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जन्मदिन विशेष वी शांताराम: जिनकी नई फिल्म रिलीज होने पर ही उनकी पिछली फिल्म सिनेमाघरों से हटती थी

आज की पीढ़ी उस महान शख्सियत को कम ही जानती है, जो एक संपूर्ण फिल्मकार थे, जो हिंदुस्तान के पहले विशेषज्ञ एडिटर माने जाते थे

Shivendra Kumar Singh

इसे सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि हिंदुस्तान की एक बहुत बड़ी आबादी वी. शांताराम को उनकी फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ से जानती है. एक ऐसी फिल्म जो आजादी के 10 साल बाद आई थी. जिसमें ‘जेल रिफॉर्म्स’ की बात थी. इस फिल्म का गाना- ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम...आज भी खूब सुना और गाया जाता है.

अब इसे सौभाग्य इसलिए समझिए कि पिछले 5-6 दशकों में हिंदी फिल्मों के 360 डिग्री बदले समीकरण में भी वी. शांताराम का काम अमर है. दुर्भाग्य इसलिए कि 'दो आंखें बारह हाथ' के पहले के उनके महान कामों का जिक्र कम ही हो पाता है. आज की पीढ़ी उस महान शख्सियत को कम ही जानती है जो एक संपूर्ण फिल्मकार थे. जो हिंदुस्तान के पहले विशेषज्ञ एडिटर माने जाते थे. जिनके निर्देशन पर इस बात की मोहर लगी होती थी कि वो समकालीन फिल्मों से अलग दिखाई देगी. जो ऐसी फिल्में प्रोड्यूस किया करते थे जिनका कोई सामाजिक सरोकार हो. जिनमें ‘विजुअल’ की समझ कमाल की थी. जिनमें फिल्म के लिए कहानियों को चुनने को लेकर गंभीर सजगता थी. जिससे वो समझ थी कि ‘क्लास’ और ‘मास’ दोनों के लिए कुछ बना सकें. जिनके बारे में कहा जाता था कि वो सिनेमा के तकनीकी पक्ष में दक्षता ना रखने के बाद भी कमाल के जानकार थे. जो असल मायने में हिंदुस्तानी फिल्म के ‘लीजेंड’ थे.


अभिनेता बने फिर अपनी फिल्में बनाई

वी. शांताराम का जन्म 18 नवंबर, 1901 को एक मराठी परिवार में हुआ था. सिनेमा का शौक बचपन से ही लग गया. सोलह साल के थे जब एक टिन के नीचे चलने वाले सिनेमाघर में नौकरी की. 1920 का दशक उनके लिए कई उपलब्धियां लेकर आया. इसी दशक में उन्होंने बतौर अभिनेता फिल्मों में काम किया. इसी दशक में उन्होंने उन्होंने अपनी पहली फिल्म का निर्देशन किया. इसी दशक में उन्होंने अपने जैसी समझ रखने वालों के साथ मिलकर प्रभात फिल्म्स के नाम से अपनी कंपनी बनाई.

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यहां दो बातें जानना जरूरी है, पहली कि प्रभात फिल्म्स का नाम उन्होंने अपने बेटे प्रभात के नाम पर रखा था. दूसरा ये सारी उपलब्धियां जब उन्हें हासिल हुईं तब उनकी उम्र तीस साल भी नहीं थी. प्रभात फिल्म्स में वी शांताराम के साथ विष्णुपंत दामले, केशवराम, एस फतेलाल और सीताराम कुलकर्णी थे. इस बैनर पर वी. शांताराम ने करीब आधा दर्जन फिल्में बनाईं. जिनमें अयोध्या के राजा प्रमुख रही. अमृत मंथन को भी दर्शकों ने काफी सराहा. वी शांताराम को इन्हीं फिल्मों में पहली बार ‘क्लोज-अप’ को इस्तेमाल करने के लिए भी जाना जाता है.

बाद में वी शांताराम प्रभात फिल्म्स से अलग हो गए. प्रभात फिल्म्स के अलग होने के कुछ समय बाद ही उन्होंने डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी नाम से फिल्म बनाई. ये फिल्म डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस के जीवन पर आधारित थी, जिनके बारे में ये कहा जाता है कि उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू का भाषण सुनने के बाद दूसरे विश्वयुद्ध में काम किया था. इसी समयकाल में वी शांताराम ने दहेज जैसी सामाजिक समस्या पर फिल्म बनाई, जिसमें अपने पिता की गोद में दम तोड़ते वक्त बेटी कहती है- 'पिता जी आपने मेरे दहेज में हर चीज दी लेकिन एक चीज देना भूल गए- कफन'. इस फिल्म ने वी शांताराम के सिनेमाई चमत्कार को दर्शकों को सामने रखा.

अगली फिल्म रिलीज होने के बाद ही उनकी पिछली फिल्में सिनेमाहॉल से उतरती थीं

ये कमाल वी शांताराम ही कर सकते थे कि उनकी अगली फिल्म जब बनकर तैयार होती थी तब तक उनकी पिछली फिल्म सिनेमा हॉल में लगी रहती थी. सिनेमा के तमाम तकनीकी पक्षों के अलावा वी शांताराम में संगीत की समझ कमाल की थी.

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ये भी कहा जाता है कि उन्होंने कुछ फिल्मों के संगीत में काफी सक्रिय योगदान दिया था. संगीत की उनकी समझ के लिए एक किस्सा बड़ा मशहूर है. 60 के दशक में रामलाल नाम के संगीतकार हुआ करते थे. उनका काम बेहतरीन था लेकिन पहचान शून्य. लोग उन्हें जानते नहीं थे. गुमनामी के दौर में जी रहे रामलाल की किस्मत तब चमकी जब उनकी मुलाकात वी शांताराम से हुई. वी शांताराम ने उस कलाकार के साथ दो फिल्में की. पहली ‘सेहरा’ और दूसरी ‘गीत गाया पत्थरों ने’. सेहरा फिल्म का संगीत खूब पसंद किया गया. फिल्म के लगभग सभी गाने खूब चले. हसरत जयपुरी के लिखे गीत ‘पंख होते तो उड़ आती रे रसिया ओ बालमा’, ‘तकदीर का फसाना’ और ‘तुम तो प्यार हो सजनी’ को लोगों ने खास तौर पर खूब सराहा.

सुरेखा हरण (1921) में वी. शांताराम.

अगले ही साल वी शांताराम ने गीत गाया पत्थरों ने बनाई. इस फिल्म के साथ ही अभिनेता जितेंद्र ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. इस फिल्म में वी शांताराम ने अपनी बेटी राजश्री को भी लॉन्च किया था. इस फिल्म में भी वी शांताराम ने संगीत निर्देशक का जिम्मा रामलाल को ही दिया. गीत एक बार फिर हसरत जयपुरी के ही लिखे हुए थे. इस हिट गाने के बोल थे- गीत गाया पत्थरों ने.

दादा साहेब फाल्के से लेकर पद्मविभूषण तक किया जा चुका है समर्पित

राजश्री वी शांताराम की दूसरी पत्नी जयश्री से उनकी औलाद थीं. बाद में उन्होंने जानवर और ब्रह्मचारी जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया. इससे पहले उन्होंने विमलाबाई से विवाह किया था. विमलाबाई और वी शांताराम की बेटी मधुरा हैं. जो विश्वविख्यात शास्त्रीय गायक जसराज जी की पत्नी हैं.

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वी शांताराम ने अपने करियर में चालीस से ज्यादा फिल्में बनाईं. जिसमें से आधी फिल्में ‘बायलिंगुअल’ थीं.  दो आंखे बारह हाथ की शूटिंग के दौरान वी शांताराम को आंख में गंभीर चोट भी लगी थी. इस बात का खतरा था कि वी शांताराम की आंखों की रोशनी चली जाएगी. लेकिन भगवान की दुआ से उनकी आंखों की रोशनी बची रही. जिसके बाद उन्होंने 1959 में नवरंग फिल्म भी बनाई.

इस फिल्म के बाद से वी शांताराम का जादू फीका पड़ने लगा. साठ और सत्तर के दशक में समाज ने उनकी फिल्मों को वो प्यार नहीं दिया जो उन्हें मिला करता था. वो लगभग फिल्मों से दूर हो चुके थे. 1987 में उन्होंने झांझर नाम की एक फिल्म सिर्फ इसलिए बनाई क्योंकि उन्होंने अपने नाती सुशांत रे से वायदा किया था वो उसे फिल्मों में लॉन्च करेंगे. इस फिल्म में पद्मिनी कोल्हापुरे ने भी अभिनय किया था. इस लंबे फिल्मी जीवन चक्र में वी शांताराम ने तमाम बड़े पुरस्कार हासिल किए. नेशनल फिल्म अवॉर्ड से लेकर दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड तक. 88 साल की उम्र में उनका निधन हुआ. जिसके करीब दो साल बाद उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया.