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'सूट-बूट की सरकार' का जवाब है किसानों की कर्जमाफी

प्रधानमंत्री मोदी लगातार कोशिश कर रहे हैं कि गरीबों की हिमायती सरकार की छवि बने

Sanjay Singh

योगी आदित्यनाथ को अपने मंत्रिमंडल की पहली बैठक करने में तकरीबन एक पखवाड़े का समय लगा लेकिन रामनवमी के दिन उन्होंने नौ फैसले लिए. इससे जाहिर होता है कि उन्होंने फैसला लेने से पहले काफी होमवर्क किया और अपना वक्त एजेंडे की प्राथमिकताएं तय करने में लगाया.

पार्टी का संकल्प-पत्र पहले से मौजूद होने के कारण काम शुरू करने के लिहाज से बेशक वे फायदे की स्थिति में हैं. संकल्प पत्र के होने से प्रशासन का एजेंडा तैयार करने में उन्हें वक्त नहीं खपाना होगा. लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ मंत्रिमंडल की पहली बैठक को लेकर चर्चा कुछ ज्यादा ही सरगर्म हो उठी.


हाल के दिनों में किसी और सरकार को लेकर ऐसी सरगर्मी नहीं दिखी है. किसी और की बात तो जाने दें, यूपी के नए मुख्यमंत्री के रुप में योगी आदित्यनाथ भी मंत्रिमंडल की पहली बैठक के बारे में सरगर्म होती चर्चा को लेकर आगाह होंगे. उन्हें खूब पता होगा कि सामूहिक रूप से लिए गए उनके शुरुआती प्रशासनिक फैसलों की बड़ी बारीकी से जांच-परख की जाएगी.

यूपी सरकार के दो प्रवक्ताओं सिद्धार्थनाथ सिंह और श्रीकांत शर्मा के मंगलवार के दिन कैबिनेट के फैसलों की सूचना देने के पहले से यह बात साफ हो गई थी कि योगी सरकार ने लोगों की भावनाओं के अनुकूल फैसले लिए हैं, भले ही ये फैसले आर्थिक मोर्चे पर नुक्ताचीनी का विषय बनें.

प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावों से पहले एक बड़ा वादा किसानों की कर्जमाफी का किया था. ऐसा लोकलुभावन वादा मोदी ने पहली बार किया. उन्होंने कहा था कि सरकार बनी तो मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में छोटे और सीमांत किसानों के खेतिहर कर्जों को माफ कर दिया जाएगा. उस वक्त तक योगी का नाम मुख्यमंत्री के प्रत्याशी के तौर पर उभरा भी नहीं था.

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जाहिर है, किसानों की कर्जमाफी का वादा योगी आदित्यनाथ की पार्टी और इसके दो वरिष्ठ नेताओं ने किया था और इस वादे को पूरा करने की जिम्मेवारी बनती थी. बहरहाल, मुद्दे पर लोग इस उत्सुकता और अनुमान के साथ चर्चा में मुब्तिला थे कि किसानों को कर्जमाफी में किस परिमाण में राहत दी जाती है.

सवाल यह पूछा जा रहा था कि यूपी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और इससे जुड़े संस्थानों से लिए गये कृषि-कर्ज माफ करेगी या फिर सूबे के सहकारी बैंक और ग्रामीण बैंक से लिए गए कृषि-कर्ज ही माफ होंगे. पांच एकड़ से कम जोत के कुल 2.15 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों के 36,359 करोड़ रुपये के कृषि-कर्ज माफ किए गए हैं यानी हर किसान का औसतन 1 लाख रुपये का कर्जा माफ हुआ है.

साथ ही, सात लाख अन्य किसानों के कर्ज की राशि को नॉन परफर्मिंग असेट(एनपीए) यानी ऐसी परिसंपत्ति के अंतर्गत रखा गया है जिसकी वसूली नहीं हो सकती. इससे साफ पता चलता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा इससे जुड़े संस्थानों से लिए गए कृषि-कर्ज को भी कर्जमाफी के दायरे में शामिल किया गया है. इसे मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में लिया गया एक धमाकेदार फैसला कहा जाएगा.

अर्थशास्त्री, वित्तीय मामलों के जानकार और राजनेता अब यह कहते नजर आयेंगे कि इस लोक-लुभावन कदम से किस तरह दूसरे सूबों में भी किसानों की कर्जमाफी का दवाब बढ़ेगा और हानि-लाभ का गणित सोचे बगैर लिए गए इस फैसले से कैसे सूबे के राजकोष में कमी आएगी. बहरहाल, मोदी, योगी और बीजेपी कर्जमाफी के जरिए यह सियासी संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि कृषि-क्षेत्र और किसानों की दुर्दशा को लेकर वे सचमुच चिंतित हैं. बीजेपी इस मुकाम पर जाति और समुदाय की बाधाएं तोड़ सकती है. किसान-परिवार सत्ताधारी पार्टी के लिए सियासी तौर पर खूब फायदेमंद साबित हो सकते हैं.

देश में किसान-परिवारों की तादाद अच्छी-खासी है. किसानों की संख्या 12 करोड़ के आसपास है. देश की श्रमशक्ति का 25 फीसदी हिस्सा किसानों का है. किसानी के काम में फिलहाल मुनाफा बहुत कम है और कृषि-क्षेत्र में कार्यबल बीते कुछ सालों से कम हो रहा है.

यूपी कैबिनेट का एक और फैसला समान रुप से अहम है. सूबे में गेहूं की खरीद के 5000 केंद्र स्थापित होंगे. इन केंद्रों के जरिए 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं के उपार्जन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है जबकि अभी 5-7 लाख मीट्रिक टन गेहूं का ही उपार्जन होता है. फैसले में बिचौलियों को खत्म करने और गेहूं की खरीद का भुगतान सीधे किसान के बैंक खाते में करने की बात कही गई है जिससे भ्रष्टाचार की आशंकाएं कम हो जाएगी. यह फैसला किसानी के काम में लगे लोगों की आर्थिक दशा सुधारने के लिहाज से दूरगामी साबित होगा.

बीते दो सालों से प्रधानमंत्री मोदी बड़े सचेत भाव से लगातार कोशिश कर रहे हैं कि गरीबों की हिमायती सरकार की छवि बने. आलोचक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इस बात को लेकर आगाह होंगे कि मोदी की सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ कहा गया था. यूपी का चुनावी जनादेश और केंद्र की मोदी सरकार से पूरी तरह मेल खाता योगी आदित्यनाथ की यूपी सरकार का फैसला इस बात के इशारे कर रहे हैं कि सत्ताधारी बीजेपी एक बिल्कुल ही अलग रास्ते पर चल रही है. यह रास्ता है- ‘छोटे कदम बड़ा असर’.

पूर्वी यूपी के गाजीपुर जैसे पिछड़े इलाके में विशाल और खूब सारी सुविधाओं वाला स्पोर्ट्स-कॉम्प्लेक्स बनाने का फैसला भी काफी दिलचस्प है.( गाजीपुर संचार मंत्री मनोज सिन्हा का संसदीय क्षेत्र है. मनोज सिंहा को यूपी का मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा चली थी). खेल-परिसर के बनने से युवा प्रतिभाओं को आगे आने का मौका मिलेगा साथी ही इलाके के नौजवानों की ऊर्जा को एक रचनात्मक दिशा मिलेगी.

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अवैध बूचड़खानों पर रोक लगाने का योगी सरकार का फैसला मांस के वैध उत्पादकों और उपभोक्ता दोनों ही के लिहाज से सकारात्मक लगता है. यूपी में 26 बूचड़खाने अवैध हैं.

एंटी रोमियों स्क्वॉयड बनाने और अवैध बूचड़खानों को बंद करने को लेकर पुलिस और कानून-व्यवस्था बहाल रखने की अन्य एजेंसियों के अधिकारियों की शुरुआती प्रतिक्रिया ढीली-ढाली थी. सरकार ने भले तनिक हड़बड़ी में फैसला लिया हो और फैसले को लागू करने में थोड़ा ज्यादा ही उत्साह दिखाया हो लेकिन फैसले के अमल में आने से शासन में बदलाव और सूबे की प्रशासनिक मशीनरी के कामकाज के ढर्रे में तब्दीली का संदेश लोगों के बीच पहुंचा है.

यूपी में बीजेपी को 15 सालों के बाद सत्ता हासिल हुई है. इस बीच सरकारी कर्मचारियों और बाबुओं की एक नई पीढ़ी नमूदार हुई है. कर्मचारियों और बाबुओं की इस नई पीढ़ी का राजनीतिकरण भी खूब हुआ है.

बीजेपी को सूबे में भारी जनादेश मिला और योगी आदित्यनाथ बड़े हैरतअंगेज तरीके से प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. ऐसे में सरकारी बाबुओं और कर्मचारियों की नई पीढ़ी ने अपनी तरफ से जी-जान लगाकर काम किया ताकि उन्हें सूबे की नई सत्ताधारी पार्टी का तरफदार समझा जाय.

योगी आदित्यनाथ ने सूबे की राजनीति और अपनी पार्टी बीजेपी के भीतर नीतिगत बदलाव के एक नए विहान की शुरुआत की है.