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सेंसरशिप की गुलामी से कब मिलेगी सिनेमा को आजादी?

भारत की आजादी के 70वें साल पर पढ़िए, अभिनेता मनोज कुमार के देश के युवाओं के नाम संदेश.

Manoj Kumar

आप सभी को मनोज कुमार का नमस्कार,

कहते हैं साहित्य समाज का आईना हैं और अब फिल्मों ने भी उसी आईने की शक्ल ले ली है. पूरी दुनिया में जब से फिल्मों का प्रचलन शुरू हुआ, आप ये मान लीजिए कि फिल्मों ने साहित्य की जगह ले ली. क्योंकि फिल्में उस समाज की घटनाओं से प्रभावित होकर बनती हैं या फिर कुछ फिल्में साहित्य से सहारा लेकर भी बनती हैं. तो आज के युग में ये माना तो जा ही सकता है कि फिल्में ही अब समाज का आईना हैं. बस नजरें उठा लीं और मुलाकात कर ली.


पिछले 100 साल में हिंदी सिनेमा करीब-करीब पूरा बदल गया है. अब बड़ी-बड़ी मशीनें हैं ग्राफिक्स हैं अब डायरेक्टर की कल्पना की उड़ान के लिए और भी दूसरे साधन हैं. लेकिन हमारे जमाने में ऐसा नहीं था, न तो इतने साधन थे और न ही इतनी तकनीक, इसलिए हमारी फिल्मों में अगर कुछ कहने के लिए होता था तो वो थी कहानी, जो मुझे आज की फिल्मों में कम ही नजर आती है.

कहानी के साथ प्रयोग करने की बजाय हमारे फिल्ममेकर्स ने तकनीक के साथ प्रयोग किए हैं. जो फिल्मों की एक विधा के लिए अच्छी बात है लेकिन कहानी से पकड़ खोने की कीमत हिंदी सिनेमा को आज चुकानी पड़ रही है.

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आज अच्छी कहानियों के लिए हमारा सिनेमा दुनियाभर में देख रहा है. आजादी के बाद सिनेमा को जितनी तरक्की करनी चाहिए थी, उतनी जाहिर तौर पर नहीं हुई है वर्ना आज का हमारा युवा हॉलीवुड फिल्मों का इतना दीवाना नहीं होता.

फिल्मों के बिजनेस की भी बात करें तो मैं जहनी तौर पर कभी बिजनेस की सोच रखने वाला आदमी नहीं रहा, लेकिन जो आज सुनता हूं, देखता हूं उससे इतना तो पता चलता है कि फिल्मों के बिजनेस के लिए जो कोशिशें हम आज कर रहे हैं वो काफी नहीं हैं. एक विदेशी फिल्म आती है और वो हमारे यहां से सैंकड़ों करोड़ रुपए का बिजनेस करके चली जाती है. क्या हमारी फिल्में इतनी कॉम्पिटिटिव हैं कि वो विदेशों में जाकर उनकी टक्कर में खड़ी भी हो सकें.

ये स्वामी विवेकानंद और गांधी की धरती है जनाब, आप कॉन्टेंट की बात करते हैं तो शायद इस बात को भूल गए हैं कि जब इन महान लोगों ने विदेश की धरती पर कदम भर रखा था तो वहां का पूरा समाज इन लोगों के पीछे हो लिया था. पूरी दुनिया को कॉन्टेंट की समझ दिखाने वाला ये ही देश है. हमारे रामायण, महाभारत, गीता इन सबमें इतना कुछ भरा पड़ा है कि पूरी दुनिया ऐसे ज्ञान के लिए आज भी हमारी तरफ ही देखती है.

आजकल फिल्मों में सेंसरशिप का मुद्दा काफी गरमाया हुआ है. मैं खुले तौर पर इस बात की वकालत करता हूं कि सेंसरशिप फिल्मों में होनी ही नहीं चाहिए. आपने एक दायरा बांध दिया है कि लीक से हटकर मत सोचो. लीक में रहकर ही सोचो और लकीर के फकीर बने रहो.

रोटी कपड़ा और मकान में मैंने गैंगरेप का शिकार हुई मौसमी चटर्जी को अपनाया था, आज आप रेप सीन्स के सेंसरशिप की बात करते हैं. समाज वहीं खड़ा है कितना आगे बढ़ा है ये सोचने वाली बात है.

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आजादी के 70 साल पूरे होने के मौके पर मेरा संदेश आप सभी के लिए ये ही है, खासकर नौजवान पीढ़ी के लिए कि वो अपने अंदर झांके, उनमें अटूट संभावनाएं भरी पड़ी हैं, ऐसा नहीं है कि सब कुछ पतित हुआ है, इस देश के नौजवानों ने दुनिया के कोने-कोने में जाकर अपनी पहचान बनाई है. तो क्या हम ऐसी ही खालिस पहचान वाली फिल्में नहीं बना सकते. जरूर बना सकते हैं, बस जरूरत है अपने टैलेंट को पहचानने की.

आजादी के जश्न को सीरियस होकर मनाएं, हर किसी को इस दिन इस बात का इल्म कराने की जरूरत है कि हमें कितनी मुश्किलों से ये आजादी मिली है. और ये काम अकेले किसी एक आदमी या सरकार का नहीं है कि सिर्फ उनकी जिम्मेदारी है आजादी का एहसास कराना. हर घर में ये जश्न मनना चाहिए, हर किसी को अपने देश की आजादी पर गर्व होना चाहिए और ये सब दिल से होना चाहिए. आप मेरी फिल्म शहीद भगत सिंह, क्रांति, पूरब और पश्चिम, उपकार जो भी देखेंगे हर किसी में ये ही संदेश दिया है कि अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं, सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं.

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इसी संकल्प के साथ आगे बढ़िए कि हमने अगर ये आजादी नहीं पाई है तो जिन शहीदों ने हमें ये सौभाग्य दिलवाया उनकी कुर्बानी जाया ना जाए. हम उनके सपनों का भारत बनाने के लिए काम करें. हमारे युवाओं में देश के लिए एक जज्बा होना चाहिए जो आजकल काफी कम देखने को मिल रहा है. खुद के बारे में सोचने के साथ क्या कुछ वक्त हम देश के बारे में नहीं सोच सकते और अगर नहीं सोच सकते तो फिर इस आजादी के जश्न पर इस बात का संकल्प लीजिए कि सोचेंगे और हर दिन सोचेंगे ताकि खुली हवा में सांस लेना, आजाद भारत की हवा में सांस लेना क्या होता है इसका एहसास पल-पल स्मरण रहे. जय हिंद, भारत माता की जय.

(भारत कुमार के नाम से मशहूर और हिंदी सिनेमा में देशभक्ति के प्रतीक मनोज कुमार इस लेख के माध्यम से देश के युवाओं के नाम संदेश लिख रहे हैं.)