सीपी जोशी किसी भी बात को विवादित अंदाज में बोलने में माहिर हैं. आप उनके बारे में यह बात तय मानकर चल सकते हैं. इसकी वजह है कि उन्हें अपनी भाषा पर काबू नहीं रहता- वो अक्सर ऐसा कुछ कह जाते हैं जिसे लेकर बखेड़ा खड़ा हो जाता है या फिर सियासी अखाड़े में उनके दुश्मन उनपर टूट पड़ते हैं.
आप चाहें तो इस बात पर अफसोस करें कि सीपी जोशी को बात-बात पर उटपटांग बोलने का मर्ज है जबकि सियासत की दुनिया में जिनकी अंगुली थामकर उन्होंने चलना सीखा उस शख्सियत का नाम मोहनलाल सुखाड़िया था. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सुखाड़िया की चुप्पी मशहूर थी, उन्होंने मौन को एक कला की तरह साध लिया था. इसकी एक वजह शायद यह भी थी कि उनके मुंह में हमेशा पान की गिलौरी रहा करती थी. यहां मकबूल फिल्म को वो सीन याद कीजिए जब पंकज कपूर एक राजनेता को मशविरा देते हैं कि गिलौरी खाया करो मियां, जुबान काबू में रहती है.
जोशी जी कितनी लंबी-चौड़ी हांकते हैं!
सीपी जोशी के साथ मुश्किल ये है कि वो सबकुछ बेधड़क और बेखटक सोचते हैं और ऐसे में कभी-कभी भूल जाते हैं कि कुछ बातें लोगों के सामने कहने की नहीं बल्कि अपने मन के भितरखाने छुपाकर रखने की होती हैं. लेकिन जोशी साहब को अपना बोला शायद बहुत प्यारा लगता है. वो अपनी आवाज पर मोहित हैं और ये मानकर चलते हैं कि उन जैसी तुक और तान की बात भला कोई और क्या कहेगा सो मन ही मन उन्हें यकीन रहता है कि उनको छोड़कर बाकी जो कोई भी है उसे आकर उनसे ज्ञान लेना चाहिए. आप जोशी जी के लिए बस श्रोता जुटा दीजिए, एक मंच सजा दीजिए और फिर देखिए कि जोशी जी कितनी लंबी-चौड़ी हांकते हैं!
हाल में राजस्थान की एक चुनावी रैली में हिंदू धर्म पर बोलते वक्त उनके साथ बिल्कुल ऐसा ही हुआ. जो लोग उन्हें जानते हैं वो जरूर ये मान लेंगे कि माहौल की रंगत भांपकर जबान फिसल गई और वो अपनी आदत के मुताबिक फिर से डेढ़ टांग की बात बोल गए कि: सिर्फ ब्राह्मण और पंडित ही हिंदूधर्म के बारे में बोल सकते हैं, उमा भारती जैसों को कोई हक नहीं कि वो धर्म के बारे में बोलें क्योंकि जोशी जी की तरह वो ब्राह्मण नहीं हैं. भाषण धारा-प्रवाह थी माने जो मन में आया सो सारा कह दिया! और, अपने बाकी एकालाप की तरह जोशी जी ने जाहिर है, इसे लोगों की दिलजोई की नीयत से ही सुनाया होगा. आखिर, लोगों के आगे उन्हें उपदेश झाड़ते चलने का मर्ज जो है!
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याद रहे कि जोशी जी कभी यूनिवर्सिटी में टीचर रह चुके हैं. और यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि आप एक प्रोफेसर को राजनेता बना सकते हैं मगर राजनेता के भीतर से उसका प्रोफेसर होना नहीं निकाल सकते. फिर, जोशीजी तो चे ग्वेरा के भी भक्त हैं और क्रांतिकारियों की कतार में अपने को चे ग्वेरा से कम नहीं समझते. जोशीजी विरोधाभासों के ढेर हैं. जन्म धर्मनगरी नाथद्वारा में और परवरिश ब्राह्मणी परिवेश में. चाव पढ़ने-पढ़ाने का और दिल में लहक मार्क्सवाद की.
इन सारी बातों ने एक साथ मिलकर जोशी जी को दिग्भ्रमित फिलॉस्फर बना डाला है जो खूब बोलता है और बोल-बोलकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार लेता है. जोशी जी का मामला कांग्रेस के एक और नेता मणिशंकर अय्यर से मिलता-जुलता है. वो भी खुद को लेकर खामख्याली में रहते हैं और दर्प उनका भी बिल्कुल द्विजों (ट्वाइस बॉर्न) वाला हैं कि दो दफे जन्म तो सिर्फ हमारा ही हुआ है- एक दफे देहधारी के रूप में जन्मे और दूसरी दफे दूसरों को ज्ञान की राह दिखाने के लिए!
जोशी की एक मुश्किल है कि अपनी मनभाई शैली में बहुत ज्यादा गलत बोलते हैं और इस कारण अक्सर उन्हें क्रोधी और अक्खड़ समझ लिया जाता है जबकि जरूरी नहीं कि हर बार उनका बोला क्रोध या अहंकार की ऊपज हो. यही वजह है जो उनका सियासी भविष्य सांप-सीढ़ी के खेल की तरह बन गया है. बस चंद महीने पहले वो राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद सिपाहसालारों में थे. रसूखदार महासचिवों में गिनती थी उनकी और उन्हें कई सूबों का प्रभार सौंपा गया था. इससे पहले, उन्हें यूपीए-2 की सरकार में काबीना मंत्री बनाया गया था जबकि वो पहली दफा निर्वाचित होकर संसद पहुंचे थे. ये सारे ओहदे उन्हें मिलते चले गए तो इसकी वजह रही यह विश्वास कि राहुल गांधी उनकी देखरेख राजनीति के दांव-पेंच सीख रहे हैं.
लेकिन ठीक उस घड़ी जब उनका करियर अपनी बुलंदी की सीढ़ियां चढ़ रहा था, उसे सांप ने डंस लिया. आज वो हाशिए पर हैं, कांग्रेस में उनके पास ताकत का कोई पद नहीं है और राजस्थान कांग्रेस के भीतर पीछे की कतार के नेता बनकर रह गए हैं जबकि एक वक्त उन्हें सूबे का संभावित मुख्यमंत्री माना जाता था.
राहुल गांधी का दिल उनकी बातों से ना टूटे तो जोशी जी खुशकिस्मत कहलाएंगे
हिंदू-धर्म के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा और जो यह दलील दी कि कांग्रेस की अगुवाई में बनी सरकार अयोध्या में राम मंदिर बनाएगी तो इसे उनके अवचेतन मन में कुलबुलाती एक इच्छा के रूप में देखा जाना चाहिए- वो चाहते हैं कि किसी तरह राहुल गांधी का ध्यान उनपर आ टिके. और, इसी नाते कांग्रेस को नरम हिंदुत्व की राह पर देखकर अपने मुंह से उन्होंने ऐसे बोल निकाले. लेकिन यह भी मुमकिन है कि उन्होंने बगैर वजन तौले अपनी बात कह दी हो, अपने इस यकीन के हाथों गुमराह हो गए हों कि उनके मुंह से जो कुछ निकलेगा वो गुरू-गंभीर ज्ञान और दर्शन से भरा हुआ होगा.
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एक दफे मैंने जोशी जी से पूछा था कि आपकी सबसे पसंदीदा फिल्म और गीत कौन सी है. उनका जवाब था कि क्लासिक का दर्जा प्राप्त उत्तम कुमार की अमानुष उनकी पसंदीदा फिल्म है और इसका सदाबहार गीत ‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा’ उनके दिल के करीब है. ऐसा बोल जाने के तुरंत बाद उन्होंने यह भी जोड़ा था कि गीत पसंद है तो इसका मतलब यह नहीं कि नौजवानी में उनका दिल किसी ने बुरी तरह तोड़ दिया हो, वजह बस इतनी भर है कि फिल्म आला दर्जे की है और गीत की धुन तथा कविता बेहतरीन है.
अब हालत ये है कि ब्राह्मणों की श्रेष्ठता की दावेदारी करके उन्होंने एक गैरजरूरी विवाद खड़ा कर दिया है और कांग्रेस के बोतल से राम-मंदिर का जिन्न भी बाहर ला खींचा है! ऐसे में उनके पास अपना पसंदीदा गाना गुनगुनाने की कई वजहें हैं. अगर उन्होंने ने सोच रखा था कि किस्मत के जोर से ही सही तुक्का लग जाएगा और सूबे का अगला मुख्यमंत्री उन्हें ही बनाया जाएगा तो उनका यह सपना अब हमेशा के लिए चकनाचूर हो चला है. अगर राहुल गांधी का दिल उनकी बातों से ना टूटे तो जोशी जी खुशकिस्मत कहलाएंगे. आखिर जोशी जी ने बीजेपी को यह मौका तो दे ही दिया है कि वो उन्हें राजस्थान का मणिशंकर अय्यर बना दे और भला यह कौन भूलेगा कि मणिशंकर अय्यर ने बड़बोलेपन में अपनी ही पार्टी पर चोट मार दी थी.
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