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किशोरी अमोनकर: गुम हो गई पत्थरों में भी जान भरने वाली वो आवाज

किशोरी को रागों से छेड़छाड़ पसंद नहीं थी वे शुद्धता की हिमायती थीं.

Updated On: Apr 05, 2017 03:08 PM IST

Shailesh Chaturvedi Shailesh Chaturvedi

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किशोरी अमोनकर: गुम हो गई पत्थरों में भी जान भरने वाली वो आवाज

उन्हें इंटरव्यू देना पसंद नहीं था. रियाज में खलल पड़ता था. उन्हें रागों से छेड़छाड़ पसंद नहीं थी. शुद्धता की वे हमेशा से हिमायती थीं. भले ही तमाम प्रयोग किए. उन्हें संगीत में खलल पसंद नहीं था. कॉन्सर्ट के बीच अगर कोई व्यवधान होता था तो उनसे बर्दाश्त नहीं होता था.

उन्होंने भोर में कॉन्सर्ट किए क्योंकि सुबह के राग वो किसी और वक्त नहीं गाना चाहती थीं. उन्हें अकेले रहना पसंद था. अकेलापन उन्हें सुकून देता था.

कहते हैं कि जीनियस कुछ अजीब होते हैं. कभी खड़ूस, कभी जुनूनी. किशोरी अमोनकर भी जीनियस थीं. उन्हें किस श्रेणी में रखना है ये तय नहीं किया जा सकता. लेकिन वो आम नहीं थीं. वो खास थीं. बहुत खास.

उनकी विदाई ने हिंदुस्तानी संगीत से उसकी शुद्धता कम कर दी है. वो आवाज चली गई है जो पत्थरों को भी सुर से भर सकती थी. जो सम्मोहित कर सकती थी... जो आत्मा में उतर सकती थी.

इस दुनिया और दूसरी दुनिया का एक साथ अहसास कराने वाली थी वो आवाज. किशोरी अमोनकर की आवाज.

रागों में महारत

जयपुर-अतरौली घराने की इस गायिका ने संगीत की तमाम विविधताओं में अपने रंग जोड़े. उन्हें खयाल के लिए जाना जाता है. उन्हें कुछ ऐसे रागों में महारत पाने के लिए जाना जाता है जिनके साथ न्याय करना आम लोगों के लिए संभव नहीं था.

kishori amonkar

किशोरी अमोनकर के बारे में कहा जाता था कि वे बहुत ही मूडी थीं

उन्हें हिंदी, मराठी, कन्नड़ और संस्कृत भजनों के लिए जाना जाता है. ऐसे अनगिनत घर होंगे जहां किशोरी अमोनकर की आवाज से सुबह होती रही है. उनके भजन के सुरों के साथ.

10 अप्रैल 1931 (कुछ जगहों पर जन्म का वर्ष 1932 बताया जाता है) को मुंबई में एक संगीतप्रेमी परिवार के घर पुत्री का जन्म हुआ. नाम रखा गया था किशोरी. मां मोगूबाई कुर्डीकर शास्त्रीय संगीत की जानकार थीं. उन्होंने बेटी किशोरी को संगीत सिखाना शुरू किया. मां ने जयपुर घराने में तालीम हासिल की थी.

40 के दशक में किशोरी ने भिंडी बाजार घराने से अंजनी बाई मालपेकर से भी शिक्षा ली. इसके बाद उन्होंने कई घरानों का संगीत सीखा. उन्होंने फिल्म संगीत में भी रुचि ली. बल्कि 1964 में आई फिल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' के लिए गाने भी गाए. लेकिन जल्दी ही वो फिल्म इंडस्ट्री के खराब अनुभवों के साथ शास्त्रीय संगीत की तरफ लौट आईं.

50 के दशक में खोई थी आवाज

पचास के दशक में किशोरी अमोनकर की आवाज चली गई थी. दो साल लगे आवाज वापस आने में. हालांकि, किशोरी जी ने एक इंटरव्यू में बताया है कि उन्हें इस वजह से करीब नौ साल गायन से दूर रहना पड़ा. वो फुसफुसा कर गाती थीं. लेकिन उनकी मां ने मना किया और कहा कि मन में गाया करो. इससे तुम संगीत के और संगीत तुम्हारे साथ रहेगा.

उन्होंने तय किया था कि फिल्मों में नहीं गाएंगी. उनकी मां भी फिल्मों में गाने के सख्त खिलाफ थीं. हालांकि, उसके बाद उन्होंने फिल्म दृष्टि में भी गाया. किशोरी जी ने एक इंटरव्यू में कहा भी है कि माई ने धमकी दी थी कि फिल्म में गाया तो मेरे दोनों तानपूरे को कभी हाथ मत लगाना. लेकिन, उन्हें दृष्टि फिल्म का कॉन्सेप्ट बहुत पसंद आया और उन्होंने इसके लिए भी अपनी आवाज दी.

भले ही उस बार माई की बात नहीं मानी हो लेकिन उनके लिए माई यानी मां सबसे अहम रही हैं.

एक दिलचस्प कहानी है. एक बार मां बीमार हुईं. वो लगातार छोटी बहन ललिता को फोन करती रहीं. मन नहीं माना तो घर चली गईं...वहां माई के पास जाकर पूछा कि कैसी हो? माई ने कहा कि बस थोड़े चक्कर आ रहे हैं और पेट में दर्द है.

उन्होंने दो डॉक्टरों को फोन कर दिया. डॉक्टर भी घबराते थे कि अगर माई की तबीयत खराब हो गई, तो किशोरी जी फोन कर करके उन्हें परेशान कर देंगी. इससे समझ आता है कि जो उनके करीब थे उनकी क्या अहमियत थी.

kishori amonkar

किशोरी को संगीत के अलावा अपनी माँ से बहुत लगाव था

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माँ और संगीत

मां और संगीत ही तो थे किशोरी अमोनकर की जिंदगी. तभी उन्होंने संगीत से समझौता नहीं किया. वो उन लोगों में थीं, जिन्होंने रागों के समय के अनुसार कॉन्सर्ट रखने की मांग की. बल्कि ऐसे कॉन्सर्ट किए भी. यहां तक कि सुबह छह बजे कॉन्सर्ट किया जो हाउस फुल था.

अस्सी के दशक की शुरुआत में दादर माटुंगा कल्चरल सेंटर में कॉन्सर्ट हुआ था, उस वक्त सुबह कॉन्सर्ट नहीं होते थे. किशोरी जी का मानना था कि शाम को कॉन्सर्ट होने की वजह से ऐसे तमाम राग नहीं गाए जाते, जो सुबह के होते हैं.

जो अपने संगीत को लेकर इस तरह की सोच रखता हो, वो किसी तरह की बाधा कैसे बर्दाश्त कर सकता है. अपने गायन के समय वो व्यवधान बर्दाश्त नहीं करतीं थीं.

एक बार कश्मीर में कॉन्सर्ट था. किशोरी अमोनकर गा रही थीं. उसी बीच एक बड़े उद्योगपति की पत्नी ने पान की फरमाइश की. किशोरी जी ने गाना रोक दिया और पूछा कि क्या आपको लगता है कि मैं कोठे पर गा रही हूं?

पद्म भूषण, पद्म विभूषण किशोरी जी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि संगीत पांचवां वेद है. इसे आप मशीन से नहीं सीख सकते. इसके लिए गुरु-शिष्य परंपरा ही एकमात्र तरीका है. संगीत तपस्या है. संगीत मोक्ष पाने का एक साधन है.

उन्होंने कहा था कि, अब वो इस संसार में वापस नहीं आना चाहतीं. वो मोक्ष चाहती हैं. संगीत में जिस तरह की तपस्या की जरूरत होती है उससे वो दोबारा नहीं गुजरना चाहतीं. ईश्वर उन्हें मोक्ष दे. वाकई संगीत की साधिका इससे कम की हकदार नहीं हैं.

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