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अयोध्या में बीजेपी को ललकार रहे शिवसैनिक दरअसल महाराष्ट्र साध रहे हैं!

2018 में अयोध्या पहुंचे शिवसैनिकों का मिजाज नब्बे के दशक में अयोध्या में जुटे शिवसैनिकों के मिजाज से एकदम उलट था

Ranjib

अयोध्या में जमावड़ा और निगाहें महाराष्ट्र पर. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का शनिवार से शुरू हुआ करीब चौबीस घंटे का अयोध्या दौरा और राम मंदिर निर्माण की पुरजोर मांग करने की एक बड़ी वजह उनके गृह प्रदेश की सियासत भी है. जहां शिवसेना को अपनी सहयोगी पार्टी बीजेपी को साबित करना है कि शिवसैनिकों की ताकत उससे उन्नीस नहीं बल्कि इक्कीस है. लिहाजा यह नाहक ही नहीं रहा कि शनिवार को बड़ी तादाद में अयोध्या पहुंचे शिवसैनिकों के तंज के निशाने पर बीजेपी ही थी. प्रतिक्रिया में बीजेपी के नेताओं की तरफ से भी जवाबी बयानबाजी हुई है.

शिवसैनिकों के निशाने पर बीजेपी


2018 में अयोध्या पहुंचे शिवसैनिकों का मिजाज नब्बे के दशक में अयोध्या में जुटे शिवसैनिकों के मिजाज से एकदम उलट था. उस दौर में शिवसैनिकों के उग्र तेवर तत्कालीन मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के तब के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के खिलाफ होते थे. उनके अलावा बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और कांग्रेस के कुछ नेता भी उनके निशाने पर हुआ करते थे. 6 दिसंबर 1992 को ढांचा विध्वंस का श्रेय लेते हुए शिवसैनिकों ने तब भी इन्हें ही अपना प्रतिद्वंदी मानते हुए इनके विरूद्ध बयानबाजी की थी.

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करीब छब्बीस साल बाद फिर एकबार शिवसेना के एजेंडे में जोर-शोर से अयोध्या की वापसी हुई है लेकिन अबकी शिवसैनिकों के निशाने पर बीजेपी है. शिवसेना के अयोध्या अभियान के नारे ‘हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार’ के नारे से भी यह साफ है क्योंकि केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह बीजेपी की ही सरकार है. शिवसेना के नेता संजय राउत ने अयोध्या में बयान दिया है कि शिवसैनिकों ने 17 मिनट में ढांचा ध्वंस कर दिया था तो मंदिर निर्माण का अध्यादेश लाने में केंद्र को इतना समय क्यों लग रहा है? यह काम तो 17 मिनट से भी कम समय में हो जाना चाहिए.

जवाब में बीजेपी की ओर से नब्बे के दशक में मंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे विनय कटियार ने पलटवार किया है. बकौल कटियार, ढांचा गिरने से पहले शिवसेना वाले कभी अयोध्या में दिखते नहीं थे. बाला साहब ठाकरे भी कभी नहीं आए. अब उद्धव ठाकरे आकर क्या कर लेंगे. दो ट्रेनों में आठ हजार लोगों से ज्यादा शिवसैनिक ही आए होंगे. उनका यहां कोई जन समर्थन नहीं.

दरअसल शिवसेना और बीजेपी के बीच महाराष्ट्र में शुरू हुई तनातनी का विस्तार अयोध्या तक पहुंचा है. यहां से आगे का रास्ता इन दोनों सहयोगी दलों को जुदा करेगा या नहीं काफी कुछ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के 11 दिसंबर के नतीजों से साफ हो सकता है. चुनावों में बीजेपी ने अपनी ताकत बरकरार रखी तो शिवसेना बैकफुट पर जा सकती है. वहीं नतीजे उलट रहे तो शिवसेना के तेवर और तीखे होना तय माना जा सकता है. यहां गौर करने वाली बात है कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के बाद सबसे ज्यादा 48 सीटें महाराष्ट्र में ही हैं.

उद्धव ठाकरे लगातार हमलावर होते गए हैं

लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना मिलकर लड़ पाएंगे उस पर फिलहाल तो संदेह है. शिवसेना कह चुकी है कि वह अकेले लड़ेगी लेकिन बीजेपी की ओर से कोशिशें जारी है कि गठबंधन न टूटे क्योंकि उसका लाभ कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को हो सकता है. इसके लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कुछ माह पूर्व उद्धव ठाकरे से उनके पास जाकर मुलाकात भी की है. महाराष्ट्र में गए साल-डेढ़ साल में बीजेपी-शिवसेना के रिश्ते लगातार बिगड़े हैं. उपचुनावों में भी दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ लड़े. यह भी सही है कि बीजेपी ने महाराष्ट्र में ताकत बढ़ाई है और जवाब में उद्धव ठाकरे लगातार हमलावर होते गए हैं. उन्होंने नरेंद्र मोदी को भी निशाने पर लिया है.

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अयोध्या पर शिवेसना का स्टैंड और बीजेपी को कटघरे में खड़ा करना महाराष्ट्र की सियासत में अपनी गोटें चलाने का ही हिस्सा माना जा रहा है. जिसके तहत वह खुद को ज्यादा बड़ा हिंदूवादी और रामभक्त साबित करना चाहती है. लेकिन उसकी इस मुहिम ने उसे गैर बीजेपी-गैर कांग्रेस दलों के पाले से भी अलग कर दिया है. बीते एक साल के दौरान उद्धव ठाकरे की ममता बनर्जी और शरद पवार से मुलाकातें, बीजेपी विरोधी तेवरों और मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में सरकार का साथ न देने से यह माना जा रहा था कि वे क्षेत्रीय दलों के करीब आ सकते हैं. अब अयोध्या पर शिवसेना के उग्र हिंदुत्व वाले तेवरों से यह भी साफ हो गया है कि ममता या पवार के साथ उद्धव की सियासी खिचड़ी पकने के आसार नहीं हैं.