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अशफाकउल्ला खान: क्रांतिकारी जो चरखे से ताकत पाने की बात कहता था

अश्फाक और बिस्मिल की दोस्ती मिसाल है दोनों एक साथ दुनिया से गए मगर अंत समय में मिल नहीं सके

Animesh Mukharjee

अशफाक उल्ला खां वारसी उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में सन् 1900 में पैदा हुए. 1927 में उन्हें फांसी दे दी गई. महज 27 साल की छोटी सी उम्र में शेर-ओ-शायरी के शौकीन इस लड़के ने हिंदुस्तान के इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया.

काकोरी के कर्ता-धर्ता


1857 की क्रांति के बाद देश में दमन का लंबा सिलसिला चला. कुछ एक आवाजें अलग-अलग जगह से उठीं मगर क्रांति की कोई ऐसी घटना नहीं हुई थी जिसने अंग्रेज सरकार के माथे पर बल ला दिया हो. 1917 में गांधी ने आकर देश को विरोध का एक नया तरीका दिया, अहिंसा और सत्याग्रह. अशफाक भी शुरुआत में इसी तरीके को मानने वाले थे.

1921 में जब असहयोग आंदोलन चरम पर था तो अशफाक भी इसमें हिस्सा ले रहे थे. सबको लग रहा था कि देश आजाद हो जाएगा. मगर तभी अचानक से चौरी-चौरा की घटना हुई और महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया. अशफाक और तमाम लोगों को इससे धक्का पहुंचा.

अशफाक उनके परम मित्र रामप्रसाद बिस्मिल ने आठ साथियों के साथ मिलकर काकोरी स्टेशन पर ट्रेन से सरकारी खजाना लूट लिया. ब्रिटिश सरकार इस कांड से इतना दहल गई कि स्कॉटलैंट यार्ड से अफसरों को जांच करने के लिए बुलाया गया.  8 सितंबर, 1926 को अशफाक दिल्ली में पकड़ लिए गए.

दिल्ली में दोस्त ने दिया धोखा

अशफाक काकोरी से बनारस भाग निकले थे. इसके बाद बिहार में एक कंपनी में दस महीने तक काम करते रहे. अशफाक का इरादा गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने का था. इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से वो विदेश निकलना चाहते थे. मगर उनके एक बहुत भरोसेमंद दोस्त ने उन्हें धोखा दे दिया. और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया. यूं तो बागी का सिर्फ एक मजहब होता है क्रांति, मगर आज की सियासी जुबान में कहें तो अशफाकउल्ला खान भारत में 19वीं शताब्दी में गिरफ्तार और फांसी पर चढ़ने वाले पहले मुस्लिम हैं.

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काकोरी लूट में मुख्य 10 लोगों में बाकी आठ बनारस से राजेंद्र लाहिड़ी, बंगाल से सचींद्र नाथ बख्शी, उन्नाव से चंद्रशेखर आजाद, कलकत्ता से केशव चक्रवर्ती. रायबरेली से बनवारी लाल, इटावा से मुकुंद लाल, बनारस से मन्मथ नाथ गुप्त और शाहजहांपुर से ही मुरारी लाल थे. इसके अलावा 10 लोग षडयंत्र में शामिल थे. पुलिस ने अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रौशन सिंह और रामप्रसाद बिस्मिल को मुख्य आरोपी मानते हुए फांसी की सजा दी. बाकी लोगों को जेल और काले पानी पर भेज दिया गया.

पांच वक्त के पक्के नमाजी अशफाक जेल में अपने आखिरी समय तक नमाज अता करते रहे. जिक्र आता है कि उन्हें तय तारीख से पांच दिन पहले ही फांसी दे दी गई. जेलर को लगता था कि अंत समय में उनका विश्वास टूट जाएगा मगर अशफाक ने फांसी के फंदे के सामने खड़े होकर सबसे पहले रस्सी को चूम लिया.

अशफाक और बिस्मिल की दोस्ती की मिसाल दी जा सकती है. बताया जाता है कि एक बार अशफाक बीमार थे तो बेहोशी में राम-राम कह रहे थे. लोगों को कुछ देर तक समझ नहीं आया. दरअसल अशफाक रामप्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे थे. दोनों को एक साथ 19 दिसंबर, 1927 को फांसी दी गई मगर आखिरी वक्त में दोनों साथ नहीं थे. अशफाक की फांसी फैजाबाद में हुई और बिस्मिल की गोरखपुर में.

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उनकी कविता पढ़िए पता चलेगा कि क्रांतिकारी अशफाक के मन में महात्मा गांधी के प्रति भी पूरा विश्वास था.

कस ली है कमर अब तो, कुछ कर के दिखाएंगे,

आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे.

हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से,

तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे.

बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का,

चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे.