैनात खुफिया तंत्र के महारथी दबंग इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू

Updated On: Jan 06, 2019 09:21 AM IST

Sanjeev Kumar Singh Chauhan Sanjeev Kumar Singh Chauhan

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एक ‘जुबैदा’ ने फुला दी थी जब, 5 राज्यों के हजारों पुलिसिया बहादुरों की ‘सांस’!

पुलिस काम करे तो शक. काम न करे तो भी शक. आज के माहौल में शक न हो गया, पुलिस के लिए मानो बवाल-ए-जान हो गया है. कुछ ऐसी ही कहानी है पुलिसिया ‘ऑपरेशन-जुबैदा’ की. दिलचस्प तो यह है कि पुलिस ने, ‘ऑपरेशन-जुबैदा’ नाम रखा तो महिलाओं के नाम से मिलता-जुलता. जबकि ऑपरेशन-जुबैदा का किसी ‘महिला’ से लेना-देना (वास्ता) दूर-दूर तक नहीं था. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि, ‘ऑपरेशन-जुबैदा’ की यादगार कामयाबी ने हिंदुस्तान जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश के, चार-चार सूबों की पुलिस और स्थानीय प्रशासन का चैन छीन लिया. जबकि ‘अवैध हथियार-लाइसेंस माफिया’ के खिलाफ छेड़े गए बेहद खुफिया ‘ऑपरेशन-जुबैदा’ ने, हथियार माफियाओं का हलक सुखाकर उन्हें खुले में सांस लेना दूभर कर दिया.

आखिर क्या था ‘ऑपरेशन-जुबैदा’ की आड़ में छिपे रहस्य-रोमांच से सराबोर ‘पुलिसिया-तफ्तीश’ का पूरा सच? पढ़िए-सुनिए ‘संडे क्राइम स्पेशल’ की इस खास-किश्त में. उन्हीं पुलिस अफसरों की मुंहजुबानी पूरी कहानी. आम-जिंदगी में बेहद लुभावने से सुनाई-दिखाई पड़ने वाले ‘ऑपरेशन-जुबैदा’ की कामयाबी के लालच ने. बीते साल जिन आला-पुलिस-अफसरों की झपट ली थी महीनों की नींद, भूख और प्यास. वही ऑपरेशन ‘जुबैदा’ जिसमें फंसे छोटे ‘भैय्या’ ने, कश्मीर जैसे खूबसूरत राज्य के एक ‘कलेक्टर-साहब’ को जमाने में मुंह दिखाने तक के काबिल नहीं छोड़ा!

मई 2017 राजस्थान पुलिस का एटीएस मुख्यालय

राजस्थान की राजधानी जयपुर के घाट गेट (वायरलेस ऑफिस के पास) स्थित एटीएस हेडक्वार्टर (राज्य पुलिस आतंकवादी निरोधक मुख्यालय) में अन्य दिनों की तुलना में कहीं ज्यादा गहमा-गहमी होने के बावजूद सन्नाटा था. तेज कदमों से पहुंच रहे अधिकांश अफसरों और मातहत पुलिसकर्मियों का रुख एडिशनल डायरेक्टर जनरल (एटीएस) और वरिष्ठ आईपीएस उमेश मिश्रा (वर्तमान में राजस्थान के एडिशनल डायरेक्टर जनरल इंटेलीजेंस) के दफ्तर की ओर था.

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थोड़ी ही देर में एटीएस प्रमुख उमेश मिश्रा के सामने और इर्द-गिर्द मौजूद थे. पुलिस महानिरीक्षक राजस्थान एटीएस (वर्तमान में अजमेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक) 1995 बैच राजस्थान कैडर के आईपीएस बीजू जॉर्ज जोसेफ के. पुलिस अधीक्षक उदयपुर राजेंद्र प्रसाद गोयल, सहायक पुलिस अधीक्षक उदयपुर सुधीर जोशी. पुलिस अधीक्षक एटीएस आईपीएस विकास कुमार (वर्तमान में उप-महानिरीक्षक होमगार्ड).

एटीएस राजस्थान के अपर-पुलिस अधीक्षक बजरंग सिंह, एटीएस उदयपुर के सहायक पुलिस अधीक्षक हरदयाल सिंह, एडिशनल पुलिस अधीक्षक उदयपुर रानू शर्मा. इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू (एटीएस), इंस्पेक्टर कामरान खान (एटीएस मुख्यालय जयपुर) तथा मनीष शर्मा, राजेश दुरेजा, प्रदीप सिंह, शैतान सिंह, चांदमाल, हनवंत सिंह (सभी राजस्थान पुलिस के इंस्पेक्टर) और क्रिश्चियनगंज थाना अजमेर के सब-इंस्पेक्टर रणजीत सिंह और चौकी प्रभारी उगमाराम.

ऑपरेशन जुबैदा में नाजायज हथियार गिरोह की धरपकड़ मे ताबड़तोड़ छापे मारने वाली अपर पुलिस अधीक्षक रानू शर्मा...फोटो साभार यूट्यूब

ऑपरेशन जुबैदा में नाजायज हथियार गिरोह की धरपकड़ मे ताबड़तोड़ छापे मारने वाली अपर पुलिस अधीक्षक रानू शर्मा (फोटो साभार: यूट्यूब)

साहबकी मंशा से अनजान शागिर्द’!

मीटिंग-हॉल में राजस्थान पुलिस के तमाम तेज-तर्रार साहब और मातहतों की भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी. सैकड़ों पुलिस अफसरों-कर्मचारियों की भीड़ के बावजूद मीटिंग हॉल में सन्नाटे का आलम यह था कि, सुई गिरने तक की आवाज साफ सुनाई दे जाए. उस सन्नाटे को तोड़ा मीटिंग के सर्वेसर्वा उमेश मिश्रा ने. मीटिंग में मौजूद मातहतों ने उमेश मिश्रा जैसे तेज-तर्रार आला पुलिस अफसर के मुंह से जो कुछ सुना, उसे सुनकर तमाम दबंग पुलिस अफसरों के माथे पर पसीना आ गया. पसीना आने की वजह थी राजस्थान सूबे के आठ जिलों में एक साथ पुलिस द्वारा छापामारी किए जाने की प्लानिंग.

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एक जुबैदाने फुलाई सैकड़ों बहादुरों की सांस!

उमेश मिश्रा ने मातहतों को संबोधित करते हुए बोलना शुरू किया, ‘राजस्थान पुलिस को राज्य और उससे बाहर पूरे देश में फैले फर्जी आर्म लाइसेंस और उसके बलबूते गैर-कानूनी हथियारों की खरीद-फरोख्त से जुड़े अंतरराज्यीय गिरोह के ‘सिंडीकेट’ को नेस्तनाबूद करना है.’ अनुभवी पुलिस अधिकारी होने के नाते उमेश मिश्रा जानते थे कि, इतने बड़े ऑपरेशन की गोपनीयता बनाए रखना भी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती होगा. इसके लिए उन्होंने इस भंडाफोड़ के लिए उठाए जाने वाले खतरनाक कदम को खुद ही नाम दिया ‘ऑपरेशन जुबैदा’.

‘सिंडीकेट’ तबाह करने से पहले ‘ऑपरेशन’ बचाना जरूरी

बजरिए इस ऑपरेशन के तहस-नहस करना था जाली आर्म लाइसेंस के बलबूते अवैध हथियार हासिल करने के अंतरराज्यीय स्तर पर चल रहे काले-कारोबार को. जिसका किसी महिला अपराधी से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था.

ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि, उस बेहद संवेदनशील ऑपरेशन का नाम किसी महिला के नाम से मिलता-जुलता आखिर ‘जुबैदा’ क्यों रखा गया? पूछे जाने पर ‘फ़र्स्टपोस्ट हिंदी’ को बताते हैं राजस्थान के मौजूद एडिशनल डायरेक्टर जनरल इंटेलीजेंस उमेश मिश्रा, ‘दरअसल वह जितना खतरनाक ऑपरेशन था. उतना ही महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण थी उसकी ‘गोपनीयता’ बनाए रखना. हमारे द्वारा (राजस्थान पुलिस) इतने बड़े और अंतरराज्यीय स्तर पर उठाए जा रहे कदम की जरा भी भनक अपराधियों को लग जाती तो, राजस्थान के पुलिस-खुफिया तंत्र द्वारा जुटाई गई जानकारी. और उसकी महीनों की मेहनत पर लम्हों में पानी फिरना तय था, जोकि अक्षम्य होता. लिहाजा ठोस रणनीति को गोपनीय बनाए रखना भी हमारी (राजस्थान पुलिस एंटी टेररिज्म स्क्वॉड) पहली प्राथमिकता में थी.’

सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ राजस्थान के मौजूदा एडिश्नल डायरेक्टर जनरल (इंटेलीजेंस) उमेश मिश्रा...फोटो सौजन्य vasundhararaje.in

सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ राजस्थान के मौजूदा एडिश्नल डायरेक्टर जनरल (इंटेलीजेंस) उमेश मिश्रा (फोटो सौजन्य: vasundhararaje.in)

जुबैदासे ज्यादा खास कुछ था ही नहीं

राजस्थान एटीएस के तत्कालीन इंस्पेक्टर जनरल और इस वक्त अजमेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक बीजू जॉर्ज जोसफ के. बताते हैं,

दरअसल हम लोगों को इंटेलीजेंस इनपुट से पता लग चुका था कि, इस गैंग को नेस्तनाबूद करने के लिए उठाए गए कदम राजस्थान की हद तक ही सीमित नहीं रहेंगे. पुलिस-अभियान की तपिश यूपी, मध्य-प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर से लेकर नागालैंड (6 राज्य) तक पहुंचनी तय थी. ऐसे में राजस्थान पुलिस ऑपरेशन लीक करवा कर कोई जोखिम उठाने की स्थिति में नही थी. जिन हथियार तस्कर और फर्जी लाइंसेस बनाने वालों के नाम सामने आ रहे थे उनमें से एक नाम जुबैर खान का प्रमुख था.

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मास्टरमाइंड यानी खुराफाती खानदान की कुंडली

जुबैर के दादा का नाम वली मोहम्मद था. जिसकी अजमेर के आनासागर लिंक रोड इलाके में ‘वली मोहम्मद एंड संस’ के नाम से आर्म-डीलर की दुकान थी. वली मोहम्मद पर भी अवैध हथियार खरीद-फरोख्त का मामला दर्ज था. वली मोहम्मद की मौत के बाद उसके मास्टरमाइंड बेटे उस्मान मोहम्मद ने अवैध लाइसेंस-हथियारों की खरीद-फरोख्त का काला-कारोबार, बेटे मोहम्मद जुबैर खान के साथ मिलकर शुरू कर दिया. इन जानकारियों के सामने आने के पहले से ही उमेश मिश्रा जानते थे कि, उर्दू में पहाड़ियों को “जुबैदा” कहते हैं. लिहाजा उन्होंने आइडिया सुझाया कि, जुबैर और कश्मीर दोनों कहीं न कहीं ऑपरेशन में आ रहे हैं. लिहाजा उन्होंने ऑपरेशन को नाम दिया ‘जुबैदा’. ताकि दूर-दूर तक किसी को ‘जुबैदा’ सुनकर कोई अंदाजा न लग सके.’

ऑपरेशन जुबैदा का किंगपिन खानदानी दलाल जुबेर खान

ऑपरेशन जुबैदा का किंगपिन खानदानी दलाल जुबेर खान

जुबैर यानी ऑपरेशन जुबैदाका पहला शिकार

‘ऑपरेशन जुबैदा’ शुरू हुआ तो, सबसे पहले राजस्थान पुलिस के काम आए एटीएस उदयपुर में तैनात खुफिया तंत्र के महारथी दबंग इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू. किसी भी मास्टरमाइंड अपराधी से भेष बदलकर उससे ‘डील’ करने में इंस्पेक्टर रत्नू की खासियत थी. इस बात से राजस्थान पुलिस के तमाम आला पुलिस अफसरान पहले से परिचित थे. हुआ भी वही जिसकी उम्मीद थी. इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू और जयपुर स्थित राजस्थान एंटी टेररिज्म स्क्वॉड में तैनात युवा इंस्पेक्टर कामरान खान की जोड़ी ने सबसे पहले जुबैर खान को दबोच लिया. यह बात है मई 2017 के मध्य की. जुबैर खान ने कबूला कि वो, हथियार रखने के शौकीन हिस्ट्रीशीटर से लेकर हलवाई तक को, फर्जी आर्म लाइसेंस बनवाकर उन्हें, हथियार मुहैया कराने के काले-कारोबार का खानदानीस (पुश्तैनी) तस्कर है. उसके आर्म डीलर दादा भी इसी कारोबार से जुड़े थे.

ऑपरेशन जुबैदा में नजीर कायम करने वाले राजस्थान पुलिस के एटीएस मुख्यालय जयपुर में तैनात इंस्पेक्टर कामरान खान

ऑपरेशन जुबैदा में नजीर कायम करने वाले राजस्थान पुलिस के एटीएस मुख्यालय जयपुर में तैनात इंस्पेक्टर कामरान खान

एक अनाड़ीके पीछे 6 राज्य की पढ़ी-लिखी पुलिस!

इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू और कामरान खान के शिकंजे में जकड़े जुबैर ने जो कुछ कबूला वो था तो सच, मगर लग एकदम अविश्वसनीय रहा था. जुबैर की निशानदेही पर अजमेर की एडिशनल पुलिस सुपरिटेंडेंट रानू शर्मा के नेतृत्व में बनी टीमों ने राजस्थान के नसीराबाद, पुष्कर, ब्यावर, पाली, भीलवाड़ा, उदयपुर, बीकानेर और मध्य-प्रदेश के देवास में एक साथ छापामारी की. चार सौ से ज्यादा फर्जी आर्म लाइसेंस जब्त किए गए. सैकड़ों हथियार पकड़े गए. पता चला कि जुबैर, लाइसेंसी हथियार की चाहत रखने वाले जरूरतमंदों (धन्नासेठ से लेकर हलवाई और हिस्ट्रीशीटर तक) को ढाई से 5 लाख रुपए तक में हथियार और फर्जी आर्म लाइसेंस मुहैया करा रहा था. जुबैर की ही निशानदेही पर राजस्थान पुलिस ने अबोहर (पंजाब) से विशाल को गिरफ्तार किया. जबकि जम्मू से राहुल को दबोचा.

सब दौलत का तमाशा था....ऑपरेशन जुबैदा में दबोचा गया विशाल आहूजा

सब दौलत का तमाशा था....ऑपरेशन जुबैदा में दबोचा गया विशाल आहूजा

राजस्थान एटीएस के मुताबिक, राहुल कश्मीर घाटी से ‘बैकडेट’ में फर्जी दस्तावेजों पर हथियार का लाइसेंस बनवाकर देता. उसी फर्जी-लाइसेंस के आधार पर राजस्थान में जुबैर अपने और उसका पिता रिवॉल्वर, बंदूक, पिस्टल जैसे घातक हथियार मुहैया कराता था. छानबीन में पता चला कि, फर्जी-लाइसेंस के आधार पर हथियार लेने वालों में ज्यादातर प्रॉपर्टी डीलर, हिश्ट्रीशीटर, कुछ बिगड़ैल किस्म/छवि वाले राजनीतिज्ञ, मॉल और मार्बल-बिजनेस के से जुडे रहीसजादे शामिल हैं.

खानदानी खुराफाती मर चुका, बेटा फरार, पोता गिरफ्तार

इस काले-कारोबार की शुरुआत अजमेर के आर्म डीलर वली मोहम्मद ने लाइसेंसी हथियारों की दुकान की आड़ में की थी. पता चला है कि, उसकी हथियारों की लाइसेंसी दुकान का लाइसेंस काफी समय से निलंबित है. इसके बाद भी वली मोहम्मद की मौत के बाद इस गोरखधंधे को आगे बढ़ा दिया बेटे उस्मान मोहम्मद ने. बेटे जुबैर खान के साथ मिलकर. एटीएस राजस्थान के आला अफसरान खुलकर मानते हैं कि, अगर इंस्पेक्टर कामरान खान और इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू जैसे खुफिया नेटवर्क के धनी जांबांज टीम में मौजूद न होते तो, इस पूरे सिंडीकेट को तबाह करना मुश्किल ही नही ना-मुमकिन था.

भेष बदलकर हथियारों के दलालों से पहली डील करने वाले राजस्थान एटीएस (उदयपुर) के दबंग इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू

भेष बदलकर हथियारों के दलालों से पहली डील करने वाले राजस्थान एटीएस (उदयपुर) के दबंग इंस्पेक्टर श्याम सिंह रत्नू

जांच सीबीआई देखे तो तमाम नामदार होंगे बदनाम

एटीएस मुख्यालय में तैनात एडिशनल एसपी बजरंग सिंह के मुताबिक, इस मामले में स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) थाने में आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है. सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि, राजस्थान पुलिस ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि, इस पूरे मामले की आगे की गहन और विस्तृत ‘पड़ताल’ केंद्रीय जांच एजेंसी यानी सीबीआई के हवाले कर दी जाए. ताकि इस गोरखधंधे में बची बाकी बड़ी मछलियों को कानून से कठोरतम सजा दिलवाई जा सके. एटीएस सूत्रों के मुताबिक इस मामले में अभी तक 60 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है.

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भाई फंसा तो कलेक्टरको काठ मार गया

ऑपरेशन ‘जुबैदा’ में रीढ़ की साबित हुए अजमेर रेंज के इंस्पेक्टर जनरल बीजू जॉर्ज जोसफ के. बताते हैं कि, ‘ऑपरेशन जुबैदा में सबसे मुश्किल काम था कश्मीर घाटी में बैठे दलालों को दबोच पाना. इसके लिए हमारी कई टीमें जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर, कुपवाड़ा, कठुआ और राजौरी में पड़ी रहीं. छानबीन में निकल कर सामने आया कि, इस पूरे नेटवर्क में कश्मीर घाटी का एक आईएएस भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं फंस रहा है. जोकि कई जिलों में कलेक्टर रह चुका है. उससे पूछताछ के लिए उचित माध्यम से कश्मीर राज्य प्रशासन से राजस्थान पुलिस ने इजाजत मांगी, जिसकी मंजूरी हासिल नहीं हो पाई. चूंकि हथियार और फर्जी लाइसेंसों के इस काले-कारोबार में कलेक्टर के एक भाई की भूमिका साफ तौर पर उभर कर सामने आ चुकी थी. लिहाजा हमने उसे गिरफ्तार कर लिया. कलेक्टर साहब का भाई इस धंधे के दलालों से हासिल रकम को बाकायदा अपने एकाउंट में डलवाकर ले रहा था.’

जब प्रॉपर्टी डीलर से हिस्ट्रीशीटर तक बने फौजी’!

बीजू जॉर्ज जोसफ के मुताबिक, ‘मोटी रकम के लालच में घिनौने खेल का मास्टरमाइंड जुबैर खान. प्रॉपर्टी डीलर से लेकर हिस्ट्रीशीटर तक को कश्मीर घाटी में बजरिए जाली कागजात ‘फर्जी-फौजी’ बनवा लेता था. इन्हीं जाली दस्तावेजों के जरिए वह (मोहम्मद जुबैर खान) जाल में फंसे शिकार को हथियार मुहैया करवा देता था. इस सिलसिले में राजस्थान पुलिस जम्मू-कश्मीर के एक ‘आर्मी पोस्ट ऑफिस’ पर भी नजर रखे हुए हैं. सामने आए इन तमाम तथ्यों से एटीएस राजस्थान ने बजरिए उचित माध्यम. दिल्ली में स्थित सेना-मुख्यालय को भी अवगत करा दिया है.

एटीएस के कदमों की आहट नागालैंड तक

इस मामले में नागालैंड के भी कुछ लोग फंस रहे हैं. पता चला है कि, इस गैंग ने सिर्फ राजस्थान के ही करीब 5000 से ज्यादा लोगों के फर्जी दस्तावेजों पर हासिल लाइसेंस जम्मू कश्मीर घाटी से बनवाकर उन्हें हथियार मुहैया कर डाले हैं. यह गोरखधंधा सन् 2007 से 2008 के बीच सबसे ज्यादा फला-फूला है. इस पूरे मामले के भंडाफोड़ में राजस्थान एटीएस के लिए ‘तुरुप’ का पत्ता साबित हुआ वो शख्स जिसने, शिकायत की थी कि उसने जुबैर खान को फर्जी लाइसेंस पर हथियार दिलवाने के लिए 12 लाख रुपए दे दिए थे.’

(लेखक वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं)

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