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‘साहिब’ की अलमारी के अंदर ‘विश्वासघात’ की सलाखों से दागी लड़की मिली!

मैना-शैलबाला एक अलमारी के पास खड़ी हुई थी. मैना ने जैसे ही साथ मौजूद हवलदार अनिल कुमार, सिपाही अनूप और सिपाही संजय (पुलिस ड्राइवर) से अलमारी खुलवाई तो, उसमें से 14-15 साल की एक नीम-बेहोश लड़की जमीन पर (फर्श) आ गिरी

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

अलमारी, तिजोरी, तहखाने जैसे अल्फाज जुबान पर या जेहन में आते ही, अकूत दौलत के मालिक किसी मोटे-तगड़े तोंद वाले, माथे पर लंबा-चौड़ा टीका, सफेद झक्क बेदाग कांचदार धोती-कुर्ता पहने किसी धन्नासेठ की छवि आंखों में तैरने लगती है. ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि, इंसानी दुनिया में यही दोनों (दौलत और धन्नासेठ) एक-दूसरे के पूरक बनकर सदियों से चले आ रहे हैं.

ऐसे में अगर मैं आपसे कहूं कि, उच्च-शिक्षित बाशिदों के शहर में किसी रसूखदार मोटी आसामी के घर अलमारी खोलने पर दौलत की जगह, लहू-लुहान नीम-बेहोश आग से दागी गई लड़की मिली! तो किसी के भी मुंह से यही निकलेगा...अरे नहीं ऐसा भी भला होता है कहीं दुनिया में? सच को भी तो मगर झुठला नहीं सकते. इंसानियत को शर्मसार करने वाली यह घटना देश के किसी दूर-दराज पिछड़े गांव की समझ बैठने की गलती मत कर बैठिए.


यह सब घटित हुआ देश की राजधानी दिल्ली से सटे, हरियाणा राज्य के पढ़े-लिखे और ‘साहिबों’ के शहर समझे जाने वाले गुरुग्राम (गुड़गांव) में. पेश है ‘पड़ताल’ की इस कड़ी में ऐसी ही रूह कंपा देने वाली सच्ची घटना की तफ्तीश. दिमाग को झकझोर कर रख देने वाली वो पड़ताल जिसमें, एक बार को तो तेज-तर्रार पड़ताली पुलिस टीम भी तकरीबन हार चुकी थी. मुखबिर खास की जिद या जरूरत से कहीं ज्यादा उसके विश्वास ने लेकिन, एक बेगुनाह मासूम को अलमारी के भीतर जिंदा ‘दफन’ होने से बचा लिया.

नाम कृष्णा कालोनी, अड्डा पापका चल रहा!

दिन बुधवार तारीख 14 अक्टूबर 2015. गुरुग्राम चाइल्ड वेलफेयर कमेटी कंट्रोल रूम को एक अनाम महिला फोन पर सूचना दर्ज कराती है. महिला द्वारा दी गई सूचना के मुताबिक, वह कृष्णा कालोनी गली नंबर-3 में रहती थी. उसके पड़ोस में मौजूद एक आलीशान कोठी/मकान से दिन हो या रात, किसी बच्चे के रोने की दिल-दहला देने वाली आवाजें आती थीं. रोने वाला बच्चा लड़की है या लड़का महिला को नहीं पता था.

सूचना मिलते ही कमेटी अध्यक्ष (चेयरपर्सन) श्रीमती शकुंतला ढुल पुलिस पोस्ट (चौकी) न्यू कालोनी (थाना गुड़गांव सिटी) से सहायक उप-निरीक्षक संजीव कुमार को कुछ महिला पुलिसकर्मियों सहित बुलाती हैं. इसके बाद शकुंतला ढुल, पुलिस और अपनी (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी) एक संयुक्त टीम बनाती है. टीम में महिला सदस्यों की संख्या ज्यादा होती है. इसकी वजह घर से आने वाली आवाजें किसी बच्चे या लड़की की थीं. यह तय नहीं था. लिहाजा टीम में पुरुष और महिला दोनों की ही बहुतायत रखी गई.

पीड़ित लड़की के बदन पर हुए अत्याचार देखकर आंखों में आंसू आ गए थे- शकुंतला ढुल चेयरपर्सन गुरुग्राम चाइल्ड वेलफेयर कमेटी

जब शिकारी खुद ही शिकारहो गए

टीम ने संभावित/संदिग्ध कोठी पर छापा मार दिया. कोठी का ‘साहिब’ दंपत्ति (मालिक-मालकिन) धन्नासेठ बिजनेसमैन और उच्च-शिक्षित था इसलिए छापा मारने पहुंची टीम को उसने दरवाजे पर ही आड़े हाथ ले लिया. जितना हो सकता था उससे ज्यादा टीम को हड़काया. एक बार को मालिक के रुतबे और उसकी धमकदार चुनौतियों के सामने छापा-मार टीम को पसीना ही आ गया. पसीना आने की वजह थी, सूचना का गलत न निकल जाने की संभावित आशंका. फिर भी सूचना की पुष्टि तो करनी ही थी. अंत में हुआ लेकिन वही, जिसके प्रति दबंग कोठी मालकिन पहले से मुतमईन और छापामार टीम आशंकित थी.

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चप्पा-चप्पा छानने के बाद भी कोठी से पीड़ित लड़का या लड़की की बरामदगी नहीं हो सकी. लिहाजा शिकार करने पहुंची छापामार टीम खुद ही शिकार हो गई. छापे के बाद खाली हाथ लौट रही टीम को, कथित ‘रसूख और इज्जतदार’ साहिब ने जी-भरकर कोसा. जितना भला-बुरा कह सकता था कहा. बे-रोक-टोक, बिना आगे पीछे की सोचे-समझे.

मुखबिर पर विश्वास मुश्किल था न-मुमकिन नहीं

छापामार टीम के खाली हाथ वापसी पर चाइल्ड वेलफेयर कमेटी चेयरपर्सन के कार्यालय में मातम छा गया. सब एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे. टीम का हर सदस्य सूचना को फर्जी मान चुका था. खबर देने वाली महिला ‘मुखबिर’ को टीम सदस्य जी भरकर कोसने लगे. अभी यह सब चल ही रहा था कि, दोबारा कंट्रोल रूम में उसी महिला का फोन पहुंचा. उस महिला ने फिर दावा किया कि, टीम खाली हाथ लौट गई है जबकि, पीड़ित उसी घर में मौजूद है.

गुरुग्राम चाइल्ड वेलफेयर कमेटी चेयरपर्सन श्रीमती शकुंतला ढुल के मुताबिक, ‘मरता क्या न करता. भले ही हमारी टीम का पहली बार का छापा असफल साबित हुआ था. मैंने सोचा हो सकता है कि, सूचना देने वाली महिला का पड़ोस वाले घर से (जिसमें टीम ने छापा मारा) मनमुटाव हो. इसलिए वो उसे परेशान करने के लिए बार-बार गलत सूचना देकर पुलिस को वहां भेजना चाहती हो. मेरा मन लेकिन सूचना देने वाली महिला की बात को हल्के में लेने को राजी नहीं थी. मेरा मानना था कि, कोई गलत महिला हमारी टीम के छापा मार कर खाली हाथ लौटने के तुरंत बाद ही दोबारा फोन करने का दम नहीं रखेगी. कुछ न कुछ तो सच्चाई या गड़बड़ है.’

लड़की बचाने को स्त्री ने जब चला तुरूप का पत्ता

शकुंतला ढुल के मुताबिक, ‘मुखबिर महिला के कंट्रोल रूम में दोबारा आए फोन के बाद,  दूसरी टीम छापा मारने को भेजना तो चाह रही थीं. समस्या लेकिन यह थी कि, पहली टीम असफलता से बुरी तरह टूट चुकी थी. ऐसे में यक्ष प्रश्न यह था कि भला, अब उसी जगह दोबारा छापा मारने जाने का दुस्साहस या भागीरथ प्रयास करके बिल्ली के गले में घंटे बांधने की जिम्मेदारी या रस्म कौन निभाए?’ इन्हीं तमाम सवालों से माथा-पच्ची करते-करते, हरियाणा राज्य में कई साल से बाल अधिकार कानूनों का पालन कराने की महारथी और अनुभवी शकुंतला ढुल ने पहली वाली छापा-मार टीम में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया. यह परिवर्तन कहने-देखने में जरूर हल्का-फुल्का था. बाद में यह परिवर्तन कितना ज्यादा कामयाब और वजनदार साबित हुआ पाठकों को यह आगे मालूम चलेगा.

कम उम्र मगर पारखी नजर ने बचा ली जिंदगी

उस हैरतंगेज छापे और पेचीदा पड़ताल के बारे में बताते हुए करीब दो साल बाद भी सिहर उठती हैं शकुंतला ढुल और बताती हैं उस रात को याद करते हुए, ‘हम लोग तो सब के सब (छापा मार टीम में शामिल सदस्य) जीवित थे. कोई भी परेशानी में नहीं था. हम सब तो अपने-अपने घरों में ही थे. रात काली होने की शिकन तक हमारे चेहरों पर नहीं थी. बशर्ते मुसीबत में फंसी एक जान की जिंदगी सुरक्षित हो सके तो. एक परिपक्व महिला होने के नाते, जो मेरी (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी) पहली प्राथमिकता थी.’

छापे के दौरान घर से उसका साहिब मय बीबी-बच्चों के साथ गायब था. वो किसी फंक्शन में गया हुआ था. आगे-पीछे की कुछ नहीं सोची. गुरुग्राम शहर (सिटी) थाने से कम-उम्र मगर तेज-तर्रार दिमाग वाली महिला कॉन्स्टेबल मैना और शैलबाला को मैंने दोबारा भेजी जा रही टीम में शामिल कर दिया. महिला सिपाही मैना-शैलबाला की कैफियत से मैं पहले से वाकिफ थी. वे दोनों उम्र में भले ही छोटी और कम अनुभवी थीं लेकिन, उनकी नजर पारखी थी.’

थाना गुरुग्राम शहर जिसमें आरोपियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ

अलमारी से दौलतकी जगह निकली जिंदा लाश!

महिला कॉन्स्टेबल मैना-शैलबाला (उस वक्त गुड़गांव शहर थाने में तैनात) ने पहले छापा मारने गई टीम से घर के चप्पे-चप्पे की जानकारी घर में घुसने से पूर्व ही ले ली. दोबारा छापे में टीम के बाकी सदस्य तो घर के दबंग और हड़काऊ मालिक को बातों में उलझाकर घेरे रहे. इस बीच पूर्व निर्धारित रणनीति के तहत टीम में शामिल महिला सिपाही मैना-शैलबाला को मकान के कोने-कोने को छान मारने का पूरा मौका दिला दिया. बजरिए अपनी पारखी नजर उन दोनों ने चंद मिनट में ही आवाज देकर घर में मौजूद टीम के सभी साथियों को अपने पास पहली मंजिल पर बुला लिया.

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मैना-शैलबाला एक अलमारी के पास खड़ी हुई थी. मैना ने जैसे ही साथ मौजूद हवलदार अनिल कुमार, सिपाही अनूप और सिपाही संजय (पुलिस ड्राइवर) से अलमारी खुलवाई तो, उसमें से 14-15 साल की एक नीम-बेहोश लड़की जमीन पर (फर्श) आ गिरी. यह नजारा देखते ही पहली बार छापा मारने पहुंची टीम को हड़का रहा घर का पढ़ा-लिखा दौलतमंद और मोहल्ले के रसूखदार मालिक का चेहरा सफेद पड़ गया और हलक सूख गया.

आंसू पी गई वरना शर्तिया तफ्तीश तबाह हो जाती

पुलिस और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी टीम के साथ लड़की को तत्काल गुरुग्राम सिविल हॉस्पिटल में इलाज और मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया. डॉक्टरी जांच में पता चला कि, लड़की के बदन को कई जगह किसी गरम चीज से दागा गया था. बदन पर पिछले हिस्से में चाकू (कोई तेजधार चीज) मारे जाने के निशान थे. जबकि चेहरा बता रहा था कि, लड़की को गुम चोटें भी पहुंचाई गई हैं. बदन पर कई जगह मौजूद सूजन गवाह थी लड़की के ऊपर किए गए अत्याचारों की.

अलमारी के भीतर से जब पीड़िता को मुक्त कराया गया तो इस हालत में थी

मेडिकल रिपोर्ट तैयार होने के बाद रात में ही लड़की को सीधे वेलफेयर चेयरपर्सन शकुंतला ढुल के सामने पेश किया गया. जिंदा लाश में तब्दील हो चुकी बेहाल मासूम पर हुए अत्याचार की दास्तान सुनकर शकुंतला ढुल की आंखों में भी आंसू आ गए. वे अपने आंसूओं को आंखों में ही सुखा ले गईं. यह सोचकर कि बेसहारा, पीड़ित लड़की और टीम की बाकी महिला सदस्य अगर टूट गईं तो, तफ्तीश हल्की होकर मामले में फंसा एक पढ़ा-लिखा मगर फितरती दिमाग दौलतमंद ‘साहिब’ और उसकी क्रूर बीबी साफ बच निकलेगी.

महिला अफसर के घर में आधी रात को वो सब हुआ जो....

सरकारी अफसर-बाबूओं से आज के वक्त में सहानुभूति की उम्मीद. मतलब अपनी बेइज्जती का इंतजाम खुद ही कराने से कम नहीं होता है. ऐसी सोच वाले समाज में उस रात गुरुग्राम की एक आला महिला अफसर के घर में जो कुछ हुआ, इस पूरी कहानी में वो भी, कम चौंकाने वाला नहीं है. एक उस लड़की के साथ, जो आधी रात को उस महिला आला सरकारी अफसर (जुडिशल पॉवर) के घर में पहुंचाई गई. तमाम बाकी सरकारी कारिंदों की भीड़ द्वारा. लहूलुहान नीम-बेहोशी के आलम में. कई दिन की भूखे पेट. यह सरकारी अफसर कोई और नहीं खुद गुरुग्राम चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की चेयरपर्सन शकुंतला ढुल का ही घर था.

आधी रात के वक्त लड़की को उस हॉल में कमेटी दफ्तर में ले जाना उचित नहीं होता. इसलिए शकुंतला ढुल ने घर को ही कमेटी कार्यालय का रूप दे दिया. पूरे मामले की सुनवाई हुई. बकौल शकुंतला ढुल, ‘लड़की की हालत देखकर आंखों में आंसू आ गए. मगर मैं खुलकर रो भी नहीं सकी. यह सोचकर कि, लड़की और कमजोर हो जाएगी. मैंने घर में ही उसे रात को पहले खाना बनाकर खिलाया. फिर उसके ज़ख्मों को गिनकर उनकी फेहरिस्त तैयार की.

जिनके धर्म में चीटी मारना पाप उन्होंने ही....

बकौल शकुंलता ढुल, ‘जब उस बच्ची को मैंने खाना बनाकर खिला दिया तो उसकी, दिल दहला देने वाली उसके बदन पर गुजरी वो दास्तान (मुंहजुबानी) सुनी जिसके, जिम्मेदार थे खुद को पढ़े-लिखे और धन्नासेठ समझने वाले एक दंपत्ति की क्रूरता की हदों के पार चले जाने की घिनौनी हकीकत.’ इंसानियत को शर्मसार करने वाला यह कुकृत्य पेश किया है उस समाज से जुड़े दंपत्ति ने जिनके, धर्म में चीटी मारना भी पाप समझा जाता है. छानबीन के बाद गुरुग्राम सिटी थाना पुलिस ने आरोपी पति को गिरफ्तार कर लिया. आरोपी की पत्नी उस वक्त मौके पर हाथ नहीं आई थी. जिस दिन पीड़ित को बंधन से मुक्त कराया उस दिन भी दंपत्ति उसे सुबह से ही घर में कैद करके चले गए थे. पूरे दिन से और छुड़ाए जाने के वक्त तक लड़की के मुंह में न रोटी का एक निवाला पहुंचा था. न जिंदा रहने के वास्ते हलक में एक बूंद पानी की पहुंची थी. घर का ताला भी लगा हुआ था.

आधी रात को गुरुग्राम चाइल्ड वेलफेयर कमेटी चेयरपर्सन शकुतंला ढुल के घर में खाना खाती हुई पीड़ित लड़की

शौहर बेगम से और बेगम मासूमसे थी खौफजदा

मासूम बच्ची को यह दंपत्ति एक एजेंसी से घरेलू काम-काज के वास्ते लेकर आए थे. कई महीने से लड़की को तनख्वाह (वेतन) नहीं दी गई थी. पेट को रोटी कम, बल्कि आरोपी दंपत्ति द्वारा पेट पर अक्सर डंडों की बेरहम चोटें दी जाती थीं. जो कुछ हाथ में आया उसी से बदन को तोड़ना शुरू कर देता था क्रूर दंपत्ति. अलमारी से बरामद की गई लड़की को दंपत्ति अपने घर हुए जुड़वां बच्चों की देखभाल के बहाने लेकर आए थे. पीड़ित लड़की मूलत: थाना डुमरी जिला गुमला (झारखंड) की रहने वाली थी.

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शकुंतला ढुल के मुताबिक, ‘लड़की ने बताया कि ‘साहिब’ (घर का मुखिया) बीबी से हर वक्त खौफजदा रहता था. वो पत्नी की किसी भी और बड़ी से बड़ी गलत बात का विरोध करने की हिम्मत नहीं रखता था. यह अलग बात है कि आरोपी, पति जिस बीबी से भयभीत रहता था, वही बीबी इस मासूम लड़की से खौफजदा रहती थी. आलम यह था कि, घर में मेहमान आने से पहले ही मालकिन नौकरानी को घर के पीछे बंद कर देती थी. उसे डर था कि कहीं, नौकरानी अपने ऊपर हो रहे जुल्म-ओ-सितम की दास्तां घर पहुंचे मेहमान को न सुना बैठे.

इस पड़ताल के अंत में देने के लिए...

इस ‘संडे क्राइम स्पेशल’ में उस डिप्टी एसपी से जरूर हों रु-ब-रु, जो थाने में सोता था जमीन पर बिछाकर अपनी चटाई. तकिया की जगह सिर के नीचे लगाता था पत्थर का सिराहना. खाने में खुद स्टोव पर पका कर खाता था लौकी-तुरई की सब्जी. कंधों पर घुमाने वाली पब्लिक जिसे कहती थी ‘भगत जी’ और छूती थी पांव. सूबे के तमाम पुलिस महानिदेशक जिसे, समझते थे हाड़-मांस में भी लोहे सा फौलाद 24 कैरेट का ईमानदार और पुलिस महकमे के दिल की ‘सांस-धड़कन’ और कानून का निडर ‘पहरेदार’.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)