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नैना साहनी तंदूर कांड : एक लाश की दो ‘पोस्टमॉर्टम-रिपोर्ट’ ने बदल डाली थी 'हत्याकांड' की दिशा

नैना साहनी की हत्या करने वाले सुशील शर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट ने रिहाई दे दी है. पढ़िए कैसे इस केस की दो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने पूरी दिशा बदल दी थी

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

‘2-3 जुलाई 1995 की रात. जगह थी नई दिल्ली जिले में स्थित होटल अशोक यात्री निवास के बाहरी कोने के एक हिस्से में मौजूद रेस्तरां 'बगिया'. नाइट पेट्रोलिंग पर जा रहे दिल्ली पुलिस के सिपाही अब्दुल नजीर गुंजू ने औरत के चीखने की आवाज सुनी. मौके पर पहुंचे अब्दुल को मिली मदर डेयरी के पास सड़क किनारे फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाली वृद्धा अनारो देवी.

अनारो इसलिए चीख रही थी क्योंकि उसे, रेस्तरां बगिया के तंदूर से उठ रही भीषण लपटें दिखाई दे रही थीं. पहली नजर में अनारो और सिपाही कुंजू समझे कि रेस्तरां में भीषण आग लग गई है. लिहाजा आगे-पीछे की कुछ बिना सोचे. वक्त गंवाए बिना जान जोखिम में डालकर, सिपाही कुंजू अकेला ही दीवार कूदकर धधकते हुए तंदूर के पास जा पहुंचा. उसके बाद जो सच्चाई पता चली वह थी 'नैना-साहनी-हत्याकांड'. वो हत्याकांड जिसने हिला दिया था, 1990 के दशक में हिंदुस्तानी जनमानस को.


उस रात वक्त ने लिख दिया था, अपराध की किताब का वो काला अध्याय. आने वाले वक्त में हमारी-आपकी पीढ़ियां शायद ही जिस पन्ने को, कभी फाड़कर फेंक या भूल पाएंगीं! ‘पड़ताल’ की इस खास किश्त में पेश उस भयावह काली रात का गवाह मैं यानि यह लेखक खुद भी बना था.’

लाश औरत की थी या आदमी की अबूझ सवाल

कैसा मंजर था उस खूबसूरत रेस्तरां बगिया में उस डरावनी रात का? कैसे शांत हुई उस रात 'तंदूर' की धधकती भीषण आग? नैना साहनी के क्षत-विक्षत अंगों को कैसे बचा पाया था, बहादुर सिपाही अब्दुल नजीर कुंजू उस धधकते लाल तंदूर की लपटों से? और कैसे नजीर कायम कर दी सड़क किनारे सब्जी बेचने वाली अदना सी और बूढ़ी अनारो ने? और कैसे नैना की मांग में कभी सिंदूर भरने वाला सुशील शर्मा कानून की देहरियों से रेंगता हुआ जा पहुंचा था तिहाड़ जेल की सलाखों के पीछे तक? ऐसे ही तमाम सवाल किसी के भी जेहन में आने लाजिमी हैं.

दरअसल सिपाही कुंजू को जैसे ही तंदूर में किसी इंसानी लाश के भुनने की बदबू आई. वो सतर्क हो गया. उसने वायरलेस सेट पर मैसेज फ्लैश कर दिया. सूचना पाकर तमाम आला-पुलिस अफसरान मौके पर पहुंच गए. लाश को सील करके लेडी हॉर्डिंग मेडिकल कॉलेज (सुचेता कृपलानी हॉस्पिटल) भिजवा दिया गया. तंदूर से आधी भुनी मिली लाश औरत की है या फिर आदमी की! यह अब तक किसी को पता नहीं चल सका था.’

लाश किसी अनजान महिला की थी

अगले दिन दिल्ली पुलिस ने तंदूर से मिली लाश का पोस्टमॉर्टम करा दिया. पोस्टमॉर्टम के दौरान फॉरेंसिक एक्सपर्ट को पता चला कि लाश एक महिला की है. नई दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि महिला की पहले हत्या कहीं और की गई. उसके बाद उसे नेस्तनाबूद करने के इरादे से धधकते तंदूर में भून डाला गया.

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लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से ही खुलासा हुआ कि महिला के अंगों को हत्या के वक्त बुरी तरह तेजधार हथियारों से काटा-चीरा-फाड़ा भी गया होगा! साथ ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा गया कि हत्या जघन्य तरीके से की गई है. अब पुलिस के सामने समस्या थी महिला की पहचान करने-कराने की.

माकूल कब्र के इंतजार में भटकती वो ‘लाश’

छानबीन में पुलिस को अब तक पता चल चुका था कि लाश नई दिल्ली जिले के गोल मार्केट जैसे पॉश एरिया में स्थित सरकारी फ्लैट संख्या 8/2ए में रहने वाली नैना साहनी की थी. नैना साहनी के फ्लैट में रात करीब 8-9 के बीच पड़ोसियों ने पहले चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनी थीं. बाद में गोली चलने की आवाज भी फ्लैट के बाहर तक गूंज उठी थी.

गोली की आवाज को पड़ोसियों ने पटाखों की आवाज सुनकर नजरंदाज कर दिया. पड़ोसियों के जेहन में मगर यह सवाल रात भर कौंधता रहा कि, आखिर फ्लैट के अंदर भला कोई पटाखे क्यों चलाएगा? इतना ही नहीं अपने अपने फ्लैटों में दुबके बैठे कुछ लोगों ने देखा कि नैना के फ्लैट से शोर-शराबा शांत हो चुका था.

उसके कुछ देर बाद ही एक साया सा रात के अंधेरे में किसी भारी-भरकम बड़े से बैग में कोई चीज जमीन पर ही घसीटता हुआ सड़क तक पहुंचता है. सड़क पर पहुंचते ही वो अजनबी पहले से तैयार खड़ी कार की डिग्गी में उस बैग को छिपाकर कार आगे बढ़ा देता है.

जब बात निकली तो दूर तलक गई

‘पड़ताल’ में जुटी पुलिस को धीरे-धीरे मुखबिरों से पता चल गया कि उस रात हुए पूरे कांड का मास्टरमाइंड दिल्ली यूथ कांग्रेस का दिल्ली राज्य का प्रेसिडेंट सुशील शर्मा है. जबकि सुशील शर्मा के अशोक यात्री निवास परिसर में ‘बगिया’ रेस्तरां के धधकते तंदूर से मिली अधजली लाश किसी और की नहीं सुशील की पत्नी नैना साहनी की थी.

चार-पांच दिन की भागदौड़ के बाद बेंगलुरु से दिल्ली पुलिस ने सुशील शर्मा को दबोच लिया. तब पता चला कि चाल-चलन पर शक के चलते नयना साहनी को रूह कंपा देने वाली मौत उस रात दी गई थी. अब तक पुलिस ने नयना साहनी के शव को किसी के हवाले नहीं किया था. गिरफ्तारी के बाद सुशील से पता चला कि नैना की हत्या सिर में गोली मारकर की थी.

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कार की डिग्गी में रखकर वो लाश को आईटीओ स्थित यमुना में फेंकने गया था. वहां पर ट्रैफिक ज्यादा होने के कारण वो लाश नहीं फेंक सका. लिहाजा लाश को ठिकाने लगाने का उसके दिमाग में वो प्लान आया जिसने, तंदूर कांड जैसे दिल दहला देने वाले कांड को अंजाम दे डाला.

मुजरिम ने ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर लगाया निशान!

जहां तक मुझे याद आ रहा है उसके मुताबिक, सुशील शर्मा से मिली जानकारी ने पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की) पर ही सवालिया निशान लगा दिया था. जिसमें हत्या के वक्त नैना के हाथ-पैर-सिर काटने तक की जानकारी लिख-भर रखी थी. जबकि मुख्य आरोपी सुशील शर्मा ने उस पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को पूरी तरह से नकार दिया था.

लिहाजा दिल्ली पुलिस ने नैना के अधजले शव का दुबारा पोस्टमॉर्टम कराने का प्लान बनाया. दिल्ली पुलिस के आग्रह पर उप-राज्यपाल ने नैना की लाश के पोस्टमार्टम हेतु सब्जी मंडी मोर्च्यूरी (पोस्टमॉर्टम हाउस) के प्रमुख डॉ. भरत सिंह (लोक नायक अस्पताल के रिटायर्ड मेडिकल सुपरिंटेंडेंट) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. टीडी डोगरा का ‘विशेष-पुर्न-पोस्टमॉर्टम-पैनल’ बना दिया. पैनल का चेयरमैन बनाया गया डॉ. भरत सिंह को.

दूसरी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने पलट दिया पासा

जमाने से जा चुकी नैना साहनी की हत्या के आरोपी और उम्रकैद के सजायाफ्ता सुशील शर्मा को रिहा करने का कानूनी आदेश दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी कर दिया है. लिहाजा ऐसे में इस लेखक ने बात की 1995 में यानि अब से 23 साल पहले नैना की क्षत-विक्षत अधजले अंगों (लाश) का दुबारा पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉ. भरत सिंह से. जिनकी लिखी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने नैना के पति को सजायाफ्ता मुजरिम करार दिलवाने में नजीर कायम की. बकौल डॉ. भरत सिंह, ‘मैंने और डॉ. डोगरा ने जब नैना की लाश देखी तो वो बुरी तरह जल-सड़ चुकी थी. पहली नजर में उसे खोलकर देख पाना असंभव सा प्रतीत हो रहा था. लिहाजा मैंने लाश के सभी टुकड़ों का एक्सरे कराया. जब सिर और गले का हिस्सा खोलकर देखा तो दोनो जगहों पर दो गोलियां घुसी मिलीं. एक गोली गर्दन में. दूसरी सिर के सामने वाले हिस्से से घुसकर पीछे की ओर जाकर फंस गई थी.

एक फॉरेंसिक साइंस के दो सच और झूठ!

डॉ. भरत सिंह बताते हैं, ‘जबकि लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में गोली (गोलियां) लगने-मिलने का दूर-दूर तक कहीं उल्लेख ही नहीं था. साथ ही नैना की हत्या जघन्य तरीके से की गई है. हत्या हाथ-पैर-गर्दन तथा शरीर के अन्य अंग काटकर की गई है. यह भी मेरी और डॉ. डोगरा द्वारा किए गए दूसरे पोस्टमॉर्टम में कहीं साबित नहीं हुआ. दरअसल जघन्य हत्याकांड और लाश के टुकड़े करने की बात पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उल्लिखित की गई थी, वह सरासर गलत थी. नैना की हत्या वास्तव में गोली मारकर की गई थी. गोलियां बरामद भी हुईं. साथ ही लाश के टुकड़े तो तंदूर की धधकती आग में जलने की वजह से हो गए थे. न कि काटे जाने से. मेरी और डॉ. डोगरा की रिपोर्ट के आधार पर ही तमाम अदालतों ने सुशील शर्मा को मुजरिम करार दिया.'

भरत सिंह

भरत सिंह आगे बताते हैं, 'इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज वाली पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक मामले को 'जघन्य' मानने से इंकार कर दिया. साथ ही नैना की हत्या को आवेश (क्रोध) में उठाए गए घातक कदम की परिणति ही माना.’ मेरे अनुमान-अनुभव और अब तक ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे मामले के मुताबिक. देखा जाए तो, दूसरी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (डॉ. भरत सिंह और डॉ. टीडी डोगरा पैनल) ने ही सुशील शर्मा को फाँसी के फंदे से बचा लिया. इतना ही नहीं. दूसरी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने ही उसे पत्नी की हत्या का आरोपी साबित करके 23 साल से भी ज्यादा जेल में सजायाफ्ता मुजरिम के रूप में काटने को भी मजबूर कर दिया था. इसमें भी संदेह नहीं.

(लेखक वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं)