अखिलेश यादव को ‘साइकिल’ चुनाव चिन्ह मिलने के बाद अब सपा, लोकदल, कांग्रेस पार्टी व अन्य छोटे दलों के बीच बिहार की तरह महागठबंधन बनाने की कोशिश शुरू हो गई है.
2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बिहार व उत्तर प्रदेश में भाजपा-विरोधी दलों के भीतर खलबली मचा दी थी.
उत्तर प्रदेश में 42.3 प्रतिशत वोट लेकर भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा की 73 सीटों पर विजय पाकर अखिलेश यादव की सपा सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी.
भाजपा को मिली इस अभूतपूर्व सफलता के बाद ही अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन बनाने की ठान ली थी.
कांग्रेस से गठबंधन कर सकती है सपा
अखिलेश को लगा कि यदि भाजपा के विरोध में बिहार की तरह महागठबंधन नहीं बना तो भाजपा के विजयरथ को रोक पाना संभव नहीं होगा. 2014 को लोकसभा चुनाव में सपा को 22 व कांग्रेस को 7.5 प्रतिशत वोट ही मिले थे.
साइकिल मिलने के बाद अखिलेश ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन के सवाल पर निर्णय अगले 48 घंटों के भीतर हो जाएगा.
आज दिल्ली में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने भी स्वीकार किया कि दोनों दलों के बीच सीटों पर बातचीत हो रही है.
जब सपा के भीतर अखिलेश और पिता मुलायम के बीच भीषण राजनीतिक जंग चल रही थी, उसी दौरान अखिलेश की पत्नी व सपा सांसद डिम्पल यादव व प्रियंका गांधी के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत हुई थी.
सपा के भीतर पिता-पुत्र के बीच हुई जंग की एक वजह यह भी थी कि मुलायम सिंह यादव कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करने के पक्ष में नहीं थे, वही अखिलेश चाहते थे कि गठबंधन हो.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में एक महीने की किसान यात्रा करके और शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते थे, लेकिन वे अपने प्रयास में बुरी तरह विफल रहे.
आज राहुल गांधी को इस बात का अहसास हो गया कि यदि अकेले चुनाव मैदान में उतरें तो 2014 जैसा ही हाल होगा. इसलिए कांग्रेस पार्टी के पास सपा का पुछल्ला बनने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं था.
कांग्रेस पार्टी ने सपा से 130 सीटें मांगी हैं, लेकिन लगता है अखिलेश के सौ के आसपास सीटें कांग्रेस को देने के लिए राजी हो जाएंगे.
सबसे मुश्किल सवाल यह होगा कि ये सीटें कौन-सी होगी? सपा व कांग्रेस के लिए 48 घंटों के भीतर सीटों की पहचान करना आसान काम नहीं होगा.
इस गठबंधन की वजह से सपा और कांग्रेस के भीतर उन लोगों की संख्या भी कम नहीं होगी, जो टिकट न मिलने की वजह से बागी उम्मीदवार के रूप में खड़े हो जाएं.
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इन दिनों राहुल गांधी का मोदी-विरोध इतना बढ़ गया है कि वे किसी भी शर्त पर भी अखिलेश की सपा के साथ चुनावी गठबंधन करने के लिए राजी हो जाएंगे.
मुस्लिम वोट पर थी मायावती की नजर
बिहार की तरह कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में सपा के साथ तालमेल में ही कुछ चुनावी भविष्य दिखाई देता है. दूसरी तरफ सपा का मानना है कि सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन होने से मुस्लिम वोटों में होनेवाले विभाजन को रोका जा सकेगा.
बसपा नेता मायावती की एकमात्र उम्मीद यह थी कि सपा में होनेवाले विभाजन के चलते भाजपा को हराने के लिए मुस्लिम वोट एकजुट होकर बसपा को मिलेंगे.
अब एकजुट सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने से बसपा की परेशानियां बढ़ेगी. सपा में अखिलेश का नए नेताजी के रूप में उभरना कांग्रेस के लिए नए अवसर के रूप में है. मुलायम सिंह यादव को कांग्रेस पार्टी से ऐतिहासिक एलर्जी रही है.
भाजपा के नेता यह मानकर चल रहे थे कि ऊंची जातियों का 70-80 प्रतिशत उनके पक्ष में है, लेकिन सपा-कांग्रेस गठबंधन होने से ऊंची जातियों के मतदाता भी बड़ी संख्या में भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं.
सपा में अखिलेश के नए नेताजी के रूप में उभरने से भाजपा की चुनावी चुनौतियां भी कई गुना बढ़ गई हैं. 2014 लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत बेहद असान मानी जानी चाहिए.
वास्तविकता यह है कि भाजपा के नेता भी अनौपचारिक बातचीत में स्वीकार करते हैं कि अखिलेश के नए रूप के बाद जीत आसान नहीं है.
अखिलेश ने सपा को यादव-मुस्लिम के कटघरे से निकालकर सभी वर्गों की पार्टी बनाने का प्रयास किया है. यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन की राजनीति सफल रही तो 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को एकजुट विपक्ष का सामना करना पड़ेगा.