view all

जन्मदिन विशेष: जिसका गिरा हुआ झुमका भी फैशन बन जाता था उसकी जिंदगी तन्हाई में कटी

साधना उम्र के साथ आए बदलावों को उस तरीके से नहीं संभाल पाईं जिस तरह से उनकी दोस्त वहीदा रहमान ने संभाला

Avinash Dwivedi

हर बात को खांचों में बांटकर देखने की मनुष्य की पुरानी आदत रही है. हम हर इंसान में खुद से भिन्नताएं ढ़ूंढ़ने में काफी वक्त और ऊर्जा लगाते हैं. फिर ऐसा कम ही होता है कि हम उन भिन्नताओं को सकारात्मक रूप में लें. हम अधिकांशत: अपने से भिन्न लोगों को 'दूसरे लोग' की कैटेगरी में रख देते हैं. तमाम सामाजिक, राजनीतिक अलगाव ऐसी ही सोच के खड़े किए हैं. चाहे वो लिंग के आधार पर हो, जाति के आधार पर, रंग के आधार पर या उम्र के आधार पर.

आजकल दुनिया भर में लिंग के आधार पर, जाति के आधार पर और रंग के आधार पर होने वाले भेदभावों के खिलाफ ढेर सारे प्रयास हो रहे हैं. कई स्तर पर स्थिति में सुधार भी हुआ है पर अभी भी उम्र के आधार पर होने वाले भेदभाव पर समाज और बुद्धिजीवियों का ध्यान बहुत कम ही गया है. मशहूर फिल्म अदाकारा साधना की फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने के बाद मौत जैसी जिंदगी में इस उम्रगत भेदभाव के डर का खासा हाथ था.


ऐसा भेदभाव कितना खतरनाक हो सकता है, ये बात दो साल पहले दुनिया फानी से कूच कर गईं अदाकारा साधना की तन्हा जिंदगी और मौत बताती है. उनका परिवार कहता है कि उन्हें कैंसर था. पर मौत के बाद जब अदाकारा तबस्सुम ने अपने दिल की भड़ास निकालते हुए उस वक्त बॉलीवुड की दिखावे की परंपरा को आडे़ हाथों लिया था. मगर तब तक शायद सभी को समझ आ चुका था कि फिल्म इंडस्ट्री के लिए तो साधना बरसों पहले स्क्रीन से मुंह मोड़ते ही गुजर गई थीं.

एक वक्त था जब अदाकारा साधना जो ड्रेस पहन लेती थीं, जैसी हेयर स्टाइल बना लेती थीं, वही भारत में फैशन ट्रेंड हो जाता था. वो शायद इकलौती हीरोइन हैं जिनके नाम पर एक हेयरकट है. पर वही साधना प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते ही अपना फिल्मी करियर खत्म कर सार्वजनिक जीवन से ओझल हो गईं तो ये बात वाकई डराने वाली थी. इतना ही नहीं इसके बाद अगर कोई उनसे मिलना चाहता तो अक्सर उनका जवाब होता, 'मुझे अकेला छोड़ दो.'

कई करीबी बताते हैं कि साधना अपने आखिरी के दिनों में बेहद अकेली थीं. पर इस अकेलेपन की जिम्मेदार साधना खुद भी थीं. समाज तो था ही जिसने बुढ़ापे से जुड़ी तमाम रूढ़ियां गढ़ीं और साधना ने इससे डरकर खुद को कैद कर लिया. इस दौर में साधना फोटो खिंचवाने से बिल्कुल मना कर देती थीं. उनकी ख्वाहिश थी कि लोग उसी 1960 के दशक की साधना को याद रखें.

ये भी पढ़ें : दिलीप कुमार से शादी के ख्वाब बचपन से देखा करती थीं सायरा

साधना के ऊपर इस तरह का मानसिक दबाव हमारे समाज की उम्रदराज होते लोगों के प्रति रहने वाली सोच को दर्शाता है. आखिर जवानी के दिनों में लोगों की आंखों का सितारा रहीं साधना को ऐसा मानसिक डर क्यों था? समाज के सामने वो अपनी उम्र के साथ बदलती शक्ल में खूबसूरती की परिपक्वता क्यों नहीं तलाश पाईं? कहा जा सकता है थायराइड की बीमारी के चलते वो सार्वजनिक जीवन से बचती थीं. पर हम बखूबी जानते हैं दर्शकों के सामने ना आने की वजह उनका थायराइड ना होकर अपनी सुंदरता के तिलिस्म के टूट जाने का डर था. जब उनकी मौत हुई तो उनके पास बस उनका एक भतीजा था.

साधना ने ना दर्शकों को निराश किया था, ना निर्देशकों को

अब साधना की मौत को छोड़कर उनकी जिंदगी में झांकते हैं. साधना एक सिंधी परिवार से थीं और 2 सितंबर, 1941 को उनका जन्म हुआ था. सिंधी फिल्मों में काम करते हुए उन्हें हिंदी फिल्म में काम करने का मौका मिला. साधना जब एक्टिंग में आईं तो उनके पास भरने को बड़ा स्पेस था क्योंकि मधुबाला, नरगिस और वैजयंतीमाला का स्थान धीरे-धीरे खाली हो रहा था. यानि साधना को बड़ी जिम्मेदारी निभानी थी, जो आसान नहीं थी.

साधना ने अपने करियर की शुरुआत 1960 में जॉय मुखर्जी के साथ फिल्म लव इन शिमला से की. इसे आर के नैय्यर ने डायरेक्ट किया था. नैय्यर से ही साधना ने कुछ साल बाद 1966 में शादी कर ली. दोनों के बच्चे नहीं हैं. नैयर 1995 में इस दुनिया से चले गए.

बताते चलें कि वो नैय्यर ही थे जिन्होंने साधना को मशहूर 'साधना कट' स्टाइल दी थी. दरअसल साधना कट हॉलीवुड अदाकारा ऑड्रे हेपबर्न के हेयरस्टाइल का नकल था. जिसे उस दौर में युवतियों ने पागलों की तरह अपनाया.

1964 में उन्होंने सस्पेंस थ्रिलर फिल्म 'वो कौन थी' से अपनी सस्पेंस थ्रिलर ट्रिलॉजी की शुरुआत की. 'वो कौन थी' के रोल के लिए वो पहली बार बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुईं.

इस रोल को करने के दौरान वो लता मंगेशकर और मदन मोहन की जोड़ी के गाए बेहतरीन गानों 'नैना बरसे रिमझिम-रिमझिम...' और 'लग जा गले...' का हिस्सा भी बनीं. उन्हें अवॉर्ड तो नहीं मिला पर हम जानते हैं इन दोनों गानों का हिस्सा होना साधना के लिए किसी भी अवॉर्ड को पाने से ज्यादा महत्व का रखता होगा.

राज खोसला साधना की इस प्रतिभा को पहचान चुके थे. इसलिए उन्होंने ऐसी ही दो फिल्में 'मेरा साया' (1966) और 'अनीता' (1967) भी बनाईं. 'मेरा साया' बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट रही. मेरा साया में ही मशहूर गीत 'झुमका गिरा रे' है.

'लग जा गले गीत...' में साधना की मुस्कुराहट किसी मोनालिसा से कम नहीं लगती और दिल में चुभ गड़ जाती है. इसी मुस्कुराहट ने कभी उनकी रहस्यमयी अौर तिलिस्मी छवि बना दी थी.

बीमारी को हराया और फिर से चमकीं

1960 के दशक के आखिरी में साधना करियर की ऊंचाइयों पर थीं तभी उनको थायराइड की समस्या हो गई. वो इलाज के लिए अमेरिका गईं और जब लौटीं तो उन्होंने बॉलीवुड में जबरदस्त वापसी की. 'आप आए बहार आई', 'एक फूल दो माली', 'इंतकाम' और 'गीता मेरा नाम' जैसी बेहतरीन फिल्में उन्होंने अमेरिका से वापस लौटकर कीं.

'गीता मेरा नाम' भी उनके पति ने ही निर्देशित की थी. ये उनकी आखिरी फिल्म थी, जिसके बाद साधना ने अपने एक्टिंग करियर से संन्यास ले लिया और फिर कभी वापस मुड़कर नहीं देखा. साधना के एक पारिवारिक मित्र ने एक इंटरव्यू में कहा, 'साधना की सारी दुनिया उनके पति के इर्द-गिर्द ही घूमती थी. 1995 में शादी के 30 साल बाद उनकी मौत से साधना बिल्कुल वैरागी सी हो गईं. इसके बाद कभी-कभार वो केवल अपनी दोस्त वहीदा रहमान के साथ खाना खाने ही बाहर कहीं जाती थीं.'

काश! वहीदा की दोस्त साधना ने उनसे एक बेहतरीन सीख ले ली होती

अपने आखिरी वक्त में साधना कई सारे कोर्ट केस के पचड़ों में पड़ गई थीं. ये केस उस प्रॉपर्टी पर थे, जहां साधना रहा करती थीं. मौत से एक साल पहले ही उनके मुंह की सर्जरी भी हुई थी और इसके बाद से ही वो अपने घर में ही बंद रहती थीं.

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि बॉलीवुड ने उन्हें पूरी तरह भुला दिया था. कई बार डायरेक्टर अपनी फिल्मों में साधना का लुक कॉपी करते रहे. दीपिका पादुकोण ने अपनी फिल्मों 'ओम शांति ओम' और 'चांदनी चौक टू चाइना' में साधना के स्टाइल को कॉपी किया है. 2002 में साधना को आईफा अवॉर्ड्स में लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड भी दिया गया था.

साधना खुद भी सिनेमा से बहुत दूर नहीं गई थीं. उनकी करीबी मित्र आशा पारेख कहती हैं, साधना ने कुछ दिन पहले ही वहीदा रहमान को बुलाया था. उन्होंने 'बाजीराव मस्तानी' के बारे में सुना था और वो फिल्म देखना चाहती थीं. उनकी मौत के बाद बॉलीवुड से कई लोग उनके घर पहुंचे. कुछ खास नाम लें तो वहीदा रहमान, आशा पारेख, सलीम खान, रजा मुराद, महेश भट्ट और संजय लीला भंसाली. पर दुखद ये है कि साधना उस तरह से अपनी प्रौढ़ावस्था को नहीं संभाल पाईं जैसे वहीदा रहमान ने संभाल रखा है. वहीदा जी के बालों की चांदी हो या उनकी खूबसूरत मुस्कुराहट, वहीदा जी ने बढ़ती उम्र को आकर्षक तरीके से संभाला है, काश! ये बात साधना ने भी समझी होती.

साधना का भानु अथैया और सरोज खान कनेक्शन

चूड़ीदार कुर्ता फैशन में लाने का श्रेय भी साधना को ही जाता है. यश चोपड़ा की फिल्म 'वक्त' में पहली बार जब उन्हें इसे पहनना था तो यश चोपड़ा तैयार नहीं थे पर जब साधना और उनकी फैशन डिजाइनर भानु अथैया (जिन्हें रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी की ड्रेस डिजाइनिंग के लिए ऑस्कर से नवाजा जा चुका है) ने उन्हें कुर्ता दिखाया तो उन्हें पसंद आया. साधना के पहली बार कुर्ता पहनने के बाद 1970 तक इस चलन को कई अदाकाराओं ने अपनाया था.

ये भी पढ़ें : गुलज़ार क्यों हैं युवाओं के ऑल टाइम फेवरेट

आखिरी में साधना के अमर जलवे को याद करते हैं. उनकी फिल्म आई थी, 'मेरा साया' फिल्म में साधना का डबल रोल था. इसके हीरो थे सुनील दत्त. इसमें आशा भोंसले के गाए और मदन मोहन के कंपोज किया गाने 'झुमका गिरा रे...' ने देश भर को बावला कर दिया था. ये गाना सरोज खान ने कोरियोग्राफ किया था. सरोज उस वक्त डांस डायरेक्टर बी. सोहनलाल की असिस्टेंट डायरेक्टर हुआ करती थीं. जब ये गाना फिल्म में आता तो लोग इतने पागल हो जाते कि पर्दे पर ही सिक्के फेंकना शुरू कर देते. ये उस वक्त रेडियो पर भी सबसे ज्यादा फरमाइशी गाना था. आज भी इस गाने का ज़िक्र आते ही मुंह से 'फिर क्या हुआ' अपने आप निकल जाता है.