एनआरआई यानी अप्रवासी भारतीय पूरे उत्साह के साथ स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं. इस भावना को अलग-अलग दूतावासों में होने वाले ध्वजारोहण समारोह तक पहुंचाएंगे. बेशक हर साल होने वाली यह एक जैसी घटना है. इस दौरान शौकिया तौर पर सांस्कृतिक उत्सवों में प्रयोग होते रहते हैं. किसी वजह से इस आयोजन में मजा आता रहा है, लेकिन यह सब बहुत उदासीन और गंभीर प्रकृति का रहता आया है.
खाड़ी देशों में वो राष्ट्रपति के भाषण के प्रतियों को ले आते हैं और उसमें लिखे हर शब्द को बोलकर पढ़ते हैं. 15 अगस्त के दौरान इस वार्षिक शान का हिस्सा बनकर लोग खुद को बधाई देने में व्यस्त रहते हैं. जबकि, यह दिन मानवता के दुश्मनों- गरीबी, अन्याय और हमारे बीच पनपे जाति, भ्रष्टाचार, लिंग भेद, भ्रूण हत्या और लालच जैसे वायरसों- को दूर भगाने के लिए समर्पित होता है.
NRI समुदाय ने देश सेवा बेहतर तरीके से की है
एनआरआई समुदाय ने इस साल भी अपने देश की सेवा बेहतर तरीके से की है. हालांकि धन भेजने में 5 फीसदी की कमी आयी है और यह पिछले 40 महीनों के दौरान 235 बिलियन डॉलर रहा है. विदेश में रह रहे वोट देने के योग्य 16 मिलियन नागरिकों को मतदान का अधिकार मिलने से भारतीय बेहद खुश हैं. पर, उन्हें आशंका भी है कि इतनी पारदर्शिता रहेगी कि नहीं, कि प्रॉक्सी बैलेट को सही तरीके से गंतव्य तक पहुंचाना सुनिश्चित किया जा सके.
हमारी कला और विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए 32 मिलियन भारतीय अच्छे संवाहक रहे हैं. सिलिकॉन वैली में अग्रणी रहे भारतीयों से लेकर यूरोप में प्रैक्टिस करने वाले लोग हों. खाड़ी देशों और हांगकांग में बिजनेस के दिग्गज या फिर वॉल स्ट्रीट के विश्लेषकों से लेकर अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य की मल्लिकाएं कुशाग्र और दक्ष भारतीयों की बाजार में मांग रही है.
दुनिया के मंच पर भारतीय संगीत ने अपनी पहचान बनाई है. भारतीय भोजन सांस्कृतिक देन है. भारतीय फैशन भी उत्कृष्ट है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पर्धा कर रहा है. यहां तक कि भारतीय फैब्रिक्स की मांग पूरब और पश्चिम दोनों जगहों पर है. अंग्रेजी में लिख रहे भारतीय उपन्यासकारों ने साहित्य परिदृश्य को प्रभावशाली तरीके से प्रभावित किया है. मीडिया, लॉ, एकाउन्टेंसी और इंजीनियरिंग के साथ-साथ सूचना तकनीक में भारतीय पेशेवरों ने अपनी पहचान बनाई है. भारतीय कारोबार को यह पता है कि किस तरह काम करना है और आगे बने रहना है. बॉलीवुड के प्रति आकर्षण मजबूत हुआ है. साथ ही दक्षिण की फिल्मों और बाहुबली के दौर ने इसे मजबूत बनाया है.
स्वतंत्रता दिवस वास्तव में उत्सव जैसी नहीं रही
स्वतंत्रता दिवस उत्सव मनाने के पक्ष में बहुत लोग नहीं रहे हैं क्योंकि वास्तव में यह उत्सव जैसी रही नहीं है. यह हमें याद दिलाती है कि हम 200 साल तक किसी विदेशी ताकत के गुलाम रहे. यह नकारात्मकता का अहसास कराती है. और, यह भी देखना होगा कि दुनिया के लोग इसे किस रूप में लेते हैं. उनकी नजर में हम बीफ को लेकर जान लेने वाले वाले क्रूर और आदिम हैं. LBGT समुदाय के खिलाफ धारा 377 को हटाने से संसद का इनकार, जिस भयानक कानून को भारत पर उसी विदेशी ने जबरदस्ती थोपा था. खुद भारतीयों के पास अपना कोई कानून नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला भी उदाहरण है जिसमें उसने दस साल की एक बलात्कार की शिकार बच्ची को गर्भपात की इजाजत देने से इस आधार पर मना कर दिया था कि उसके पेट में जिंदा रहने योग्य बच्चा विकसित हो चुका है. व्यवस्था की असफलता का यह पूरा वसीयतनामा है, जो बाल श्रम को लेकर हमारी कमी को बताता है. सबसे अविश्सनीय तथ्य यह है कि 28 हफ्ते तक किसी ने इस बेचारी बच्ची के दर्द के बारे में नहीं सोचा. वास्तव में यहां पुरुष ही तय करते हैं कि एक महिला अपने शरीर का क्या कर सकती है.
बड़े भाई ने खुद तय कर लिया कि आधार कार्ड को पैन कार्ड से जोड़ना है और किसी को नहीं पता कि ऐसा क्यों करना है. एनआरआई को एक और ऊंचाई चढ़नी है. जिस तरह नोटबंदी को लेकर भ्रम की स्थिति थी, अब एक बार फिर अफवाह का दौर है क्योंकि लोगों को नहीं पता कि जीएसटी किस तरह काम करता है. यहां तक कि स्पष्टता के अभाव में रिटेलर्स ने भी कई चीजों से अपने हाथ खींच लिए हैं.
हमारी जागरुकता के लिहाज से बेचैन करने वाली
उत्तर पूर्व की सात बहनें बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं. हमने प्रतिक्रिया देने में बहुत देर कर दी. जो प्रतिक्रियाएं दीं, वह भारत का अभिन्न हिस्सा रहे इन क्षेत्रों के लिए हमारी जागरुकता के लिहाज से बेचैन करने वाली थीं. यह खतरनाक लापरवाही है. खासकर इसलिए, क्योंकि पिछले दो महीने से भूटान और सिक्किम की सीमा पर चीन उपद्रव मचाकर फायदा उठाने की कोशिश में है. आशंका है कि टकराव होकर रहेगा.
जम्मू-कश्मीर में तनाव कम नहीं हो रहा है. जब तक अनुच्छेद 370 को लेकर कठोर फैसला नहीं किया जाता और राज्य को देश के बाकी राज्यों के स्तर पर नहीं लाया जाता, यह मसला भी सुलझने वाला नहीं है. इसके बिना हम बस नागरिकों के साथ बंदूक से तकरार कर सकते हैं और आम लोगों से दूरी बढ़ा सकते हैं. तुष्टीकरण की जारी नीति से केवल असंतोष बढ़ेगा.
पूर्व में गोरखालैंड के लिए आह्वान भी जोर पकड़ रहा है जिसे सावधानी से हल करने की जरूरत है. 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में कुछ और बढ़ जाएंगे तो क्या हो जाएगा, अगर इससे उनकी पहचान बनी रहती है.
2016 में उरी में हम पर आतंकी हमला हुआ, जिस वजह से सर्जिकल स्ट्राइक हुए. हम इसे पहले रोक सकते थे. पाकिस्तान की बात करें तो हमने नौसेना के अफसर कुलभूषण जाधव को इस्लामाबाद और पाकिस्तानी जनरलों की मर्जी पर छोड़ रखा है. नवंबर में आएं तो नोटबंदी का एनआरआई ने स्वागत किया था लेकिन अब भी संदेह बना हुआ है कि वास्तव में अमीरों पर इसका असर पड़ा है.
15 अगस्त को कौन सी बात हमें डराती है? यहां तक कि हमारे शीर्ष नेता अज्ञात शहीद जवानों के स्मारक पर जाते हैं. उन्हें सलामी देते हैं और माल्यार्पण करते हैं. वहीं शांति वाले इलाकों में हम अपने जवानों का मुफ्त राशन रोक रहे हैं. आश्चर्य होता है कि यह सब करने का यह सही समय है! उत्तरपूर्व में ड्रैगन आग उगलने के लिए तैयार है. ऐसे में हमें अपनी सैन्य टुकड़ियों का मनोबल ऊंचा रखना है. यह सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.