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गाय, कुत्तों को तो मिला, इंसानों को भी मिलेगा एक अदद चाहने वाला!

क्या अदना इंसानों के प्रवक्ताओं की अंतहीन तलाश भारतीय मानव सभ्यता की चुनौती बनी रहेगी?

Tarun Kumar

बतौर आस्थावान हिंदू मैं इस खबर से लाजिमी तौर पर पवित्र गर्व से लबालब भर गया हूं. यह अलग बात है कि एक अदना इंसान के नाते इस खबर से मेरी नाजुक संवेदना को तेज दुलत्ती भी लगी है.

सनातन हिंदू आस्था की साक्षात चौपाया देवी गोमाता को योगी सरकार ने एंबुलेंस सेवा समर्पित कर बुनियादी सुविधाओं के पायदान पर लड़खड़ाते-लंगड़ाते इस मुल्क को लेकर शेष दुनिया को भरपूर भौचक्का होने का मौका दिया है. इस दरियादिल चिंतन में सांस्कृतिक-धार्मिक-जातीय पहचान की दुधारू राजनीति समाहित है.


वोट-बैंक की राजनीति में इंसान कहां?

ऐसी पहचान-मूलक दुधारू राजनीति जो योगी, साक्षी महाराज, संगीत सोम को ही नहीं, बल्कि आजम खान, ओवैसी को भी खूब पसंद है. मुखर ईसाई हितवादी प्रवक्ता जॉन दयाल, जोसेफ डिसूजा को भी बहुत भाती है.

चूंकि गाय हिंदू वोट बैंक की सियासी पगुराहट की मां है इसलिए वह अदना इंसान से कहीं ज्यादा भाग्यवान होकर रुतबा पाने और भगवा दलों या भगवा सरकार को अपना प्रवक्ता बनाने में सफल है.

वहीं, इंसान सिर्फ इंसान बनकर गाय तो क्या, अन्य पशु-पक्षियों जितना भी भाग्यशाली होने के लिए संघर्षरत है! एक अदना इंसान जब तक हिंदू नहीं है, मुसलमान नहीं है, सिख नहीं है, ईसाई नहीं है, तब तक उसके हितों का रक्षक कौन है? उसका प्रवक्ता कौन है? उनके हितों का वकील कौन है?

यहां तक कि चीलों-कौओं-सियारों-नेवलों-कुत्तों आदि के जख्मों की चिंता करने वाले सैकड़ों समर्पित संगठन मिल जाएंगे, आम इंसान की चिंता भला किसे है?

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इंसानियत के प्रवक्ता किधर हैं?

देश में पशु-पक्षी से लेकर हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई और बौद्ध हितों के हजारों प्रवक्ता मिल जाएंगे पर अदना इंसान के प्रवक्ता किधर हैं?

हिंदू अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा के नाम पर अखिल भारतीय हिंदू महासभा, भारतीय गोरक्षा दल, विहिप, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, हिंदू युवा वाहिनी, हिंदू जागरण मंच की सनातन सतर्कता कितनी सघन है!

वहीं कोई मुहम्मद रसूल अगर बतौर मुसलमान किसी मजहबी चुटकुले का भी शिकार बन जाए तो दंगे की कैसी कातिलाना स्थिति बनती है. मामूली स्थानिक घटना को कैसे देशव्यापी परिघटना और महजबी संकट में तब्दील कर दिया जाता है!

असदुद्दीन ओवैसी, सलमान खुर्शीद, आजम खान, अबू आजमी के थुथने कैसे जहरीले बयानबाजी में फड़कते लगते हैं! जमातुल उलेमा-ए-हिंद, जमाते इस्लामी, इस्लामिक वेलफेयर सोसायटी, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरात, मुस्लिम लीग आदि की बयानबाजी की धार कितनी चोख हो जाती है!

अगर किसी चर्च में हवा का झोंका भी बाइबिल को मामूली नुकसान पहुंचा दे तो जॉन दयाल, जोसेफ डिसूजा, डॉमिनिक इमैनुएल जैसे ईसाई हितवादी प्रवक्ता कैसे इसे संपूर्ण ईसाइयत के लिए खतरे की घंटी बताकर दुनिया का ध्यान खींचते हैं!

कब होंगे दाना मांझी जैसे लोग हमारी संवेदना का हिस्सा?

वहीं कोई दाना मांझी तक तक हमारी मानवीय संवेदना का हिस्सा नहीं बनता जब तक कंधे पर बीवी की लाश उठाए उसकी दुखद और दयनीय तस्वीर वायरल न हो जाती है. जब तक उसे हजारों लोग शेयर न करें.

एक इंसान के रूप में वह अपनी तकलीफ की चरम स्थिति में भी पत्नी की लाश घर ले जाने के लिए एंबुलेंस का हकदार नहीं बन पाता. जाजपुर की पाना तिरिका जब एक अदना इंसान के तौर पर दुनिया से रुखसत होती है तो उसकी देह को बमुश्किल से रिक्शे का सहारा मिलता है.

यूपी की खुशनसीब गायों के लिए सुविधा संपन्न एंबुलेंस सेवा के शुभारंभ के समानांतर देश को शर्मसार करने वाली एक घटना इसी प्रदेश के वीआईपी इलाके इटावा में घटती है.

इटावा के युवक उदयवीर को जब अस्पताल से एंबुलेंस नहीं मिलता है तो वह बदनसीब अपने 15 साल के मृत बेटे को कंधे पर लेकर चल पड़ता है.

तस्वीर जब वायरल होती है तब सरकार शर्म से पसीने पोंछती है. जिस उत्तर प्रदेश ने गायों को एंबुलेंस सुविधा देकर सरकारी व्यवस्था का परम पवित्र करूणावान चेहरा दिखाया है, उसी के ललितपुर जनपद के जखोरा सामुदायिक केंद्र में एक चपरासी को कई मरीजों को इंजेक्शन देते कैमरे में कैद किया गया. डाक्टर की सुविधा होते भी डाक्टर नदारद.

आम इंसान के लिए मेडिकल सुविधाओं की हकीकत 

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अपने 100 अरब डालर से अधिक के हेल्थकेयर उद्योग में गो-एंबुलेंस सेवा का दुर्लभ ऐतिहासिक अध्याय जोड़ने वाले भारत में आज भी 62 करोड़ लोग खुले में शौच करने की संडासी बाध्यता से मुक्त नहीं. आज भी लाखों लोगों के लिए रेल की पटरियां फारिग होने के साधन हैं.

मेडिकल सुविधाओं की किल्लत के कारण देश में 17 लाख से अधिक मासूम एक साल पूरा किए बगैर दुनिया को अलविदा कह जाते हैं. आज भी अस्पताल के बाहर महिलाओं के प्रसव की दयनीय खबरें आती रहती हैं.

देश के 72 फीसदी शिशुओं और 52 फीसदी विवाहिताओं को रक्तल्पता से मुक्ति नहीं. दुनिया के 25 फीसदी भूखे हमारे देश की नियति में बिलबिला रहे हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट बताती है कि भारत भुखमरी से हलकान दुनिया के सर्वाधिक देशों की सूची में 67वें नंबर पर है.

1991 में अर्थव्यवस्था में खुलेपन की राह पकड़ने के बाद भले ही हम जीडीपी में 50 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज कर चुके हैं. पर आज भी दुनिया के एक तिहाई कुपोषित हमारे देश में हैं. गायों पर दरियादिली की खबर इन शर्मनाक आंकड़ों के बरक्स कैसी त्रासद विडंबना बुनती है!

किस पायदान पर खड़ा है इंसान? 

उपेक्षा और असंवेदनशीलता की मार झेलने वाली गायों के प्रति सरकारी की इस दरियादिली पर हमें कोई गुरेज नहीं है. न ही उन संगठनों से हमें शिकायत हैं जो पशु-पक्षियों की सेहत और अस्तित्व को लेकर चौबीसों घंटे चौकन्ना रहते हैं.

देश में पेटा, इन डिफेंस ऑफ एनीमल, हेल्प एनिमल्स इंडिया, स्ट्रे रिलीफ एंड एनिमल वेलफेयर, पीपुल फॉर एनिमल्स, प्लांट एंड एनिमल वेलफेयर सोसासटी, कंपैसेशन अनलिमिटेड प्लस एक्शन आदि जैसे अनगिनत वन्यजीव संगठन कुत्ते, सियारों, शेरों, कछुओं, गौरेयों और यहां तक कि चील-कौओं की जिंदगी और सेहत के प्रति सतर्क हैं.

उनके एंबुलेंस वन्यजीवों के लिए हमेशा अलर्ट मोड में होते हैं. इन जीवों को भी संकट की घड़ी में मददगार और प्रवक्ता मिल जाते हैं पर इंसान किस पायदान पर खड़ा है?

अस्पतालों के बाहर पैसे की कमी के कारण दम तोड़ देने वाले इंसानों की कौन सुनता है? पुलिस के हत्थे चढ़कर वसूली और झूठे मुकदमे के शिकार बन जाने वालों के मददगार कौन हैं?

पैसे के अभाव में बच्चों को स्कूलों से नाम कटवाने को बाध्य अदना गरीब अभिभावक की टीस से कौन वाकिफ होता है? न्याय की आस में दशकों अदालतों का चक्कर लगाने वाले शोषितों व गरीबों के प्रवक्ता और वकील कौन हैं?

सड़कों पर आवारा मौत मारे जाने वाले लोगों के आंकड़े किन्हें परेशान करते हैं? आदि-आदि! क्या अदना इंसानों के प्रवक्ताओं की अंतहीन तलाश भारतीय मानव सभ्यता की चुनौती बनी रहेगी?