view all

जन्मदिन विशेष: एक बिजनेसमैन जिसके दिलीप साहब भी मुरीद थे

खानदान के नाम पर नहीं, आपकी काबिलियत को नौकरी मिले, इसकी शुरुआत भी उन्होंने ही की थी

Pratima Sharma

वो दौर दिलीप कुमार का था. एक बार हवाई सफर के दौरान दिलीप कुमार ने एक शख्स के करीब जाकर पूछा? ‘क्या आप फिल्में देखतें हैं.’ जवाब था, ‘कभी-कभी’. दिलीप कुमार ने कहा, ‘मैं भी फिल्मों में काम करता हूं.’ जवाब आया, ‘वंडरफुल’. इस बातचीत के बाद वो शख्स फिर अपनी चाय की चुस्कियों में खो गया. दिलीप कुमार ने फिर कहा, ‘मेरा नाम दिलीप कुमार है.’ सामने वाले शख्स ने कहा, ‘आई ऐम जेआरडी टाटा.’ बातचीत यहीं खत्म हो गई.

अपने समय में ये था जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा यानी जेआरडी का जलवा. जेआरडी की परवरिश फ्रेंच मां और पारसी पिता के बीच हुई. दो अलग-अलग संस्कृतियों का यह संगम जेआरडी के व्यक्तित्व में साफ नजर आता था.


इंडियन सिविल एविएशन के पिता

जेआरडी का ताल्लुक एक ऊंचे खानदान से है. उनकी मां सुजैन आरडी टाटा कार चलाने वाली भारत की पहली महिला थीं. खुद जेआरडी देश के पहले लाइसेंसी पायलट थे. उन्हें 1929 में लाइसेंस मिला था. जेआरडी को इंडियन सिविल एविएशन का पिता भी कहा जाता है. बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है कि एयर इंडिया की शुरुआत जेआरडी ने ही की थी.

जेआरडी के पिता रतनजी दादाभाई टाटा पारसी थे. जेआरडी का जन्म 1904 में पेरिस में हुआ था. उनका शुरुआती जीवन फ्रांस में बीता था. 1914 में हुए प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने एक साल तक सिपाही की हैसियत से फ्रांस के लिए युद्ध भी किया.

यह भी पढ़ें: पुण्यतिथि विशेष धीरूभाई: सपनों को पूरा करने का हुनर कोई इनसे सीखे

फ्रांस में कुछ साल बिताने के बाद उनके पिता दादाभाई टाटा परिवार सहित लंदन चले गए. हालांकि लंदन जाने के कुछ दिनों के भीतर ही उनकी मां की मौत हो गई. इसके बाद वे लोग भारत आ गए. और यहां से एक बिजनेस के तौर पर टाटा का सफर शुरू हुआ.

कुछ हट कर करने का जुनून

टाटा...यह नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. एक ऐसी कंपनी जिसका दखल नमक से लेकर आईटी कंपनी और जगुआर लैंड रोवर जैसी लग्जरी कार तक है. यह कंपनी रातोरात इतनी बड़ी नहीं बनी. इसके पीछे जेआरडी की कड़ी मेहनत और विजन का हाथ है.

1938 में 34 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता के कारोबार की कमान संभाल ली. उनकी शानदार लीडरशिप में टाटा ने जिस कारोबारी ऊंचाई को छुआ, उसका अंदाजा आप इस आंकड़े से लगा सकते हैं. 1939 में टाटा की नेटवर्थ 62 करोड़ रुपए थी जो बढ़कर 1990 में 10,000 करोड़ रुपए हो गई. आज टाटा की नेटवर्थ 104 अरब डॉलर है.

यह भी पढ़ें: नवाजुद्दीन-चित्रांगदा: तन काला हो तो चलेगा, लेकिन मन काला ना हो

जेआरडी अपने विजन के मुताबिक काम करने के लिए जाने जाते हैं. ऐसे समय में जब पूरी दुनिया विश्व युद्ध के खेल में लगी थी और मशीन और तकनीक पर फोकस था. जेआरडी ने कम लोकप्रिय एविएशन सेक्टर को चुना. उन्होंने देश की पहली कमर्शियल एयरलाइन ‘टाटा एयरलाइंस’ 1932 में शुरू किया था. आज इसे हम एयर इंडिया के नाम से जानते हैं.

डर के आगे जीत है

जेआरडी ने ऐसे समय में अपना कारोबार बढ़ाया जब भारतीय अर्थव्यवस्था डांवाडोल थी. वे जीवन में रिस्क लेने के लिए जाने जाते थे. उनका आइडिया था किसी एक चीज में पूरी ताकत से काम करके उसे कामयाबी के मुकाम तक ले जाना. अपने स्टील कारोबार के बारे में जेआरडी की एक बात काफी लोकप्रिय रही है. वे स्टील की तुलना चपाती बनाने से करते थे. वे कहते थे, ‘आप सोने के बेलन से चपाती बनाए तो भी तब तक अच्छी नहीं बनेगी जब तक आटा सही ढंग से ना गूंथा गया हो.’

जेआरडी की मौत 29 नवंबर 1993 को हुई. इससे पहले उन्होंने कॉरपोरेट जगत को एक बेहतरीन तोहफा दे दिया था. कंपनियों में एचआर की शुरुआत उन्होंने ही की थी.

आज किसी कंपनी में एचआर होना भले ही सामान्य बात है लेकिन उस वक्त यह नौकरी करने वालों के लिए क्रांति थी. खानदान के नाम पर नहीं, आपकी काबिलियत को नौकरी मिले, इसकी शुरुआत भी उन्होंने ही की थी. जेआरडी चाहते थे कि भारत सबसे खुशहाल देश बने. हालांकि उनका यह सपना तो पूरा नहीं हो पाया लेकिन टाटा एक भरोसेमंद कंपनी जरूर बन चुकी है.