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पुण्यतिथि विशेष, एमएस सुब्बलक्ष्मी : जब गांधी ने कहा, आप गाइए मत...

जिनके लिए महात्मा गांधी ने कहा, ये सिर्फ गाना पढ़ दें, वो भी मेरे लिए गायन से बेहतर होगा

Shailesh Chaturvedi

दक्षिण भारत जाइए. सूर्योदय का वक्त हो, तो यूं ही किसी गली-मोहल्ले से निकलिए. घरों, मंदिरों के आसपास से गुजरिए. एक आवाज जरूर आपके कानों से होते हुए दिलों के तार झनझना देगी.

भारत रत्न की आवाज. एमएस सुब्बलक्ष्मी की आवाज. वेंकटेश सुप्रभातम की आवाज. विष्णु सहस्रनाम के सुर. उनके गाए भजन आज भी जीवन में आई नई सुबह का ऐलान करते हैं. सूर्य की पहली किरण जैसे होते हैं, जो आपकी जिंदगी को रोशनी से भर देने की संभावनाएं देते हैं.


एमएस के नाम से मशहूर ये वही सुब्बलक्ष्मी हैं, जिनके बारे में कभी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि संगीत की महारानी के सामने मैं क्या हूं... महज एक प्रधानमंत्री? महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरी पसंद का भजन वो सिर्फ पढ़ दें, तो मेरे लिए वो किसी और गायक या गायिका के गाने से बेहतर होगा.

एमएस सुब्बलक्ष्मी (तस्वीर: न्यूज़ 18)

मंच पर महात्मा गांधी ने की थी गाने की फरमाइश

महात्मा गांधी से जुड़ा किस्सा दरअसल 1940 का है. एमएस सुब्बलक्ष्मी को एक समारोह में आमंत्रित किया गया. इस समारोह में महात्मा गांधी को भी आना था. समारोह में भजन गाया जाने वाला था – हरि तुम हरो जन की पीर.

तब तक एमएस ने कभी हिंदी में नहीं गाया था. उन्हें लगता था कि भजन किसी और से गवाया जाना चाहिए, जिसे हिंदी ठीक से आती हो. गांधी जी ने तब कहा कि अगर आप गाने के बजाय सिर्फ पढ़ देंगी, तो भी वो किसी और के गाने से बेहतर होगा. जाहिर है, गांधी के पसंदीदा भजन को उसके बाद एमएस ने गाया.

101 साल होने वाले हैं. सुरों की देवी ने 16 सितंबर 1916 को जन्म लिया था. जगह थी मदुरै. देवदासी परिवार में कुंजम्मा और शणमुखवदिव के घर जन्मी थी एक बेटी. नाम रखा गया सुब्बलक्ष्मी. एम.एस. सुब्बलक्ष्मी एम मतलब मदुरै, जहां उनका जन्म हुआ. एस से शणमुखवदिव यानी पिता का नाम, जो दक्षिण भारतीय परंपरा में लगाया जाता है.

सुब्बलक्ष्मी के मां-पिता भी संगीत से जुड़े थे

एमएस सुब्बलक्ष्मी

सुब्बलक्ष्मी के पिता वीणा बजाते थे. संगीतमय परिवार था. सुब्बलक्ष्मी ने भी संगीत सीखना शुरू कर दिया. एमएस सुब्बलक्ष्मी ने कर्नाटक संगीत की शिक्षा एस. श्रीनिवास अय्यर से और हिंदुस्तानी संगीत की शिक्षा पंडित नारायण राव व्यास से प्राप्त की.

आठ साल की उम्र में सुब्बलक्ष्मी ने पहला पब्लिक परफॉर्मेंस दिया. कुंबकोणम में महोत्सव में उनका गायन भी हुआ. 17 की उम्र में उन्होंने मद्रास म्यूजिक एकेडमी में पब्लिक परफॉर्मेंस दिया.

1936 में सुब्बलक्ष्मी की मुलाकात टी. सदाशिवम से हुई. वो स्वतंत्रता संग्रामी थे. सदाशिवम शादीशुदा थे. 1940 में उनकी पत्नी की मौत हो गई, जिसके बाद सुब्बलक्ष्मी ने उनसे विवाह किया. सदाशिवम का सुब्बलक्ष्मी के करियर में अहम रोल रहा.

फिल्मों में भी किया एमएस ने काम

एमएस सुब्बलक्ष्मी फिल्म मीरा में (तस्वीर: न्यूज़18)

एमएस के नाम से मशहूर सुब्बलक्ष्मी ने कुछ तमिल फिल्मों में भी काम किया. उनकी पहली फिल्म 1938 में आई थी. नाम था सेवासदनमय. उन्होंने कई रोल किए, जिसमें एक पुरुष रोल था. वह रोल नारद मुनि का था. फिल्म थी सावित्री.

मीरा में उन्होंने मीराबाई का रोल किया. मीरा के भजन भी उन्होंने गाए. कुछ समय बाद उन्होंने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया और गायन पर ज्यादा ध्यान देने लगीं.

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एमएस सुब्बलक्ष्मी की सादगी के तमाम किस्से हैं. कहा जाता है कि जिस सुबह अखबारों में उनका नाम आया कि भारत रत्न दिया जा रहा है, वो अपने घर में हल्दी का लेप चेहरे पर लगाकर बैठी थीं.

सिर्फ एक टिप्पणी की थी- 'ये सब मुझे क्यों दे रहे हैं....' सम्मान का अपमान नहीं, ये उनकी सादगी की एक तस्वीर है. जिसने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई जरूरतमंदों को दे दी हो, उनके लिए किसी भी सम्मान का क्या मतलब है!

सुब्बलक्ष्मी की कुछ रोचक कहानियां

एमएस सुब्बलक्ष्मी (तस्वीर: न्यूज़ 18)

उनके बारे में कहा जाता है कि किसी कॉन्सर्ट में आने के लिए कभी वीआईपी ट्रीटमेंट या फाइव स्टार लग्जरी की मांग उन्होंने नहीं की. उनकी सादगी की एक और कहानी सुनिए.

उनके बेटे के स्कूल में दोस्त की शादी थी. औपचारिकता के तौर पर उन्होंने एमएस को बुला लिया. ताज्जुब तब हुआ, जब वो शादी में बैंगलोर पहुंच गईं. वहां उन्होंने गाना भी गाया. शादी में नादस्वरम बजा रहे लोगों को अचानक लगा कि एमएस सुब्बलक्ष्मी की आवाज आ रही है. उन्होंने बजाना बंद कर दिया. शादी के हॉल में सन्नाटा छा गया. सिर्फ एमएस की आवाज गूंज रही थी.

ध्यान रखिए, उनके अपने कोई बच्चा नहीं था. पति की पहली शादी के बच्चों को उन्होंने हमेशा मां का प्यार दिया. बल्कि सदाशिवम जी की एक भतीजी को भी उन्होंने गोद लिया था.

सादगी की इन कहानियों के बीच उनके एक अलग रूप को सामने लाती एक कहानी. 1937 की बात है. दो लड़कियां साड़ी पहने हुए मद्रास के एक फोटो स्टूडियो पहुंचीं. वहां उन्होंने कपड़े बदले. धारीदार पजामा सूट पहना. कैमरे के सामने एक पोज बनाया.

दोनों के हाथ में सिगरेट थी. जी हां, इनमें से एक एमएस सुब्बलक्ष्मी थीं. दूसरी महिला थीं भरनाट्यम नृत्यांगना बालासरस्वती. दोनों सिर्फ थोड़ी मस्ती करने के लिए तस्वीर खिंचाने गई थीं.

डगलस नाइट ने बालासरस्वती की बायोग्राफी में लिखा है कि दोनों ही बेहद सख्त परंपरावादी परिवार से थीं. दोनों चुपचाप थोड़ी स्वतंत्रता का अनुभव करने के लिए फोटो स्टूडियो गई थीं. उन्होंने पश्चिमी सभ्यता के कपड़े पहने, जो दरअसल स्लीपवीयर थे और सिगरेट पीने की एक्टिंग की.

पहली बार 2010 में ये तस्वीर पब्लिक हुई, जो इस बायोग्राफी का हिस्सा थी. बायोग्राफी लिखने वाले डगलस नाइट दरअसल बालासरस्वती के दामाद थे. बालासरस्वती के नाती अनिरुद्ध नाइट ने एक इंटरव्यू में बताया था कि दोनों कभी पश्चिमी पोशाक नहीं पहनती थीं, न दोनों ने कभी धूम्रपान किया. बस, कुछ अलग दिखने के लिए तस्वीर ली गई थी.

दानवीर एमएस

अपने पूरे जीवन में कॉन्सर्ट से आया जितना धन एमएस सुब्बलक्ष्मी ने दान किया, उसका भी कोई जोड़ या मोल नहीं है. कहा यही जाता है कि एमएस सामाजिक और राष्ट्रीय कामों के लिए लगातार कॉन्सर्ट करती थीं.

आज की तारीख के हिसाब से करोड़ों रुपये उन्होंने दान दिए. उन्होंने चैरिटी के लिए 200 से ज्यादा कॉन्सर्ट किए. रेमन मैग्सेसे, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और 1998 में भारत रत्न बनीं एमएस सुब्बलक्ष्मी का निधन 11 दिसंबर 2004 को हुआ.

13 साल हो गए. लेकिन अब भी सुबह होती है, तो वो आवाज किसी जिंदगी की मानिंद आती है. नई उम्मीदों के साथ, जीवन को रोशनी से भर देने की संभावनाओं के साथ. जैसा गांधी के उस प्रिय भजन में था – मन की पीर हरने की कामना के साथ.

(ये आर्टिकल पहली बार 16 अप्रैल, 2017 को प्रकाशित हुआ था. हम इसे एमएस सुब्बलक्ष्मी के पुण्यतिथि दिवस पर दोबारा प्रकाशित कर रहे हैं)