बेटे अखिलेश के हाथों में अब वो पार्टी है जिसे पिता ने अपनी मेहनत से खड़ी की. बेटे के पास वो चुनाव चिन्ह है जिसे मुलायम ने लोगों के दिलों में दौड़ाने का काम किया. अब चुनाव आयोग ने भी अखिलेश को आधिकारिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया यानी चाचा शिवपाल का खेल खत्म और पिता मुलायम संरक्षक/मार्गदर्शक.
लेकिन चुनाव आयोग के ऐलान के बाद अखिलेश सीधे पिताजी के पास दौड़े. यूपी चुनाव के लिये आशीर्वाद मांगा. साथ ही ये भी बता दिया कि उम्मीदवारों की लिस्ट में दोनों के बीच कोई मतभेद नहीं हैं. दोनों की लिस्ट में 90 प्रतिशत समानता है.
मुलायम ने मांगा शिवपाल के बेटे के लिये टिकट
मुलायम सिंह ने इतना सब कुछ गंवाने के बावजूद ‘कुछ बचा हुआ था’ वो भी अखिलेश को सौंप दिया.
जाहिर तौर पर
मुलायम अपने बेटे में अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तस्वीर को साफ देख रहे हैं और चाहते हैं कि बेटे की नई पारी में जीत के लिये कोई कमी न रह जाए. इसलिये इतना सब होने के बावजूद 38 उम्मीदवारों की लिस्ट सौंपी है. अखिलेश भी मुलायम का इशारा समझ चुके हैं क्योंकि अगर पापा का 38 पर जोर है तो वजह कुछ तो होगी. हो सकता हो चुनाव के बाद यही 38 पार्टी के लिये बड़ी भूमिका अदा करें.
मुलायम के घर हुई हाईलेवल मीटिंग
अब तस्वीर इतनी तेजी से बदल रही है कि माना जा रहा है कि अखिलेश उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट जारी करने से पहले मुलायम सिंह यादव की मंजूरी लेंगे.
दरअसल मुलायम के घर पर एक हाइलेवल मीटिंग हुई. जिसमें ये फैसला हुआ कि न तो अखिलेश का कोई विरोध होगा और न ही अखिलेश और उनकी पार्टी के खिलाफ कोई उम्मीदवार उतारा जाएगा. कोर्ट जाने की बात को दरकिनार करते हुए अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर सबने मंजूर कर लिया है. मुलायम का संदेश साफ है कि अब सबकुछ भुलाकर चुनाव की तैयारियों में जुटा जाए.
ऐसे में अब वो कयास खारिज हो गए कि मुलायम सिंह दूसरे चुनाव चिन्ह के साथ नई पार्टी लांच करेंगे. माना जा रहा था कि मुलायम सिंह 'लोकदल' को पुनर्जीवित कर सकते हैं. ‘हल जोतता किसान’ का सिंबल उनके लिये लकी भी रहा है. जसवंत नगर से वो लोकदल से ही चुनाव भी जीते.
मुलायम जान गए कि अखिलेश के साथ ही सबकी भलाई
मुलायम सिंह ने ये भी कह कर माहौल को गरमा दिया था कि अखिलेश ने मुस्लिमों की अनदेखी की है. यहां तक कि उन्होंने ये भी कहा था कि जरुरत पड़ने पर वो अखिलेश के खिलाफ मैदान में उतरेंगे. लेकिन पहलवान रहे नेताजी के बयान भी अखाड़े के दांव की तरह बदलने लगे हैं.
अब वो खुद 38 लोगों की लिस्ट अखिलेश को सौंप रहे हैं तो साफ है कि सपा-कांग्रेस-रालोद के साथ एक अदृश्य गठजोड़ मुलायम सिंह के रूप में भी हो रहा है.
चुनाव आयोग 'साइकिल' को फ्रीज नहीं कर सका क्योंकि पार्टी में टूट नहीं हुई थी. जाहिर तौर पर मुलायम ये नहीं चाहते थे कि उनकी बनाई साइकिल चुनाव आयोग के गैराज में हमेशा के लिये बंद हो जाए. इसलिये उन्होंने ‘जाने दो’ कि तर्ज पर जो हो रहा था उसे होने भी दिया.
अब मुलायम मार्गदर्शक के रूप में अखिलेश की सपा को दिशा दे रहे हैं जिससे साफ है कि मुलायम किसी नई पार्टी को लांच करने की जल्दबाजी या गलती नहीं करेंगे.
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