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यूपी चुनाव: सामूहिक आत्महत्या की तरफ बढ़ती समाजवादी पार्टी

समाजवादी पार्टी पिता मुलायम सिंह यादव व पुत्र अखिलेश यादव के बीच टूटने की कगार पर बैठी हुई है

सुरेश बाफना

पिछले छह महीनों से उत्तर प्रदेश में जारी समाजवादी पार्टी का फैमिली ड्रामा अब सामूहिक आत्महत्या की तरफ पहुंचता नजर आ रहा है. किसी भी क्षण चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर सकता है और समाजवादी पार्टी पिता मुलायम सिंह यादव व पुत्र अखिलेश यादव के बीच टूटने की कगार पर बैठी हुई है.

गुरुवार को लखनऊ में मुख्‍यमंत्री अखिलेश ने मुलायम के 325 उम्मीदवारों के जवाब में 235 उम्मीदवारों की सूची जारी करके यह घोषित कर दिया है कि उनका राजनीतिक रास्ता अब पिता मुलायम सिंह यादव से अलग हो चुका है.


बाप की बेटे के खिलाफ साजिश

आजादी के बाद भारतीय राजनीति का यह पहला फैमिली ड्रामा है, जिसमें पिता ने अपने छोटे भाई के साथ मिलकर पुत्र मुख्‍यमंत्री के खिलाफ लगभग साजिश की है. 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद जब शिवपाल यादव के विरोध के बावजूद अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब यह मान लिया गया था कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है.

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मुलायम सिंह यादव को उम्मीद थी कि वे 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में उभर सकते हैं. 2014 में जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो मुलायम की सभी उम्मीदों पर पानी फिर गया. पिछले दो साल में मुलायम ने मुख्यमंत्री अखिलेश के कामकाज के बारे में सार्वजिनक तौर पर नकारात्मक टि‍प्पणियां कर यह संकेत दिया था कि शायद वे फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं.

मुलायम की इस इच्छा का राजनीतिक इस्तेमाल भाई शिवपाल सिंह यादव ने भतीजे अखिलेश के खिलाफ जमकर किया. 2012 में शिवपाल बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को ही मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में थे. अब यह स्पष्ट हो रहा है कि मुलायम सिंह यादव जब शिवपाल सिंह यादव के साथ 325 उम्मीदवारों की सूची जारी कर रहे थे, तब खेल यही था कि विधानसभा चुनाव के बाद यदि फिर सपा को बहुमत मिल जाए तो मुलायम को मुख्यमंत्री बनाया जाए.

पुत्र अखिलेश यादव को लगता है कि उनके पिता की सेहत बेहतर नहीं है. उम्र का असर भी उन पर दिखाई देने लगा है. इस कमजोरी का बेजा इस्तेमाल करके चाचा शिवपाल उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश कर रहे हैं. अखिलेश यह मानते हैं कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत के असल हकदार वही है. दूसरी तरफ शिवपाल भी खुद को इस विरासत के हकदार मानते हैं.

सुलह की गुंजाइश खत्म

समाजवादी पार्टी के भीतर उत्तराधिकार की यह लड़ाई विधानसभा चुनाव के पहले ही निर्णायक दौर में पहुंच गई है. शुक्रवार को लखनऊ में इस फैमिली ड्रामा के तीन प्रमुख किरदारों के बीच जो कुछ हुआ, उससे अब यह संभावना पूरी तरह खत्म हो गई है कि इनके बीच किसी तरह की कोई सुलह हो सकती है.

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मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को दो टूक शब्दों में कह दिया है कि घोषित उम्मीदवारों की सूची में कोई बदलाव नहीं होगा और आपको जो अच्छा लगे वह करो. पिता-पुत्र के इस संघर्ष को पीढ़ी के संघर्ष रूप में देखा जाना चाहिए. मुलायम पुराने जातिगत फार्मूले के आधार पर फिर से सपा को सत्ता में लाने की उम्मीद कर रहे हैं, वहीं अखिलेश इस फॉर्मूले को अप्रासंगिक मानकर विकास व बेहतर कानून व्यवस्था के आधार पर चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं.

पिछले पांच सालों के दौरान अखिलेश यादव ने अपने शासन के माध्यम से अपनी एक सकारात्मक छवि निर्मित की है, जो पिता मुलायम के जातिगत समीकरण को तोड़ती है. सपा के घोर विरोधी भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश का चेहरा एक बड़ा फैक्टर बन गया है. सपा के भीतर भी अखिलेश ने परंपरागत जातिगत समीकरण से हटकर नया जनाधार विकसित किया है.

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जाहिर है कि सपा में चल रही इस पारिवारिक जंग से उत्तर प्रदेश की राजनीति का नक्शा पूरी तरह बदल जाएगा. यदि अखिलेश अलग पार्टी बना लेते हैं तो कांग्रेस पार्टी चाहेगी कि उनके साथ चुनावी तालमेल हो जाए. सपा में विभाजन होने के बाद क्या उसका मुस्लिम वोट बैंक भी विभाजित होगा या एकमुश्त बसपा के साथ चला जाएगा? इस सवाल का जवाब आनेवाले दिनों में ही मिलेगा. यह तय है कि सपा के टूटने का सबसे अधिक फायदा भाजपा व बसपा को ही मिलेगा. सपा के इस फैमिली ड्रामा पर अब बॉलीवुड वालों की भी नजर लगी हुई है.