view all

मटमैली रायबरेली में राहुल, शाहरुख और जस्ट गो टू हेल

रैली में आये ज्यादातर लोगों के बुझे-बुझे से दिल में फीके भाषण को सुनने के बाद क्या यही भाव नहीं उमड़ रहा होगा कि भाड़ में जाओ

Rakesh Bedi

रायबरेली में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बहन प्रियंका के साथ पहुंचे. पहुंचे क्या, ये कहिए कि जलवा-अफरोज हुए! वे हैलिकॉप्टर से उतरते हैं. हैलिकॉप्टर फुर्सतगंज से उड़कर रायबरेली पहुंचा है.

दोनों के जलवा-अफरोज होते ही भीड़ से स्वागत का कानफोड़ू शोर उमड़ता है. आगे मंच सजा है, मंच पर आस-पास के बुजुर्ग कांग्रेसी नेता आसन जमाए बैठे हैं. इनके भार से दबे जा रहे मंच पर दोनों भाई-बहन पहुंचते हैं तो स्थानीय नेता एक-एक करके उन्हें शॉल और माला से लाद देते हैं. मंच पर बैठे नेता बिना वक्त गंवाए गांधी-परिवार के कसीदे पढ़ने लगते हैं.


रायबरेली में गांधी-परिवार का स्वागत तकरीबन इसी रीति से होता है और हो भी क्यों न! आखिर अपनी मटमैली उदासी में लिपटी यह नगरी कई सालों से गांधी परिवार को चुनकर संसद में भेजती रही है.

प्रियंका संभाल सकता हैं कांग्रेस का नेतृत्व

गांधी परिवार की दो पीढ़ियों ने इस नगरी की धुंधलाती मशाल अपने हाथ में उठाई है. हो सकता है 2019 में यह मशाल गांधी-परिवार के तीसरे सदस्य के हाथ में जाए क्योंकि रायबरेली की फिजा में यह फुसफुसाहट है कि प्रियंका गांधी अपनी बीमार मां की जगह लेने के लिए तैयार हो रही हैं.

लेकिन 2019 के चुनाव में अभी दो साल की देरी है. और, सारे तोहफे कबूल फरमाने के बाद मंच पर पूरी खामोशी के साथ बैठी प्रियंका गांधी ही जानती हैं कि दरअसल उनके मन में नेतृत्व की बात को लेकर क्या चल रहा है. मुकामी नेताओं के एक सुर से कसीदे पढ़ लेने के बाद राहुल बोलने के लिए उठते हैं.

बात का फोकस 2017 और चल रहे चुनावों पर आ टिकता है जिसमें देश की सबसे पुरानी पार्टी, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन बनाकर लड़ाई के लिए उतरी है और समाजवादी पार्टी में भी बागडोर नेताजी ने अपने बेटे को थमा दी है या फिर जैसा कि कुछ लोग कह रहे हैं, बेटे ने ही बाप के हाथ से बागडोर छीन ली है.

मतलब यह कि दो सियासी खानदानों के चिराग अपना आधिपत्य कायम रखने के लिए उस बीजेपी से होड़ कर रहे हैं जिसकी कमान नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मजबूत और ताकतवर जोड़ी ने संभाल रखी है.

राहुल का भाषण आहिस्ते-आहिस्ते नोटबंदी के विषय की तरफ बढ़ रहा है और राहुल बताना चाह रहे हैं कि किसानों पर नोटबंदी का कैसा बुरा असर हुआ है और इसी बीच वे बोल पड़ते हैं 'मोदी जी दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के शाहरुख खान की तरह आए, वादा किया कि बड़े बदलाव लाकर रहूंगा लेकिन शोले के गब्बर सिंह बनकर रह गए.'

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड से पश्चिमी यूपी की स्वाद से भरपूर चुनावी यात्रा

दिलवाले! शोले! शाहरुख ! गब्बर! क्या यह हिंदुस्तानी सिनेमा के इतिहास की कोई बिन तैयारी की क्लास चल रही है? या फिर राहुल गठबंधन के अपने साथी अखिलेश की उस योजना के झांसे में आ गए हैं जिसमें यह हरियाली दिखायी गई है कि लखनऊ में एफटीआईआई की तर्ज पर एक संस्थान बनाया जाएगा?

शाहरुख-गब्बर में ही उलझे रह गए राहुल गांधी

रायबरेली का जीआईसी मैदान जालियांवाला बाग जैसा जान पड़ता है. मैदान को तीन तरफ से एक-दूसरे से सटकर खड़ी इमारतों ने घेर रखा है और इन इमारतों की कच्ची छत पर झुंड के झुंड लोग खड़े हैं, सुन रहे हैं कि युवा नेता उनके भविष्य के बारे में क्या बोल रहा है.

राहुल की आवाज गूंजती है 'शाहरुख गब्बर बन गया है.' डीडीएलजे दो दशक पुरानी फिल्म है. इस फिल्म ने हिंदुस्तानियों को सपने देखना सिखाया. उदासी की फीकी चादर में लिपटे भारतीयों का मन इस फिल्म ने एक नई रोशनी से रंग दिया.

वह 1991 का वक्त था और अर्थव्यवस्था के भीतर बस अभी-अभी खुलेपन की बयार बहनी शुरु हुई थी. देश आशा और उम्मीद की अंगड़ाई ले रहा था.

खाते-पीते मध्यवर्गीय परिवार के दो मनमौजी और अलमस्त युवा दिलों को आपस की ठंडी और सुकून से भरी वादियों में मोहब्बत करता दिखाकर डीडीएलजे ने हिन्दुस्तानियों के मन में अंगड़ाई लेते उम्मीद के ऐसे ही जज्बात को आवाज दी थी. कुछ कर दिखाने के इरादे वाले नए हिंदुस्तान की नुमाइंदगी थी इस फिल्म की कहानी में.

यह भी पढ़ें: पीछे मुड़कर देखो, मगर प्यार से..

मटमैले, वक्त की मार से पपड़ीदार और खोखली हो चुकी इमारतों पर चढ़े रायबरेली के लोग शायद नेता के मुंह से अपने बारे में कुछ और सुनना चाहते थे. कुछ ऐसा जो ठंडक पहुंचाए, जो हवा-हवाई कम और सच्चाई के करीब ज्यादा लगे. लोग निराश हुए और बड़ी तादाद में मैदान से बाहर जाने लगे.

तस्वीर: पीटीआई

राहुल नोटबंदी के खिलाफ बोल रहे हैं लेकिन वह आर्थिक मोर्चे से लिया गया फैसला था. उसे शाहरुख-गब्बर के फिल्मी मुहावरे में नहीं लपेटा जा सकता. जो लोग नोटबंदी की चपेट में हैं उन्हें यह बात पता चलनी चाहिए कि नई सरकार आएगी तो इसके असर को दूर करने के लिए क्या उपाय करेगी.

लोगों की दिलचस्पी से अलग था राहुल का भाषण

लोग यह भी जानना चाहते हैं कि जो किसान नोटबंदी की मार से बेहाल हुए वे चुनौती से जूझते हुए कैसे जिंदगी चला रहे हैं. लोग यह भी जानना चाहते हैं कि आखिर किसानों के आगे जो कठिनाई आई है उसे लोगों को बताने के लिए विपक्ष क्या कर रहा है.

राहुल ने सबको शुक्रिया कह अपना भाषण खत्म कर लिया है, वे अब अपने दूसरे पड़ाव की ओर बढ़ गए, बहन प्रियंका के साथ अपने उड़नखटोले पर सवार हो रहे हैं लेकिन लोगों के दिल पर मायूसी और मजबूरी का पहरा बदस्तूर कायम है.

कांग्रेस के नेता का भाषण सुनने रैली में आए कुछ लोग इलाहाबाद की ओर जाती सड़क के किनारे आबाद सुयश रेस्टोरेंट में थोड़ी देर को रुकते हैं. उन्हें सुस्ताना है, कुछ चाय-नाश्ता करना है.

रेस्टॉरेंट में शाहरुख की नई फिल्म का गाना बज रहा है. गायिका अपने ठसकदार आवाज में गा रही है: जस्ट गो टू हेल (भाड़ में जाओ!).और आप सोचते हैं कि रैली में आए ज्यादातर लोगों के बुझे-बुझे से दिल में इस बेस्वाद और फीके भाषण को सुनने के बाद क्या यही भाव नहीं उमड़ रहा होगा कि भाड़ में जाओ!