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जन्मदिन विशेष नारायण मूर्ति : पत्नी से उधार लेकर पूरा किया इंफोसिस का सपना

इंफोसिस को दिग्गज आईटी कंपनियों की जमात में शामिल कर के मूर्ति ने साबित कर दिया है कि कोई भी सपना नामुमकिन नहीं होता है

Pratima Sharma

किसी ने सच कहा है कि हर कामयाब पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है. यह बात इंफोसिस की नींव रखने वाले नारायण मूर्ति पर पूरी तरह ठीक बैठती है.

नारायण मूर्ति ने पत्नी सुधा और 6 सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल के साथ मिलकर 1981 में इंफोसिस की शुरुआत की थी. मूर्ति विजनरी और काबिल लीडर हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन वो प्यार करने और उसे निभाने में भी आगे हैं, यह बात बहुत कम लोगों को पता है.


ऐसी थी दोनों की प्रेम कहानी

नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी सुधा की मुलाकात पुणे में हुई थी. इन दोनों की मुलाकात जी के प्रसन्ना ने कराई थी, जो अभी विप्रो के चीफ हैं. सुधा प्रसन्ना से पढ़ने के लिए किताबें लिया करती थीं. प्रसन्ना की ज्यादातर किताबों पर मूर्ति का नाम लिखा होता था. इन किताबों के जरिए ही सुधा के मन में नारायण मूर्ति की एक बिंदास इमेज बन गई थी. लेकिन सुधा जब मूर्ति से मिलीं तो वो बहुत शर्मीले और संकोची निकले.

एक दिन नारायण मूर्ति ने सभी दोस्तों के साथ सुधा को भी डिनर पर बुलाया. ग्रुप में अकेली लड़की होने की वजह से सुधा ने मना कर दिया. लेकिन नारायण के बार-बार जिद करने पर वह आने को राजी हो गईं.

डिनर की अगली सुबह सात बजे सुधा को पास के ही दर्जी के पास जाना था. जब वह बाहर निकलीं तो उन्होंने देखा की नारायण मूर्ति खड़े हैं. दोनों में इस बात को लेकर नोंकझोंक हुई कि डिनर के दौरान सुधा ने ही बताया था कि वह सुबह 7 बजे टेलर के पास जाएंगी. जबकि सुधा का कहना था कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था. इसी बात के बाद दोनों दोस्त बन गए.

बातों और किताबों से शादी तक

बातों और किताबों के साथ ही दोनों की दोस्ती शादी की बात तक पहुंच गई. एक दिन मूर्ति ने सुधा को शादी के लिए प्रपोज किया. सुधा ने उस वक्त जवाब दिया था कि उनके पिता किसी नेता या ऐसे वामपंथी से उनकी शादी नहीं करेंगे, जिसकी नौकरी स्थायी न हो.

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लेकिन सुधा ने हिम्मत कर के अपने पिता से नारायण मूर्ति को मिलवाने का फैसला किया. सुबह 10 बजे का वक्त तय हुआ था लेकिन दोपहर 12 बजे लाल शर्ट में नारायण सुधा के घर पहुंचे. रास्ते में भारी जाम था, लिहाजा वो टैक्सी पर काफी पैसे खर्च कर के पहुंचे. सुधा के पिता ने पूछा कि वो अपने जीवन में क्या करना चाहते हैं. नारायण मूर्ति ने जवाब दिया, ‘कम्युनिस्ट पार्टी का नेता बनना चाहता हूं और एक अनाथालय खोलना चाहता हूं.’ इस जवाब के बाद शादी के लिए पिता की हामी तो मिलने से रही.

कैसे राजी हुए सुधा के पिता 

सुधा ने अपने पिता से कहा था कि वह नारायण मूर्ति से शादी नहीं करेंगी लेकिन फिर वह किसी से भी शादी नहीं करेंगी. इसी बीच 1977 में नारायण मूर्ति मुंबई में पटनी कंप्यूटर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए. उन्होंने सुधा से कहा कि वह यह नौकरी लेने से पहले शादी करना चाहते हैं कि क्योंकि इसके बाद वो अमेरिका जाने वाले है. इस नौकरी से खुश होकर सुधा के पिता ने भी शादी के लिए हामी भर दी.

पत्नी के सपोर्ट से शुरू किया इंफोसिस

1981 में मूर्ति इंफोसिस शुरू करना चाहते थे. लेकिन उनके पास न पैसा था न ही कारोबारी अनुभव. वो लोग मुंबई में एक सुकून वाली जिंदगी जी रहे थे लेकिन नारायण मूर्ति पर इंफोसिस का जुनून सवार था.

मूर्ति के पैशन को देखकर सुधा मूर्ति ने उन्हें अपनी जमा-पूंजी से 10 हजार रुपए दिए. ये पैसे उन्होंने बुरे वक्त के लिए बचा रखा था. सुधा ने कहा, ‘मैं तुम्हें तीन साल की छुट्टी देती हूं. इन तीन साल तक मैं घर और बच्चों को संभाल लूंगी. तुम्हें जो करना है करो लेकिन तुम्हारे पास सिर्फ 3 साल हैं.’

इंफोसिस और कामयाबी

इंफोसिस और इसके कर्मचारियों के लिए मूर्ति एक ऐसे शख्स हैं जिनके अनुभवों से कंपनी ग्रोथ के नए मुकाम हासिल कर रही है. 1999 में इंफोसिस की लिस्टिंग नैस्डेक स्टॉक एक्सचेंज में हुई. यह भारतीय कारोबार जगत और खास तौर पर एन आर नारायण मूर्ति के लिए रेनसां का वक्त है. नैस्डेक में लिस्ट होने वाली इंफोसिस पहली कंपनी है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि उस वक्त बेंगलुरु की इस सॉफ्टवेयर कंपनी के को-फाउंडर मूर्ति ही होरो थे.

मीडिल क्लास फैमिली से आए मूर्ति में रत्ती भर का अभिमान नहीं है. अगर आप इंफोसिस के कर्मचारी हैं तो मुमकिन है कि इंफोसिस की कैंटीन में मूर्ति आपको थाली की लाइन में मिल जाएं. आपके लिए यह बहुत हैरान करने वाला पल हो सकता है क्योंकि कॉरपोरेट जगत में आम तौर पर कंपनी के सीईओ और चेयरमैन के लिए डाइनिंग रूम और वॉशरूम अलग होते हैं.

अपने रहने और कामकाज के स्टाइल से मूर्ति ने न सिर्फ इनवेस्टरों बल्कि अपने कर्मचारियों में भी अपनी एक अलग जगह बनाई है.

एक लीडर के तौर पर मूर्ति का विजन बहुत साफ था. यही वजह रही है कि एक छोटी एंटरप्राइज इंटरनेशनल मार्केट में अपनी पहचान बना पाया. इंफोसिस की आमदनी आज 10.21 अरब डॉलर पहुंच चुका है. मूर्ति 2002 से 2011 तक इंफोसिस के चेयरमैन रहे हैं.

इंफोसिस को कामयाबी के मुकाम पर पहुंचाने के बाद मूर्ति ने 2011 में रिटायरमेंट ली थी. मूर्ति 21 साल तक कंपनी के सीईओ रहे. कंपनी के शेयर में कर्मचारियों को हिस्सेदारी देने वाली यह पहली कंपनी है.